अफ्रीका में पहली बार आयोजित हो रहा जी20 शिखर सम्मेलन शनिवार को दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुआ, जिसका मकसद दुनिया के सबसे गरीब देशों से जुड़े कई पुराने और जटिल मुद्दों पर ठोस प्रगति करना है.
दक्षिण अफ्रीका में दो दिन का जी20 सम्मेलन शुरू हो गया हैतस्वीर: Kyodo News/IMAGO
विज्ञापन
दुनिया की सबसे बड़ी और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नेता और शीर्ष सरकारी अधिकारी दक्षिण अफ्रीका के प्रसिद्ध सोवेटो टाउनशिप के पास स्थित प्रदर्शनी केंद्र में जमा हुए हैं. यही वह जगह है जो कभी नेल्सन मंडेला का घर था. इस दो दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य मेजबान देश द्वारा तय की गई प्राथमिकताओं पर सहमति बनाना है.
इन प्राथमिकताओं में जलवायु से जुड़ी आपदाओं से उबरने के लिए गरीब देशों की सहायता बढ़ाना, विदेशी कर्ज के बोझ को कम करना, हरित ऊर्जा स्रोतों की ओर आगे बढ़ना और अपने खनिज संसाधनों के बेहतर उपयोग को शामिल किया गया है. ये सभी प्रयास वैश्विक असमानता को कम करने की दिशा में हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "देखते हैं कि क्या जी20 विकासशील देशों को प्राथमिकता दे सकता है और सार्थक सुधार कर सकता है. लेकिन मुझे लगता है कि दक्षिण अफ्रीका ने इन मुद्दों को स्पष्ट रूप से मेज पर रखकर अपनी भूमिका निभाई है.”
अमेरिकाकीअनुपस्थितिऔरविवाद
इस शिखर सम्मेलन में अमेरिका शामिल नहीं हुआ है. अमेरिका की अनुपस्थिति ने इसे राजनीतिक रूप से विवादास्पद बना दिया है. राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यह दावा करते हुए अमेरिका को सम्मेलन से बाहर रखा कि दक्षिण अफ्रीका "श्वेत विरोधी नीतियां” अपना रहा है और वहां के श्वेत अल्पसंख्यकों पर "उत्पीड़न” हो रहा है.
इस निर्णय ने अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के बीच महीनों से चल रहे राजनयिक मतभेदों को और गहरा कर दिया है. हालांकि, ट्रंप के बहिष्कार ने सम्मेलन से पहले की चर्चाओं पर हावी होकर इसके एजेंडे को कमजोर करने की आशंका पैदा की थी, लेकिन कई नेता आगे बढ़ने के पक्ष में दिखे.
अमेरिका के शामिल ना होने पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा, "मुझे इसका अफसोस है, लेकिन हमें सम्मेलन नहीं रोकना चाहिए. हमारा दायित्व है कि हम उपस्थित रहें, भागीदारी करें और साथ मिलकर काम करें, क्योंकि हमारे सामने बहुत सी चुनौतियां हैं.”
दुनियाभर के नेता जी20 सम्मेलन के लिए दक्षिण अफ्रीका पहुंचे हैं. तस्वीर में हैं ब्राजील के राष्ट्रपति लुइस इनासियो लूला दा सिल्वा.तस्वीर: Marco Longari/REUTERS
जी20 असल में 21 सदस्यों का समूह है, जिसमें 19 देशों के साथ-साथ यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ शामिल हैं. इसका गठन 1999 में अमीर और गरीब देशों के बीच पुल स्थापित करने के रूप में किया गया था ताकि वैश्विक वित्तीय संकटों से निपटा जा सके.
हालांकि यह समूह अक्सर दुनिया की सात सबसे अमीर लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं के संगठन जी7 की छाया में रहता है, लेकिन जी20 के सदस्य विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग 85 प्रतिशत, अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75 प्रतिशत और वैश्विक जनसंख्या के आधे से अधिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.
जी20 का काम करने का तरीका आम सहमति पर आधारित है, किसी बाध्यकारी निर्णय पर नहीं. लेकिन अमेरिका, रूस, चीन, भारत, जापान, फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे सदस्यों के अलग-अलग हितों के कारण सहमति बनाना अक्सर कठिन हो जाता है.
विज्ञापन
जलवायुऔरआर्थिकसुधारपरमतभेद
गुटेरेश ने चेतावनी दी कि अमीर देश अक्सर प्रभावी जलवायु या वैश्विक वित्तीय सुधार समझौतों के लिए आवश्यक रियायतें देने में असफल रहे हैं. जी20 शिखर सम्मेलन आमतौर पर नेताओं की एक संयुक्त घोषणा के साथ समाप्त होता है, जिसमें सदस्य देशों के बीच हुई व्यापक सहमति का विवरण होता है. लेकिन जोहान्सबर्ग में यह लक्ष्य भी मुश्किल साबित हो रहा है. दक्षिण अफ्रीका ने आरोप लगाया कि अमेरिका उस पर दबाव डाल रहा है कि वह किसी औपचारिक "लीडर्स डिक्लेरेशन” को जारी न करे और उसकी जगह केवल मेजबान देश का एकतरफा बयान जारी करे.
यूएनएसी में भारत को स्थायी सीट का समर्थन करने वाले देश
दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रेस वार्ता के दौरान तुर्की के राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है. जानते हैं और कौन-कौन से देश इसके समर्थन में हैं.
तस्वीर: ED JONES/AFP/Getty Images
तुर्की
तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने जी20 शिखर सम्मेलन के इतर पीएम मोदी से 10 सितंबर को मुलाकात की. दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर चर्चा हुई. एर्दोवान ने प्रेस वार्ता में कहा कि दक्षिण एशिया में भारत तुर्की का सबसे बड़ा साझेदार है. उन्होंने यूएनएससी में भारत के लिए स्थायी सीट का समर्थन किया है. उन्होंने कहा अगर भारत जैसा देश यूएनएससी का स्थायी सदस्य बनता है तो उनके देश को "गर्व" होगा.
तस्वीर: DHA
"दुनिया पांच से बड़ी"
एर्दोवान ने साथ ही कहा जब हम कहते हैं कि दुनिया पांच से बड़ी है तो इसका मतलब यह है कि यह केवल अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस के बारे में नहीं है. उन्होंने कहा हम केवल इन पांच देशों को यूएनएससी में रखना नहीं चाहते. एर्दोवान ने कहा कि सभी गैर-पी5 सदस्यों को बारी-बारी से सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने का अवसर मिलना चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/M. Swarup
अमेरिका
जी20 शिखर सम्मेलन के पहले दिल्ली में 8 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की द्विपक्षीय बातचीत हुई थी. बाइडेन ने बैठक में यूएनएससी में सुधार किए जाने और उसमें भारत की स्थायी सदस्यता होने के प्रति अपना समर्थन दोहराया. दोनों देशों के साझा बयान के मुताबिक बाइडेन ने यूएनएससी में 2028-29 में गैर-स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी का एक बार फिर से स्वागत किया.
तस्वीर: Evan Vucci/REUTERS
भारत के समर्थक देश
यूएनएससी में भारत को स्थायी सदस्य बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. इसके चार सदस्य रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस, भारत को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन करते रहे हैं लेकिन चीन की असहमति की वजह से यह अब तब मुमकिन नहीं हो पाया है.
यूएनएससी में अगर कोई फैसला लिया जाता है तो उसके पांच स्थायी सदस्यों की सहमति जरूरी होती है. अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस को वीटो पावर हासिल है. वीटो पावर का मतलब है कि यूएनएससी में स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई एक सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल कर उस फैसले को रोक सकता है. कई ऐसे मौके आए है जब चीन ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर किसी प्रस्ताव को पारित होने से रोका है.
तस्वीर: ED JONES/AFP/Getty Images
मोदी ने की यूएनएससी के विस्तार की पैरवी
जी20 की अध्यक्षता ब्राजील को सौंपने से पहले मोदी ने 'एक भविष्य' सत्र को संबोधित करते हुए यूएनएससी के विस्तार और सभी वैश्विक संस्थाओं में सुधार की वकालत की. मोदी ने कहा जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 51 सदस्यों के साथ हुई थी, तो दुनिया अलग थी और अब सदस्य देशों की संख्या लगभग 200 हो गई है. बावजूद इसके यूएनएससी में स्थायी सदस्य आज भी उतने ही हैं. तब से आज तक दुनिया हर लिहाज से बहुत बदल चुकी है.
तस्वीर: AFP
स्थायी सदस्य कैसे बनता है कोई देश
अगर किसी देश को स्थायी सदस्य बनाना है तो संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन करना होगा. जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा की सदस्यता के दो-तिहाई बहुमत से हस्ताक्षर और समर्थन देना होगा. इसमें 5 स्थायी सदस्यों की सहमति जरुरी है. इन पांच में से किसी एक देश ने भी वीटो कर दिया तो उस देश को स्थायी सदस्यता नहीं मिल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Rajmil
7 तस्वीरें1 | 7
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हम पर दबाव नहीं डाला जा सकता.” उन्होंने वादा किया कि सम्मेलन के समापन पर रविवार को सभी उपस्थित सदस्यों की ओर से एक संयुक्त घोषणा जारी की जाएगी. रामफोसा ने कहा कि यह शिखर सम्मेलन उन विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो गरीब देशों के भविष्य से जुड़े हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, कर्ज माफी और आर्थिक समानता. उन्होंने कहा, "अगर दुनिया को टिकाऊ विकास चाहिए तो सबसे कमजोर देशों की आवाज सुनी जानी चाहिए.”
