वैज्ञानिक तब हैरान रह गए जब उन्होंने एक वनमानुष को जड़ी-बूटियों से अपने घाव का इलाज करते हुए पाया. कई जानवर बीमारी या चोट लगने पर अपना इलाज करते हैं.
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जानवर भी पौधों के औषधीय गुणों को जानते हैं और अपना इलाज भी कर लेते हैं. इस बात का एक और प्रमाण तब मिला जब वैज्ञानिकों ने एक वनमानुष को एक जंगली पौधे के पत्तों से अपना इलाज करते हुए पाया.
वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के दौरान पाया कि राकुस नाम का यह वनमानुष उसी पौधे की पत्तियां तोड़कर चबा रहा था, जिसे दक्षिण पूर्व एशिया में लोग औषधि के रूप में दर्द और जलन के इलाज के लिए इस्तेमाल करते हैं.
इस वनमानुष ने पहले पत्तों को चबाया, उसके बाद अपनी उंगलियों से उसके रस को अपने दाएं गाल पर लगी चोट पर लगाया. उसके बाद उसने चबाए हुए पत्तों से घाव को इस तरह ढक लिया जैसे पट्टी की जाती है.
अपना इलाज कैसे करते हैं जानवर
जंगली जानवर बीमार हो जाएं या चोट खा बैठें तो उनके पास डॉक्टर नही होता, लेकिन कुदरत की दी कुछ तरकीबें होती हैं जिनसे वे अपना इलाज कर सकते हैं. जानिए इन तरकीबों के बारे में.
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जूफार्माकॉग्नोजी यानी जानवरों द्वारा खुद ही इलाज
बीमार होना जानवरों को भी नहीं भाता. बहुत से जानवर बीमार होने पर अपना इलाज खुद कर लेते हैं. इसके लिए वे प्रकृति द्वारा उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल करते हैं. इस प्रक्रिया को जूफार्माकॉग्नोजी कहते हैं.चिंपैजियों पर अध्ययन
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एक दूसरे का इलाज
हाल ही में शोधकर्ताओं ने ध्यान दिया कि लोआंगो नेशनल पार्क में कुछ चिंपैंजियों ने हवा में उड़ते कीट-पतंगों को पकड़ा, उन्हें दांतों से पीसा और फिर अपने घावों पर मल लिया. शोधकर्ताओं ने पाया कि ये चिंपैंजी ना सिर्फ अपना बल्कि अपने साथियों का भी इलाज करते हैं.
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भालुओं से सबक
अमेरिकी काले भालू ओशा पौधे की जड़ों की औषधीय खूबियों को जानते हैं. उत्तरी न्यू मेक्सिको में अध्ययन करने वाले जीवविज्ञानी शॉन जीगश्टेट ने पता लगाया कि वे इसे गठिया के इलाज के लिए प्रयोग करते हैं. वह बताते हैं कि स्थानीय आदिवासियों ने इन जड़ों के बारे में भालुओं से ही जाना.
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कुत्तों की समझ
अगर आपने किसी कुत्ते को घास खाते देखा हो तो समझ जाइए कि वह औषधीय समझ रखता है. खराब पेट का इलाज करने के लिए कुत्ते घास खाते हैं. इससे उन्हें उलटी आती है और पेट के कीटाणु निकल जाते हैं.
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पक्षियों का अम्लीय स्नान
शोधकर्ताओं ने देखा है कि पक्षियों की 200 से ज्यादा प्रजातियां ऐसी हैं जो चींटियों की बांबियों पर बैठकर नहाने जैसी हरकतें करते हैं. दरअसल वे चींटियों को आकर्षित कर रहे होते हैं. इस तरह वे फॉर्मिग एसिड से अपने पंखों को ढक लेते हैं. इससे उनके पंखों में मौजूद कीटाणु खत्म हो जाते हैं.
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मेडागास्कर के लीमर
मेडागास्कर के गर्भवती बंदर हल्दी और अंजीर के पत्ते खाते हैं. इससे उन्हें दूध बनाने में मदद मिलती है और जन्म देने में भी आसानी होती है.
