1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

337 टन कचरा, 900 टन अवशेष: भोपाल का जहरीला सच

२ जनवरी २०२५

भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद टॉक्सिक कचरा अभी तक यूनियन कार्बाइड के परिसर में ही पड़ा हुआ था. सैकड़ों टन के इस कचरे को अब शहर से निकाल लिया गया है, लेकिन इसे नष्ट करने के प्रशासन के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं.

1984 में त्रासदी से पहले यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री की तस्वीर
यूनियन कार्बाइड का कचरे को फैक्ट्री के परिसर से हटाने और जलाने के लिए केंद्र सरकार 126 करोड़ रुपए खर्च कर रही हैतस्वीर: AP

बुधवार एक जनवरी को इस 337 टन कचरे को लीक प्रूफ थैलियों में भर 12 बंद ट्रकों में भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के लिए रवाना किया गया. काफिला गुरुवार को पीथमपुर पहुंचा.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस काफिले के लिए भोपाल से पीथमपुर तक एक ग्रीन गलियारा बनाया गया. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक काफिले में करीब 100 पुलिसकर्मियों को तैनात किया और एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड आदि को भी साथ ही भेजा गया.

क्यों हटाया गया कचरा

दो दिसंबर 1984 की रात इसी फैक्ट्री से कीटनाशक बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट लीक हो गई थी, जिसकी वजह से करीब 3,500 लोग तुरंत मारे गए थे. समाचार एजेंसी एफपी के मुताबिक अनुमान है कि बाद के दिनों में गैस के असर की वजह से कम से कम 25,000 लोगों की जान गई होगी.

अनुमान है कि भोपाल गैस त्रासदी ने कम से कम 25,000 लोगों की जान ले लीतस्वीर: epa/picture-alliance

तब से लेकर आज तक फैक्ट्री के टॉक्सिक कचरे को परिसर से हटाया नहीं जा सका था. इस कचरे में कई तरह के खतरनाक पदार्थ थे. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें ऐसे केमिकल भी शामिल थे, जिन्हें 'फोरेवर केमिकल' कहा जाता है, यानी ऐसे केमिकल जिनके टॉक्सिक गुण कभी खत्म नहीं होते.

क्या गैस पीड़ितों पर किए गए थे असुरक्षित ट्रायल?

कई अध्ययनों में यह बात बताई गई कि इस कचरे से रिसाव हो रहा है जो जमीन के नीचे जाकर भूजल में मिल रहा है और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है. तीन दिसंबर 2024 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने चार हफ्तों के अंदर कचरे को हटाने का आदेश दिया.

कैसे किया जाएगा नष्ट

कचरे को पीथमपुर में स्थित एक विशेष भट्टी में जलाया जाएगा. पूरी प्रक्रिया में 126 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान लगाया गया है, जिसे केंद्र सरकार उठा रही है.

भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि 2015 में एक ट्रायल रन के जरिए 10 टन कचरे को जलाया गया था, जिसका नतीजा संतोषजनक था.

भोपाल गैस त्रासदी: एक आपदा की विरासत

13:08

This browser does not support the video element.

सिंह ने बताया कि ट्रायल रन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की देखरेख में हुआ था और एजेंसी ने पाया था कि जलाने की प्रक्रिया के बाद जो उत्सर्जन हुआ वो राष्ट्रीय मानकों के अनुकूल था. उन्होंने बताया कि अभी भी पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित तरीके से ही कचरे को नष्ट किया जाएगा.

अनुमान है कि इस प्रक्रिया को पूरा करने में तीन से नौ महीने लग जाएंगे. हालांकि एक्टिविस्टों का मानना है कि कचरे का निष्पादन सुरक्षित तरीके से नहीं किया जा रहा है.

गैस पीड़ितों के बीच पाई गईं ज्यादा स्वास्थ्य समस्याएं

चार एक्टिविस्ट संगठनों ने मिल कर एक बयान जारी किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि पर्यावरण और वन मंत्रालय की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक कचरे को जलाने के बाद 900 टन अवशेष बनेंगे, जिनमें जहरीली भारी धातुओं की बहुत अधिक मात्रा होगी.

एक और त्रासदी की आशंका

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, "पीथमपुर में तथाकथित सुरक्षित लैंडफिल से पिछले कुछ सालों से जहरीला रिसाव जारी है. अधिकारियों के पास यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है कि 900 टन अवशेषों से निकलने वाला जहर पीथमपुर और उसके आसपास के भूजल को प्रदूषित ना करे."

एक्टिविस्टों की मांग है कि यूनियन कार्बाइड को ही इस कचरे को ले जाने के लिए मजबूर किया जाना चाहिएतस्वीर: Afp/picture-alliance

संगठनों ने यह भी दावा किया कि पीथमपुर के एक स्थानीय अखबार में हाल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पीथमपुर के आसपास के जल स्रोतों में गंभीर प्रदूषण पाया गया है और संयंत्र से निकलने वाले गैस और जहरीले कचरे के कारण स्थानीय लोगों में कई बीमारियों भी फैली हैं.

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि इस रिपोर्ट के बाद "एमपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर हमारा जो भी भरोसा था, वह बुरी तरह से हिल गया है, क्योंकि बोर्ड ने कभी भी इन नियमित पर्यावरणीय अपराधों का उल्लेख तक नहीं किया है.”

इसके अलावा एक्टिविस्टों ने महीनों तक जलने वाले कचरे से होने वाले जहरीले प्रदूषण का मुद्दा भी उठाया. भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा, "इतने लंबे समय तक भट्टी से निकलने वाले धुएं के जहर और पार्टिकुलेट मैटर के चपेट में आने वाली आबादी की संख्या एक लाख से भी अधिक है. वर्तमान में जो काम जारी है वह जानबूझकर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक हादसा पैदा करने से कम नहीं है.”

क्या है विकल्प

संगठनों ने यह भी बताया कि जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने का पूर्व में खुद राज्य सरकार के मंत्री विरोध कर चुके हैं. भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खान ने कहा, "पर्यावरण मंत्री के तौर पर श्री जयंत मलैया और गैस राहत मंत्री के तौर पर श्री बाबूलाल गौर ने कई सरकारी बैठकों में भोपाल के कचरे को पीथमपुर में जलाने की योजना का विरोध किया था. गैस राहत आयुक्त ने तो कचरे को पीथमपुर में जलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा तक दाखिल किया था."

एक्टिविस्टों का कहना है कि 10 लाख टन संक्रमित मिट्टी फैक्ट्री के परिसर में ही पड़ी हैतस्वीर: Chris0241/Deposithphots/IMAGO

रचना ढींगरा ने डीडब्ल्यू को यह भी बताया कि यह तो सिर्फ 337 टन कचरा है, जबकि उस 10 लाख टन प्रदूषित मिट्टी का सरकार कुछ नहीं कर रही है जो फैक्ट्री के परिसर में पड़ी है और जिसने 42 इलाकों के भूजल को प्रदूषित कर दिया है.  

एक्टिविस्टों का कहना है कि बेहतर विकल्प यह होता कि यूनियन कार्बाइड को ही कहा जाता कि वो स्टेनलेस स्टील के डिब्बों में इस सारे कचरे को ले जाती क्योंकि उसके पास इसके सुरक्षित निष्पादन के तरीके हैं.

रचना कहती हैं, "2003 में ब्रिटिश कंपनी यूनीलीवर को कहा गया था कि वो कोडइकनाल झील के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार 400 किलो पारे को अमेरिका ले जाए और कंपनी ने ऐसा किया था. तो इस मामले में भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?"

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें