तालिबान के शासन से बच निकलने के बाद पहली बार अफगानिस्तान की राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम ने ऑस्ट्रेलिया में खेलना शुरू किया है. ऑस्ट्रेलिया ने दर्जनों महिला खिलाड़ियों और उनके परिवार को अफगानिस्तान से निकलने में मदद की थी.
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रविवार 24 अप्रैल को इन अफगान महिला खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया पहुंचने के बाद पहली बार एक स्थानीय लीग मैच में हिस्सा लिया. ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी प्रांत विक्टोरिया में आयोजित यह मैच बेशक बेनतीजा रहा लेकिन अफगान महिलाओं के लिए मैदान में वापस लौट पाना ही एक शक्तिशाली, सांकेतिक जीत थी.
टीम की कप्तान नीलाब ने कहा कि इस मैच ने दिखा दिया कि तालिबान इन खिलाड़ियों को रोकने में सफल नहीं हो पाया. अफगानिस्तान में रह रहे अपने रिश्तेदारों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी टीम के दूसरे सदस्यों की तरह की उन्होंने ने भी अपना उपनाम नहीं बताया.
नीलाब ने बताया, "हमने अफगान लोगों के लिए खेलने को लेकर अपनी लड़ाई अभी भी जारी रखी हुई है. हम अपने देश से भाग कर तो आ गए लेकिन हम अभी भी अपने देश के बारे में सोच रहे हैं और अभी भी अपने देश के लिए अपनी जीत के लिए काम कर रहे हैं."
ऑस्ट्रेलिया ने अफगानिस्तान की राष्ट्रीय महिला टीम की दर्जनों खिलाड़ियों और उनके रिश्तेदारों को अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के स्थापित होने के बाद वहां से भाग निकलने में मदद की.
सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने महिलाओं की आजादी पर गंभीर रूप से अंकुश लगा दिए हैं. लड़कियों के लिए शिक्षा को प्रतिबंधित कर दिया गया है और महिलाओं को बिना किसी पुरुष रिश्तेदार को साथ लिए हवाई जहाज पर चढ़ने से मनाही जैसे नियम लागू कर दिए हैं.
राष्ट्रीय महिला टीम की खिलाड़ी देश से भाग निकलने के क्रम में अलग अलग देश पहुंच गए और टीम बंट गई. लेकिन उनमें से कई विक्टोरिया की राजधानी मेलबर्न में बस गईं और वहां महिलाओं की पेशेवर ए-लीग टीम मेलबर्न विक्टरी ने उन्हें फिर से खेल पाने में मदद की.
खेलने की ललक
गोलकीपर फातिमा कहती हैं कि जिन लोगों ने तालिबान की वापसी के बाद अफगानिस्तान की तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखी हैं वो समझ पाएंगे कि खिलाड़ियों को अपने घरों को छोड़ने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी.
उन्होंने बताया, "वो समझ सकते हैं कि हम सब के लिए उस स्थिति का सामना करना कितना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण था. आज हम फिर से एक साथ हैं और एक टीम की तरह खेल रही हैं...यह काफी शक्तिशाली बात है. यह अविश्वसनीय है."
टीम के कोच जेफ हॉप्किंस ने खिलाड़ियों के प्रदर्शन की सराहना की. उन्होंने कहा, "ये युवा महिलाएं, ये सिर्फ इतना चाहती हैं कि इन्हें बराबरी से व्यवहार किए जाने का मौका मिले और वो उस खेल को खेल सकें जिसे वो प्यार करती हैं. जाहिर है कि ये अफगानिस्तान में नहीं हो पा रहा था. वहां तो उन पर इसके लिए जुल्म किया जा रहा था."
मैच के कुछ ही दिन पहले मेलबर्न विक्टरी ने अफगान टीम को उनकी नई किट दी. किट मुख्य रूप से लाल रंग की है और उनमें अफगानिस्तान के राष्ट्रीय झंडे को दर्शाती शर्ट भी हैं. इन शर्टों पर नंबर तो हैं लेकिन कोई नाम नहीं हैं, ताकि अफगानिस्तान में इन खिलाड़ियों के परिवार के सदस्यों को लिए कोई खतरा न उत्पन्न हो जाए.
सीके/एए (एएफपी)
अफगान शरणार्थियों का स्वागत करता एक छोटा सा शहर
तालिबान के चंगुल से खुद को बचाकर काबुल से भागा एक परिवार अमेरिका के केंटकी राज्य के एक छोटे से शहर में आ पहुंचा है. देखिए कैसे ये शरणार्थी और यह शहर एक दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
काबुल से केंटकी तक
बोलिंग ग्रीन नाम का यह शहर शरणाथियों को पनाह देने के लिए जाना जाता है. काबुल से आया जदरान परिवार को इंटरनैशनल सेंटर नाम की स्थानीय पुनर्वास संस्था की मदद से यहां एक घर मिल गया है और बच्चों को एक स्कूल में दाखिला भी.
