1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजएशिया

एक बगल में कलम है, एक बगल में ‘टोटियां’

स्वाति बक्शी
२२ मार्च २०२१

भारत के कई शहर पानी की भयंकर किल्लत से जूझ रहे हैं. जल प्रबंधन और बचाव से जुड़ी देशी और वैश्विक रिपोर्टों में बार-बार ये चिंता जाहिर की जाती है कि आखिर भारत जल संकट से कैसे निपटेगा.

आबिद सुरती ने सालों पहले अकेले ही शुरु किया था पानी को बचाने का महाअभियान.
आबिद सुरती ने सालों पहले अकेले ही शुरु किया था पानी को बचाने का महाअभियान.तस्वीर: privat

भारत के कई शहर पानी की भयंकर किल्लत से जूझ रहे हैं. जल प्रबंधन और बचाव से जुड़ी रिपोर्टों में बार-बार ये चिंता जाहिर की जाती है कि आखिर भारत जल संकट से कैसे निपटेगा. जून 2018 में जब भारत के नीति आयोग ने पहली बार संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक यानी कंपोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स प्रकाशित किया तो साफ तौर पर माना कि भारत में 60 करोड़ लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं और हर साल करीब 2 लाख लोगों की मौत दूषित पानी के इस्तेमाल से होती है. इस बात में कोई दो राय नहीं कि केन्द्रीय और राज्य सरकारों के प्रयास और व्यवस्थाएं निर्णायक भूमिका में हैं लेकिन छोटी-छोटी निजी कोशिशें बड़े बदलाव ला सकते हैं जैसे घरेलू स्तर पर पानी को बचाने के प्रयास.

ऐसा ही एक कीमती प्रयास है मुंबई में रहने वाले आबिद सुरती का, जिन्होंने सिर्फ अपने जुनून के सहारे घरेलू पानी बचाने की एक गैर-मामूली मुहिम शुरू की. 85 वर्ष के आबिद सुरती का नाम कार्टून, चित्रकारी और किताबों की दुनिया में दिलचस्पी रखने वालों के लिए नया नहीं है पर इन दिनों उनकी पहचान घर-घर जाकर टपकते नलों को ठीक करने वाले एक जल योद्धा की है. ये काम वो इतवार को दो-तीन घंटे लगाकर, मुफ्त में करते हैं. उनकी मुहिम की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि एक घर में अगर एक नल से एक मिनट में 60 बूंदे टपकती हैं तो दिनभर में 21 लीटर पानी बर्बाद हो रहा है. ये बात सिर्फ एक नल की है, सोचिए एक बिल्डिंग में अगर 50 फ्लैट हैं तो बर्बादी का आलम क्या है.

नलों की मरम्मत का सफर

मुंबई के डोंगरी इलाके में शुरूआती जिंदगी बिताने वाले आबिद सुरती, अब मीरा रोड पर रहते हैं और इस इलाके की बिल्डिंगों में जाकर टपकते नलों का मुंह बंद करते हैं ताकि पानी बर्बाद ना हो. उन्होंने ‘ड्रॉप डेड' नाम का गैर-सरकारी संगठन बना रखा है हालांकि वो इसके इकलौते सदस्य है. बहते नल दुरूस्त करने की शुरूआत उन्होंने साल 2007 में कुछ दोस्तों के घरों में नल ठीक करने से की. इरादा था कि बहते पानी का दर्द लोगों को समझाया जाए, फिर उन्हें लगा कि इस काम को बढ़ाना चाहिए. डॉयचे वेले से बातचीत में सुरती कहते हैं कि "पानी की कमी का मतलब मैंने डोंगरी के दिनों में देखा था इसलिए हमेशा से पानी बचाने के लिए कुछ करने का इरादा था. दोस्तों के घर से शुरू किया लेकिन मेरे पास कोई ऐसा सुनियोजित खाका नहीं था."

शुरुआती कठिनाइयों के बारे में बताते हैं, "मैं बस प्लबंर को साथ लेता और घरों के दरवाजे खटखटाता लेकिन मीरा रोड के इस मुस्लिम बहुल इलाके में रविवार को यूं दो मर्द किसी के घर पहुंच जाएं तो कुछ हिचकिचाहट लाजमी थी. धीरे-धीरे मेरी समझ बढ़ी तो मैने बिल्डिंग की देख रेख करने वाली कमेटी के सचिवों से इजाजत लेनी शुरू की. सोमवार को इसकी शुरूआत करके, बिल्डिंग के गेट, लिफ्ट या फिर नोटिस बोर्ड पर ड्रॉप डेड का पोस्टर चिपकाना शुरू किया. पूरे हफ्ते लोग पोस्टर को देखते रहते और जब इतवार को मैं पहुंचता तो लोगों को जानकारी हो चुकी होती थी कि हम कुछ बेच नहीं रहे हैं. हालांकि हमारे मुंह पर दरवाजे बंद भी हुए हैं लेकिन ज्यादातर लोगों ने सहयोग किया. फिर वॉलिंटियर भी मेरे साथ जुड़ गए तो काम आसान होता चला गया”. 

आबिद सुरती बताते हैं कि 2007-2008 के बीच उन्होंने 1,600 से ज्यादा घरों में दस्तक दी और 500 से ऊपर नल ठीक कर दिए. चूंकि वो अपने एनजीओ के अकेले सदस्य हैं तो रिकॉर्ड रख पाना बस में नहीं है और मकसद भी बस इतना है कि लोगों को पानी बचाने के लिए प्रेरित कर सकें.

