छात्रों का एक गुप्त नेटवर्क बांटता है गर्भनिरोधक और कंडोम
१ अक्टूबर २०२५
कहते हैं कि इंसान पानी की तरह होता है. रास्ता बंद हो, या अवरुद्ध हो, तो भी वो कहीं-ना-कहीं से अपना रास्ता खोज ही लेता है. बिल्कुल वैसे ही, जैसे माया रोमन ने तलाश किया. शिकागो की डीपॉल यूनिवर्सिटी की छात्रा माया अपने साथियों और कॉलेज के बच्चों को खास तरह की मदद मुहैया करा रही हैं.
माया उन्हें आपातकालीन गर्भनिरोधक दवाइयां, कंडोम और सेक्स एजुकेशन उपलब्ध कराती हैं. जरूरतमंद को बस एक मैसेज छोड़ना होता है. मैसेज मिलने पर माया एक तय जगह पर पहुंचती हैं और जरूरतमंद को कागज का एक थैला थमा देती है. जरूरत के मुताबिक, थैले में कंडोम और इमरजेंसी गर्भनिरोधक दवाइयां होती हैं.
माया बताती हैं कि उनके कैंपस में केवल यही एक तरीका है, जिससे स्टूडेंट्स को थोड़ी-बहुत सेक्शुअल हेल्थ मिल पाती है. डीपॉल एक कैथोलिक यूनिवर्सिटी है और कॉलेज कैंपस में किसी भी तरह के गर्भनिरोधक बांटने या इस्तेमाल करने की सख्त मनाही है.
क्या है "द वूम्ब सर्विस"
यह एक अंडरग्राउंड सीक्रेट ग्रुप है, जिसे कॉलेज परिसर में यौन मुद्दों पर छात्रों की मदद के लिए शुरू किया गया है. छात्रों ने ही एक गुप्त नेटवर्क बनाया और उसे नाम दिया "द वूम्ब सर्विस."
अमेरिका में नौजवानों का एक समूह है, प्लैन्ड पैरंटहुड जनरेशन एक्शन. यह समूह लोगों को सुरक्षित सेक्स के लिए जागरूक करता है. ये बच्चे पैदा करने में महिला की इच्छा "प्रो चॉइस" का समर्थक है और इसके पक्षधरों को संगठित करता है. साथ ही, प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर विमर्श को प्रोत्साहित करता है. 'द वूम्ब सर्विस' इसी का कैंपस चैप्टर था, लेकिन जून 2025 में यूनिवर्सिटी ने इसपर पाबंदी लगा दी. तब से ही यह कैंपस के बाहर से काम कर रहा है.
धार्मिक नियम बनाम छात्रों की जरूरत
अमेरिका की ज्यादातर कैथोलिक विश्वविद्यालयों का यही हाल है. चर्च की मान्यताओं के अनुरूप शादी के पहले सेक्स और गर्भनिरोधक का इस्तेमाल, दोनों को हतोत्साहित किया जाता है. ऐसे में कैंपस या यूनिवर्सिटी-हेल्थ सेंटर पर कंडोम या गर्भनिरोधक दवाएं नहीं मिलतीं. कई छात्र इस व्यवस्था से सहमत नहीं हैं.
समाचार एजेंसी एपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, छात्र रेखांकित करते हैं कि कैंपस में पढ़ने वाले सभी कैथोलिक नहीं हैं और यह सुविधा सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए.
डीपॉल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने ग्रुप पर बैन इसलिए लगाया कि वह 'प्लैन्ड पैरंटहुड' से जुड़ा था. यह अमेरिका में गर्भपात सेवा मुहैया कराने वाला बड़ा समूह है. यूनिवर्सिटी का तर्क है कि उसे अपने मूल्यों और मिशन के हिसाब से तय करने का अधिकार है कि कैंपस में क्या चीजें बांटी जाएं और क्या नहीं. मगर बहुत से छात्र इन दलीलों से सहमत नहीं हैं. जैसा कि माया रोमन एपी को बताती हैं, "हमें जब बैन किया गया, तो मैं हैरान रह गई. बहुत निराशा हुई."
