विश्वविद्यालय दोबारा खुले, छात्राएं भी पढ़ने पहुंचीं
३ फ़रवरी २०२२
तालिबान ने कहा है कि महिलाएं कक्षाओं में भाग ले सकती हैं, लेकिन तभी जब वे पुरुषों से अलग हों और यदि पाठ्यक्रम में "इस्लामी सिद्धांत" शामिल हों.
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पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान सरकार गिरने के बाद पहली बार विश्वविद्यालय फिर से खुल गए हैं. इन विश्वविद्यालयों में छात्राओं की संख्या मौजूदा समय में कम है. अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जे के बाद से बुधवार को पहली बार देश भर में करीब-करीब सभी विश्वविद्यालय दोबारा खोले गए.
तालिबान ने पिछले साल अमेरिका और पश्चिमी रक्षा गठबंधन नाटो बलों की वापसी के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया था, जिससे लगभग सभी शैक्षणिक संस्थान अराजकता के माहौल में बंद हो गए थे. इस बात पर भी चिंता जताई गई थी कि तालिबान शासन के तहत लड़कियों की शिक्षा तक पहुंच नहीं होगी. (पढ़ें-अफगानिस्तान में महिलाओं के 72 किलोमीटर से ज्यादा दूर जाने पर प्रतिबंध)
इन शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए माध्यमिक विद्यालय जैसे संस्थान शामिल थे. अब पहली बार सार्वजनिक विश्वविद्यालय खुलने लगे हैं. हालांकि उनकी संख्या अभी कम है और उन तक पहुंचने वाली छात्राओं की संख्या भी गिनती भर है.
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छवि सुधारने की कोशिश
अधिकारियों ने लगमन, कंधार, निमरोज, फराह और हेलमंद में विश्वविद्यालयों के आधिकारिक तौर पर खोले जाने की पुष्टि की. यह भी बताया गया है कि कुछ अन्य शहरों में विश्वविद्यालय इस महीने फिर से खोल दिए जाएंगे. अधिकारियों के मुताबिक फरवरी के अंत तक लगभग सभी विश्वविद्यालय पूरी तरह से चालू हो जाएंगे.
समाचार एजेंसी एएफपी को एक विश्लेषक ने बताया कि तालिबान सरकार के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय खोलने के फैसले को महत्वपूर्ण माना जा सकता है क्योंकि इस तरह के कदम उनकी सरकार की अंतरराष्ट्रीय मान्यता का मार्ग प्रशस्त करेंगे. तालिबान ने कहा है कि उन्हें लड़कियों की शिक्षा पर कोई आपत्ति नहीं है, सिवाय इसके कि वे अपने पुरुष सहपाठियों से अलग कमरों में बैठेंगी और पाठ्यक्रम इस्लामी कानून के अनुसार होना चाहिए.
मिल गया काबुल की भगदड़ में खोया सोहेल
अगस्त में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तमाम लोग देश छोड़कर भागना चाहते थे, तो एक भगदड़ मच गई थी. उस भगदड़ में दो महीने का सोहेल अपने परिवार से बिछड़ गया था. पांच महीने बाद सोहेल मिल गया है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
पांच महीने बाद मिला नन्हा सोहेल
काबुल की भगदड़ में अपने माता-पिता से बिछड़ा सोहेल तब दो महीने का था. 19 अगस्त को सोहेल लापता हो गया था.
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भागते मां-बाप के हाथों से छूटा
तालिबान के आने के बाद जब लोग किसी भी तरह काबुल से बाहर निकलना चाहते थे तब सोहेल को दीवार के ऊपर से एक अमेरिकी सैनिक को सौंपा गया था
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
भटकते रहे माता-पिता
सोहेल के पिता मिर्जा अली अहमदी अमेरिकी दूतावास में सिक्यॉरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. उन्हें, उनकी पत्नी और चार अन्य बच्चों को एक अमेरिकी विमान से काबुल से बाहर निकाला गया.
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महीनों तक पता नहीं चला
वे लोग तो अमेरिका चले गए लेकिन दो महीने का सोहेल पीछे छूट गया. महीनों तक वे दर-दर भटकते रहे लेकिन सोहेल का कहीं पता नहीं चला.
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खबरों से पता चला
सोहेल के बारे में कई जगह समाचार छपे. उन समाचारों को काबुल में भी लोगों ने पढ़ा. और तब बात एक टैक्सी ड्राइवर हामिद सफी तक पहुंची.
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सोहेल को मिला नया नाम
सफी ने बताया कि उन्होंने सोहेल के घरवालों को काफी खोजा फिर उसे वे अपने घर ले गए. उन्होंने उसे मोहम्मद आबिद नाम भी दिया और अपने फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें पोस्ट की.
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दादा को सौंपा सोहेल
सारी मालूमात के बाद सोहेल के दादा मोहम्मद कासिम रजावी सफी से मिले. दोनों परिवारों के बीच सात हफ्ते तक बातचीत होती रही. इस बीच पुलिस को भी दखल देना पड़ा.
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आखिरकार घर लौटा सोहेल
रजावी ने जब अपने पोते को सफी से गोद में लिया तो सफी फूट-फूटकर रो रहे थे. पांच महीने में ही सोहेल उनका अपना हो गया था.
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अब अमेरिका का सफर
सोहेल के सौंपे जाने को उसके माता-पिता वीडियो चैट से देख रहे थे. रजावी बताते हैं कि वे खुशी से नाचने-गाने और उछलने लगे थे. परिवार को उम्मीद है कि सोहेल के अमेरिका जाने का प्रबंध जल्दी ही किया जाएगा जहां वह महीनों बाद अपनी अम्मी से मिल पाएगा.
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तालिबान के पास अहम मौका
अफगान प्रांत के नंगरहार विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने एएफपी को बताया कि विश्वविद्यालय का दोबारा खोला जाना खुशी का अवसर था. वो नंगरहार विश्वविद्यालय में कानून और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई कर रही है. छात्रा ने बताया कि छात्रों में इस बात को लेकर चिंता है कि विश्वविद्यालय को फिर से बंद किया जा सकता है.
एएफपी के एक स्थानीय संवाददाता ने बुधवार को बुर्का पहने छात्राओं के एक समूह को लगमन विश्वविद्यालय में दाखिल होते देखा. युवा छात्र बसों और टैक्सियों से विश्वविद्यालयों में पहुंचे और उनके चेहरे खुशी से खिले हुए थे. पत्रकारों को लगमन विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों को दोबारा खोलने के दौरान प्रवेश करने से रोक दिया गया. विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या सामान्य से काफी कम थी और तालिबान लड़ाके मुख्य गेट पर पहरा दे रहे थे. एक छात्र मलिक समदी ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि विश्वविद्यालयों में शिक्षा शरिया कानून के अनुसार दी जाएगी.
1 फरवरी को स्थानीय संयुक्त राष्ट्र मिशन ने भी विश्वविद्यालयों को फिर से खोलने के निर्णय को एक महत्वपूर्ण कदम बताया. गौरतलब है कि तालिबान का यूनिवर्सिटी खोलने का फैसला नॉर्वे में पश्चिमी अधिकारियों के साथ शुरुआती बातचीत के एक हफ्ते बाद आया है.
जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, अफगानिस्तान के लोग लंबे समय से सबसे भयानक अकालों में से एक का सामना कर रहे हैं. बामियान प्रांत के इन लोगों समेत कई लोगों के पास सबसे बुनियादी चीजों की कमी है.
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कुछ नहीं बचा
31 साल के कुली सैयद यासीन मोसावी कहते हैं, "सर्दियों में, हम आम तौर पर दुकानों या बेकरी से उधार लेते हैं और हम दो या तीन महीने के बाद कर्ज चुकाते देते हैं." वे कहते हैं, "लेकिन बड़े बदलाव हुए हैं." उनका कहना है, "जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, कोई काम नहीं है, कीमतें बढ़ गई हैं, लोग देश छोड़कर चले गए हैं. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है."
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तालिबान क्या कर रहा है
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हम इन समस्याओं को कम करने का इरादा रखते हैं." लेकिन इस सर्दी में अफगानिस्तान के सामने संकट 20 वर्षों में नहीं देखा गया है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 2.3 करोड़ अफगान अत्यधिक भूख से पीड़ित हैं और लगभग 90 लाख लोगों के सामने अकाल का खतरा है.
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हताश स्थिति
कुबरा का परिवार जल्द ही अत्यधिक भूख से पीड़ित 55 फीसदी अफगान समाज में शामिल हो सकता है. वह कहती हैं, "हमें पिछले वसंत में दो बोरी आटा मिला, जिसका हम अभी भी इस्तेमाल कर रहे हैं. उसके बाद, हमें यकीन होना चाहिए कि अल्लाह हमारी मदद करेगा." उसने आगे कहा, "मेरा बेटा स्क्रैप के टुकड़े इकट्ठा करता था, लेकिन अभी उसके पास कोई काम नहीं है."
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कड़कड़ाती ठंड
घटती खाद्य आपूर्ति के अलावा एक और समस्या है-सर्दी. बामियान में तापमान बहुत तेजी से नीचे गिरता है. अधिकांश परिवारों के पास अपनी झोपड़ियों को इस भयानक ठंडी हवा से बचाने के लिए कम ही तिरपाल होते हैं. कई लोगों के लिए भोजन की तरह जलाने वाली लकड़ी जुगाड़ करना भी बहुत कठिन है.
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बुद्ध की मूर्ति की जगह तालिबान का झंडा
अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में पहाड़ियों में उकेरी गईं बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं सदियों से वहां मौजूद थीं. लेकिन 2001 में तालिबान ने इन्हें तबाह कर दिया था. अब वहां तालिबान का झंडा लहरा रहा है. वर्तमान में यहां के लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली जरूरत के अलावा, बामियान को अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है - 2016 में यहां एक मैराथन दौड़ आयोजित की गई थी. (रिपोर्ट: फिलिप बोएल)