पानी की बर्बादी और बेपरवाही

तेरह साल के अरसे में हजारों घरों से होकर गुजरने के बाद आबिद सुरती ने बहुत करीब से ये समझा है कि आखिर लोग पानी को लेकर इतनी लापरवाही क्यों बरतते हैं. नल ठीक ना करवाने की मध्यमवर्गीय आदत पर चर्चा करते हुए उन्होने कहा, इस लापरवाही की जड़ में एक बड़ा कारण दिन के हर वक्त पानी की मौजूदगी का बाजारवाद भी है. जब आपको ये कहकर घर बेचा जाता है कि हर समय पानी आता है, तो मानसिकता ये बनती है कि जब मेरे घर में भरपूर पानी आ रहा है तो बचाने जैसी कोई बात कहां से आई. वह कहते हैं, "मेरी मुहिम का आसपास तो असर हुआ है. मेरे घर में जब कोई मीरा रोड से आने वाला मेहमान हाथ धोता है तो नल थोड़ा ही खोलकर जरूरत भर का पानी इस्तेमाल करता है लेकिन किसी रईसों के इलाके से आए साहब हों तो पूरा नल खोल देंगे”.  

कोविड महामारी के दौरान जब लोगों के घर जाने का सिलसिला थम गया तो आबिद सुरती साहब ने अपनी मुहिम को चालू रखने के इरादे से सार्वजनिक शौचालयों, स्कूलों और दूसरी सरकारी बिल्डिंगों में जाकर नल दुरुस्त करना शुरू कर दिया. हर सूरत में अपना रास्ता बनाने के उनके तरीके और जुनून गौर करने लायक है.

2007-2008 के बीच उन्होंने 1,600 से ज्यादा घरों में दस्तक दी और 500 से अधिक नल ठीक कर दिए.तस्वीर: privat

जानकारी फैलाने के सांस्कृतिक तरीके

भारत सरकार का जल शक्ति मंत्रालय, एक नया मंत्रालय है जिसके जिम्मे पानी से जुड़े मसलों पर समेकित ढंग से काम करना है. मंत्रालय ने जल जीवन मिशन की घोषणा की जिसका प्राथमिक लक्ष्य साल 2014 तक ग्रामीण इलाकों में हर घर तक नल के जरिए पानी पहुंचाना है. यानी सरकारी नजरिया पानी पहुंचाने के संरचनात्मक ढांचे को बढ़ाने पर अहमियत देता है, पानी बचाने के तरीकों और जानकारी पर नहीं जबकि आबिद सुरती की मुहिम इस नजर से भी अहम है. वह बताते हैं कि धार्मिक विश्वास को सकारात्मक तरीके से अपने काम में शामिल करने से भी उन्हें पानी बचाने में सफलता मिली है. मीरा रोड के आस-पास के इलाके में करीब 50 मस्जिदों में जाकर उन्होंने इस्लामिक संदेश से प्रेरित पोस्टर लगाए , जिन पर हजरत मोहम्मद साहब का एक संदेश लिखा है कि अगर आप नहर के किनारे भी बैठे हैं तब भी पानी बर्बाद ना करें. इसका अनुभव साझा करते हुए वह बताते हैं कि एक दिन एक मस्जिद के मौलाना साहब ने उनसे कहा कि पोस्टर का असर ये हुआ है कि पहले मस्जिद में नमाजियों के हाथ-मुंह धोने से टंकी 80 फीसदी खाली हो जाती थी, अब वो 80 फीसदी भरी रहती है.

इससे उत्साहित होकर फिर उन्होंने मैंने मीरा रोड पर होने वाले गणेशोत्सव में जाकर गणपति की तस्वीर के साथ छपे पोस्टर लगाए, जिनका भी सकारात्मक असर ही दिखाई दिया. जाहिर है लोगों तक पहुंचने के लिए आबिद सुरती अपने तमाम हुनर यानि चित्रकारी, कार्टूनिस्ट दिमाग और जिंदादिल व्यवहार सब काम में लाते हैं.

इस्लामिक संदेश से प्रेरित पोस्टर लगाने का भी हुआ असर.तस्वीर: privat

इरादा और अपील

कोविड से पैदा हुई रुकावटों ने फिलहाल आबिद सुरती को घरों में दाखिल होने से रोक रखा है लेकिन उनके इरादों की उड़ान को रोकना मुमकिन नहीं. वो कहते हैं, "मुझ अकेले आदमी का एनजीओ चाह कर भी इस काम को बहुत दूर तक खुद नहीं कर सकता. ये काम मीरा रोड से पूरी मुंबई में फैलना चाहिए और पूरे देश में पानी बचाने के लिए पोस्टर लग जाएं तो मुझे लगता है बहुत असर पैदा किया जा सकता है. शहरों में लोगों को जगाने की जरूरत है. मेरी बस इतनी अपील है कि अगर कोई संस्था इस काम को आगे बढ़ाए तो मैं साथ में मुफ्त काम करता रहूंगा. मैं चाहता हूं कि कोई साथ आए और लाखों पोस्टर देश भर में लगाने का काम मेरे साथ मिलकर करे”.

आबिद सुरती अकेले जिस रास्ते पर चले, अब उस कारवां में वॉलिंटियर जुड़ते रहते हैं. वो प्लंबर और वॉलिंटियर से मुफ्त में काम नहीं करवाते. अपने खर्चों को सीमित रखकर अपनी जेब से ही पैसे देते हैं. उन्हे भरोसा है कि और लोग उनके काम को भारत भर में फैलाने के लिए आगे आएंगे और इस अभियान को देश के करोड़ों घरों के टपकते नलों तक ले जाएंगे.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें