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मानवाधिकारअफगानिस्तान

तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान की पहली महिला ओलंपियन का अभियान

१६ अप्रैल २०२४

ओलंपिक में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला एथलीट फरीबा रेजाई पेरिस ओलंपिक में देश को शामिल नहीं किए जाने को लेकर अभियान चला रही हैं.

फरीबा रेजाई ने 2004 ओलंपिक खेलों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व किया था
फरीबा रेजाई ने 2004 ओलंपिक खेलों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व किया थातस्वीर: Darryl Dyck/empics/picture alliance

फरीबा रेजाई जो अब कनाडा में रहती हैं, एक जूडो खिलाड़ी हैं और उन्होंने 2004 ओलंपिक खेलों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व किया था. 2004 के एथेंस ओलंपिक में शामिल हो चुकीं रेजाई ने तालिबान के मानवाधिकार रिकॉर्ड के कारण अफगानिस्तान पर प्रतिबंध लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) से अपील की है.

उनका तर्क है कि इस तरह के प्रतिबंध के तहत अफगान महिलाओं को अभी भी आईओसी शरणार्थी ओलंपिक टीम के हिस्से के रूप में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज तालिबान का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति को अफगानिस्तान को इस साल फ्रांस में होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए.

"ओलंपिक से अफगानिस्तान को रखो बाहर"

वैंकूवर में रहने वालीं रेजाई ने कहा, "महिलाओं और बच्चों के साथ तालिबान के क्रूर व्यवहार के ढेर सारे सबूत हैं. वे बहुत खतरनाक हैं."

उन्होंने कहा, "अगर आईओसी उन्हें 2024 में यूरोप के केंद्र पेरिस में ओलंपिक में आने की अनुमति देती है, तो यह लोगों के लिए बहुत खतरनाक होगा."

रॉयटर्स ने इस मामले पर तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने बयान देने से इनकार कर दिया.

महिलाओं के अधिकारों के मामले पर तालिबान कहता आया है कि वह इस्लामी कानूनों और स्थानीय परंपराओं के अनुसार उनका सम्मान करता है. हालांकि, अगस्त 2021 में सत्ता में फिर से लौटने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में लड़कियों के हाई स्कूलों को बंद कर दिया और महिलाओं के अकेले यात्रा करने और पार्कों और फिटनेस क्लबों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया.

रेजाई के अनुरोध पर टिप्पणी के बारे में जब आईओसी से संपर्क किया गया तो उसने पिछले महीने नेशनल ओलंपिक कमेटी (एनओसी) और ओलंपिक सोलिडारिटी के डायरेक्टर जेम्स मैकलॉयड द्वारा दिए गए एक बयान का हवाला दिया.

इस बयान में मैकलॉयड ने कहा था कि आईओसी और अफगानिस्तान की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति और संबंधित अधिकारियों के बीच बातचीत चल रही है, जिसका मकसद अफगानिस्तान में खेलों में महिलाओं व लड़कियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को खत्म करना है.

उन्होंने कहा कि आईओसी अफगानिस्तान की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के निलंबन पर अलग-अलग विचारों से अवगत है, लेकिन आईओसी को "इस समय अफगान खेल समुदाय को अलग-थलग करना सही नहीं लगेगा."

इसके अलावा आईओसी ने कहा कि एथलीटों को आईओसी रिफ्यूजी ओलंपिक टीम के लिए पात्र होने के लिए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी द्वारा पुष्टि की गई रिफ्यूजी स्टेटस की जरूरत है.

"बंदूक वाले मर्दों से ज्यादा मजबूत"

रेजाई 18 साल की थीं जब उन्होंने अपने देश के लिए एक ऐतिहासिक पल में एथेंस में मैट पर कदम रखा. उन्हें इस बात का भरोसा था कि उनकी अग्रणी भूमिका महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने में मदद करेगी.

रेजाई कहती हैं, "मुझे वास्तव में भरोसा था कि हम यहां से केवल आगे बढ़ेंगे."

वह याद करती हैं, "जब मैं एथेंस से लौटी, तो मैं अफगानिस्तान में ही रही और मैं अफगानिस्तान में ही रहना चाहती थी. मैंने अपनी ट्रेनिंग जारी रखी क्योंकि मैंने देखा कि इससे हर लड़की के जीवन में अहम बदलाव आ रहे थे."

लेकिन जब अगस्त 2021 में तालिबान ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया तो अपने देश की महिलाओं को अधिक अधिकार मिलते देखने की उनकी उम्मीदें टूट गईं.

रेजाई कहती हैं, "ऐसा महसूस होता है कि मैंने 2004 में महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता का समर्थन करने के लिए जो कुछ भी किया था, वह सब आईओसी, तालिबान और तालिबान को सहन करने वाले लोगों द्वारा पलट दिया जा रहा है."

आईओसी ने 1999 में अफगानिस्तान की एनओसी को निलंबित कर दिया और देश को 2000 के सिडनी खेलों में शामिल होने से रोक दिया था. तालिबान के पतन के बाद रेजाई के एथेंस में प्रतिस्पर्धा करने के समय अफगानिस्तान को बहाल कर दिया गया था.

साल 2011 में रेजाई ने अफगानिस्तान छोड़ दिया और वह कनाडा जा बसीं. उन्होंने एक गैर-लाभकारी संस्था विमिन लीडर्स ऑफ टुमॉरो की स्थापना की. यह संस्था अफगान एथलीटों और अफगान महिलाओं के लिए स्कॉलरशिप और शिक्षा कार्यक्रम चलाती है.

38 साल की रेजाई को अपने अभियान के लिए धमकियां भी मिल चुकी हैं.

वह कहती हैं, "मेरा मानना है कि मेरे सिद्धांत और मानवाधिकार, महिलाओं के अधिकार और महिलाओं की गरिमा के सिद्धांत बंदूक वाले पुरुषों से ज्यादा मजबूत हैं."

एए/वीके (रॉयटर्स)

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