पुलिस बर्बरता को रोकने के लिए तालिबान के नए दिशानिर्देश
२४ फ़रवरी २०२२
तालिबान सरकार ने देश की पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार, हिंसा और नागरिकों के हताहत होने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर पुलिस के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं.
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पुलिसकर्मियों द्वारा नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं पर बढ़ती सार्वजनिक आलोचना और अशांति के बीच अफगान आंतरिक मंत्रालय द्वारा नई आचार संहिता जारी की गई है. हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से पुलिस की बर्बरता में महिलाओं समेत कई बेगुनाह लोग मारे गए. अफगानिस्तान में तालिबान सरकार में सिराजुद्दीन हक्कानी कार्यवाहक आंतरिक मंत्री का पद संभालते हैं. हक्कानी खुद भी यूएन द्वारा प्रतिबंधित लोगों की सूची में शामिल हैं.
उनके द्वारा जारी किए गए कई निर्देश काबुल पुलिस प्रवक्ता खालिद जादरान द्वारा मंगलवार रात को ऑनलाइन पोस्ट किए गए.
मिल गया काबुल की भगदड़ में खोया सोहेल
अगस्त में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तमाम लोग देश छोड़कर भागना चाहते थे, तो एक भगदड़ मच गई थी. उस भगदड़ में दो महीने का सोहेल अपने परिवार से बिछड़ गया था. पांच महीने बाद सोहेल मिल गया है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
पांच महीने बाद मिला नन्हा सोहेल
काबुल की भगदड़ में अपने माता-पिता से बिछड़ा सोहेल तब दो महीने का था. 19 अगस्त को सोहेल लापता हो गया था.
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भागते मां-बाप के हाथों से छूटा
तालिबान के आने के बाद जब लोग किसी भी तरह काबुल से बाहर निकलना चाहते थे तब सोहेल को दीवार के ऊपर से एक अमेरिकी सैनिक को सौंपा गया था
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भटकते रहे माता-पिता
सोहेल के पिता मिर्जा अली अहमदी अमेरिकी दूतावास में सिक्यॉरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. उन्हें, उनकी पत्नी और चार अन्य बच्चों को एक अमेरिकी विमान से काबुल से बाहर निकाला गया.
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महीनों तक पता नहीं चला
वे लोग तो अमेरिका चले गए लेकिन दो महीने का सोहेल पीछे छूट गया. महीनों तक वे दर-दर भटकते रहे लेकिन सोहेल का कहीं पता नहीं चला.
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खबरों से पता चला
सोहेल के बारे में कई जगह समाचार छपे. उन समाचारों को काबुल में भी लोगों ने पढ़ा. और तब बात एक टैक्सी ड्राइवर हामिद सफी तक पहुंची.
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सोहेल को मिला नया नाम
सफी ने बताया कि उन्होंने सोहेल के घरवालों को काफी खोजा फिर उसे वे अपने घर ले गए. उन्होंने उसे मोहम्मद आबिद नाम भी दिया और अपने फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें पोस्ट की.
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दादा को सौंपा सोहेल
सारी मालूमात के बाद सोहेल के दादा मोहम्मद कासिम रजावी सफी से मिले. दोनों परिवारों के बीच सात हफ्ते तक बातचीत होती रही. इस बीच पुलिस को भी दखल देना पड़ा.
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आखिरकार घर लौटा सोहेल
रजावी ने जब अपने पोते को सफी से गोद में लिया तो सफी फूट-फूटकर रो रहे थे. पांच महीने में ही सोहेल उनका अपना हो गया था.
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अब अमेरिका का सफर
सोहेल के सौंपे जाने को उसके माता-पिता वीडियो चैट से देख रहे थे. रजावी बताते हैं कि वे खुशी से नाचने-गाने और उछलने लगे थे. परिवार को उम्मीद है कि सोहेल के अमेरिका जाने का प्रबंध जल्दी ही किया जाएगा जहां वह महीनों बाद अपनी अम्मी से मिल पाएगा.
