भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में कथित कनवर्जन थेरेपी के खिलाफ कोई कानून नहीं है. इस कारण हजारों युवा और किशोर यातनाएं झेलने को मजबूर हैं.
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पवित्रा के परिवार वाले उसे बदलना चाहते थे. उसका लेस्बियन होना उन्हें स्वीकार नहीं था. वह बताती हैं कि पहले वे लोग उसे आम डॉक्टर के पास ले गए, फिर दिमाग के डॉक्टर को दिखाया जिसने पॉर्न देखने और लड़कों से सेक्स करने के बारे में सोचने को कहा. फिर स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास ले गए जिसने हॉर्मोन टेस्ट के नतीजे ठीक आने पर पवित्रा को केवल अनैतिकता का शिकार बताया.
अंत में सिद्धा वैद्य ने इलाज के नाम पर शराब पिलवाई और अगले 3-4 घंटे उसके साथ क्या हुआ इसका पवित्रा को होश तक नहीं. वह बताती हैं, "डॉक्टर ने मुझे इंटरनेट पर खूब पॉर्न वीडियो देखने को कहा, लेकिन लेस्बियन पॉर्न वीडियो को छोड़कर. उसने कहा कि पॉर्न वीडियो देखने से मुझे लड़कों के साथ संबंध बनाना अच्छा लगने लगेगा. मैंने डॉक्टर को बताया कि मुझे इन चीजों में दिलचस्पी नहीं है. सबसे पहली बात तो ये है कि ये सब केवल सेक्स के बारे में नहीं होता. मैं केवल सेक्स के लिए तो लेस्बियन नहीं हूं. इसका संबंध प्यार से है, भावना और आत्मा के स्तर पर जुड़ाव से है. मेरे लिए पहले प्रेम है, फिर वासना. लेकिन डॉक्टर तो मुझसे केवल सेक्स के बारे में बात कर रहा था."
हजारों ऐसी कहानियां हैं
सितंबर 2020 में पवित्रा ने घर छोड़ा और केरल चली गईं. लेकिन हर किसी को बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिलता. कुछ महीने पहले गोवा में 21 साल की बाइसेक्शुअल महिला अंजना हरीश ने कनवर्जन के नाम पर की गईं तमाम ज्यादतियां झेलने के बाद आत्महत्या कर ली थी.
इसके शिकार ज्यादातर किशोर या युवा लोग बनते हैं. अक्सर परिवार वाले उन पर दबाव डालकर तथाकथित थेरेपी करवाते हैं. इस थेरेपी के नाम पर जो दवाएं दी जाती हैं, उनके असर के बारे में पवित्रा बताती हैं, "मुझे उल्टी आती थी. भयंकर सिरदर्द रहता था. पूरे शरीर में दर्द रहता था. मुझे ऐसा टैबलेट दिया जा रहा था जिसका खूब साइड इफेक्ट होता था. मैं हमेशा सोती रहती थी. परिवार वालों को ये भी लगा कि कहीं मैंने आत्महत्या करने के लिए कोई और टैबलेट तो नहीं खा लिया. लेकिन मैं गहरी नींद में होती थी."
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इलाज के नाम पर यातनाएं
कनवर्जन थेरेपी के नाम पर किए जाने वाले इलाज का मकसद है गे, लेस्बियन या ट्रांसजेंडर लोगों को हेट्रोसेक्शुअल बनाना. मेडिकल पेशेवरों के अलावा काउंसिलर्स और धर्मगुरु भी ऐसे तथाकथित इलाज करने का दावा करते हैं.
कोरोना महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन और प्रतिबंधों ने एलजीबीटी प्लस लोगों को सामाजिक रूप से और अलग-थलग कर दिया है. केरल में क्वीराला नाम की संस्था से जुड़ीं राजश्री राजू बताती हैं, "कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान ऐसे मामले दोगुने हो गए. कई एलजीबीटीक्यू प्लस लोग घर में अपने उन परिवारों के साथ फंस गए थे जो उन्हें स्वीकार नहीं करते. परिजन उनके यौन झुकाव और लैंगिक पहचान का इलाज करवाने के लिए जबर्दस्ती उन्हें अस्पताल और डॉक्टरों के पास ले गए. यह तो हमारा एक राज्य का अनुभव है. आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे देश में रहने वाले एलजीबीटीक्यू प्लस लोग कितनी दिक्कतें उठा रहे हैं."
