1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

सोशल मीडिया पर दिखाई जा रही है अफगानिस्तान की नई तस्वीर

२३ अगस्त २०२१

तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण के बाद पत्रकारों पर पाबंदियां हैं तो सोशल मीडिया पर लोग अपनी बात कह रहे हैं. इन बातों में खौफ है और फिक्र भी.

तस्वीर: 1ST LT. MARK ANDRIES/UPI/imago images

"चार दिन हो गए हैं, काम करने का उत्साह जाता रहा है. इतने साल पत्रकारिता करने के दौरान कभी इतना असहाय और हताश नहीं महसूस किया. जानने वालों के फोन और मेसेज आ रहे हैं कि उन्हें पीटा गया और घरों से निकालकर घसीटा गया. क्या करूं? इन कहानियों को कहां प्रकाशित करूं? मेरे हाथ बंधे हुए हैं.”

एक जानी मानी अफगान पत्रकार अनीसा शाहिदा ने ट्विटर पर तालिबान शासन के दौरान यह हाल लिखा है. शाहिदा तब भी अफगानिस्तान में काम करती रही हैं जब तालिबान दोबारा पांव पसार रहा था और ताकतवर होता जा रहा था. इस हौसले के लिए रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने उनकी तारीफ भी की थी. पर तालिबान के काबुल में घुसने के बाद हालात बदल गए हैं. लोगों की जान खतरे में है. महिला पत्रकारों के करियर पर अंकुश लग गया है. तब से शाहिदा और कई अन्य अफगान नागरिक सोशल मीडिया के जरिए दुनिया को बता रहे हैं कि गली-बाजारों में इस वक्त क्या घट रहा है.

तालिबान को ताकत कहां से मिलती है

04:25

This browser does not support the video element.

तालिबान के लौटने से अफगानिस्तान में सोशल मीडिया पर हड़कंप मचा हुआ है. सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय और लोकप्रिय रहे सैकड़ों लोग अपने पिछले ट्वीट और पोस्ट हटा रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं, आम लोग भी अपनी डिजिटल जिंदगियों में काट छांट कर रहे हैं. तालिबान की सोशल मीडिया पर बढ़ी सक्रियता ने तो डर को और बढ़ा दिया है. फिर भी, कुछ लोग हैं जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और न सिर्फ अपनी आवाजों और डर को जाहिर कर रहे हैं बल्कि घटनाओं को भी प्रसारित कर रहे हैं.

खौफ में महिलाएं

ट्विटर पर मौजूद महिलाओं के बीच यह डर सबसे ज्यादा है कि पिछले दो दशक में महिला अधिकारों के मामले में जो कुछ हासिल किया गया है, वह सब खो जाएगा. हालांकि तालिबान प्रवक्ता ने कहा है कि ‘इस्लामिक कानूनों के दायरे में' महिलाओं को आजादी दी जाएगी लेकिन अफगानिस्तान की महिलाओं और औरतों में अपने भविष्य को लेकर खौफ है.

19 साल की सहर काबुल में रहती हैं. वह शहर में कपड़े की एक दुकान में काम करती थीं. अपने ट्विटर पर वह लिखती हैं, "हाई स्कूल से पास होने के बाद से ही मैं काम कर रही हूं और कॉलेज के लिए पैसे जमा कर रही हूं. अब लगभग तय है कि मेरी नौकरी चली जाएगी क्योंकि लड़कियों के लिए ऐसा करना अनुचित माना जाता है. मेरी सारी योजनाएं मिट्टी में मिल गई हैं.”

काबुल में ही रहने वालीं एक छात्रा राहा कई दिन तक घर से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं. आखिरकार जब वह घर का सामान लेने बाजार गईं तो तालिबान ने उन्हें पीटा क्योंकि उनके हाथ पर टैटू दिख रहा था. ट्विटर पर वह लिखती हैं, "मैं कहीं और नहीं जाना चाहती. मैं बस तालिबान, युद्ध और विवाद से मुक्त देश में रहना चाहती हूं. क्या यह बहुत बड़ी मांग है?”

देखेंः पहले ऐसा था अफगानिस्तान

30 साल की लैला एफ कहती हैं कि बुर्के की कीमत रातोरात छह गुना बढ़ गई है और अब ज्यादा तादाद में महिलाएं ऐसे कपड़ों के बिना बाहर निकलने में असुरक्षित महसूस कर रही हैं. वह लिखती हैं, "काश कि यह सब एक बुरा सपना होता.”

अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात के बारे में ट्विटर पर कई लोगों ने लिखा है कि पिछली बार के तालिबान शासन की यादों ने कैसे लोगों को चुप करवा दिया है. हेरात के एक ट्विटर यूजर स्टैनिस ने लिखा है, "लोगों को पता नहीं है कि पिछली बार की तरह तालिबान संगीत पर प्रतिबंध लगाएगा या नहीं. अफगान शहरों की गलियां रेस्तराओं और दुकानों में रखे टीवी से आती संगीत की आवाजों से भरी रहती थीं. अब एक भुतहा खामोशी ने गलियों को ढक लिया है.”

सोशल मीडिया पर तालिबान

अब जबकि अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया है तो ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर तालिबान समर्थक अकाउंट्स कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे हैं. ये सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म तालिबान को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं और उसकी सामग्री को काफी पहले ही प्रतिबंधित कर चुके हैं. लेकिन कुछ सदस्य और उनसे सहानुभूति रखने वाले लोगों ने प्रतिबंधों को लांघते हुए सोशल मीडिया को प्रचार का जरिया बना लिया है. दर्जनों नए अकाउंट्स ने सरेआम कहा है कि वे तालिबान के समर्थक हैं.

ऐसे पोस्ट, वीडियो, तस्वीरें और नारे अक्सर यह दावा करते नजर आते हैं कि तालिबान ने अफगानिस्तान में शांति स्थापित की है. वे संदेश दे रहे हैं कि तालिबान ही अफगानिस्तान के असली शासक हैं और पिछले भ्रष्ट शासन से अलग हैं. पिछले एक हफ्ते में ही ऐसे पोस्ट और वीडियो लाखों बार देखे जा चुके हैं.

रिपोर्टः मोनीर गाएदी

9/11 के हमलों से ऐसे बदली दुनिया

04:15

This browser does not support the video element.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें