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अर्थव्यवस्थाअफगानिस्तान

अफगानिस्तान: तालिबान ने तेल निकालने का ठेका चीन को दिया

५ जनवरी २०२३

तालिबान ने अफगानिस्तान में अमु दरिया घाटी में तेल निकालने का ठेका एक चीनी कंपनी को दे दिया है. यह 2021 में सत्ता में वापस आने के बाद तालिबान द्वारा किसी विदेशी कंपनी के साथ की गई पहली संधि है.

 मुल्ला बरादर
अफगानिस्तान के उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादरतस्वीर: SOCIAL MEDIA/REUTERS

तालिबान की सरकार ने यह ठेका चीन की कंपनी सिंकियांग सेंट्रल एशिया पेट्रोलियम एंड गैस कंपनी को दिया है. यह तालिबान सरकार द्वारा किसी विदेशी कंपनी के साथ की गई इस तरह की पहली संधि है.

इस संधि ने अफगानिस्तान में चीन की आर्थिक मौजूदगी को रेखांकित किया है, बावजूद इसके कि इस्लामिक स्टेट ने अफगानिस्तान में चीन के नागरिकों को निशाना बनाया है. काबुल में हुई एक समाचार वार्ता में देश में चीन के राजदूत वांग यू ने कहा, "अमु दरिया कॉन्ट्रैक्ट चीन और अफगानिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण परियोजना है."

तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने ट्विटर पर बताया कि चीनी कंपनी कॉन्ट्रैक्ट के तहत अफगानिस्तान में एक साल में 150 मिलियन डॉलर निवेश करेगी. ठेका कुल 25 साल के लिए है.

अफगानिस्तान में चीन की दिलचस्पी

सिर्फ तीन सालों में ही चीनी कंपनी का निवेश बढ़ कर 540 मिलियन डॉलर हो जाएगा. परियोजना में तालिबान की 20 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी, जिसे बढ़ा कर 75 प्रतिशत तक किया जा सकता है.

'कैद जैसा है' तालिबान का राज

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चीन ने तालिबान की सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन अफगानिस्तान उसके लिए काफी महत्वपूर्ण है. अफगानिस्तान और उसके आस पास का इलाका चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के केंद्र में है.

इस घोषणा के एक ही दिन पहले तालिबान ने कहा था कि उसके लड़ाकों ने छापों में इस्लामिक स्टेट के आठ सदस्यों को मार गिराया था. इनमें से कुछ पिछले महीने काबुल में एक ऐसे होटल पर हुए हमले में शामिल थे जहां चीनी व्यापारी अक्सर जाते हैं.

2012 में चीन की सरकारी कंपनी नेशनल पेट्रोलियम कॉर्प ने अफगानिस्तान में उस समय की अमेरिका समर्थित सरकार के साथ अमु दरिया घाटी के उत्तरी राज्यों फरयाब और सर-ए-पुल में तेल निकालने के लिए एक ठेके पर हस्ताक्षर किया था.

अरबों डॉलर के संसाधनों का सवाल

उस समय अनुमान लगाया गया था कि अमु दरिया में 8.7 करोड़ बैरल कच्चा तेल हो सकता है. अफगानिस्तान के मौजूदा उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर ने समाचार वार्ता में बताया कि एक और चीनी कंपनी ने पिछली सरकार के गिरने के बाद तेल निकालना बंद कर दिया था इसलिए यह संधि इस कंपनी के साथ की गई है. बरादर ने दूसरी चीनी कंपनी का नाम नहीं लिया.

उन्होंने ने यह भी कहा, "हमारा कंपनी से कहना है कि वो तेल निकालने की प्रक्रिया को अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से जारी रखे और साथ ही सर-ए-पुल के लोगों के हित का भी ख्याल रखे." बरादर ने यह भी बताया कि संधि की एक शर्त यह भी है कि तेल का संसाधन अफगानिस्तान में ही किया जाए.

अनुमान लगाया जाता है कि अफगानिस्तान1,000 अरब डॉलर के अप्रयुक्त संसाधनों पर बैठा हुआ है. इसी वजह से कुछ विदेशी निवेशकों ने इनमें रुचि दिखाई है. हालांकि दशकों के उथल पुथल की वजह से इन संसाधनों का कुछ खास उपयोग नहीं हो पाया है.

चीन की एक और सरकारी कंपनी भी पूर्वी राज्य लोगार में तांबे की एक खदान को चलाने के ठेके को लेकर तालिबान की सरकार से बातचीत कर रही है. इस संधि पर भी पहले पिछली सरकार के तहत हस्ताक्षर किए गए थे.

सीके/एए (रॉयटर्स)

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