अफगानिस्तान: क्या जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है जर्मनी?
११ जून २०२१नाटो के कई देशों ने सितंबर से पहले अफगानिस्तान में मौजूद अपने स्थानीय कर्मचारियों को अपने देश में शरण देने के प्रयासों को तेज कर दिया है. पिछले महीने यूनाइटेड किंगडम ने कहा कि अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों की वापसी से पहले वह अफगानिस्तान में मौजूद अपने स्थानीय कर्मचारियों को अपने देश में लाने का प्रयास करेगा. पूर्व और वर्तमान अफगान कर्मचारियों के लिए पुनर्वास योजना के तहत 1300 से अधिक अफगान कर्मचारियों और उनके परिवारों को पहले ही यूके लाया जा चुका है. ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस के अनुसार, इस योजना के तहत लगभग 3,000 और लोगों को ब्रिटेन लाया जाएगा. हालांकि, जो अफगानी कर्मचारी जर्मन सेना (बुंडेसवेयर) के साथ काम कर रहे हैं, उन्हें जर्मनी में शरण लेने और वहां जाने के लिए आवेदन करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में दखल दिया था और तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था. इस दौरान विदेशी सेनाओं को स्थानीय लोगों की मदद की काफी जरूरत पड़ी थी. सेनाओं को अनुवादक, दुभाषिए, रसोइये, सफाईकर्मी और साथ ही सुरक्षा विशेषज्ञ चाहिए थे, ताकि वे देश की राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़ी स्थितियों को अच्छे से समझ सकें. इन सभी कामों में विदेशी सेना का सहयोग करने वाले स्थानीय लोगों को तालिबान ‘देशद्रोही' के तौर पर देखता है. तालिबान का कहना है कि इन लोगों ने विदेशी सेनाओं को ‘अवैध' कब्जे को मजबूत करने में मदद की.
करीब दो दशक तक चले युद्ध के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि 11 सितंबर तक सभी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे. जर्मनी सहित नाटो के अन्य सहयोगियों ने भी अमेरिका के इस कदम का समर्थन किया है और वे भी अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने पर सहमत हो गए हैं. अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की बिना शर्त वापसी से नाटो के लिए काम काम करने वाले स्थानीय लोग मुश्किल स्थिति में फंस गए हैं.
छिन गई नौकरी
डीडब्ल्यू ने पाया कि बुंडेसवेयर के 26 पूर्व कर्मचारियों को पिछले हफ्ते उनकी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने जर्मनी में शरण मांगी थी. इन कर्मचारियों में 5 महिलाएं शामिल हैं. जिन लोगों को बर्खास्त किया गया है वे बवार मीडिया सेंटर (बीएमसी) में काम करते थे. इनमें से ज्यादातर लोगों से 2016 तक सेना ने खुद संपर्क किया था. हालांकि, तब से उनके अनुबंध बदल दिए गए हैं. यह सेंटर उत्तर पश्चिमी बल्ख प्रांत में स्थित है. इसे चलाने का पूरा खर्च जर्मन सेना वहन करती है.
जिन लोगों को नौकरी से बर्खास्त किया गया है उनमें से एक ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर डॉयचे वेले को बताया, "अगर तालिबान के लोग मुझे पकड़ लेते हैं, तो वे बदले हुए अनुबंध की परवाह नहीं करेंगे. उनके लिए, मैं एक ऐसा आदमी हूं जो बुंडेसवेयर के लिए काम करता था और आज भी करता है. अनुबंध में बदलाव के बावजूद, हम बुंडेसवेयर के संपर्क में रहे और हमारे काम को लेकर जर्मनी की सेना के साथ नियमित तौर पर बैठक होती रही. इस वजह से हम तालिबान और दूसरे चरमपंथी समूहों को निशाने पर हैं.” बीएमसी के एक पूर्व कर्मचारी ने डॉयचे वेले को बताया कि उन्होंने नए अनुबंध पर सहमति जताई क्योंकि वे अपनी नौकरी नहीं खोना चाहते थे.
अस्वीकार किए जा रहे वीजा के आवेदन
जर्मन सेना के लिए काम करने वाले कुछ दुभाषियों ने शिकायत की है कि उन्हें जर्मनी में शरण नहीं दी जा रही है. 31 साल के जाविद सुल्तानी ने डॉयचे वेले को बताया, "मैंने 2009 से लेकर 2018 तक जर्मन सेना के लिए काम किया. 2018 में मुझे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद से मैं बुंडेसवेयर के लिए काम करने वाले ऐसे दर्जनों कर्मचारियों से मिल चुका हूं जिन्हें किसी तरह की सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई है.” सुल्तानी का कहना कि जर्मनी के अधिकारी अब तक आठ बार उनके वीजा को अस्वीकार कर चुके हैं.
सुल्तानी ने कहा कि पूर्व कर्मचारियों के एक समूह ने सुरक्षा की मांग को लेकर बल्ख में जर्मन सेना के अड्डे के पास एक अस्थायी शिविर स्थापित किया है. वह शिकायती लहजे में कहते हैं, "मेरे वीजा के आवेदन को अस्वीकार करने के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं है. किसे शरण मिलती है और किसे नहीं, यह कोई नहीं जानता. हम काफी डरे हुए हैं. अफगानिस्तान में हर कोई जानता है कि विदेशी सैनिकों के लिए हमने क्या काम किया है. 11 सितंबर के बाद हमें आसानी से निशाना बनाया जा सकता है.”
तालिबान ने हाल में कहा है कि पिछले 20 वर्षों में देश में विदेशी सैनिकों की सहायता करने वाले अफगानिस्तानी नागरिक अगर ‘पश्चाताप' का भाव दिखाते हैं, तो वे "किसी भी खतरे में नहीं होंगे". हालांकि, तालिबान के बयान में ‘आश्वासन के शब्दों' के बीच ‘धमकी' भी छिपी हुई है. चरमपंथी समूह ने चेतावनी दी है कि विदेशी सैनिकों के साथ काम करने वाले स्थानीय लोगों को ‘देश नहीं छोड़ना चाहिए' और ‘भविष्य में ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए.' समूह की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "अगर वे शरण मांगने के लिए ‘खतरे का बहाना' बना रहे हैं, तो यह उनकी अपनी समस्या है.”
जर्मन सेना की प्रतिक्रिया
जर्मन सेना ने एक ईमेल के जवाब में डीडब्ल्यू को बताया कि बीएमसी कर्मचारियों के लिए अनुबंधों में बदलाव नाटो के ‘रेसोल्यूट सपोर्ट मिशन' के रूप में अफगानों को जिम्मेदारी सौंपने का हिस्सा था. सेना के एक प्रवक्ता ने बताया, "यह बदलाव पूरा हो गया था और बीएमसी के कर्मचारियों के अनुबंध को ‘स्वतंत्र रोजगार' में बदल दिया गया था. इसलिए, सभी कर्मचारियों से जुड़ी जिम्मेदारियों के लिए बुंडेसवेयर जवाबदेह नहीं है.”
हालांकि, बीएमसी की ओर से अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को भेजे गए एक पत्र में कहा गया है कि बीएमसी कर्मचारियों को "सलाहकारों के परामर्श और अनुमोदन से" उनकी नौकरी से बर्खास्त किया गया था क्योंकि उन्होंने जर्मनी में शरण के लिए आवेदन किया था और संगठन के "नियमों और मूल्यों" की अनदेखी की थी.
साल 2104 के बाद से, जर्मन सेना में काम करने वाले कई अफगानियों को जर्मनी में शरण मिल चुकी है. इनमें बीएमसी के कुछ कर्मचारी भी शामिल हैं. साल 2014 में बीएमसी की पूर्व कर्मचारी पावाशा तोखी अपने घर में मृत पाई गई थीं. कहा गया था कि जर्मन सेना के साथ संबंध होने की वजह से उनकी ‘मौत' हुई है. इस घटना के बाद से, शरण पाने वाले लोगों में ज्यादातर 2014 में ही जर्मनी चले आए थे.
अप्रैल महीने में जर्मनी के रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने कहा, "जर्मनी उन अफगान नागरिकों को अपने देश में लाने के लिए तैयार होगा जिन्होंने युद्ध के दौरान बुंडेसवेयर की मदद की थी.” जिन अफगान कर्मचारियों को शरण की जरूरत है उन्हें लाने की एक प्रक्रिया जर्मनी में पहले से मौजूद है. हालांकि, इससे जुड़े कई मामले विवादित हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 2013 से लेकर अब तक 781 लोगों को जर्मनी में शरण दी जा चुकी है. हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि अभी और कितने ऐसे अफगानी कर्मचारी बचे हुए हैं.
क्रांप कारेनबावर इस पूरी प्रक्रिया को आसान और तेज बनाना चाहते हैं. वेल्ट अम जोनटाग अखबार ने गृह मंत्रालय का हवाला दते हुए बताया है कि जर्मनी ने काबुल में एक कार्यालय स्थापित करने की योजना बनाई है. इसमें से एक संभवत: उत्तरी अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में हो सकता है, ताकि शरण मांगने वालों से जुड़ी प्रक्रिया में मदद की जा सके.