तालिबान के आते ही मीडिया ने खुद ही सेंसरशिप लागू किया
३ सितम्बर २०२१
तालिबान की नीतियों का उल्लंघन करना आसान नहीं है. वाणिज्यिक प्रसारक, विशेष रूप से जो विज्ञापनों और सरकारी निर्देशों पर चलते हैं, ऐसा करने का जोखिम नहीं उठा सकते.
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अफगानिस्तान के सबसे लोकप्रिय टेलीविजन नेटवर्क ने स्वैच्छिक आधार पर रोमांटिक नाटकों, सीरियलों और संगीत कार्यक्रमों को प्रसारित नहीं करने का फैसला किया है. कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा वाले तालिबान के लुभाने वाले कार्यक्रमों को प्रसारित करना शुरू भी कर दिया है.
हालांकि तालिबानियों ने बार-बार कहा है कि वे अफगानों, विशेषकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे. जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया है इस बात को लेकर न केवल पश्चिमी देशों में बल्कि अफगान लोगों में भी संदेह है. तालिबान ने कहा है कि इस्लामी कानून के मुताबिक ऐसा करने का अधिकार सभी को होगा, लेकिन इन कानूनों की व्याख्या कैसे की जाएगी यह अभी स्पष्ट नहीं है.
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टीवी स्क्रीन से गायब होती महिलाएं
ऐसी स्थिति में जहां अफगान नागरिक देश से भागने की कोशिश कर रहे हैं, अफगान बिजनेस समुदाय भी अपने हितों की रक्षा के लिए नई तालिबान सोच के तहत अपनी रणनीति बदलने की कोशिश कर रहा है. इसका एक उदाहरण अफगान मीडिया है. अफगानिस्तान के सबसे लोकप्रिय निजी टेलीविजन स्टेशन टोलो ने स्वेच्छा से इंफोटेनमेंट कार्यक्रमों का प्रसारण बंद कर दिया है. आलोचकों ने इसे सेल्फ सेंसरशिप करार दिया है.
इसके अलावा, अफगानिस्तान के सरकारी टेलीविजन आरटीए ने तालिबान के अगले निर्देश तक सभी महिला एंकरों को स्क्रीन से हटा दिया है. जेन टेलीविजन ने भी महिलाओं को पर्दे से हटाकर नए कार्यक्रम पेश करना बंद कर दिया है.
हालांकि टोलो की तरह एक अन्य निजी समाचार चैनल एरियाना ने अभी तक महिला एंकरों को पेश करना बंद नहीं किया है. टोलो न्यूज के मालिक मोबी ग्रुप के सीईओ साद मोहसेनी के मुताबिक, "तालिबान अफगान मीडिया को बर्दाश्त कर रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें लोगों का दिल जीतने और देश में राजनीतिक भूमिका निभाने के लिए इसकी आवश्यकता है."
साद मोहसेनी ने कहा, "मीडिया उनके (तालिबान) लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन वे एक या दो महीने में मीडिया के लिए क्या करते हैं यह देखना बाकी है."
तालिबान कहीं नाराज ना हो जाए?
टोलो चैनल ने सेल्फ सेंसरशिप के तहत तुर्की टीवी नाटक और संगीत वीडियो दिखाना बंद कर दिया है. साद मोहसेनी के मुताबिक, "मुझे नहीं लगता कि वे नई सरकार को स्वीकार्य होंगे."
हालांकि कुछ चैनलों पर महिलाओं की मौजूदगी अब भी बरकरार है. इन टेलीविजन चैनलों से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि वे देखना चाहते हैं कि तालिबान सीधे टीवी पर महिलाओं की उपस्थिति के संबंध में क्या आदेश जारी करता है.
एक वरिष्ठ अफगान पत्रकार बिलाल सरवरी के मुताबिक, "हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अफगान पत्रकार जीवित रहें क्योंकि लोगों को उनकी आवश्यकता है."
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.
तस्वीर: Mumbairt/CC
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तालिबान द्वारा काबुल पर नियंत्रण करने के बाद सरवरी अपने परिवार के साथ अफगानिस्तान से भाग गए. उन्होंने कहा, "अगर हम वापस नहीं जा सकते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमने अफगानिस्तान को छोड़ दिया है."
इस बीच तालिबान ने पश्चिमी मीडिया को देश से रिपोर्ट करने की पूरी इजाजत दी है, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान के दर्जनों पत्रकार भी देश के विभिन्न हिस्सों से रिपोर्ट कर रहे हैं. तालिबान ने सिर्फ इतना कहा है कि इस्लामी मूल्यों और राष्ट्रीय हितों का ख्याल रखना होगा.
जुलाई महीने में तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष को कवर करने के लिए गए रॉयटर्स के पुलित्जर पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की मौत हो गई थी.
एए/सीके (एपी)
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद जीवन सामान्य दिखने लगा है. देखिए, अब कैसा है अफगानिस्तान...
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
समर्थक खुश
तालिबान समर्थक खुश हैं. सड़कों पर हथियारबंद तालिबान के साथ वे फोटो खिंचवा रहे हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
हर जगह तालिबान
हथियारबंद तालिबान सड़कों पर गश्त लगाते घूमते हैं. उन्हें गली-बाजारों, चौक-चौराहों पर देखा जा सकता है.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
आधुनिक हथियार
सैकड़ों की संख्या में ये युवा लड़ाके आधुनिक हथियारों से लैस हैं और हर जगह मौजूद हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
काम धंधे शुरू
आम जन जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. लोग अपने काम धंधे शुरू कर रहे हैं.
तस्वीर: HOSHANG HASHIMI/AFP/Getty Images
नारेबाजी नई बात
सब्जी भाजी खरीदना-बेचना यूं तो आम जीवन का हिस्सा है लेकिन सब्जीवाले का तालिबान और इस्लामिक अमीरात के समर्थन में नारे लगाना नई बात है.
तस्वीर: U.S. Air Force/Senior Airman Taylor Crul/REUTERS
खोस्त में जुलूस
31 अगस्त को खोस्त शहर में एक विशाल जुलूस निकाला गया जिसमें नाटो, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के झंडों से ढंके ताबूत उठाए लोग नजर आए.
तस्वीर: ZHMAN TV via REUTERS
बैंकों के बाहर कतारें
बैंकों के बाहर लंबी कतारें हैं. बैंकों में नकदी की समस्या है. महंगाई बढ़ गई है और एक व्यक्ति 20 हजार अफगानी (करीब 17 हजार रुपये) ही निकाल सकता है.
तस्वीर: REUTERS
जन जीवन सामान्य
इस बीच शहर की गलियां सामान्य लगने लगी हैं. लोग आ रहे हैं, जा रहे हैं और सड़क किनारे नमाज अदा कर रहे हैं.