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कभी नेता, अब शरणार्थी
41 साल के वजीर खान जदरान अफगानिस्तान में एक कबायली नेता थे जिन्होंने तालिबान के हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. वो बताते हैं कि अगस्त 2020 में अमेरिकियों ने उन्हें और उनके परिवार को एक चिनूक हेलीकॉप्टर में बिठा कर काबुल हवाई अड्डे तक पहुंचाया, जहां से वो अफगानिस्तान छोड़ सके.
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बाहें फैलाने वाला शहर
जदरान और उनकी पत्नी नूरीना का बोलिंग ग्रीन में स्वागत हुआ है. इस शहर ने पिछले चार दशकों में कई शरणार्थियों को पनाह दी है. सबसे पहले 1980 के दशकों में कंबोडिया से शरणार्थी आए, फिर 90 के दशकों में बॉस्निया से. बाद में इराक, म्यांमार, रवांडा और फिर कॉन्गो जैसी जगहों से लोगों ने यहां बस कर मात्र 72,000 की आबादी के इस शहर को विविधताओं से भर दिया और आर्थिक रूप से संपन्न बना दिया.
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स्थानीय लोगों से मिली मदद
जदरान यहां खुश हैं. उनके छह बच्चे यहां स्कूल जा रहे हैं, अंग्रेजी में गाने सीख रहे हैं, लाइब्रेरी से किताबें उधार ले रहे हैं और उन्होंने सैंटा क्लॉस को चिट्ठियां भी लिखी हैं. जदरान कहते हैं, "हम बोलिंग ग्रीन में बहुत खुश हैं. स्थानीय लोग हमारी मदद कर रहे हैं और यहां की संस्कृति से हमारा परिचय करा रहे हैं."
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घुलते-मिलते बच्चे
सुपरमैन की पोशाक पहने छह साल के सनाउल्ला खान जदरान, चार साल की जहरा जदरान और 13 साल के समीउल्ला खान जदरान खेल रहे हैं. यह वियतनाम युद्ध के बाद अमेरिकी सरकार का सबसे बड़ा शरणार्थी निकास कार्यक्रम है. इसके तहत अमेरिका में 75,000 लोगों को बसाया जाना है. उम्मीद है कि अकेले बोलिंग ग्रीन में ही 2022 में 350 अफगान आएंगे.
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अमेरिका से हो रहा परिचय
परिवार अमेरिका में रहने के तौर तरीके सीख रहा है, जैसे गाड़ी चलाना, क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करना जैसी चीजें. इसके अलावा जब बवंडर आए तो क्या करना है, वो भी. दिसंबर में केंटकी में जो बवंडर आए थे उन्होंने इस परिवार की सुरक्षा के एहसास को एक झटका दिया. जदरान कहते हैं, "हमने पहले कभी इस तरह का तूफान नहीं देखा था...हमें लगा जैसे हम फिर किसी युद्ध में जा रहे हों. लेकिन अल्लाह ने हमें बचा लिया."
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सुरक्षा का एहसास
बवंडरों को हटा दें, तो जदरान परिवार सुरक्षित है और खुशकिस्मत है कि उसे स्वागत करने वाले लोगों के बीच बगीचे वाला एक घर मिल गया है. बोलिंग ग्रीन के नए निवासियों के लिए यहां कई नौकरियां भी हैं. यह कृषि और औद्योगिक गतिविधियों का एक केंद्र है जिसे शायद सबसे ज्यादा जाना जाता है जनरल मोटर्स कंपनी के असेंबली प्लांट के लिए जहां उसकी लोकप्रिय कोरवेट स्पोर्ट्स कार बनती है.
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ताकि अपनी पहचान भी बाकी रहे
बोलिंग ग्रीन शरणार्थियों को अपनी पहचान बरकरार रखने की भी इजाजत देता है. यहां सब अपना अपना धर्म भी मान सकते हैं और एक पारिवारिक जीवन जी सकते हैं.
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एक नई संस्कृति
जदरान परिवार में बच्चे तेजी से यहां की नई संस्कृति में ढल रहे हैं. सबसे बड़ी 15 साल की जुलेखा अपने भाई बहनों को अंग्रेजी गाना "व्हाट आर यू थैंकफुल फॉर" सीखा रही हैं. बच्चे अपने ही प्रदर्शन पर तालियां बजाते हैं और "हो गया!" कहती हुई सुलेखा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट खिल जाती है. (केविन मर्टेन्स, रॉयटर्स से जानकारी के साथ)