चीन में अफगानिस्तान के राजदूत ने पद छोड़ते हुए एक लंबा-चौड़ा संदेश छोड़ा है जिसमें उन्होंने बताया है कि तालीबान द्वारा काबुल पर कब्जा किए जाने के बाद महीनों तक कर्मचारियों को सैलरी भी नहीं मिली थी.
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चीन में अफगानिस्तान के राजदूत रहे जाविद अहमद काएम ने सोमवार को बताया कि तालीबान के सत्ता में आने के बाद हालात कितने जटिल हो गए थे. ट्विटर पर काएम ने लिखा कि तब हालत ऐसी थी कि फोन का जवाब देने के लिए भी कोई नहीं था और रिसेपशनिस्ट को ही सारा काम करना पड़ रहा था.
काएम ने बताया कि अपने कर्मचारियों को तन्ख्वाह देने के लिए उन्हें दूतावास के बैंक खाते को खाली करना पड़ा था. 1 जनवरी को विदेश मंत्रालय को भेजे एक पत्र में उन्होंने लिखा, "पिछले छह महीने से काबुल से तो हमें कोई तन्ख्वाह मिली नहीं, तो हमने वित्तीय संकट को हल करने के लिए अपने राजनयिकों की कमेटी बनाई.”
मिल गया काबुल की भगदड़ में खोया सोहेल
अगस्त में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तमाम लोग देश छोड़कर भागना चाहते थे, तो एक भगदड़ मच गई थी. उस भगदड़ में दो महीने का सोहेल अपने परिवार से बिछड़ गया था. पांच महीने बाद सोहेल मिल गया है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
पांच महीने बाद मिला नन्हा सोहेल
काबुल की भगदड़ में अपने माता-पिता से बिछड़ा सोहेल तब दो महीने का था. 19 अगस्त को सोहेल लापता हो गया था.
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भागते मां-बाप के हाथों से छूटा
तालिबान के आने के बाद जब लोग किसी भी तरह काबुल से बाहर निकलना चाहते थे तब सोहेल को दीवार के ऊपर से एक अमेरिकी सैनिक को सौंपा गया था
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भटकते रहे माता-पिता
सोहेल के पिता मिर्जा अली अहमदी अमेरिकी दूतावास में सिक्यॉरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. उन्हें, उनकी पत्नी और चार अन्य बच्चों को एक अमेरिकी विमान से काबुल से बाहर निकाला गया.
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महीनों तक पता नहीं चला
वे लोग तो अमेरिका चले गए लेकिन दो महीने का सोहेल पीछे छूट गया. महीनों तक वे दर-दर भटकते रहे लेकिन सोहेल का कहीं पता नहीं चला.
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खबरों से पता चला
सोहेल के बारे में कई जगह समाचार छपे. उन समाचारों को काबुल में भी लोगों ने पढ़ा. और तब बात एक टैक्सी ड्राइवर हामिद सफी तक पहुंची.
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सोहेल को मिला नया नाम
सफी ने बताया कि उन्होंने सोहेल के घरवालों को काफी खोजा फिर उसे वे अपने घर ले गए. उन्होंने उसे मोहम्मद आबिद नाम भी दिया और अपने फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें पोस्ट की.
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दादा को सौंपा सोहेल
सारी मालूमात के बाद सोहेल के दादा मोहम्मद कासिम रजावी सफी से मिले. दोनों परिवारों के बीच सात हफ्ते तक बातचीत होती रही. इस बीच पुलिस को भी दखल देना पड़ा.
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आखिरकार घर लौटा सोहेल
रजावी ने जब अपने पोते को सफी से गोद में लिया तो सफी फूट-फूटकर रो रहे थे. पांच महीने में ही सोहेल उनका अपना हो गया था.
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अब अमेरिका का सफर
सोहेल के सौंपे जाने को उसके माता-पिता वीडियो चैट से देख रहे थे. रजावी बताते हैं कि वे खुशी से नाचने-गाने और उछलने लगे थे. परिवार को उम्मीद है कि सोहेल के अमेरिका जाने का प्रबंध जल्दी ही किया जाएगा जहां वह महीनों बाद अपनी अम्मी से मिल पाएगा.
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उन्होंने कहा कि फिर भी वह अपने उत्तराधिकारी के लिए कुछ धन छोड़कर आए थे. उन्होंने लिखा, "1 जनवरी 2022 तक खाते में करीब एक लाख डॉलर है.” काएम ने यह नहीं बताया कि अब वह क्या करेंगे.