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प्राकृतिक जन्म
हाथियों का गर्भ 22 महीने का होता है जो बाकी सारे जानवरों से ज्यादा है. 22 हफ्ते के बाद केन्या के हाथी कुछ खास पेड़ खाते हैं और फिर बच्चों को जन्म देते हैं. केन्या में कुछ महिलाएं भी कुदरती रूप से बच्चों को जन्म देने के लिए उन्हीं पौधों का इस्तेमाल करती हैं.
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मशरूम से नशा
जानवर अपना इलाज ही नहीं करते हैं, वे नशा भी करते हैं. फिनलैंड और साइबेरिया के रेंडियर मशरूम खाकर नशा करते हैं. आदिवासी रेंडियरों से संवाद करने के लिए भी इन मशरूम का इस्तेमाल करते हैं.
तस्वीर: Kobalt
मछलियों का नशा
बीबीसी के लिए एक डॉक्युमेंट्री बनाते वक्त शोधकर्ताओं ने पाया कि डॉल्फिन मछलियां पफर मछलियों के साथ ‘खेल’ रही थीं. दरअसल, यह शिकार करने जैसी गतिविधि थी. तनाव में पफर मछलियां एक रसायन छोड़ रही थीं जिससे डॉल्फिन मछलियों को नशा हो रहा था.
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इस पूरे अध्ययन के बारे में एक शोधपत्र ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. पहले भी वानर जाति के बड़े जानवरों द्वारा जंगल में खुद का इलाज करने की घटनाएं दर्ज की गई हैं. अब तक वैज्ञानिकों ने पाया है कि ये बंदर जंगली पौधों का इस्तेमाल अपने इलाज के लिए करते हैं. लेकिन इस बार जिस तरह उन्होंने एक वनमानुष को घाव पर दवाई लगाते पाया है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया था.
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पहली बार देखा गया
शोधकर्ताओं में से एक, जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर में काम करने वालीं इजाबेला लाउमर कहती हैं, "यह पहली बार है जब हमने किसी जंगली जानवर को औषधि को अपने घाव पर सीधे लगाते हुए देखा है.”
यह घटना 2022 की है. तब इंडोनेशिया के मेदन में सुआक प्रोजेक्ट के दौरान वैज्ञानिक उलील अजहरी ने इस घटना को देखा और दर्ज किया था. उन्होंने घटना की तस्वीरें भी लीं. उन्होंने देखा कि महीनेभर में वनमानुष का घाव पूरी तरह ठीक हो गया. वैज्ञानिक 1994 से इंडोनेशिया के गुनुंग लेजर नेशनल पार्क में वनमानुषों का अध्ययन कर रहे हैं लेकिन इस तरह अपने घाव पर दवाई लगाते किसी को पहले नहीं देखा गया.
इस अध्ययन का हिस्सा नहीं रहे एमरी यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञानी जैकब्स डे रूड कहते हैं, "यह एक अकेला मामला है लेकिन अक्सर नए व्यवहार के बारे में जानकारी की शुरुआत पहले मामले से ही होती है.”
रूड कहते हैं कि बहुत संभव है कि यह अपना इलाज करने का मामला है. उन्होंने कहा कि वनमानुष ने सिर्फ घाव पर दवा लगाई, शरीर के किसी और अंग पर नहीं.
कहां से सीखा इलाज?
माक्स प्लांक की कैरोलाइन शुपली कहती हैं कि संभव है कि राकुस ने यह तकनीक अन्य वनमानुषों से सीखी, जो उस पार्क से दूर वैज्ञानिकों के रोज के अध्ययन के दायरे से बाहर रहते हों. राकुस का जन्म अध्ययन के दायरे में शामिल इलाके से बाहर ही हुआ था और उसका बचपन बाहर ही बीता.
इन शोधकर्ताओं का मानना है कि राकुस किसी अन्य जानवर के साथ लड़ाई में घायल हो गया. पहले कभी उसने इस तरह अपना इलाज किया है या नहीं, इसकी को जानकारी नहीं है.
