तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के साथ सीमा पर एक-दूसरे देश में आने-जाने वाला एक अहम रास्ता कब्जा लिया है. अमेरिकी फौजों के चले जाने के बाद तालिबान की यह बड़ी जीत मानी जा रही है.
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तालिबान द्वारा जारी एक वीडियो में उनके कुरान की आयत लिखे सफेद झंडे को पाक सीमा से सटे वेश शहर पर क्रॉसिंग पर देखा जा सकता है, जहां अफगानिस्तान का झंडा होता था. सीमा के दूसरी ओर पाकिस्तान का चमन शहर है.
इस वीडियो में एक तालिबानी लड़ाका बोल रहा है, "दो दशकों तक अमेरिका और उनके पिट्ठुओं की क्रूरता सहने के बाद तालिबान ने यह दरवाजा और स्पिलन बोलदाक जिला कब्जा लिया है. मुजाहिदीन और उसके लोगों के मजबूत प्रतिरोध ने दुश्मन को यह इलाका छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. जैसा कि आप देख सकते हैं, इस्लामिक अमीरात का झंडा है, वह झंडा जिसे फहराने के लिए हजारों मुजाहिदीन ने अपना लहू बहाया है.”
तालिबान की बड़ी जीत
अफगानिस्तान के दक्षिणी शहर कंधार के पास स्पिन बोलदाक जिले में पाकिस्तान सीमा पर यह क्रॉसिंग देश के दक्षिणी हिस्सों और पाकिस्तान की बंदरगाहों के बीच दूसरे सबसे व्यवस्त रास्ता है. अफगानिस्तान सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यहां से हर रोज 900 ट्रक सीमा पार करते हैं.
अफगान अधिकारियों ने कहा है कि सरकार ने तालिबान को धकेल दिया है और जिले पर उन्हीं का कब्जा है. लेकिन नागरिक और पाकिस्तान अधिकारियों का कहना है कि क्रॉसिंग पर तालिबान का कब्जा बना हुआ है.
सीमा पर तैनात एक पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी ने कहा, "पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के व्यापार के लिए वेश बहुत अहमियत रखता है. और उसे तालिबान ने कब्जा लिया है.” चमन में पाक अधिकारियों ने कहा कि तालिबान ने रास्ते पर सारी आवाजाही रोक दी है.
तस्वीरों मेंः कचरा छोड़ गए अमेरिकी
चले गए अमेरिकी, छोड़ गए कचरा
बगराम हवाई अड्डा करीब बीस साल तक अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों का मुख्यालय रहा. अमेरिकी फौज स्वदेश वापस जा रही है और इस मुख्यालय को खाली किया जा रहा है. पीछे रह गया है टनों कचरा...
तस्वीर: Adek Berry/Getty Images/AFP
जहां तक नजर जाए
2021 में 11 सितंबर की बरसी से पहले अमेरिकी सेना बगराम बेस को खाली कर देना चाहती है. जल्दी-जल्दी काम निपटाए जा रहे हैं. और पीछे छूट रहा है टनों कचरा, जिसमें तारें, धातु और जाने क्या क्या है.
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कुछ काम की चीजें
अभी तो जहां कचरा है, वहां लोगों की भीड़ कुछ अच्छी चीजों की तलाश में पहुंच रही है. कुछ लोगों को कई काम की चीजें मिल भी जाती हैं. जैसे कि सैनिकों के जूते. लोगों को उम्मीद है कि ये चीजें वे कहीं बेच पाएंगे.
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इलेक्ट्रॉनिक खजाना
कुछ लोगों की नजरें इलेक्ट्रोनिक कचरे में मौजूद खजाने को खोजती रहती हैं. सर्किट बोर्ड में कुछ कीमती धातुएं होती हैं, जैसे सोने के कण. इन धातुओं को खजाने में बदला जा सकता है.
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बच्चे भी तलाश में
कचरे के ढेर से कुछ काम की चीज तलाशते बच्चे भी देखे जा सकते हैं. नाटो फौजों के देश में होने से लड़कियों को और महिलाओं को सबसे ज्यादा लाभ हुआ था. वे स्कूल जाने और काम करने की आजादी पा सकी थीं. डर है कि अब यह आजादी छिन न जाए.
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कुछ निशानियां
कई बार लोगों को कचरे के ढेर में प्यारी सी चीजें भी मिल जाती हैं. कुछ लोग तो इन चीजों को इसलिए जमा कर रहे हैं कि उन्हें इस वक्त की निशानी रखनी है.
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खतरनाक है वापसी
1 मई से सैनिकों की वापसी आधिकारिक तौर पर शुरू हुई है. लेकिन सब कुछ हड़बड़ी में हो रहा है क्योंकि तालीबान के हमले का खतरा बना रहता है. इसलिए कचरा बढ़ने की गुंजाइश भी बढ़ गई है.
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कहां जाएगा यह कचरा?
अमेरिकी फौजों के पास जो साज-ओ-सामान है, उसे या तो वे वापस ले जाएंगे या फिर स्थानीय अधिकारियों को दे देंगे. लेकिन तब भी ऐसा बहुत कुछ बच जाएगा, जो किसी खाते में नहीं होगा. इसमें बहुत सारा इलेक्ट्रॉनिक कचरा है, जो बीस साल तक यहां रहे एक लाख से ज्यादा सैनिकों ने उपभोग करके छोड़ा है.
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बगराम का क्या होगा?
