मिस्र की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने यौन उत्पीड़न अपराधों के लिए कड़े कानून बनने के बाद उसे बेहतर ढंग से लागू करने का आह्वान किया है.
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मिस्र की संसद ने 11 जुलाई को यौन अपराधों के खिलाफ एक नए कानून को मंजूरी दे दी. महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों को पुनर्वर्गीकृत कर न्यूनतम सजा को एक साल से बढ़ाकर दो साल कर दिया गया है. वहीं जुर्माना भी कम से कम 6,400 डॉलर कर दिया गया है.
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कानून का स्वागत तो किया है, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि यह तभी प्रभावी होगा जब लागू करने वालों में सुधार किया जाएगा. उनका कहना है कि पुलिस, जजों और समाज में कानून के प्रति जागरूकता पैदा करने की जरूरत है.
सामाजिक रूप से रूढ़िवादी मिस्र में महिलाओं की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों में कानूनी संशोधन नवीनतम है. सालों से मुस्लिम बहुल देश में सैकड़ों लोग सोशल मीडिया का सहारा यौन उत्पीड़न की निंदा करने के लिए करते आ रहे हैं.
सराहनीय कदम
मिस्र में महिलाओं के कानूनी जागरूकता केंद्र और मार्गदर्न के निदेशक रेदा एलदानबुकी कहते हैं कि यह "सराहनीय कदम" है, लेकिन कानून को लेकर जागरूकता बढ़ाने और इसे लागू करना असली चुनौती है.
एलदानबुकी के मुताबिक, "कानून को लागू करना वास्तव में महत्वपूर्ण है. यौन उत्पीड़न के खतरों के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ाना
और कानून को लागू करने के लिए तंत्र तैयार करना होगा."
महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था की रंदा फख्र अल-दीन कहती हैं कानून का पुनर्वर्गीकरण से कानूनी प्रक्रिया और पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी का जोखिम है.
महामारी में गरीब महिलाओं पर कैसे टूटा कहर
भारत में कोरोना वायरस महामारी ने सभी तबकों को प्रभावित किया है. लेकिन लॉकडाउन में नौकरी सहित सभी परेशानियों के मामले में सबसे ज्यादा अगर किसी ने झेला है तो वह देश के कम आय वाले परिवारों की महिलाएं हैं.
कंसल्टिंग फर्म डालबर्ग द्वारा किए गए शोध के मुताबिक भारत में कम आय वाले घरों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक बार नौकरी से हाथ धोना पड़ा, उन्होंने अपने भोजन का सेवन और आराम कम कर दिया. कम आय वाले परिवार की महिलाओं ने घर की देखरेख और अपने बच्चों की देखभाल में ज्यादा समय बिताया. यह वो काम है जिसके लिए उन्हें वेतन नहीं मिलता है.
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दोबारा रोजगार के लिए लंबा इंतजार
शोध में 10 राज्यों में सर्वे में पहली लहर के असर की पड़ताल की गई है. इस शोध के मुताबिक महिलाओं ने बताया कि उन्हें दोबारा से काम या मजदूरी खोजने में भारी दिक्कत पेश आ रही है.
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कम खाया, परिवार के लिए भोजन बचाया
सर्वे में शामिल होने वाली 10 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कम खाना खाया या घर पर राशन खत्म हो गया. जबकि 16 प्रतिशत महिलाओं के पास माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड नहीं था.
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निजी सेहत पर भी असर
33 प्रतिशत से अधिक विवाहित महिलाएं गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं कर सकीं क्योंकि महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य तक उनकी पहुंच को बाधित किया.
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वेतन नहीं, घर का काम बढ़ा
43 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में लगभग 47 प्रतिशत महिलाओं ने घर के काम में बढ़ोतरी की बात कही. 41 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि बिना वेतन वाला काम बढ़ा है जबकि 37 प्रतिशत पुरुषों ने भी यही बात कही.
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महामारी में मुसीबत
सर्वे में शामिल 27 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें कोरोना वायरस महामारी के दौरान बहुत कम आराम मिला. ऐसा कहने वाले 18 प्रतिशत पुरुष भी थे.
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कार्यबल में महिलाएं
कोरोना वायरस महामारी से पहले 24 फीसदी महिलाएं कार्यबल का हिस्सा थीं, लेकिन नौकरी गंवाने वालों में इनकी संख्या 28 फीसदी थी. इनमें से 43 फीसदी की अब भी नौकरी नहीं लगी है.