चीन में दूतावास की खस्ता हालत को बयान करते हुए काएम ने जो लिखा है उसमें ऐसा भी है कि दूतावास की पांच कारों की चाभियां वह अपने दफ्तर में छोड़कर आए हैं और चूंकि सारे राजनयिक जा चुके हैं, इसलिए फोन का जवाब देने के लिए एक स्थानीय व्यक्ति को काम पर रखा गया.
पुराने और नए का संघर्ष जारी है
अफगानिस्तान के बहुत सारे दूतावासों की यही स्थिति है. ये दूतावास आमतौर पर पिछली सरकार के प्रति निष्ठावान रहे अधिकारी ही चला रहे हैं. हालांकि बहुत से राजनयिकों ने दूतावास छोड़ भी दिए हैं. काएम ने लिखा कि उनका इस्तीफा "सम्मानजनक तरीके से अपनी जिम्मेदारी का पटाक्षेप” है.
एक ट्वीट ने उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि जब नए नियुक्त जनाब सदात बीजिंग पहुंचेगे तो कोई अन्य राजनयिक वहां नहीं बचेगा.” उन्होंने कहा कि चीन को भी इस बात का अच्छी तरह पता है. हालांकि फिलहाल यह नहीं पता है कि काएम के उत्तराधिकारी सदात हैं कहां. इस बारे में तालीबान सरकार ने भी कोई टिप्पणी नहीं की है.
सोमवार को बीजिंग में अफगानिस्तान का दूतावास रोज की तरह ही खुला. उसके सामने दो सुरक्षाकर्मी खड़े हैं और दूतावास पर देश का पुराना तीन रंग का झंडा फहरा रहा था. काएम नवंबर 2019 से चीन में अफगानिस्तान के राजदूत थे. जुलाई में चीन के एक प्रतिनिधिमंडल के दौरे के बाद उन्होंने जुलाई में दिए इंटरव्यू में चिंता जाहिर की थी कि तालीबान की सत्ता में वापसी हो सकती है. उसके कुछ ही दिन बाद, अगस्त में तालीबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था. तब से देश भारी आर्थिक और वित्तीय संकट से जूझ रहा है. महंगाई अपने चरम पर है और बेरोजगारी के कारण लोग बेहाल हैं.
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हर जगह अस्त-व्यस्त
चीन ने अफगानिस्तान को करोड़ों डॉलर की मदद दी है. तालीबान ने ज्यादातर देशों में अपने प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किए हैं. उनकी सरकार को भी अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली है. और बीजिंग एकमात्र दूतावास नहीं है जहां हालात अस्त-व्यस्त हो गए हैं.
पिछले हफ्ते रोम के दूतावास में तब पुलिस बुलानी पड़ी जब नौकरी से निकाले गए एक राजनयिक ने दूतावास पर हमला कर दिया. दूतावास ने कहा कि यह अधिकारी दावा कर रहा था कि उसे नया राजदूत बना दिया गया है. तालीबान के विदेश मंत्रालय ने काबुल में कहा कि इस राजनिक की नौकरी नहीं गई है और उसे हटाया जाना अवैध था.
संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का मिशन भी इस वक्त परेशानियों से गुजर रहा है. पूर्व और मौजूदा दोनों ही सरकारें यूएन में देश को दी गई सीट पर दावा कर रहे हैं. पिछले साल सुरक्षा परिषद ने इस मसले पर कोई फैसला भविष्य के लिए टाल दिया था.
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
अब महिला पुतलों के सिर कटवा रहा तालिबान
अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में कपड़ा और अन्य दुकानदारों को अपनी दुकान के महिला पुतलों का सिर काटने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इस आदेश को लेकर स्थानीय दुकानदार गुस्से में हैं जबकि बाहर आदेश का मजाक उड़ाया जा रहा है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
महिला पुतलों के सिर काटने का आदेश
अफगानिस्तान में तालिबान ने सभी दुकानदारों को महिला पुतलों के सिर काटने का आदेश दिया है. तालिबान का तर्क है कि इस तरह का इंसानी बुत इस्लामिक कानूनों का उल्लंघन करता है. हेरात के एक शख्स की दुकान पर इन पुतलों के सिर काटने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसका अफगानिस्तान के अंदर और बाहर काफी मजाक उड़ाया जा रहा है.
