तालिबान के आदेश की अवहेलना करने के एक दिन बाद अफगानिस्तान में सभी महिला एंकर और रिपोर्टर रविवार को टीवी पर अपने चेहरे ढके हुए नजर आईं.
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पिछले साल सत्ता में आने के बाद से तालिबान ने नागरिक समाज, खासकर महिलाओं पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं. इस महीने की शुरुआत में अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने एक फरमान जारी किया था जिसमें कहा गया था कि महिलाओं को सभी सार्वजनिक स्थानों पर पूरा बुर्का पहनना चाहिए.
अफगानिस्तान के नैतिकता प्रसार व व्यसन रोकथाम मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर सभी टीवी चैनलों में काम करने वाली महिलाओं को शनिवार से अपना चेहरा ढकने या नकाब पहनने को कहा था. लेकिन अफगान महिला एंकरों ने शनिवार को आदेश का उल्लंघन करते हुए टीवी प्रसारण के दौरान अपना चेहरा नहीं ढका. हालांकि रविवार को महिला एंकर्स अपना चेहरा ढककर टीवी पर पेश हुईं.
'मैं रोऊंगी नहीं'
टोलो न्यूज में बतौर एंकर काम करने वाली सोनिया नियाजी कहती हैं, "आज उन्होंने हम पर नकाब का आदेश दिया है, लेकिन हम अपनी आवाज से अपना संघर्ष जारी रखेंगे. मैं इस आदेश के कारण कभी नहीं रोऊंगी, लेकिन मैं अन्य अफगान लड़कियों के लिए आवाज बनूंगी."
तेजी से बिगड़ रहे हैं अफगानिस्तान में हालात
तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद से अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग थलग हो गया है और हालत और खराब होते जा रहे हैं. देश की लगभग आधी आबादी भूख से तड़प रही है और तालिबान महिलाओं के अधिकारों को और सीमित करता जा रहा है.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP
व्यापक भुखमरी
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के मुताबिक अफगानिस्तान की लगभग आधी आबादी तीव्र भूख का सामना कर रही है और मदद पर निर्भर है. जैसे इस तस्वीर में काबुल में लोगों में चीन से आई रसद बांटी जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक प्रवक्ता ने बताया, "पूरे देश में लोग अभूतपूर्व स्तर पर भूख का सामना कर रहे हैं." उन्होंने बताया कि 1.97 करोड़ लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/IMAGO
सूखा और आर्थिक संकट
इसके अलावा पूरे देश में सूखा पड़ा हुआ है और गंभीर आर्थिक संकट भी जारी है. संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ एंथिया वेब ने कहा कि डब्ल्यूएफपी ने सिर्फ इसी साल 2.2 करोड़ लोगों की मदद कर भी दी है. हालांकि उन्होंने बताया कि अब अफगानिस्तान में अपने कार्यक्रम जारी रखने के लिए संस्था को 1.4 अरब डॉलर चाहिए.
तस्वीर: Javed Tanveer/AFP
सख्त होते नियम
तालिबान ने शुरू में कहा था कि इस बार उनके पहले शासनकाल के मुकाबले ज्यादा संयम बरतेंगे, लेकिन महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर अंकुश बढ़ते जा रहे हैं. उन्हें माध्यमिक शिक्षा से दूर कर दिया गया है, अकेले सफर करने नहीं दिया जाता और घर के बाहर खुद को पूरी तरह से ढक कर रखने के लिए कह दिया गया है. काबुल में इस तरह के नाकों की मदद से नियंत्रण रखा जाता है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
नए नियमों का विरोध
देश के आजाद ख्याल इलाकों में इन नए नियमों का विरोध बढ़ रहा है. विरोध प्रदर्शन में शामिल एक महिला ने कहा, "हम जिंदा जीवों की तरह जाने जाना चाहते हैं; इंसानों की तरह जाने जाना चाहते हैं, घर के कोने में बंद गुलामों की तरह नहीं." प्रदर्शनकारियों ने पूरे चेहरे को नकाब से ढकने के नए नियम के खिलाफ नारा भी लगाया, "बुर्का मेरा हिजाब नहीं है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
15 डॉलर का एक बुर्का
काबुल में बुर्के बेचने वाले एक व्यापारी ने बताया कि नए नियमों की घोषणा के बाद बुर्कों के दाम 30 प्रतिशत बढ़ गए थे. हालांकि अब दाम सामान्य हो गए हैं क्योंकि डीलरों को पता चल गया है कि बुर्कों की मांग बढ़ी ही नहीं है. इस व्यापारी ने कहा, "तालिबान के मुताबिक बुर्का अच्छी चीज है, लेकिन ये महिलाओं के लिए आखिरी विकल्प है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
साथ में रेस्तरां नहीं जा सकते
अफगान मानकों के हिसाब से आजाद ख्याल माने जाने वाले हेरात में भी पुरुषों और महिलाओं के साथ खाना खाने पर पाबंदी लगा दी गई है. एक रेस्तरां के मैनेजर सैफुल्ला ने माना कि वो ये दिशा निर्देश लागू करने पर मजबूर हैं, बावजूद इसके कि "इसका व्यापार पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ रहा है." उन्होंने बताया कि अगर यह प्रतिबंध चलता रहा तो उन्हें मजबूरन कर्मचारियों को नौकरी से निकलना पड़ेगा.
