दुनिया के सबसे बड़े अफीम उत्पादक अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने रविवार को देश में अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की.
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तालिबान अफगानिस्तान के अफीम व्यापार को रोकने के लिए कदम उठा रहा है, यह साफ नहीं है कि तालिबान सरकार लाखों किसानों की आय के इस स्रोत को बदलने की क्या योजना बना रही है.
तालिबान ने रविवार को कहा कि वह अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगा रहा है. इसका इस्तेमाल हेरोइन जैसे अवैध ड्रग्स के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है. अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा द्वारा जारी एक आदेश के मुताबिक, "सभी अफगानों को सूचित किया जाता है कि अब से पूरे देश में अफीम या अफीम की खेती पर सख्त प्रतिबंध होगा."
प्रतिबंध ऐसे समय पर लगाया गया है जब दक्षिणी अफगानिस्तान में अफीम की कटाई का मौसम है. तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि अगर किसानों ने अफीम की कटाई की तो उन्हें जेल हो सकती है और उनकी फसल जलाई जा सकती है. आदेश में हेरोइन, हशीश और शराब के व्यापार को भी प्रतिबंधित किया गया है.
अफीम अफगानिस्तान में रोजगार और आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. लाखों किसान जीवित रहने के लिए अफीम की खेती पर निर्भर रहते हैं. जब से तालिबान सरकार पिछले साल अफगानिस्तान में सत्ता में लौटी है, वह अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल करने पर जोर दे रही है और और खुद पर आर्थिक प्रतिबंध हटवाने की कोशिश कर रही है.
इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा काबुल सरकार से की गई प्रमुख मांगों में से एक, अफीम की खेती पर प्रतिबंध की रही है. तालिबान सरकार पर लगाए गए प्रतिबंध विशेष रूप से अफगानिस्तान की बैंकिंग प्रणाली और व्यापार विकास के लिए हानिकारक हैं.
अफगान मीडिया टोलो न्यूज ने बताया कि अफीम पर प्रतिबंध के आलोक में, उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफी ने किसानों के लिए वैकल्पिक व्यवसाय खोजने में मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं से सहयोग मांगा है.
संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स ऐंड क्राइम कार्यालय के मुताबिक अफगानिस्तान दुनिया में अफीम का शीर्ष स्रोत है, जो दुनिया के अफीम उत्पादों की आपूर्ति का 80 फीसदी से अधिक है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक अफगानिस्तान अफीम उत्पादों के उत्पादन से कम से कम 1.8 अरब डॉलर का वार्षिक राजस्व हासिल करता है.
एए/वीके (एपी, डीपीए)
नशा या इलाज: क्या है भांग की सच्चाई
भांग का एक तरफ कई लोग विरोध करते हैं तो दूसरी तरफ इसके समर्थक इसे हर मर्ज की दवा भी बताते हैं. दशकों से भांग को लेकर कई कहानियां और कई मिथक रचे गए हैं.
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दंतकथाओं का पौधा
ये है उस भांग का पौधा जो दंतकथाओं की विषय वस्तु है. मादक भांग सिर्फ कुछ खास किस्म के पौधों से मिलती है, इसलिए जर्मनी में इसकी खेती को लेकर कड़े नियम हैं. 200 साल पहले ये पौधे काफी आम थे लेकिन आज ये जान साधारण की आंखों से दूर हैं. इस वजह से इसके समर्थकों और विरोधियों ने इसके बारे में कई मिथक फैला दिए हैं.
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फ्रांस से हुई थी शुरुआत
यूरोप में एक मादक पदार्थ के रूप में भांग के इस्तेमाल का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. इसकी शुरुआत नेपोलियन की सेना के सिपाहियों ने की थी जो 1798 में मिस्र अभियान के बाद हशीश वापस फ्रांस ले गए. नेपोलियन ने मिस्र में तो हशीश पर बैन लगा दिया लेकिन वो फ्रांस में लोकप्रिय हो गई.
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माहवारी में मरोड़ों का इलाज
1990 से इंग्लैंड में भांग के इस्तेमाल को वैध बनाने पर चर्चा चल रही है. उस समय एक अफवाह फैली थी कि रानी विक्टोरिया को डॉक्टरों ने माहवारी में उठने वाले मरोड़ों के इलाज के लिए भांग लेने के लिए कहा था. लेकिन इसका सिर्फ एक ही ठोस संकेत मिल पाया था. 1890 में रानी के निजी डॉक्टर जॉन रसल रेनॉल्ड्स ने एक चिकित्सीय पत्रिका में कई बीमारियों के इलाज में भांग के "बड़ी अहमियत" के बारे में लिखा था.
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अमेरिकी किंवदंती
अमेरिका के ऐतिहासिक डेक्लरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस को लेकर किंवदंती है कि उसे भांग से बने कागज पर लिखा गया था. लेकिन यह सच नहीं है. वॉशिंगटन के राष्ट्रीय अभिलेखागार में अभी तक संजो कर रखे हुए उस ऐतिहासिक दस्तावेज को पार्चमेंट कागज पर लिखा गया था. हां यह संभव है कि शुरू के दो मसौदे जरूर भांग के कागज पर लिखे गए हों.
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फिल्मी प्रोपगैंडा
1936 में टेल योर चिल्ड्रन श्रंखला के तहत "रीफेर मैडनेस" नाम की फिल्म में अमेरिकी युवाओं को भांग खाने के तुरंत बाद नशे की लत में आ जाने वाले हिंसक और पागल लोगों के रूप में दिखाया गया था. यह एक प्रोपगैंडा फिल्म थी जिसे एक चर्च समूह ने बनवाया था. लगभग हास्यास्पद अतिशयोक्ति और गलत धारणाओं से भरी हुई यह फिल्म उस युग में जबरदस्ती डर फैलाने की कोशिशों की ऐतिहासिक गवाह है.
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नस्लीय रंग देने की कोशिश
अपने नस्लीय विचारों के लिए जाने जाने वाले अमेरिका की ड्रग्स विरोधी संस्था डीईए के प्रमुख हैरी आंसलिंगर 1930 के दशकों से भांग पर बैन लगाए जाने के लिए लड़ रहे थे. आरोप लगाया जाता था कि विशेष रूप से मेक्सिकन और अफ्रीकी अमेरिकी लोग ही भांग का सेवन करते हैं. आंसलिंगर ने एक बार कहा था कि इन लोगों को चरस की वजह से लगने लगता है कि वो "श्वेत लोगों जितने अच्छे" हैं.
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आस्था का सवाल
कुछ दूसरी संस्कृतियां शायद भांग के मादक असर को लेकर ज्यादा खुली हैं. हिन्दू धार्मिक किताबों में भगवान शिव के बारे में लिखा हुआ है कि उन्होंने भांग के अलावा दुनिया की सारी भोग की वस्तुओं का त्याग कर दिया था. (मथियास बेकनर्ट)