तस्वीर: Sayed Aqa Saeedi/dpa/picture alliance
महिलाओं और लड़कियों पर पाबंदियां
अगस्त में सत्ता में लौटने के बाद से ही तालिबान ने इस्लामिक कानूनों की कट्टर व्याख्या को लोगों पर लागू किया है. लोगों की आजादी पर कई तरह की पाबंदियां लग गई हैं, खासकर महिलाओं और लड़कियों पर. हालांकि कट्टर इस्लामिक गुट ने इन पुतलों को लेकर अब तक कोई औपचारिक राष्ट्रीय नीति या प्रतिबंध घोषित नहीं किए हैं लेकिन कई स्थानीय धड़े ऐसी चीजों को अनैतिक बताकर लोगों पर नकेल कसने का काम कर रहे हैं.
तस्वीर: Jalil Rezayee/dpa/picture alliance
स्कार्फ से ढंकने की कोशिश रही बेकार
हेरात में सदाचार को बढ़ावा देने और बुराई को रोकने के मंत्रालय के प्रमुख अजीज रहमान ने बुधवार को ऐसा आदेश दिए जाने की पुष्टि भी की. आदेश आने के बाद कुछ दुकानदारों ने स्कार्फ या बैग से ढंककर पुतलों का सिर छिपाने की कोशिश की लेकिन यह बेकार रही. रहमान ने यह भी कहा, "अगर वे सिर्फ सिर ढकेंगे या पूरे पुतले को ही छिपा देंगे तो अल्लाह उनकी दुकान, या घर में नहीं घुसेगा और उन्हें आशीर्वाद भी नहीं देगा."
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
गुस्से में कपड़ा विक्रेता
6 लाख की आबादी वाले इस शहर के कई दुकानदार आदेश को लेकर गुस्से में हैं. एक कपड़ा विक्रेता बशीर अहमद कहते हैं, "आप देख सकते हैं, हमने सिर काट दिए हैं." उन्होंने यह भी बताया कि हर डमी का दाम करीब साढ़े तीन हजार होता है. उनके मुताबिक "जब कोई पुतले ही नहीं होंगे तो हम अपना सामान कैसे बेचेंगे? जब कोई कपड़ा ढंग से पुतले को पहनाया गया हो तभी वो ग्राहकों को वह पसंद आता है."
तस्वीर: Jalil Rezayee/dpa/picture alliance
शासन के कट्टर कानून
15 अगस्त को सत्ता में वापसी के बाद तालिबान ने 1996 से 2001 के दौरान पहले शासन के कट्टर कानूनों को इस बार हल्का रखने का वादा किया था. तब भी इंसान जैसी दिखने वाली नकली चीजों को बैन किया गया. ये कड़ी पाबंदियां फिर वापस आ रही हैं. नई पाबंदियों में लोगों को दिन में पांच दफा नमाज के लिए आने, मर्दों को दाढ़ी बढ़ाने और पश्चिमी कपड़े ना पहनने के लिए प्रेरित करने की बात भी स्थानीय रिपोर्ट्स में कही गई है.
तस्वीर: Mohd Rasfan/AFP/Getty Images
लड़कियों के ज्यादातर स्कूल बंद
महिलाएं इन पाबंदियों का खासा नुकसान झेल रही हैं और धीरे-धीरे उनकी सार्वजनिक जिंदगी खत्म होती जा रही है. लड़कियों के ज्यादातर स्कूल बंद कर दिए गए हैं. महिलाओं को ज्यादातर सरकारी नौकरियों में शामिल होने से रोक दिया गया है. पिछले हफ्ते एक नए आदेश में महिलाएं के लंबी यात्राओं पर अकेली जाने पर भी रोक लगा दी गई है. उन्हें किसी न किसी पुरुष रिश्तेदार को साथ लेकर ही यात्रा करनी होगी.
तस्वीर: Allauddin Khan/AP/picture alliance
शराब बेचने वालों पर छापेमारी
तालिबान ने शराब बेचने वालों पर छापेमारी तेज कर दी है. ड्रग्स के आदी लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और संगीत को भी बैन कर दिया है. तालिबान के सत्ता में आने ने अफगानिस्तान की पहले से ही मदद पर आधारित अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है. अमेरिका ने जहां कई बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है, वहीं अफगानिस्तान को मिलने वाली ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मदद भी रोक दी गई है.