अफगानिस्तान ने पाकिस्तान से राजनयिकों को वापस बुलाया
१९ जुलाई २०२१
इस्लामाबाद में अपने राजदूत की बेटी के अपहरण के बाद अफगानिस्तान ने अपने सभी राजनयिक कर्मचारियों को वापस बुला लिया है. पाकिस्तान ने इस कदम पर खेद जताया और कहा कि अफगानिस्तान को फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.
तस्वीर: John Moore/Getty Images
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बीते शुक्रवार को पाकिस्तान में अफगान राजदूत की बेटी का अपहरण कर लिया गया था और उनके साथ मारपीट के आरोप लगे थे. हालांकि, कुछ घंटों बाद ही उसे रिहा भी कर दिया गया. अफगान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "पाकिस्तान में अफगान राजदूत की बेटी के अपहरण के बाद, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान ने इस्लामाबाद से अफगान दूत और अन्य वरिष्ठ राजनयिकों को वापस काबुल वापस बुला लिया है, जब तक कि सभी सुरक्षा खतरे दूर नहीं हो जाते." मंत्रालय ने अपहरणकर्ताओं की गिरफ्तारी और मुकदमा चलाने की मांग की.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अफगान विदेश मंत्रालय ने इस्लामाबाद से अपने पूरे राजनयिक स्टाफ को वापस बुलाने के अफगानिस्तान के फैसले को "खेदजनक और निराशाजनक" बताया. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा, "हमें उम्मीद है कि अफगान सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी."
इस्लामाबाद में अफगान राजदूत नजीबुल्लाह अलीखील की बेटी का शुक्रवार, 16 जुलाई को अज्ञात लोगों ने कथित तौर पर अपहरण कर लिया था. अफगान अधिकारियों ने अपहरणकर्ताओं पर अलीखील को प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया था.
अफगान राजदूत ने बेटी के अपहरण पर ट्वीट किया थातस्वीर: NajibAlikhil/Twitter
खतरा टलने तक कर्मचारी नहीं लौटेंगे
कथित अपहरण के बाद अफगान अधिकारियों ने पहले राजनयिक कर्मचारियों की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की और इसे सुधारने का आह्वान किया. हालांकि रविवार को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस्लामाबाद में तैनात सभी वरिष्ठ कर्मचारियों को पाकिस्तान छोड़ने का निर्देश दिया, जिसमें राजदूत नजीबुल्लाह अलीखील भी शामिल हैं.
अफगान विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सुरक्षा स्थिति में सुधार होने, सुरक्षा चिंताओं को दूर करने और अपराधियों की गिरफ्तारी तक राजनयिक कर्मचारियों को वापस नहीं भेजा जाएगा.
अफगान विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "एक अफगान प्रतिनिधिमंडल जल्द ही सभी प्रासंगिक मुद्दों की समीक्षा करने और मामले पर तत्काल कार्रवाई के लिए पाकिस्तान का दौरा करेगा. यात्रा के नतीजों के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी."
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
अफगान सीमा से लगे पाकिस्तान के मोहमंद जिले में रहने वाली बसुआलिहा का पति और बेटा आतंकी हमलों में मारे गए थे. आज जब इलाके में तालिबान के लौटने का डर फैलता जा रहा है, 55-वर्षीय बसुआलिहा किसी तरह अपने हालात से लड़ रही हैं.
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एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की कबायली महिलाओं के लिए जिंदगी कठिन है. 55 साल की विधवा बसुआलिहा के लिए आतंकवादी हमलों में 2009 में अपने बेटे और 2010 में अपने पति को खो देने के बाद जिंदगी और दर्द भरी हो गई. वो अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली जिले मोहमंद में गलनाइ नाम के शहर में रहती हैं. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद इस इलाके पर तालिबान के विद्रोह का बड़ा बुरा असर पड़ा था.
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हर तरफ से हमले
बसुआलिहा के बड़े बेटे इमरान खान की 23 साल की उम्र में एक स्थानीय "शांति समिति" ने हत्या कर दी थी. बसुआलिहा ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो समिति एक तालिबान-विरोधी समूह थी और उसके लोगों ने उनके बेटे को आतंकवादियों की मदद करने के शक में मार दिया था. पिछले कुछ सालों में यहां थोड़ी शांति आई है, लेकिन तालिबान के लौटने की संभावना से यहां फिर से डर का माहौल कायम हो गया है.
