"मैं सबसे किस्मत वाली और बदकिस्मत एक साथ हो गई हूं"
३० अगस्त २०२१
अफगानिस्तान में यूनिवर्सिटी के एंट्रेस एग्जाम में एक लड़की ने टॉप किया है. तालिबान ने उसे बधाई दी है. लेकिन वह डरी हुई हैं, बहुत सारे अन्य युवाओं की तरह.
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20 साल की साल्गी को पिछले हफ्ते जब पता चला कि उसने यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा में टॉप किया है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पिछले कई महीनों से साल्गी अपने घर में बंद इस परीक्षा की तैयारी में जुटी थी. और जब रिजल्ट आना था तो उनका पूरा परिवार सोलर एनर्जी से चलने वाले टीवी के सामने डटा था.
साल्गी कहती हैं कि उनकी मेहनत रंग लाई है. वह बताती हैं, "उस पल में मुझे लगा कि किसी ने मुझे पूरी दुनिया तोहफे में दे दी है. मेरी मां खुशी से रोने लगी. और उसके साथ मैं रोने लगी.”
अनिश्चित भविष्य
साल्गी और उनके परिवार की यह खुशी जल्दी ही चिंता में बदल गई क्योंकि उन्हें याद आ गया कि देश अब तालिबान के नियंत्रण में है. 15 अगस्त को तालिबान काबुल में घुस गया था और अब देश शरिया कानून लागू करने की तैयारी कर रहा है. पिछली बार जब तालिबान सत्ता में था तो महिलाओं के पढ़ने और काम करने पर कड़ी पाबंदियां थीं.
साल्गी कहती हैं, "हमारा भविष्य अनिश्चित है. सोचते रहते हैं कि अब क्या होगा. मुझे लगता है कि मैं सबसे किस्मत वाली और बदकिस्मत एक साथ हूं.”
देश की करीब दो तिहाई आबादी 25 साल से कम आयु की है. यानी पूरी एक पीढ़ी है जिसे तालिबान का शासन याद नहीं है, जो 20 साल पहले सत्ता से हटा दिए गए थे. 1996 से 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया था लेकिन 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया.
आजादी छिनने का डर
दोबारा सत्ता में आने के बाद तालिबान ने छात्रों को यकीन दिलाया है कि उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी. उन्होंने कहा है कि महिला अधिकारों का सम्मान किया जाएगा. साथ ही तालिबान ने प्रतिभाशाली पेशेवरों से देश ना छोड़ने की भी अपील की है.
तस्वीरों मेंः मिशन काबुल
तस्वीरों में मिशन काबुल
अगस्त के मध्य में तालिबान के नियंत्रण में आने के बाद से हजारों लोगों को अफगानिस्तान से निकाला गया है. लेकिन कई हजार लोग पीछे ही छूट जाएंगे. वे देश में रहेंगे और तालिबान के बदले के जोखिम से घिरे रहेंगे.
तस्वीर: U.S. Air Force/Getty Images
दूतावास कर्मियों को बचाते अमेरिकी हेलीकॉप्टर
जैसे ही तालिबान ने राजधानी काबुल में दाखिल किया, एक अमेरिकी चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टर 15 अगस्त, 2021 को काबुल में अमेरिकी दूतावास से अमेरिकी कर्मचारियों को निकालने के काम में लग जाता है. जर्मनी ने लोगों को निकालने की कोशिशों में मदद के लिए काबुल में छोटे हेलीकॉप्टर भेजे हैं.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचने की जद्दोजहद
काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 16 अगस्त और उसके बाद के दिनों में हजारों लोग अफगानिस्तान छोड़ने की उम्मीद में पहुंचे. लोग दीवार फांदते, कंटीली तारों को पार करते दिखे. वे किसी तरह से देश छोड़ने की कोशिश करते नजर आए.
तस्वीर: Reuters
तालिबान से बचने को बेताब
अफगानिस्तान से भागने की कोशिशों में सैकड़ों लोग अमेरिकी वायुसेना के विमान के साथ-साथ दौड़ने लगे. कुछ लोग विमान से लिपट गए. उन्हें नहीं पता था कि यह कितना खतरनाक हो सकता है. विमान से गिरकर कुछ लोगों की मौतें भी हुईं.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
दो दशक बाद तालिबान की वापसी
दो दशकों तक अफगानिस्तान से तालिबान एक तरह से गायब था. लेकिन जैसे ही अमेरिका, जर्मनी और अन्य देशों के सैनिकों की वापसी शुरू हुई तालिबान तेजी से प्रांतों पर कब्जा जमाने लगा. ये तालिबान लड़ाके अफगान राजधानी पर कब्जा करने के कुछ दिनों बाद काबुल के एक बाजार में गश्त करते दिखाई दे रहे हैं.
तस्वीर: Hoshang Hashimi/AFP
ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाने की कोशिश
लोग किसी तरह से अफगानिस्तान से बाहर जाना चाहते हैं. इस वायुसेना के विमान में क्षमता से अधिक लोग बैठे हैं. जर्मन वायु सेना के इस परिवहन विमान में लोगों ने उज्बेकिस्तान के ताशकंद के लिए उड़ान भरी. काबुल से निकलने वाले अधिकांश सैन्य विमान उज्बेकिस्तान, दोहा या इस्लामाबाद जाते हैं जहां से यात्रियों को अलग-अलग गंतव्यों के लिए भेजा जाता है.
तस्वीर: Marc Tessensohn/Bundeswehr/Reuters
तालिबानी शासन में जीवन
तालिबान के देश पर कब्जा करने के कुछ दिनों बाद 23 अगस्त को बुर्का पहने अफगान महिलाएं काबुल के एक बाजार में खरीदारी करती हुईं. महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों को देश में अब काफी दिक्कतें पेश आ रही हैं.
तस्वीर: Hoshang Hashimi/AFP
सुरक्षित हाथों में
24 अगस्त, 2021 को काबुल में हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर निकासी अभियान के दौरान एक अमेरिकी मरीन एक बच्चे को उसके परिवार के पास ले जाता हुआ. अमेरिका कह चुका है कि वह 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिकों को देश से हटा लेगा.
तस्वीर: Sgt. Samuel Ruiz/U.S. Marine Corps/Reuters
जब बचने में कामयाब हुए
अफगानिस्तान से भागने में कामयाब होने वालों में से कई ने मिलीजुली प्रतिक्रियाएं दी हैं. वे कहते हैं कि वे भाग्यशाली महसूस करते हैं कि वे सुरक्षित रूप से अफगानिस्तान से बाहर आ गए. लेकिन तालिबान शासन से बचने में असमर्थ हजारों लोग के भाग्य पर संकट के बादल मंडरा रहे है. इस परिवार को काबुल से निकाला गया है और एक अमेरिकी शरणार्थी केंद्र में ले जाया जा रहा है.
तस्वीर: Anna Moneymaker/AFP/Getty Images
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लेकिन मोबाइल फोन, पॉप म्यूजिक और लैंगिक मिश्रण की आदि हो चुकी इस नई पीढ़ी को पुरानी बातों के आधार पर डर सता रहा है कि उनकी सारी आजादियां छीन ली जाएंगी. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कई युवाओं से बातचीत की.
21 साल की सूजन नबी कहती हैं कि उन्होंने बड़ी बड़ी योजनाएं बना रखी थीं. वह बताती हैं, "अपने लिए मैंने आने वाले 10 साल के लिए कई ऊंचे लक्ष्य तय किए थे. हमें जिंदगी की उम्मीद थी, बदलाव की उम्मीद थी. लेकिन एक हफ्ते में उन्होंने देश कब्जा लिया और 24 घंटे में हमारी उम्मीदें, हमारे सपने हमसे छीन लिए गए.”
इस बारे में तालिबान प्रवक्ता को कुछ सवाल भेजे गए हैं, जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं.
15 अगस्त की सुबह जब तालिबान काबुल की ओर बढ़ रहे थे तब 26 साल के जावेद यूनिवर्सिटी से घर की ओर दौड़ पड़े थे. अपना पूरा नाम बताने से डर रहे जावेद ने सारे ईमेल, सारे सोशल मीडिया मेसेज डिलीट कर दिए हैं, खासकर वे जो अमेरीकियों को भेजे गए थे.
जावेद बताते हैं कि अमेरिकी फंड से चलने वाले प्रोग्राम से उन्हें जितने भी सर्टिफिकेट मिले थे, वे सारे उन्होंने अपने घर के पिछवाड़े में जला दिए. अपने अच्छे काम के लिए उन्हें एक ट्रॉफी मिली थी जो उन्होंने तोड़ दी. पिछले दो हफ्ते में ऐसे तमाम लोगों ने देश छोड़ देने की कोशिश की है, जो विदेशी संस्थाओं के लिए काम करते थे.
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इतिहास का डर
इन युवाओं ने तालिबान को अपने माता-पिता द्वारा सुनाए गए किस्से-कहानियों में ही जाना है. बहुतों ने तो पहली बार तालिबान लड़ाकों को देखा भी तब जब वे काबुल की सड़कों पर पैट्रोलिंग करते नजर आए.
