अपदस्थ अफगान सरकार और कार्यकर्ता समूहों ने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार संगठन से तालिबान द्वारा योजनाबद्ध हत्याओं की जांच की मांग की है.
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अधिकार कार्यकर्ता समूहों ने यूएन की मानवाधिकार एजेंसी से अफगानिस्तान में लक्षित हत्याओं, महिलाओं पर प्रतिबंध और अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक जैसी रिपोर्ट की जांच की मांग की है. यह अपील ऐसे समय में आई है जब यूरोपीय संघ अफगानिस्तान पर मसौदा प्रस्ताव पेश करने की तैयारी कर रहा है. इस अपील को अफगानिस्तान के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग का समर्थन हासिल है. आयोग के प्रमुख का कहना है कि देश में उनकी कई गतिविधियों को निलंबित कर दिया गया है.
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने एक आपातकालीन सत्र आयोजित किया था, लेकिन कार्यकर्ताओं ने कहा कि पाकिस्तान के नेतृत्व वाला प्रस्ताव जो अपनाया गया था वह बहुत कमजोर था. उसके बाद संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट को कुछ शक्तियों के साथ दोबारा रिपोर्ट करने को कहा गया था.
बैचलेट ने 13 सितंबर को मंच को बताया कि तालिबान ने महिलाओं को घर पर रहने का आदेश देकर और अपने पूर्व दुश्मनों की घर-घर तलाशी लेकर वादों को तोड़ा है.
नये अफगानिस्तान की झलक
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान, इसकी एक झलक इन चंद तस्वीरों में मिल सकती है. देखिए...
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
नया अफगानिस्तान
नया अफगानिस्तान कैसा होगा अभी स्पष्ट नहीं है. फिलहाल जो तस्वीरें आ रही हैं वे ढकी छिपी हैं. पर्दे से क्या निकलेगा, उसकी बस झलक मिल रही है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
मर्दों की दुनिया
अफगानिस्तान से जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं उनमें दिख रहा है जन-जीवन सामान्य हो रहा है. हेरात के इस रेस्तरां में ग्राहकों को भोजन का आनंद लेते देखा जा सकता है. लेकिन एक चीज पहले से अलग है. ग्राहकों में कोई महिला नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
पर्दे की दीवार
कॉलेजों से ऐसी तस्वीरें लगातार आ रही हैं जिनमें लड़के और लड़कियों के बीच एक पर्दे की दीवार खींच दी गई है. यह अब आधिकारिक नीति है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI AFP via Getty Images
आजादी का सवाल
हेरात में ये महिलाएं मस्जिद जा रही हैं. लेकिन बाकी कहीं जाने के लिए उनके पास आजादी कम ही है. जैसे कि देश के संस्कृति आयोग के उपाध्यक्ष अहमदुल्लाह वासिक ने कहा है कि महिलाओं के लिए खेलों की दुनिया में अब जगह नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
संघर्ष भी जारी
कुछ लोगों ने संघर्ष जारी रखा है. कई शहरों में महिलाएं विरोध प्रदर्शन करती दिख रही हैं.
तस्वीर: REUTERS
दूसरा रुख
कुछ महिलाएं कहती हैं कि वे तालिबान के राज में खुश हैं. पिछले दिनों ऐसी महिलाओं ने भी एक मार्च निकाला. इस मार्च तो तालिबानी बंदूकाधारियों की सुरक्षा मिली थी.
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जगह जगह जांच
तालिबान के बंदूकधारी जगह जगह नाके लगाए खड़े दिखते हैं. पश्चिमी कपड़े और जीवनशैली धीरे-धीरे गायब होती जा रही है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
काम की तलाश
काबुल में ये मजदूर काम का इंतजार कर रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बद से बदतर हो रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. 98 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं, जो फिलहाल 72 फीसदी पर है.
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
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इस सत्र में प्रसारित यूरोपीय संघ का मसौदा प्रस्ताव जिसे रॉयटर्स ने देखा है उसमें प्रदर्शनकारियों और मीडिया के खिलाफ हिंसा की निंदा की गई है. अगर यह मसौदा अपना लिया जाता है तो प्रतिवेदक नियुक्त किया जाएगा लेकिन घटनाओं की पूर्ण जांच नहीं की जाएगी.
जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि नासिर अहमद अंदीशा के मुताबिक, "हम परिषद के सदस्यों से परिषद के जनादेश के अनुरूप अफगानिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति की निगरानी के लिए एक समर्पित और प्रभावी तंत्र की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव को अपनाने का आग्रह करते हैं जो जवाबदेही और रोकथाम के लिए जरूरी है."
कार्यकर्ताओं का कहना है कि एक विशेष प्रतिवेदक- स्वतंत्र विशेषज्ञ जिनके पास आमतौर पर पूर्णकालिक नौकरी होती है, काफी नहीं होगा.
ह्यूमन राइट्स वॉच के कार्यकारी निदेशक केन रॉथ के मुताबिक, "संयुक्त राष्ट्र से कुछ सहायता के साथ मात्र एक विशेष प्रतिवेदक पर्याप्त नहीं है."
वे आगे कहते हैं, "देश की जटिलता को देखते हुए एक जांच तंत्र को समर्पित संसाधनों और स्पष्ट जनादेश के साथ एक पूर्ण टीम की जरूरत होती है."
इस बीच एक स्थानीय सरकारी अधिकारी ने शनिवार को कहा कि पश्चिमी अफगान शहर हेरात में तालिबान ने चार कथित अपहरणकर्ताओं को मार डाला और दूसरों को रोकने के लिए उनके शवों को सार्वजनिक रूप से लटका दिया.
एए/वीके (रॉयटर्स)
काबुल की जेल में अब कैदी बन गए जेलर
काबुल की यह पुल ए चरखी जेल अब खाली बियाबान पड़ी है. कभी यहां हजारों तालिबान कैद थे, जिन्हें रिहा कर दिया गया है.
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कैदी बन गए जेलर
जो तालिबान इस जेल में कभी कैदी थे, आज वही इसके प्रशासक हैं. 15 अगस्त को काबुल में घुसने के बाद तालिबान ने इन कैदियों को रिहा कर दिया था.
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उनका कुछ सामान
जेल के खाली कमरों में कैदियों का सामान अब भी पड़ा दिखाई देता है. कहीं पुराने जूते पड़े हैं तो कहीं कपड़े.
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उकेरा गया इतिहास
दीवारों पर बनीं ये तस्वीरें उस वक्त की गवाह हैं जब तालिबान कैदी के रूप में यहां बंद थे और आजादी उनके लिए सपना हुआ करती थी.
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यातनाओं के निशान
पुल ए चरखी का लंबा और काफी हिंसक इतिहास रहा है. कभी यहां बड़े पैमाने पर कत्ल हुए और यातनाएं दी गईं.
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बुरी हालत
जेल में 1970 और 1980 के दशक के समय की कई सामूहिक कब्रें भी मिली थीं. जब देश में अमेरिका समर्थित सरकार थी तो जेल की हालत काफी खराब थी और इसमें भारी भीड़ थी.
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हमेशा भीड़ रही
जेल के 11 विशाल कमरों में 5,000 कैदियों के लिए जगह बनाई गई थी लेकिन अक्सर यहां 10 हजार से ज्यादा कैदी रहते थे.
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दंगे भी हुए
उन्हीं कैदियों में तालिबान भी शामिल थे जो यातनाएं दिये जाने की शिकायत करते थे. जेल में अक्सर दंगे हो जाते थे.
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तालिबान का संघर्ष
तालिबान कैदियों ने मिलकर सामूहिक संघर्ष भी किया और अपने लिए कई सहूलियतें हासिल कीं जैसे मोबाइल फोन की सुविधा या फिर कमरों से बाहर ज्यादा समय बिताना.
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पलट गया पासा
अब इस जेल की सुरक्षा तालिबान बंदूकधारी करते हैं और प्रशासन का जिम्मा पूर्व कैदियों के हाथ में दे दिया गया है.
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फिर आने लगे हैं कैदी
जेल में अब भी एक हिस्सा है जहां पिछले कुछ हफ्तों में गिरफ्तार किए गए करीब 60 लोगों को रखा गया है. इनमें से ज्यादातर कैदी नशे के आदि हैं.