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एक हिंसक दौर
अगले ही साल छह दिसंबर 2010 को बसुआलिहा के पति अब्दुल गुफरान की एक सरकारी इमारत पर आत्मघाती बम विस्फोट में जान चली गई. उन्होंने बताया कि उनके पति अपने बेटे की मौत का मुआवजा लेने वहां गए थे. हमले में बीसियों लोग मारे गए थे. बसुआलिहा कहती हैं कि कबायली इलाकों में पति या किसी और व्यस्क मर्द के बिना एक महिला की जिंदगी खतरों और जोखिमों से भरी हुई होती है.
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उम्मीद का दामन
बसुआलिहा को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. उनके गांव में गैस, बिजली की स्थिर आपूर्ति और इंटरनेट जैसी सुविधाएं नहीं हैं लेकिन पति और बेटे की मौत के बावजूद उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उन्हें सरकार से मदद के रूप में 10,000 रुपये हर महीने मिलते थे, लेकिन को सिर्फ इस पर निर्भर नहीं रहना चाहती थीं. सरकारी मदद 2014 में बंद भी हो गई.
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सिलाई का काम
बसुआलिहा चाहती हैं कि उनके बाकी बच्चों को उचित शिक्षा मिले. उन्होंने बताया, "यह आसान नहीं था. एक बार तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी जिंदगी बेकार है और मैं इस समाज में नहीं रह सकती हूं." आज कपड़ों की सिलाई उनकी कमाई का एक अहम जरिया है. वो महिलाओं के लिए सूट सिलती हैं और हर सूट के लिए 150-200 रुपए लेती हैं.
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मर्द का साथ अनिवार्य
बसुआलिहा कहती हैं, "मेरे पति की मौत के बाद मैं रोटियां बनाती थी और मेरी छोटी बेटियां उन्हें मुख्य सड़क पर बेचा करती थीं. फिर मेरी बेटियां थोड़ी बड़ी हो गईं और हमारे इलाके में लड़कियों का 'इधर उधर घूमना' बुरा माना जाता है." वो कहती हैं कि इसके बाद उन्होंने रजाइयां और कंबल सिलना और उन्हें बेचना शुरू किया. जब भी वो बाजार जाती हैं उनके साथ एक मर्द जरूर होना चाहिए, चाहे वो किसी भी उम्र का हो.
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और हिंसा होने वाली है?
पाकिस्तान के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी कबायली इलाकों में ऐसे हजारों परिवार हैं जो हिंसा के शिकार हुए हैं. बसुआलिहा के देवर अब्दुर रजाक कहते हैं उन्हें आज भी याद है जब मियां अब्दुल गुफरान तालिबान के हमले में मारे गए. वो उम्मीद कर रहे हैं कि कबायली इलाके एक बार फिर हिंसा और उथल पुथल में ना डूब जाएं. (सबा रहमान)
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कथित अपहरण से अफगान चिंतित
अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा कि अफगान राजदूत की बेटी के अपहरण और उसके बाद के दुर्व्यवहार ने "देश की आत्मा को घायल किया है."
लेकिन पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अफगान सरकार के फैसले की निंदा करते हुए कहा कि पाकिस्तानी अधिकारी प्रधानमंत्री इमरान खान के आदेश के बाद से कथित अपहरण और हमले की उच्च स्तरीय जांच कर रहे हैं. बयान के मुताबिक, "पाकिस्तान में राजदूत, उनके परिवार और अफगान वाणिज्य दूतावास के कर्मचारियों की सुरक्षा भी कड़ी कर दी गई है."
अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका
पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में वर्चस्व के लिए लड़ रहे तालिबान की मदद करने के प्रयास करने के आरोप लगते रहे हैं. अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है और तालिबान ने अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा करने का दावा किया है. तालिबान ने पिछले हफ्ते ही पाकिस्तानी सीमा के पास स्पिलन बोलदाक जिले पर कब्जा कर लिया था.
बीते शुक्रवार पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता चाहता है. चौधरी के मुताबिक, "पाकिस्तान भविष्य में भी इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, अंत में अफगानों को ही अपने भविष्य के बारे में फैसला करना है."
एए/वीके(एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.