लोकतांत्रिक सरकार के दौरान अफगानिस्तान में सेकंड्री स्कूल में बच्चों की संख्या काफी बढ़ी है. 2001 में 12 फीसदी बच्चे सेकंड्री स्कूल में दाखिला लेते थे. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 55 फीसदी हो गई.
देखिएः अफगानिस्तान पर 10 फिल्में
अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
अफगानिस्तान कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की पृष्ठभूमि रहा है. देश को और करीब से जानने के लिए ये 10 फिल्में मददगार हो सकती हैं.
तस्वीर: 2007 Universal Studios
हवा, मरयम, आएशा (2019)
अफगान निदेशक सहरा करीमी की यह फिल्म वेनिस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी. इसमें काबुल में रहने वाली तीन महिलाओं की कहानी है, जो अपने-अपने तरीकों से गर्भावस्था के हालात से जूझती हैं. सहरा करीमी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक खुले खत में दुनियाभर से उनके देश की मदद का आग्रह किया था.
तस्वीर: http://hava.nooripictures.com
ओसामा (2003)
1996-2003 के दौरान अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. ज्यादातर क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने पर पाबंदी थी. ऐसे में जिन परिवारों के मर्द मारे जाते, उनके सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जातीं. ओसामा ऐसी किशोरी की कहानी है जो अपने परिवार की मदद के लिए लड़का बनकर काम करती है. 1996 के बाद यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसे पूरी तरह अफगानिस्तान में फिल्माया गया.
तस्वीर: United Archives/picture alliance
द ब्रैडविनर (2017)
आयरलैंड के स्टूडियो कार्टून सलून ने ‘ओसामा’ से मिलती जुलती कहानी पर एनिमेशन फिल्म बनाई थी. यह डेब्रा एलिस के मशहूर उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म को ऑस्कर में नामांकन मिला था.
खालिद हुसैनी के उपन्यास पर जर्मन-स्विस फिल्मकार मार्क फोरस्टर ने यह फिल्म बनाई थी जो अफगानिस्तानी जीवन के बहुत से पहलुओं का संवेदनशील चित्रण है.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
कंदहार (कंधार) (2001)
ईरान के महान फिल्मकारों में शुमार मोहसिन मखमलबाफ की यह फिल्म कनाडा में रहने वालीं एक ऐसी अफगान महिला की कहानी है जो अपनी बहन को खुदकुशी से रोकने के लिए घर लौटती है. फिल्म का प्रीमियर कान फिल्म महोत्सव में हुआ था.
तस्वीर: Mary Evans Arichive/imago images
एट फाइव इन द आफ्टरनून (2003)
मोहसिन मखमलबाफ की बेटी समीरा ने अफगान महिलाओं पर यह फिल्म बनाई जिसमें देश का राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देखती एक अफगान महिला की कहानी है.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture alliance
इन दिस वर्ल्ड (2002)
यह फिल्म एक अफगान शरणार्थी की पाकिस्तान होते हुए लंदन पहुंचने की अवैध यात्रा की कहानी कहती है. माइकल विंटरबॉटम ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री के अंदाज में फिल्माया था. फिल्म ने बर्लिन में गोल्डन बेयर और BAFTA का सर्वश्रेष्ठ गैर-अंग्रेजी भाषी फिल्म का पुरस्कार जीता था.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
लोन सर्वाइवर (2013)
यह फिल्म अमेरिकी नेवी सील मार्कस लटरेल की किताब पर आधारित है जिसमें 2005 में कुनार प्रांत में हुए ‘ऑपरेशन रेड विंग्स’ की कहानी बयान की गई है. उस अभियान में लटरेल के तीन साथी मारे गए थे और वह अकेले लौट पाए थे.
तस्वीर: Gregory E. Peters/SquareOne/Universum Film/dpa/picture alliance
रैंबो lll (1988)
सिल्वेस्टर स्टैलन की मशहूर सीरीज रैंबो की तीसरी फिल्म में नायक रैंबो अपने पूर्व कमांडर को बचाने के लिए अफगानिस्तान जाता है.
तस्वीर: United Archives/IFTN/picture alliance
चार्ली विल्सन्स वॉर (2007)
यह फिल्म तब की कहानी है जब अमेरिका ने रूस के खिलाफ मुजाहिद्दीन की मदद की थी, जिन्होंने बाद में तालिबान और अल कायदा जैसे संगठन बनाए. टॉम हैंक्स अभिनीत यह फिल्म माइक निकोलस ने निर्देशित की और अपने समय की बेहतरीन फिल्मों में गिनी गई.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
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कभी देश में सिर्फ एक रेडियो स्टेशन हुआ करता था, आज वहां 170 रेडियो स्टेशन हैं, 100 से ज्यादा अखबार और दर्जनों टीवी स्टेशन हैं. और, स्मार्टफोन और इंटरनेट तो तालिबान के राज में होता ही नहीं था, जिसने युवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाएं खोल दी हैं.