हिंदुकुश पर्वत की तलहटी में बसा बगराम एक ऐतिहासिक सैन्य बेस है. 1979 में जब सोवियत संघ की सेना अफगानिस्तान आई थी, तो उसने भी यहीं अपना अड्डा बनाया था. लेकिन, अब लोगों को डर सता रहा है कि अमरीकियों के जाने के बाद यह जगह तालीबान के कब्जे में जा सकती है.
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सोचो, साथ क्या जाएगा
क्या नाटो के बीस साल लंबे अफगानिस्तान अभियान का हासिल बस यह कचरा है? स्थानीय लोग इसी सवाल का जवाब खोज रहे हैं.
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हाल के दिनों में तालिबान ने हेरात, फराह और कुंदूज प्रांतों में सीमाओं पर कई अहम रास्तों पर कब्जा किया है. काबुल स्थित अफगानिस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इन्वेस्टमेंट के अध्यक्ष शफीकुल्ला अताई कहते हैं कि सीमा पर स्थित चौकियों पर कब्जे का अर्थ है कि तालिबान अब शुल्क वसूल सकता है.
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20 वर्ष लंबा संघर्ष
2001 में अमेरिका द्वारा सत्ता से बाहर कर दिए जाने से पहले लगभग पांच साल तक तालिबान ने देश पर राज किया था. लेकिन 11 सितंबर 2001 के हमले के लिए अमेरिका ने अल कायदा को जिम्मेदार माना और उसे खत्म करने के लिए अफगानिस्तान पर हमला किया. तब तालिबान को सरकार से बाहर कर दिया गया. तब से तालिबान देश पर कब्जा पाने के लिए लड़ रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया है कि सितंबर से पहले सारी अमेरिकी फौजों को स्वदेश बुला लिया जाएगा. अपने मुख्य सैन्य अड्डे बगराम को अमेरिकी सैनिक दो हफ्ते पहले ही खाली कर चुके हैं, जिसके बाद तालिबान के हौसले बढ़े हैं और वे तेजी से विभिन्न इलाकों पर कब्जा करते जा रहे हैं.
अमेरिकी अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इस महीने के आखिर में एक चार्टर्र विमान भेजा जाएगा और अमेरिकी सेना के साथ काम कर रहे ढाई हजार लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया जाएगा. इस योजना को ‘ऑपरेशन अलाइज रिफ्यूज' नाम दिया गया है.
देखिए, तालिबान से पहले का अफगानिस्तान
तालिबान से पहले ऐसा दिखता था अफगानिस्तान
आज जब अफगानिस्तान का जिक्र होता है तो बम धमाके, मौतें, तालिबान और पर्दे में रहने वाली औरतों की छवी सामने उभर कर आती है. लेकिन अफगानिस्तान 60 दशक पहले ऐसा नहीं था.
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डॉक्टर बनने की चाह
यह तस्वीर 1962 में काबुल विश्वविद्यालय में ली गई थी. तस्वीर में दो मेडिकल छात्राएं अपनी प्रोफेसर से बात कर रही हैं. उस समय अफ्गान समाज में महिलाओं की भी अहम भूमिका थी. घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में वे मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चला करती थीं.
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सबके लिए समान अधिकार
1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. यह तस्वीर काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय की है.
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कंप्यूटर साइंस के शुरुआती दिन
इस तस्वीर में काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय में एक सोवियत प्रशिक्षक को अफगान छात्राओं को तकनीकी शिक्षा देते हुए देखा जा सकता है. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाया करते थे.
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काबुल की सड़कों पर स्टाइल
काबुल में रेडियो काबुल की बिल्डिंग के बाहर ली गई इस तस्वीर में इन महिलाओं को उस समय के फैशनेबल स्टाइल में देखा जा सकता है. 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुर्का पहनने की सख्त ताकीद की गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बेबाक झलक
1981 में ली गई इस तस्वीर में महिला को अपने बच्चों के साथ लड़क पर बिना सिर ढके देखा जा सकता है. लेकिन आधुनिक अफगानिस्तान में ऐसा कुछ दिखाई देना संभव नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
पुरुषों संग महिलाएं
1981 की यह तस्वीर दिखाती है कि महिलाओं और पुरुषों का एक साथ दिखाई देना उस समय संभव था. 10 साल के सोवियत हस्तक्षेप के खत्म होने के बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद तालिबान ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सबके लिए स्कूल
सोवियतकाल की यह तस्वीर काबुल के एक सेकेंडरी स्कूल की है. तालिबान के आने के बाद यहां लड़कियों और महिलाओं के शिक्षा हासिल करने पर पाबंदी लग गई. उनके घर के बाहर काम करने पर भी रोक लगा दी गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने मंगलवार को उत्तरी प्रांत बाल्ख का दौरा किया और वहां की सुरक्षा हालात का जायजा लिया. 72 वर्षीय गनी नागरिकों से भी मिले और उन्हें भरोसा दिलाया कि "तालिबान की रीढ़ तोड़ दी जाएगी.”. तोलो न्यूज नेटवर्क की खबर के मुताबिक गनी ने दावा किया कि सरकारी फौजें जल्दी ही खोए इलाकों को तालिबान से छीन लेंगी.
उप राष्ट्रपति अमरुल्ला साले ने कहा है कि तालिबान बदख्शां प्रांत में एक अल्पसंख्य समुदाय के लोगों को धर्म बदलने या घरों से चले जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं. ट्विटर पर उन्होंने कहा, "ये अल्पसंख्य किरगिज लोग हैं जो सदियों से वहां रह रहे हैं. वे अब ताजिकिस्तान में हैं और अपनी किस्मत का इंतजार कर रहे हैं.”