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समानताअफगानिस्तान

तालिबान के खिलाफ संघर्ष में जुटी अफगान महिलाएं

शबनम फॉन हाइन
१९ जुलाई २०२४

अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद सबसे ज्यादा पीड़ित महिलाएं हैं. पश्चिम से समर्थन की कमी से निराश होकर वे अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो कर लड़ रही हैं.

काबुल में एक ब्यूटी पार्लर के बाहर प्रदर्शन करतीं महिलाएं
अफगान महिलाएं अब खुद ही अपने लिए संघर्ष करने की जरूरत को समझ रही हैंतस्वीर: AFP/Getty Images

तीस वर्षीय मरयम मारूफ अर्विन 'पर्पल सैटर्डे मूवमेंट' की सह-संस्थापक हैं. यह महिला अधिकार संगठन अफगान समाज में अधिकारों और लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाने का प्रयास कर रहा है और अफगानिस्तानमें खासकर महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठा रहा है.

इसकी स्थापना अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद राजधानी काबुल में हुई थी. अफगानिस्तान में अर्विन और उनके जैसी कई महिला अधिकार कार्यकर्ता ना ही केवल महिलाओं के हित के लिए प्रदर्शन करते हैं बल्कि घर पर छिप कर लड़कियों को पढ़ाते भी हैं.

अब अफगान महिलाओं को इस बात पर भी गिरफ्तार किया जा रहा है कि वो किस तरह से हिजाब पहनती हैंतस्वीर: Ali Kaifee/DW

ऐसा इसलिए है क्योंकि अफगानिस्तान में लड़कियों को छठी कक्षा के बाद स्कूल जाने की अनुमति नहीं है. "हम केवल अपने आप पर भरोसा कर सकते हैं," अर्विन ने डीडब्ल्यू को बताया. इसके अलावा वे अकेली मांओं और जरूरतमंद परिवारों की सहायता के लिए चंदा इक्कठा करती हैं और अनाथों की देखभाल भी करती हैं.

अपने दम पर आगे बढ़ रही अफगान महिलाएं

अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से, लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों को अफगानिस्तान छोड़ कर जाना पड़ा क्योंकि तालिबान व्यवस्थित रूप से मानव अधिकारों का - खासकर महिलाओं के अधिकारों का - उल्लंघन करता है.

तालिबान ने कई ऐसे कानून और राजनीतिक कदम लागू किए हैं जो पूरे देश में केवल लिंग के आधार पर महिलाओं और लड़कियों से उनके बुनियादी अधिकार छीनते हैं, जैसे महिला कर्मचारियों को काम से निकाल दिया जाना और लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय बंद कर दिए जाना.

जब तालिबान ने दिसंबर 2022 में महिलाओं के विश्वविद्यालय जाने पर रोक लगा दी थी उस समय अर्विन मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई कर रही थीं. वह लगभग सभी अफगान महिलाओं की तरह संयुक्त राष्ट्र से नाराज हैं के वे बिना किसी महिला प्रतिनिधित्व के तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है.

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"हम जानते हैं कि जैसे दोहा बैठक में वे तालिबान के साथ बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता देने का मार्ग प्रशस्त हो सके. ऐसा करते समय वे अफगान आवाम, विशेष रूप से अफगान महिलाओं की अनदेखी कर रहे हैं," अर्विन ने कहा.

संयुक्त राष्ट्र की तालिबान के साथ बातचीत

कतर की राजधानी दोहा में तालिबान प्रतिनिधियों और 25 देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच बातचीत होने से पहले ही तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने स्पष्ट कर दिया था कि महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा अफगानिस्तान का "आंतरिक मामला" है.

उन्होंने विशेष रूप से कहा कि अन्य देशों को अफगानिस्तान के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता है. "महिलाओं के अधिकार अफगानिस्तान का आंतरिक मामला नहीं हैं," अमेरिकी राजनयिक रोजमेरी ने डीडब्ल्यू को बताया. डिकार्लो संयुक्त राष्ट्र में राजनीतिक मामलों की अंडर सेक्रेटरी जनरल हैं.

उन्होंने कहा कि वे तालिबान के साथ बातचीत में शामिल होना चाहते थे और इसकी शुरुआत कहीं न कहीं से होनी थी. दोहा बैठक इस प्रक्रिया का पहला कदम था.

उन्होंने कहा कि लक्ष्य था कि तालिबान "अपने पड़ोसियों के साथ शांति से रहे और अंतरराष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र चार्टर, और मानवाधिकारों का पालन करे."

मगर अफगान लेखक और शिक्षा विशेषज्ञ हजरत वाहरीज का मानना है के "तालिबान अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग अपने लाभ के लिए करना जानता है." ऐसा उन्होंने दोहा बैठक से पहले डीडब्ल्यू के साथ एक इंटरव्यू में कहा था.

काबुल की सड़कों के किनारे दीवारों पर महिलाओं को शरीर और चेहरा पूरी तरह से ढकने वाली पोशाक पहनने के निर्देश देने वाले पोस्टर भी लगाए गए हैंतस्वीर: Yaghobzadeh Alfred/ABACA/picture alliance

"तालिबान ने हमेशा सुलह वार्ताओं में भाग लिया है. यहां तक कि 2021 में सत्ता पर कब्जा करने से पहले तुर्कमेनिस्तान में अहमद शाह मसूद या अन्य विपक्षी समूहों से मुलाकात की. तालिबान के राजनयिक का एकमात्र काम हैं के वे अपनी शर्तें लोगों पर थोपें. तालिबान चाहता है कि अफगानिस्तान के लोग उनके अधीन हों और उन्हें शासक के रूप में स्वीकार करें."

प्रतिबंध, आर्थिक संकट और गरीबी

तालिबान अपनी सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने और उन पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिए भी अभियान चला रहा है. तालिबान का लक्ष्य है कि वो अमेरिका द्वारा फ्रीज की गई अफगान संपत्ति पर नियंत्रण हासिल कर सकें.

फ्रीज किए गए बैंक खातों, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और कुशल पेशेवरों के देश छोड़ जाने के कारण अफगानिस्तान को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अब अफगानिस्तान की 97% आबादी गरीबी में जी रही है.

हजरत वाहरीज कहते हैं, "अफगानिस्तान केवल एकमात्र देश नहीं है जहां मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है. अफगानिस्तान में रह रहे कुछ लोगों का मानना है कि यहां हो रहीं समस्याओं का समाधान निकालना अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी है. यह तभी मुमकिन होगा जब तालिबान अमेरिका और पश्चिमी देशों जैसे शक्तिशाली देशों के लिए खतरा ना बने. लेकिन ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि तालिबान अमेरिका से किए गए वादों को निभाएगा. अफगान आबादी को अपने हित के लिए खुद ही खड़ा होना पड़ेगा."

कुछ महिलाएं बीच बीच में संगठित होकर अपने अधिकारों के छीन लिए जाने का विरोध करती हैंतस्वीर: AFP/Getty Images

और इस संघर्ष में सबसे आगे हैं महिलाएं. अर्विन कहती हैं, "हमें अपनी ताकत को मिलाना होगा." अर्विन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर एक तीखा कटाक्ष करते हुए कहा, "हम एक वैध, लोकतांत्रिक और समावेशी सरकार के लिए वकालत कर रहे हैं. और हमें स्वीकार करना होगा कि, ऐसा करते समय, हम उन लोगों पर भरोसा नहीं कर सकते जो केवल अपने प्रचार के लिए मानवाधिकारों का उपयोग करते हैं."

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