18 साल की इलाहा तमीम ने यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा पास की है. वह कहती हैं, "ये चीजें तो हम हर वक्त इस्तेमाल करते हैं. जब रिलैक्स होना है तब भी और जब दुनिया में हो रही नई घटनाओं के बारे में जानना है तब भी. मैं इन्हें खोना नहीं चाहती.”
तालिबान के भरोसा देने के बावजूद बहुत सी लड़कियों ने स्कूल आना बंद कर दिया है. तमीम कहती हैं, "मैं ऐसे माहौल में बड़ी हुई हूं जहां हम आजाद थे. स्कूल जा सकते थे. बाहर जहां चाहे जा सकते थे. मेरी मां उस बुरे वक्त की कहानियां सुनाती है. वे कहानियां बहुत डरावनी हैं.”
दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के सदस्य अम्मार यासिर ने प्रवेश परीक्षा में प्रथम आने वाली साल्गी को खुद बधाई दी है. मेडिकल स्कूल में दाखिले के लिए यारिस ने ट्विटर पर शुभकामनाएं भेजी हैं.
साल्गी उम्मीद करती हैं कि वह डॉक्टर बन पाएंगी. वह कहती हैं, "अगर तालिबान लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने देता है और रुकावट पैदा नहीं करता है तो ठीक है. नहीं तो मेरी जिंदगी की सारी मेहनत खतरे में है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
जानेंः 20 साल में महिलाओं के लिए क्या बदला
अफगान औरतों के लिए 20 साल में क्या बदला
पिछले 20 साल अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा नहीं था. उसके शासन में औरतों की स्थिति बेहद खराब बताई जाती है. क्या बीते 20 साल में महिलाओं के लिए कुछ बदला है?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
वाकई कुछ बदला क्या?
अफगानिस्तान में महिलाएं अब अलग-अलग भूमिकाएं निभाती नजर आती हैं. लेकिन वाकई उनके लिए पिछले 20 साल में कुछ बदला है या नहीं, आइए जानते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
काम के अवसर
ब्रिटेन के नेशनल स्टैटिस्टिक्स एंड इन्फॉरमेशन अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक 2004 में 51,200 महिलाएं सरकारी दफ्तरों में काम कर रही थीं. 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 87 हजार हो गई.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
पुरुषों से ज्यादा कर्मचारी
सरकारी दफ्तरों में काम करने में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा बढ़ी है. सरकारी कर्मचारी पुरुषों की संख्या जबकि 41 प्रतिशत बढ़ी, महिलाओं की संख्या में 69 प्रतिशत का इजाफा हुआ.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
राजनीति में महिलाएं
2018 के आम चुनाव में 417 महिला उम्मीदवार थीं, जो एक रिकॉर्ड है. तालिबान के नियंत्रण से पहले की संसद में 27 प्रतिशत महिला सांसद थीं, जो अंतरराष्ट्रीय औसत (25 फीसदी) से ज्यादा है.
तस्वीर: Stringer/REUTERS
न्यायपालिका में महिलाएं
2007 में अफगानिस्तान में 5 फीसदी महिला जज थीं जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Aykut Karadag/AA/picture alliance
कॉलेजों में लड़कियां
अफगान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2002 से 2019 के बीच सरकारी कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या सात गुना बढ़ी. यह इजाफा लड़कों की संख्या से ज्यादा था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
शिक्षक महिलाएं
अफगानिस्तान में अब पहले से कहीं ज्यादा महिला शिक्षक हैं. 2018 में देश के कुल शिक्षकों का लगभग एक तिहाई महिलाएं थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
स्कूलों में लड़कियां
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि 2001 में 90 हजार बच्चे स्कूल जाते थे जो 2017 में बढ़कर 92 लाख हो गए. इनमें से 39 प्रतिशत लड़कियां थीं.
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images
कानूनी हक
2009 में अफगानिस्तान में एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट विमिन कानून पास किया गया जिसके तहत 22 गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में डाला गया. इन गतिविधियों में महिलाओं को मारना, बलात्कार, जबरन शादी आदि शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
पुलिस में महिलाएं
अमेरिका सरकार की लैंगिक समानता पर रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में अफगानिस्तान में 180 महिला पुलिसकर्मी थीं जो 2019 में बढ़कर 3,560 हो गईं.