अमेरिका में गर्भपात बड़ा मुद्दा
यह बहस केवल कॉलेज कैंपस तक सीमित नहीं है. अमेरिका के कई रिपब्लिकन-शासित राज्यों में गर्भनिरोधक साधनों पर पाबंदियां बढ़ रही हैं. कम आय या जरूरतमंद लोगों के लिए अमेरिका के स्वास्थ्य बीमा प्लान 'मेडिकएड' से भी आपातकालीन गर्भनिरोधक(प्लैन बी) को बाहर किया जा रहा है. कहीं- कहीं तो नाबालिगों के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य किए जाने का प्रस्ताव है. वहीं, कई जगह गर्भनिरोधक से जुड़ी सरकारी वेबसाइटों की जानकारी तक हटा दी गई.
ऐसा नहीं कि पॉलिसी के स्तर पर समूचा अमेरिका एक ही दिशा में हो. मसलन इलिनॉय में डेमोक्रेट गवर्नर जे.बी. प्रिट्जकर ने कानून पास किया है कि पब्लिक यूनिवर्सिटी को अपने हेल्थ सेंटर और फार्मेसी में गर्भनिरोधक और गर्भपात की दवाएं उपलब्ध करानी होंगी. लेकिन यह नियम निजी, खासकर कैथोलिक कॉलेजों पर लागू नहीं होता.
छात्र अपने तरीके से इस समस्या से निपट रहे
माया अर्थशास्त्र की छात्रा हैं. वह बताती हैं कि उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य की समझ अपनी मां से मिली, जो नर्स हैं. कैंपस आने के बाद माया को महसूस हुआ कि उनके कई साथी इस विषय में बहुत कम जानकारी रखते हैं. और जब जरूरत पड़ी, तो संसाधन भी नहीं मिले. अब उनके ग्रुप को हफ्ते में 15 से 25 ऑर्डर मिलते हैं. वे सेमिनार भी कराते हैं, ताकि छात्रों को सेक्स एजुकेशन पर सही जानकारी दी जा सके.
शिकागो की ही एक और कैथोलिक यूनिवर्सिटी 'लोयोला' में 'स्टूडेंट्स फॉर रिप्रोडक्टिव जस्टिस' नाम का ग्रुप इसी तरह कंडोम, प्रेग्नेंसी टेस्ट और आपातकालीन गर्भनिरोधक दवाइयां लोगों तक पहुंचाता है. कभी-कभी एक ही रात में 20 ऑर्डर आ जाते हैं. वे "फ्री कंडोम फ्राइडे" नाम का एक दिन भी रखते हैं, जब बस स्टॉप पर कॉन्डोम बांटे जाते हैं.
यूनिवर्सिटी ने इस ग्रुप को आधिकारिक मान्यता देने से इंकार कर दिया. इसकी एक सदस्य एलिसा सौरेज टिनियो बताती हैं, "लोयोला विश्वविद्यालय का नारा है, क्योरा पर्सोनलिस. यानी, इंसान के पूरे शरीर की देखभाल. लेकिन असल में वे इस वादे पर खरे नहीं उतर रहे."
नॉत्रे डैम यूनिवर्सिटी में भी 2017 में छात्रों ने 'आयरिश 4 रिप्रोडक्टिव हेल्थ' नाम का संगठन बनाया. उन्होंने अदालत में याचिका डाली कि यूनिवर्सिटी अपने छात्रों और कर्मचारियों को प्रजनन-नियंत्रण साधनों की कवरेज क्यों नहीं देती. आज यह संगठन ऑफ-कैंपस गर्भनिरोधक बांटता है.
क्यों जरूरी है यह लड़ाई?
बड़ी संख्या में विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भनिरोधक तक पहुंच ना होना छात्रों के जीवन पर गहरा असर डाल सकता है. उनके करियर, पढ़ाई और परिवार की योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं.
'इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन सोसाइटी' ने साल 2020 से कॉलेजों में ऐसी 150 वेंडिंग मशीन लगाई हैं, जहां छात्र आसानी से दवा खरीद सकें. लेकिन कैथोलिक विश्वविद्यालयों में छात्रों को छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करनी पड़ती है, जैसे लोगों तक गुपचुप एक थैला पहुंचाना जिसमें उनकी जरूरत का सामान हो.
डीपॉल के छात्र अब नए नाम से रजिस्टर हुए हैं, स्टूडेंट्स यूनाइटेड फॉर रिप्रोडक्टिव जस्टिस. उन्होंने इस सेमेस्टर में भी गर्भनिरोधक बांटने का काम जारी रखने का फैसला किया है. जैसा कि माया कहती हैं, "यह काम मुश्किल है, लेकिन मुमकिन है. सबसे जरूरी बात, इस लड़ाई में आप अकेले नहीं हैं."