तस्वीर: Mohsen Karimi/AFP
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
तालिबान के नए नियमों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. जीसात देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा, "हम और ज्यादा प्रतिबंधात्मक हो रहे नियमों की निंदा करते हैं" और "महिलाओं और लड़कियों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने" के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए. इस तस्वीर में तालिबान के कुछ लड़ाके संगठन के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद ओमर की मौत की वर्षगाांठ के एक समारोह में बैठे हैं. (फिलिप बोल)
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
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वे कहती हैं, "यह आपकी पहचान छीनने जैसा है." नियाजी के मुताबिक, "इन सबके बावजूद हम अपनी आवाज उठाना चाहते हैं. हम तब तक काम पर आएंगे जब तक इस्लामिक अमीरात हमें सार्वजनिक स्थान से हटा नहीं देता या हमें घर पर बैठने के लिए मजबूर नहीं करता."
न्यूज नेटवर्क 1टीवी की एंकर लीमा स्पेसाली ने कहा कि तालिबान सरकार के तहत काम करना मुश्किल है लेकिन वह लड़ाई के लिए तैयार हैं. उनके मुताबिक, "हम आखिरी सांस तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे."
दबाव में उठाया कदम
टोलो न्यूज के निदेशक खपोलवाक सपई ने कहा कि चैनल को अपनी महिला एंकरों को आदेश का पालन करने के लिए मजबूर किया गया था. सपई ने कहा, "मुझे कल टेलीफोन किया गया और इस आदेश का पालन करने के लिए कड़े शब्दों में कहा गया था. इसलिए, यह पसंद से नहीं बल्कि दबाव द्वारा है."
2021 के अगस्त में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था. उसके बाद से तालिबान ने महिलाओं की जिंदगी को नियंत्रित करने के लिए एक के बाद एक कई फरमान जारी किए हैं. हाल में महिलाओं के लिए अनिवार्य रूप से बुर्का पहनने का फरमान सबसे सख्त नियमों में से एक है. कई महिलाएं इस फैसले से काफी नाराज हैं. यह फरमान 1990 के दशक के अंत में इस्लामी संगठन के सख्त शरिया कानून पर आधारित शासन की भी याद दिलाता है.
तालिबान ने पहले 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था. उस दौरान भी सख्त इस्लामी कानून लागू थे. लेकिन इस दौर में भी तालिबान का हर एक नया कदम महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ उठता नजर आ रहा है.
एए/वीके (एपी, एएफपी)
दाने-दाने को तरसते अफगान
अफगानिस्तान में अब ऐसे लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है जो खाद्य असुरक्षा की स्थिति में रहने को मजबूर हैं. दो करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश की हालत हर रोज खराब हो रही है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
एक तस्वीर जो नहीं बदलती
समय के साथ अफगानिस्तान की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. देश की लगभग 95 प्रतिशत आबादी को जरूरत से कम भोजन के साथ ही गुजारा करना पड़ रहा है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
और गरीब हुआ दुनिया का सबसे गरीब देश
हाल ही में विश्व बैंक ने कहा कि तालिबान की वापसी के साथ ही 2021 के अंतिम चार महीनों में प्रति व्यक्ति आय में एक तिहाई से अधिक की गिरावट आई है. विश्व बैंक ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर पूर्वानुमान जताया है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
भोजन के लिए नहीं पैसे
विश्व बैंक के अपडेट में कहा गया है कि आय में इतनी गिरावट आई है कि लगभग 37 फीसदी अफगान परिवारों के पास भोजन पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, जबकि 33 फीसदी भोजन का खर्च उठा सकते हैं लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं.
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खाने की दुकान के सामने भूखों की भीड़
देश में गरीबी का यह आलम है कि लोग खाना नहीं खरीद सकते हैं. ऐसे लोगों को होटलों के सामने खड़ा होना पड़ता है. कई बार स्थानीय लोग रोटी खरीदकर जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं या फिर सहायता समूह उन तक रोटी पहुंचाते हैं.
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सूखे का असर
सूखे के कारण कृषि उत्पादों की उपज में भी कमी आई है. इस तस्वीर में काबुल नदी सूखी हुई दिख रही है.
तस्वीर: Ton Koene/VWPics/UIG/imago
विदेशी खाद्य सहायता
संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 2.3 करोड़ अफगान या देश की लगभग आधी आबादी, भोजन के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर है. इस तस्वीर में तालिबान लड़ाके एक विदेशी सहायता ट्रक में भोजन ले जा रहे हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
चीन की मदद पहुंची
अफगानिस्तान के शरणार्थी मामलों के मंत्रालय ने 23 अप्रैल को 1,500 जरूरतमंद लोगों को चीन द्वारा दान की गई मानवीय सहायता बांटी. चीन ने खाद्य सामग्री के अलावा दवा और कोविड वैक्सीन भी अफगानिस्तान को दी है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
मदद की अपील
जनवरी 2022 में यूएन ने संकटग्रस्त देश के लिए जो मानवीय मदद की अपील जारी की थी, वो किसी एक देश के लिए अभी तक की सबसे बड़ी अपील थी. इसमें साल 2022 के दौरान अफगानों की मदद करने के लिए पांच अरब डॉलर की सहायता राशि जुटाने की अपील की गई है.