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समाजएशिया

चीन में उइगुर मुसलमान को मौत की सजा, वजह माओ के दौर की

१ फ़रवरी २०२२

चीन में अल्पसंख्यक उइगुर मुस्लिम समुदाय के एक शख्स को मौत की सजा सुनाई गई है. ऐसा उन कहानियों की वजह से किया गया, जिन्हें कभी गर्व से कहा-सुना जाता था.

China | Textbooks
चीन में इतिहास की तमाम घटनाओं की दोबारा व्याख्या का ट्रेंड देखने को मिल रहा है.तस्वीर: Andy Wong/AP/picture alliance

चीन की सरकार ने अपने अल्पसंख्यक उइगुर समुदाय के एक शख्स को मौत की सजा सुनाई है. साथ ही, तीन अन्य लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. चीन में अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार या भेदभाव के आरोप नए नहीं हैं, लेकिन इस मामले में सजा सुनाने की वजह दिलचस्प है. इन चार उइगुर मुसलमानों को प्रतिरोध की ऐतिहासिक घटनाओं पर पिछले साल एक ऐसी किताब बनाने के लिए सजा सुनाई गई है, जिसे एक वक्त में देश की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी मंजूरी दे चुकी है.

चीनी मीडिया ने आपत्तिजनक बताई जा रहीं तस्वीरों और कहानियों पर एक डॉक्युमेंट्री प्रसारित की है. समाचार एजेंसी एपी ने इन तस्वीरों और कहानियों की समीक्षा की है. साथ ही, किताब तैयार करने से जुड़े लोगों के इंटरव्यू लिए हैं. एपी ने पाया कि दो चित्र 1940 के आंदोलन पर आधारित हैं, जो अब तक चले आ रहे नैरेटिव में फिट माने जा रहे थे. यहां तक कि 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना करने वाले माओत्से तुंग ने भी इस आंदोलन की तारीफ की थी.

अब कम्युनिस्ट पार्टी की दिशा बदल चुकी है. इसी के साथ ऐतिहासिक घटनाओं की नए सिरे से व्याख्या की जा रही है, जिसका नतीजा चुनिंदा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है. वहीं छात्र-छात्राओं को अपनी ही ऐतिहासिक धरोहर के बने-बनाए एक हिस्से से वंचित रहना पड़ रहा है.

चीन में निशाने पर उइगुर मुसलमान

यह मामला चीन में उइगुर और अन्य मुस्लिम समूहों पर बड़े पैमाने पर हो रही कार्रवाई की एक बानगी भर है. यही वे घटनाएं हैं, जिन्हें उभारने के मकसद से अमेरिका समेत तमाम देशों ने बीजिंग में होने जा रहे विंटर ओलंपिक्स का राजनयिक बहिष्कार किया है. वैश्विक मामलों के जानकार, सरकारें और मीडिया दस्तावेजों के मुताबिक चीन में करीब 10 लाख उइगुर मुस्लिमों को हिरासत में रखा गया है. मस्जिदों को तोड़ा गया है और जबरन नसबंदी और गर्भपात कराया गया है.

चीन उइगुर मुसलमानों को हिरासत केंद्रों में रखता है, जिन्हें सांस्कृतिक सुधार केंद्र नाम दिया गया है.तस्वीर: Willy Kurniawan/REUTERS

चीनी सरकार किसी भी किस्म के मानवाधिकार हनन से इनकार करती है. सरकार अपने फैसलों को शिनजियांग प्रांत में अलगाववाद और चरमपंथ से निपटने के तरीकों के तौर पर पेश करती है. अब किताब और किताब बनाने वाले अधिकारियों पर हमले बताते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी उइगुर समुदाय को दोबारा गढ़ने की राह पर कितना आगे बढ़ चुकी है. ऐसे में विद्वान और कार्यकर्ताओं को डर है कि पीढ़ियों से चला आ रही कहानियों में बसा उइगुरों का सांस्कृतिक इतिहास कहीं गायब न हो जाए.

नया नहीं है विवाद

पिछले साल अप्रैल में चीन की एक अदालत ने सत्तार सॉउत को मौत की सजा सुनाई थी, जो शिनजियांग शिक्षा विभाग के प्रमुख थे. कोर्ट ने कहा कि सत्तार अलगाववादियों के एक गुट की अगुवाई कर रहे थे, जो सांस्कृतिक नफरत, हिंसा और धार्मिक चरमपंथ से भरी किताबें बना रहे थे, जिसके कारण 2009 में लोगों ने जातीय संघर्ष में हिंसा की. हालांकि, कई बार ऐसे मामलों में अच्छे बर्ताव की वजह से मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी जाती है.

पिछले साल ब्रिटेन की राजधानी लंदन में उइगुर मुसलमानों के समर्थक में रैली निकाली गई थी.तस्वीर: Tayfun Salci/imago images/ZUMA Wire

जिन चित्रों के आधार पर सजा सुनाई गई है, उनमें से एक में एक शख्स दूसरे पर पिस्टल ताने दिख रहा है, लेकिन तस्वीर में दिख रहे दोनों ही लोग उइगुर हैं. एक का नाम गनी बतूर है, जो एक 'गद्दार' पर बंदूक ताने हुए हैं, जिसे उन्हें मारने के लिए भेजा गया था. 1940 के दशक में चीन में शासन करने वाली नेशनलिस्ट पार्टी के भेदभाव के खिलाफ जब बतूर ने मोर्चा खोला था, तो उन्हें एक हीरो की तरह देखा गया था.

1949 में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आ गई थी, जिसके बाद माओ ने उइगुर नेता एहमेतजान कसीमी को राष्ट्रीय सलाहकार बैठक में भी बुलाया था. माओ की स्वीकृति के बावजूद इतिहास के उस हिस्से पर चीनी शिक्षाविदों के बीच हमेशा बहस हुई है और यह दुश्मनी की दिशा में ही बढ़ा है.

जापान की संसद में प्रस्ताव

मानवाधिकार के मुद्दे पर चीन की दुनिया के तमाम देशों में आलोचना होती है. मंगलवार को जापान की संसद ने चीन में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चिंता जताते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है. इस प्रस्ताव में उइगुर मुस्लिमों के प्रति बर्ताव और हांग कांग का मसला प्रमुखता से रखा गया है. हालांकि, दो समूहों के बीच एक लंबी चर्चा के बाद प्रस्ताव की भाषा को नर्म करते हुए बीजिंग पर सीधे तौर पर मानवाधिकार हनन का आरोप नहीं लगाया गया है, लेकिन यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है, जब ओलंपिक की वजह से चीन पर सबकी निगाहें हैं.

अमेरिका और चीन, दोनों ही जापान के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं. जापान अपने किसी साझेदार को नाराज नहीं करना चाहेगा, इसलिए यह फूंक-फूंककर कदम रख रहा है. प्रस्ताव में शिनजियांग के अलावा तिब्बत, हांग कांग और इनर मंगोलिया का भी जिक्र किया गया है. साथ ही, जापान की सरकार ने प्रस्ताव में चीन से सही मुद्दों पर रचनात्मक रूप से शामिल होने अपील भी की है. हालांकि, चीन लंबे समय से उइगुर मुस्लिमों पर किसी तरह के अत्याचार से इनकार करता आ रहा है.

वीएस/एके (एपी, एएफपी)

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