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10 राज्यों में हुआ सर्वे
कोरोना महामारी के असर को जानने के लिए डालबर्ग ने भारत के दस राज्यों में कम आय वाले परिवारों की लगभग 15 हजार महिलाओं और 2,300 पुरुषों को सर्वे में शामिल किया.
अल-दीन के मुताबिक, "वास्तव में अब जो मायने रखता है, वह है आगे क्या होता है. यह महत्वपूर्ण है कि हिंसा करने वालों को जेल में डाला जाए, ना कि उन्हें छोड़ा जाए."
लंबी सजा, ज्यादा जुर्माना
नए कानून में अपराधियों के लिए जेल की पहले से ज्यादा सजा का प्रावधान है जबकि बार-बार अपराध करने वालों के लिए सजा को बढ़ाने के साथ-साथ जुर्माने को भी बढ़ा दिया गया है.
यौन हिंसा पर मिस्र में पिछले साल तब आंदोलन शुरू हुआ जब एक 22 वर्षीय छात्रा ने एक हाई-प्रोफाइल अभियान की शुरुआत की. कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म और ब्लैकमेल करने के आरोपी युवक की गिरफ्तारी की मांग को लेकर कई महिलाएं सामने आईं.
कुछ हफ्तों बाद इसमें एक सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया जिसमें शक्तिशाली, धनी परिवारों के नौ संदिग्ध शामिल थे. कई संदिग्ध गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन मई महीने में केस को अभियोजकों ने अपर्याप्त सबूत का हवाला देते हुए बंद कर दिया. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कदम की आलोचना की थी.
इसी साल अप्रैल में संसद ने महिला खतने के खिलाफ जुर्माने को और अधिक बढ़ा दिया था.
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
हाई हील्स परेड से फजीहत झेलता यूक्रेन का रक्षा मंत्रालय
महिला सैनिकों को हाई हील्स में परेड करवाने के बाद यूक्रेन का रक्षा मंत्रालय किरकिरी झेल रहा है. उस पर महिला सैनिकों का सम्मान करने के बजाए सेक्सिस्ट होने के आरोप लग रहे हैं.
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सम्मान या अपमान?
यूक्रेन की महिला सैनिकों की ये परेड हाई हील्स में करवाई गई. रक्षा मंत्रालय ने इन तैयारियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं. एक जुलाई को अपलोड की गई इन तस्वीरों के बाद रक्षा मंत्री और उनके मंत्रालय की कड़ी आलोचना हो रही है.
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बूट कहां हैं?
दुनिया भर की सेनाओं में बूट सैनिकों की वर्दी का अनिवार्य हिस्सा हैं. लेकिन यूक्रेन की इस परेड में महिला सैनिक फौजी बूटों और अपनी बंदूकों के बजाए सिर्फ हाई हील्स में नजर आईं.
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विवादों में घिरा आजादी का जश्न
24 अगस्त को यूक्रेन अपनी आजादी की 30वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. यह परेड राजधानी कीव में होने वाले समारोह की रिहर्सल थी.
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तनाव के बीच उड़ा मजाक
सोवियत संघ के विघटन के दौरान ही 24 अगस्त 1991 को यूक्रेन एक अलग देश बना. क्रीमिया और पूर्वी सीमा पर रूस के साथ हो रहे विवाद के बीच यूक्रेन आजादी का जश्न धूमधाम से मनाना चाहता है.
तस्वीर: imago images/ITAR-TASS/A. Marchenko
मंत्री भी करें हाई हील्स में परेड
यूक्रेन की संसद में विपक्ष की नेता इरीना गेराशेंको ने हाई हील्स में हुई इस परेड को अपमानजक करार दिया. उन्होंने कहा कि ऐसी परेड महिलाओं को सैनिकों के बजाए सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में पेश करती है.
तस्वीर: picture alliance/AA
सेना में महिलाओं की हिस्सेदारी
यूक्रेन की सेना में 31,000 से ज्यादा महिला सैनिक हैं. इनमें से करीब 13,500 महिलाएं 2014 में क्रीमिया में रूसी सेना का सामना कर चुकी हैं. सेना में शामिल महिलाओं में से करीब 4,000 सैन्य अफसर हैं.