इंसान और भालू कैसे रहेंगे साथ
स्पेन के कैस्टिल और लियोन में विशेष गश्ती दल स्थानीय लोगों और भालुओं की बढ़ती आबादी को एक साथ रहने में मदद कर रहे हैं.
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इंसान और भालुओं के लिए
स्पेन के आइबीरियन भूरे भालू जो एक समय लगभग विलुप्त हो चुके थे, अब देश के उत्तर में पहाड़ी गांवों में इतनी बार पहुंच जाते हैं कि कैस्टिल और लियोन में क्षेत्रीय सरकार ने निवासियों और लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के लिए नौ रेंजरों का एक गश्ती दल बनाया है.
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हमेशा निगरानी में
विशेषज्ञ और स्थानीय पशुचिकित्सक उन पहाड़ों की निगरानी करते हैं जहां आइबीरियन भूरे भालू रहते हैं. जानवरों के व्यवहार को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन्हें पकड़ा जाता है.
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बढ़ गई भालुओं की संख्या
भूरे भालू उत्तरी स्पेन के दो स्वायत्त क्षेत्रों के लिए खतरा बन गए हैं. ऐसे वयस्क भालू का वजन 250 किलोग्राम से अधिक हो सकता है. दो मीटर यानी साढ़े छह फीट लंबा यह भालू एक समय में विलुप्त होने के कगार पर था. 1990 में इनकी संख्या घटकर केवल 60 रह गई. फिर शुरू हुई भालुओं की सुरक्षा की खास पहल. उस पहल के कारण ही भालूओं की संख्या अब 400 हो गई है.
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भालुओं के लिए विशेष पिंजरा
कभी-कभी भालुओं को पकड़ने के लिए रिमोट-कंट्रोल पिंजरों का भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद उनमें जीपीएस कॉलर लगाया जाता है.
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इंसान और भालू साथ कैसे रहें
डेनियल पिंटो जीपीएस डिवाइस के साथ भालू की तलाश में निकले हैं. उन्होंने कहा, "हम भालुओं को सीधे निगरानी में रखने की कोशिश करते हैं. हम ऐसा वातावरण बनाने की भी कोशिश करते हैं जहां इंसान और भालू साथ-साथ रहें."
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सुरक्षा की चिंता
एंजेल्स ओरालो और उनके पति चाहते हैं कि उनके घर के बगल वाले सब्जी के बगीचे में जाने के लिए उन्हें भालुओं से सुरक्षा मिले. वन विभाग ने अभी तक अलग से कोई विशेष उपाय नहीं किया है.
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भालू नजर आए तो क्या करें
अगर स्थानीय लोगों को भालू दिखाई देता है, तो उन्हें 24 घंटे की हॉटलाइन पर रेंजर्स को कॉल करने और शांत रहने की सलाह दी गई है. रेंजर्स को जैसे ही कोई कॉल आती है, वे अपने रेडियो, रबर-बॉल शॉटगन और ट्रैकिंग डिवाइस ले लेते हैं और चेतावनी शॉट के साथ भालुओं को भगाने के लिए निकलते हैं. (रिपोर्ट: क्लॉडिया डेन)
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वैज्ञानिकों ने पहले भी कुछ वानरों को अपना इलाज करने के लिए पौधों का इस्तेमाल करते देखा है. बोर्नियन वनमानुषों को औषधीय पौधों का रस अपने शरीर पर मलते देखा गया है, जो शायद दर्द कम करने या परजीवियों को भगाने के लिए था.
दुनिया की अलग-अलग जगहों पर चिंपांजियों को अपना पेट दर्द ठीक करने के लिए पौधों की टहनियां चबाते देखा गया है. गोरिल्ला, चिंपांजी और बोनबोस पेट के कीड़े मारने के लिए किसी ना किसी तरह के पत्ते खाते पाए गए हैं.
डाएन फोसी गोरिल्ला फंड नामक एनजीओ में मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी तारा स्टोइंस्की कहती हैं, "अगर हमारे सबसे करीबी जीवित संबंधियों में से कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं तो यह दवाओं के विकास के बारे में हमें क्या बताता है?”