यूएन की तालिबान को चेतावनी, महिलाओं को न करे परेशान
१३ सितम्बर २०२२
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि तालिबान अधिकारियों ने उसके कर्मचारियों में से तीन अफगान महिलाओं को हिरासत में लिया है. संगठन ने अधिकारियों से महिलाओं का सम्मान करने को कहा है. तालिबान ने नजरबंदी से इनकार किया है.
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संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को अफगानिस्तान में उसके लिए काम करने वाली अफगान महिलाओं के खिलाफ "उत्पीड़न प्रथाओं" की चेतावनी दी. यूएनएएमए मिशन का कहना है कि उसकी तीन महिला अफगान कर्मचारियों को हाल ही में स्थानीय सशस्त्र सुरक्षा एजेंटों ने हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ की.
तालिबान ने सोमवार शाम एक बयान जारी कर महिलाओं को हिरासत में लेने से इनकार किया है. तालिबान का कहना है कि स्थानीय अधिकारियों ने दक्षिणी कंधार प्रांत में महिलाओं के एक समूह को हिरासत में लिया, लेकिन जब उन्हें पता चला कि वे संयुक्त राष्ट्र के लिए काम कर रही हैं तो उन्हें जाने दिया.
संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान से अपनी अफगान महिला कर्मचारियों को निशाना बनाने की धमकी देने की अपनी रणनीति को समाप्त करने का भी आह्वान किया और स्थानीय अधिकारियों को महिलाओं की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत उनके दायित्वों की याद दिलाई.
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
तस्वीर: Lev Radin/Pacific Press/picture alliance
मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.
तस्वीर: Ercin Top/AA/picture alliance
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महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने का प्रयास
तालिबान के इस्लामी कानून की सख्त व्याख्या का मतलब है कि महिलाओं और लड़कियों को उनके मूल अधिकारों का इस्तेमाल करने से गंभीर रूप से प्रतिबंधित किया जाता है, जैसे कि स्कूल जाना या काम करना.
पिछले साल सत्ता संभालने के बाद तालिबान ने लड़कियों के लिए हाई स्कूल बंद कर दिए थे. हाल ही में पक्तिया प्रांत के अधिकारियों ने कबायली बुजुर्गों की सिफारिश के बाद छठी कक्षा से ऊपर के स्कूलों को खोलने का आदेश दिया था, लेकिन कुछ दिनों बाद इन स्कूलों को भी बंद करने का आदेश दिया गया.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से लगभग 30 लाख अफगान लड़कियां माध्यमिक शिक्षा पूरी करने में असमर्थ रही हैं.
अफगान महिलाओं ने यूएन से कार्रवाई करने का आग्रह किया
इस बीच, अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में कहा कि देश में उनके पास कोई अधिकार नहीं है. यह बैठक सोमवार को जेनेवा में हुई. महिला अधिकार कार्यकर्ता महबूबा सिराज ने संयुक्त राष्ट्र के राजनयिकों से कहा, "आज अफगानिस्तान में मानवाधिकार मौजूद नहीं हैं. हमारा वहां कोई वजूद नहीं है. "
एक अफगान वकील रजिया सयाद ने कहा, "अफगानिस्तान की महिलाएं अब एक ऐसे समूह की दया पर हैं जो स्वाभाविक रूप से नारीवाद विरोधी है और महिलाओं को इंसान के रूप में मान्यता नहीं देता है."
अफगान महिलाओं ने संयुक्त राष्ट्र से देश में दुर्व्यवहार की जांच के लिए एक प्रणाली बनाने का आग्रह किया है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)
एक साल से कोसोवो में "फंसे" अफगान
अफगानिस्तान से विस्थापित हुए लोग एक साल बाद भी कोसोवो में फंसे हुए हैं जिन्हें अमेरिका ने मदद का भरोसा दिया था. उनके सामने कोई रास्ता नहीं नजर आता.
तस्वीर: Muhammad Arif Sarwari/AP Photo/picture alliance
कोसोवो की यात्रा
ये पिछले साल अगस्त की तस्वीर है, जब अफगान नागरिक देश छोड़ कर कोसोवो आ गए थे. उस समय अमेरिका ने ऐसे लोगों की देश से निकासी में मदद की थी.
तस्वीर: Sgt. Gillian McCreedy, US Defense Dept
नहीं मिला पक्का ठिकाना
अमेरिका का कोसोवो सरकार के साथ एक समझौता था कि कोसोवो लाए गए अफगानों को एक साल के भीतर अमेरिका या तीसरे देश में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. एक साल बाद भी अफगानों को यहां कैंपों में रहना पड़ रहा है.
तस्वीर: Muhammad Arif Sarwari/AP Photo/picture alliance
"मेहमान नहीं, कैदी की तरह"
अफगान शरणार्थियों को कोसोवो में अमेरिकी बेस कैंप बॉन्डस्टील के बगल में कैंप लीया नामक एक अस्थायी शिविर में रखा गया है. वहां मौजूद एक अफगान ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि पहले तो उन्हें मेहमान के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब उन्हें कैदियों की तरह देखा जाता है.क्योंकि उन्हें कैंप से बाहर जाने की इजाजत नहीं है.
तस्वीर: Muhammad Arif Sarwari/AP Photo/picture alliance
अमेरिका जाने लायक नहीं!
कैंप लीया में अभी भी उन लोगों के एक तबके को अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है और बाकियों के बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है. डीडब्ल्यू से बात करने वाले अफगान शरणार्थी ने कहा, "आठ महीने के बाद उन्होंने हमें बताया कि हम अमेरिका जाने के योग्य नहीं हैं."
तस्वीर: Muhammad Arif Sarwari/AP Photo/picture alliance
कैंप में विरोध प्रदर्शन
शिविर में रहने वाले अफगान इस जेल जैसी जिंदगी से तंग आ चुके हैं और जून महीने में यहां विरोध प्रदर्शन भी किया था. उन्होंने पोस्टर में लिखा था, "हमें न्याय चाहिए. हम अपराधी नहीं हैं."
तस्वीर: Muhammad Arif Sarwari/AP Photo/picture alliance
पूर्व अफगान खुफिया प्रमुख भी शिविर में
जब 2001 में ट्विन टावर्स पर हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया, तब अफगान खुफिया प्रमुख मोहम्मद आरिफ सरवरी देश में सीआईए के संपर्क का मुख्य बिंदु थे. वही सरवरी अब इस कैंप लीया में हैं और अमेरिका में दाखिल होने के इंतजार में हैं.
तस्वीर: Muhammad Arif Sarwari/AP Photo/picture alliance