देखिए, हजारों साल पुराने सेक्स टॉयज
हजारों साल पहले भी इस्तेमाल होते थे सेक्स टॉयज
सेक्स टॉयज का नाम लेते ही लोग ऐसे शर्माने लगते हैं जैसे पता नहीं किस दुनिया की बात हो रही है. यौन सुख देने वाले ये खिलौने यानी सेक्स टॉयज हमारे पूर्वज भी इस्तेमाल करते रहे हैं. देखिए इनका लंबा चौड़ा इतिहास.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Bockwoldt
पहला डिल्डो
दुनिया का सबसे प्राचीन डिल्डो 28 हजार साल पुराना मिला है. यह मिला था जर्मनी में. प्राचीन ग्रीस और मिस्र में डिल्डो इस्तेमाल होता था. कच्चे केले से लेकर ऊंट के सूखे गोबर तक को डिल्डो के तौर पर प्रयोग किया जाता था. इसके अलावा, पत्थर, चमड़े या लकड़ी के डिल्डो भी होते थे.
तस्वीर: Phallus von der Hohle Fels/J. Lipták/Universität Tübingen
महिलाओं की बीमारी
बहुत समय तक सेक्स का मतलब होता था पुरुषों की संतुष्टि. इतने से महिलाएं संतुष्ट ना हो पातीं तो उन्हें बीमार कहा जाता. फिर उनका इलाज किया जाता. शादी के अलावा पानी की धार भी इलाज करने का ही एक जरिया था.
तस्वीर: Fleury/Siegfried Giedion
इलाज के लिए डॉक्टर
महिलाओं में असंतोष, जिसे उन्माद कह दिया जाता था एक ऐसा रोग बन गया जो हर जगह फैल रहा था. इसके इलाज के लिए डॉक्टरों या नर्सों की मदद ली जाती. और हाथ से छूना ज्यादा पसंद नहीं किया जाता था तो मेडिकल उपकरण इस्तेमाल किए जाने लगे.
तस्वीर: George Henry Taylor
डिल्डो से वाइब्रेटर तक
अमीर महिलाओं को अपने उन्माद का इलाज कराने का मौका ज्यादा मिलता था. डॉक्टरों को जल्द ही अहसास हुआ कि इसके लिए कोई औजार होना चाहिए. 1880 के दशक में इंग्लैंड के डॉ. जोसेफ मॉर्टिमर ग्रैनविल ने पहले इलेक्ट्रोमकैनिकल वाइब्रेटर को पेटेंट कराया.
तस्वीर: Collections of The Bakken Museum, Minneapolis, USA
और फिर विज्ञापन
20वीं सदी में आते-आते कंपनियां निजी इस्तेमाल के लिए वाइब्रेटर बनाने लगी थीं. पत्रिकाओं में रसोई के सामान के विज्ञापनों के साथ इनका भी विज्ञापन होता. इनके आलोचक कहते थे कि ऐसे तो स्त्रियों को पुरुषों की जरूरत ही नहीं रहेगी.
तस्वीर: Sears, Roebuck and Company Catalog
खोल दो
डिल्डो शब्द 1400 एडी का है. लैटिन शब्द डिलाट्रेट का अर्थ है चौड़ा करना. इटैलियन शब्द डिलेटो का अर्थ है खुशी. इन्हीं से निकला डिल्डो. इसके करीब 100 साल बाद इतालवी पुनर्जागरण काल में यौन सुख के लिए युक्तियां बनाई जाने लगीं.
तस्वीर: Vassil
पोर्न ने बदल दी दुनिया
1920 के दशक से पहले तक भी डिल्डो या वाइब्रेटर का इस्तेमाल उन्माद नाम की बीमारी को ठीक करने के लिए होता रहा. 1920 के बाद पोर्न फिल्मों में डिल्डो का इस्तेमाल सिर्फ यौन सुख के लिए हुआ तो सब बदल गया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Grimm
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वैश्विक सर्वे दिखाते हैं कि कनवर्जन थेरेपी के शिकार पांच में से चार लोग 24 साल से नीचे और लगभग 50 फीसदी लोग 18 साल से कम उम्र के हैं. यूरोप में माल्टा ने सबसे पहले इसे गैरकानूनी करार दिया था लेकिन जर्मनी समेत केवल पांच ही देशों में इस पर कानूनी रोक है.
कानून की जरूरत
अपनी लैंगिक पहचान एक बाइसेक्शुअल महिला के रूप में बताने वालीं राजश्री की संस्था ने कनवर्जन थेरेपी को पूरी तरह बैन करने की याचिका केरल हाईकोर्ट में दायर की है.