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निर्देश में पुलिस को संदिग्धों के घरों में बिना कोर्ट के आदेश रात में घुसने से मना किया गया है. हालांकि, अगर जांच के लिए जरूरी हो तो पुलिस को दिन के दौरान किसी संदिग्ध व्यक्ति के घर में दाखिल होने की अनुमति तभी दी जाएगी, जब उनके साथ कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि या मस्जिद का इमाम होगा. आंतरिक मंत्रालय ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया है कि उसके कर्मी नियमित गश्त के दौरान किसी पर तब तक गोली नहीं चलाएंगे जब तक कि उन पर हमला न हो.
अफगानिस्तान में पुलिस अधिकारियों द्वारा बर्बरता और हत्याओं की हालिया घटनाओं में ऐसी घटनाएं शामिल हैं जिनमें पुलिस ने विभिन्न चौकियों पर सिविल गाड़ियों पर गोलियां चलाईं. ताजा घटनाओं में एक डॉक्टर, एक बच्चा और एक पूर्व सरकारी अधिकारी की भी मौत हुई है. पुलिस ने अपने बचाव में कहा था कि संबंधित चेक पोस्ट पर चेकिंग के लिए स्पष्ट संकेत के बावजूद गाड़ियां जांच के लिए नहीं रुकी.
दूसरी ओर हाल ही में सोशल मीडिया पर पोस्ट वीडियो की संख्या में भी इजाफा हुआ है, जिसमें आम नागरिक तालिबान द्वारा रात में की गई छापेमारी और घरों की तलाशी का विरोध करते नजर आए हैं.
एए/सीके (डीपीए, रॉयटर्स)
जिंदा रहने के लिए एक अफगान परिवार का संघर्ष
जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, अफगानिस्तान के लोग लंबे समय से सबसे भयानक अकालों में से एक का सामना कर रहे हैं. बामियान प्रांत के इन लोगों समेत कई लोगों के पास सबसे बुनियादी चीजों की कमी है.
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कुछ नहीं बचा
31 साल के कुली सैयद यासीन मोसावी कहते हैं, "सर्दियों में, हम आम तौर पर दुकानों या बेकरी से उधार लेते हैं और हम दो या तीन महीने के बाद कर्ज चुकाते देते हैं." वे कहते हैं, "लेकिन बड़े बदलाव हुए हैं." उनका कहना है, "जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, कोई काम नहीं है, कीमतें बढ़ गई हैं, लोग देश छोड़कर चले गए हैं. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है."
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तालिबान क्या कर रहा है
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हम इन समस्याओं को कम करने का इरादा रखते हैं." लेकिन इस सर्दी में अफगानिस्तान के सामने संकट 20 वर्षों में नहीं देखा गया है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 2.3 करोड़ अफगान अत्यधिक भूख से पीड़ित हैं और लगभग 90 लाख लोगों के सामने अकाल का खतरा है.
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हताश स्थिति
कुबरा का परिवार जल्द ही अत्यधिक भूख से पीड़ित 55 फीसदी अफगान समाज में शामिल हो सकता है. वह कहती हैं, "हमें पिछले वसंत में दो बोरी आटा मिला, जिसका हम अभी भी इस्तेमाल कर रहे हैं. उसके बाद, हमें यकीन होना चाहिए कि अल्लाह हमारी मदद करेगा." उसने आगे कहा, "मेरा बेटा स्क्रैप के टुकड़े इकट्ठा करता था, लेकिन अभी उसके पास कोई काम नहीं है."
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कड़कड़ाती ठंड
घटती खाद्य आपूर्ति के अलावा एक और समस्या है-सर्दी. बामियान में तापमान बहुत तेजी से नीचे गिरता है. अधिकांश परिवारों के पास अपनी झोपड़ियों को इस भयानक ठंडी हवा से बचाने के लिए कम ही तिरपाल होते हैं. कई लोगों के लिए भोजन की तरह जलाने वाली लकड़ी जुगाड़ करना भी बहुत कठिन है.
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बुद्ध की मूर्ति की जगह तालिबान का झंडा
अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में पहाड़ियों में उकेरी गईं बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं सदियों से वहां मौजूद थीं. लेकिन 2001 में तालिबान ने इन्हें तबाह कर दिया था. अब वहां तालिबान का झंडा लहरा रहा है. वर्तमान में यहां के लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली जरूरत के अलावा, बामियान को अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है - 2016 में यहां एक मैराथन दौड़ आयोजित की गई थी. (रिपोर्ट: फिलिप बोएल)