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अफ्रीका बना जिहादियों के लिए उपजाऊ जमीन

३१ मार्च २०२१

साहेल रेगिस्तान के विशाल भूभाग से सिनाई प्रायद्वीप तक और अब मोजाम्बिक. जिहादी गुटों के लिए अफ्रीका बेहद उपजाऊ जमीन साबित हो रहा है. इस इलाके में पहले से चल रहे संघर्षों ने भी जिहादियों को पैर जमाने के मौके दिए हैं.

Mosambik | Milizenattacken: Fischer in Pemba warten auf Vertriebene
तस्वीर: /Alfredo Zuniga/AFP/Getty Images

हाल में अफ्रीकी देश मोजाम्बिक में प्रांतीय राजधानी पाल्मा शहर पर कट्टरपंथी इस्लामी चरमपंथियों का कब्जा दिखाता है कि कैसे दूसरे कमजोर अफ्रीकी देशों पर भी खतरा मंडरा रहा है, जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है. पाल्मा इसलिए भी अहम है क्योंकि उसके पास मोजाम्बिक के अहम प्राकृतिक गैस प्रोजेक्ट चल रहे हैं.

दुनिया के दो बड़े आतंकवादी गुटों तथाकथित इस्लामिक स्टेट और अल कायदा को मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. उसकी भरपाई के लिए इन दोनों गुटों को नई जमीन की तलाश है. मोजाम्बिक में चरमपंथियों के उभार पर न्यूयॉर्क स्थित थिंक टैंक सौफान सेंटर के विश्लेषक कहते हैं, "अगर इसे आईएसआईएस से किसी भी तरह की मदद मिल रही है, तो आने वाले दिनों में इसे और बल मिलेगा और यह क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा होगा."

ट्विटर पर खुद को मिस्टर क्यू कहने वाले आतंकवाद के विषयों से जुड़े जाने माने विश्लेषक का कहना है कि इस्लामिक स्टेट ने जनवरी 2020 से जितने भी हमलों की जिम्मेदारी ली है, उनमें से 16.5 प्रतिशत हमले अफ्रीका में हुए हैं. वहीं इराक और सीरिया में 35 प्रतिशत हमले हुए.

संकट का फायदा

इलाके के सरकारी अधिकारियों और पश्चिमी अधिकारियों का मानना है कि उत्तरी अफ्रीका में सालेह के इलाके में एक और संघर्ष उभर रहा है, जहां फ्रांस के बलों को स्थानीय जिहादी गुटों के खिलाफ स्थानीय सेनाओं का साथ देना पड़ा है. आईएस और अल कायदा संघर्ष और संकट की इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश में हैं. दोनों ही गुट हाल के सालों में अपने बड़े नेताओं को खोने के बावजूद अपना वजूद बचाए रखना चाहते हैं. जोहानेसबर्ग में आतंकवाद रोधी एक कंसल्टेंट ब्रेंडा गिथिंग्यू का कहना है, "वैश्विक स्तर पर हुए बड़े नुकासनों के बावजूद उनकी अफ्रीकी शाखाएं उन्हें जीवित रखने में अहम योगदान दे रही हैं."

वैसे अफ्रीका में पहले से कई चरमपंथी गुट सक्रिय हैं जिनमें सोमालिया में अल शबाब है तो अल्जीरिया, मिस्र, लीबिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में कई दूसरे गुट हैं. फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि जिहादियों के नियंत्रण में एक व्यवस्थित "साहेलिस्तान" का उभार अभी आकार नहीं दे रहा है. मोजाम्बिक के बारे में मिस्टर क्यू ने समाचार एजेंसी एएफपी के साथ बातचीत में कहा, "जरूरी नहीं कि आईएस वहां पर हथियार या फिर पैसा भेज रहा हो. यहां बात सैद्धांतिक सदस्यता की है, एक साझा मकसद के बारे में सरोकार की."

स्थानीय एजेंडा

अफ्रीका में सक्रिय गुट आम तौर पर बताते हैं कि उनकी वफादारी किसके साथ है और फिर सब सदस्यों तक संदेश पहुंचाया जाता है जो उन्हें आपस में बांधता है, लेकिन सेना के जैसा कोई व्यवस्थित ढांचा देखने को नहीं मिलता है. किसी वैश्विक उद्देश्य के प्रति वफादारी के बाजवूद स्थानीय गुटों के अपने कुछ लक्ष्य होते हैं जिनमें किसी इलाके पर नियंत्रण करना या फिर सरकार की किसी कथित दमनकारी नीति का अंत कराना शामिल होता है. इलाके में फैली गरीबी के कारण उन्हें कई बार सहानुभूति भी आराम से मिल जाती है.

विश्लेषक कहते हैं कि कुछ पश्चिमी अधिकारियों की चेतावनियों के बावजूद अफ्रीकी जिहादी गुटों की इसमें कम ही दिलचस्पी होती है कि वे यूरोप या फिर उत्तरी अमेरिका में जाकर हमले करें. यही वजह है कि स्थानीय चरमपंथी गुट के मुखिया कभी आईएस या फिर अल कायदा के नेतृत्व में ऊपर तक नहीं पहुंच पाते. नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ साइंस में अफ्रीका विशेषज्ञ स्टिग यार्ले हांसेन का कहना है, "उन सब का एक स्थानीय एजेंडा होता है और मुझे नहीं लगता कि उनमें से कोई नेतृत्व का उम्मीदवार होता है. लेकिन उनकी अहमियत बढ़ी जरूरी है."

एके/आईबी (एएफपी)

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