वह बताती हैं, "इससे प्रभावित ज्यादातर लोग पहले से ही हाशिए पर रहने वाले समुदाय से आते हैं. किसी को परिवार ने घर में कैद किया है तो कोई अपनी जीविका के लिए उन पर पूरी तरह आश्रित होता है. ऐसे में वे खुद तो सीधे रिपोर्ट करने की हालत में भी नहीं होते और जब हम डॉक्टरों से सवाल करते हैं तो वे सीधे सीधे मुकर जाते हैं. जब तक उसके खिलाफ कानूनी प्रावधान नहीं आता, तब तक हर मामले में पीड़ितों की तरफ से हमारा कुछ पाना संभव नहीं होगा. हर बार कुछ बुरा हो जाने के बाद दखल देना भी व्यवहारिक नहीं है. इसी वजह से हम इसका एक ठोस उपाय चाहते हैं. हमारी नजर में हर तरह की कनवर्जन थेरेपी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना एक ठोस उपाय है."
पवित्रा अपनी गर्लफ्रेंड मैरी प्रिंसी टीजे के साथ खुश रहने और थेरेपी के कारण पैदा हुए डिप्रेशन से बाहर आने की कोशिश कर रही हैं. भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से और इंडियन साइकिएट्री सोसायटी ने मानसिक रोग के दायरे से बाहर निकाला था. बेहद अमानवीय और बेअसर होने के बावजूद भारत समेत दुनिया के कई देशों में तथाकथित कनवर्जन थेरेपी अब भी कानूनी रूप से वैध है.
देखिए, जब प्यार होता है तो कैलरी जलती है
जब प्यार होता है, तो कैलोरी जलती है
प्यार में कुछ कुछ होता है, फिल्म का यह डायलॉग आपको मालूम ही होगा. लेकिन प्यार से सेहत भी बन सकती है, क्या ये बात आप जानते हैं? जानिए, कैसे प्यार आपको रख सकता है फिट...
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चुंबन, एक घंटे में 68 कैलोरी
एक जमाना था जब हिन्दी फिल्मों में हीरो हीरोइन के करीब आते ही दो फूलों को दिखा दिया जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. फिल्मों की बात और है पर अगर असल जिंदगी में आप अपने साथी को चूमते हैं, तो रिसर्च दिखाता है कि इससे आपका रिश्ता और गहरा होता है और सेहत भी अच्छी रहती है. अगर बहुत जोश के साथ किस किया जाए, तो एक घंटे में 90 कैलोरी तक जल सकती है.
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डर्टी डांसिंग, आधे घंटे में 100 कैलोरी
रोमांटिक और एरॉटिक डांस किसी खेल की ही तरह शरीर पर असर करता है. नाचने के दौरान आप अपने साथी के साथ फ्लर्ट कर सकते हैं, नृत्य की गति बढ़ा सकते हैं, अलग अलग तरह के मूव ट्राय कर सकते हैं. इससे शरीर में एड्रिनेलिन हार्मोन निकलता है.
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मालिश, 80 कैलोरी प्रति घंटा
खुद को तनाव मुक्त करने का यह बेहतरीन तरीका होता है. रिसर्च दिखाता है कि जो लोग नियमित रूप से मालिश करवाते हैं, उनकी मांसपेशियां भी तंदुरुस्त रहती हैं और अवसाद यानि डिप्रेशन में भी फायदा मिलता है. इसके अलावा प्यार के पलों में की गई साथी की मसाज से 80 कैलोरी तक जल सकती है.
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कपड़े उतारने में 8-10 कैलोरी
इटली के एक रिसर्चर ने पाया है कि प्यार के उन पलों में जब साथी एक दूसरे के कपड़े उतारने की कोशिश कर रहे होते हैं, तब आठ से दस कैलोरी जलती है. लेकिन अगर पुरुष बिना अपने हाथों का इस्तेमाल किए महिला के अंत: वस्त्र उतारे, तो ऐसे में वह 80 कैलोरी तक जला सकता है.
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संभोग, आधे घंटे में 144 कैलोरी
संभोग के दौरान रक्त प्रवाह तेज होता है, जिससे दिल की धड़कन बढ़ती है और चर्बी जलती है. आम तौर पर आधे घंटे में 144 कैलोरी. लेकिन अगर अलग अलग मुद्राओं का इस्तेमाल किया जाए, तो 207 कैलोरी तक जल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
पूरे कपड़ों के साथ, आधे घंटे में 238 कैलोरी
यदि संभोग के दौरान कपड़े ना उतारे जाएं, तो अधिक कैलोरी खर्च होती है. ऐसा इसलिए कि शरीर को कपड़ों के कारण ज्यादा गर्माहट महसूस होती है और ज्यादा पसीना बहता है. यह जिम में कसरत करने जैसा है.