इसके बाद जी20 की अध्यक्षता अमेरिका के पास जानी है. व्हाइट हाउस ने कहा कि अमेरिका की ओर से इस सम्मेलन में केवल एक प्रतिनिधि हिस्सा लेगा, जो दक्षिण अफ्रीका स्थित अमेरिकी दूतावास से एक अधिकारी होंगे ताकि औपचारिक हैंडओवर समारोह में नई अध्यक्षता स्वीकार की जा सके. दक्षिण अफ्रीका ने इसे "अपमानजनक” बताया कि राष्ट्रपति रामफोसा को इस तरह के वरिष्ठ शिखर सम्मेलन में एक "कनिष्ठ राजनयिक अधिकारी” को अध्यक्षता सौंपनी पड़ेगी.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की अनुपस्थिति इस सम्मेलन के फोकस को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने जलवायु परिवर्तन और वैश्विक असमानता जैसे मुद्दों पर लगातार आलोचनात्मक रुख अपनाया है. फिर भी, अधिकांश सदस्य देशों ने संकेत दिया है कि वे अपने सामूहिक एजेंडे पर काम जारी रखेंगे और सम्मेलन को आगे बढ़ाएंगे.
जी20 नई दिल्ली घोषणा पत्र में क्या खास
जी20 शिखर सम्मेलन के पहले ही दिन नई दिल्ली जी20 लीडर्स घोषणा पत्र पर सहमति बन गई. आइए जानते हैं, घोषणा पत्र की कुछ अहम बातें.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
घोषणा पत्र को मिली आम सहमति
जी20 शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य में सभी विकासात्मक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर 9 सितंबर 2023 को आम सहमति बन गई और नई दिल्ली घोषणा पत्र को आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया.
तस्वीर: Amarjeet Kumar Singh/AA/picture alliance
किन चीजों पर केंद्रित है घोषणा पत्र
नई दिल्ली घोषणा पत्र इन बिंदुओं पर केंद्रित है- मजबूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी विकास, एसडीजी पर प्रगति में तेजी लाना, सतत भविष्य के लिए हरित विकास समझौता, 21वीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थान और बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना आदि.
नई दिल्ली घोषणा पत्र में "यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और टिकाऊ शांति" का आह्वान किया गया और सदस्य देशों से "क्षेत्रीय अधिग्रहण के लिए बल प्रयोग के खतरे से बचने" या किसी राज्य की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ कार्य न करने का आग्रह किया गया है. साथ ही घोषणा पत्र में परमाणु हथियार की धमकी और उसके इस्तेमाल को अस्वीकार्य बताया गया.
तस्वीर: Evan Vucci/REUTERS
आतंकवाद
जी20 के सभी देशों ने आतंकवाद के सभी रूप की आलोचना की है. आतंकवाद का घोषणा पत्र में नौ बार जिक्र किया गया है.
तस्वीर: via REUTERS
वन फ्यूचर अलायंस
घोषणा पत्र में कहा गया है कि सभी देश टिकाऊ विकास के लक्ष्य पर काम करेंगे और भारत की पहल पर वन फ्यूचर अलायंस बनाया जाएगा.
तस्वीर: Hindustan Times/IMAGO
ग्लोबल बायो फ्यूल अलायंस
ग्लोबल बायो फ्यूल अलायंस की शुरूआत होगी, जिसके संस्थापक सदस्य भारत, अमेरिका और ब्राजील होंगे.
तस्वीर: Ajit Solanki/AP Photo/picture alliance
क्रिप्टो पर वैश्विक नीति
नई दिल्ली घोषणा पत्र में कहा गया है कि क्रिप्टो करेंसी पर वैश्विक नीति बनाने की दिशा में बातचीत की जाएगी.
तस्वीर: Kabir Jhangiani/ZUMA/picture alliance
ग्लोबल साउथ पर जोर
जी20 का जोर ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर रहेगा. बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी), मल्टीलैटरल डेवलपमेंट बैंक को मंजूरी दी जाएगी.
तस्वीर: Ludovic Marin/AFP/Getty Images
जलवायु परिवर्तन से निपटने में तेजी
घोषणा पत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने में तेजी लाने की भी बात कही गई है. समूह ने सभी देशों से अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित लक्ष्यों (एनडीसी) को पेरिस समझौते के अनुरूप करने का आह्वान किया है.
तस्वीर: Ravi Batra/ZUMA Press Wire/picture alliance
नारी शक्ति
जी20 की भारतीय अध्यक्षता में लैंगिक समानता और नारी सशक्तिकरण पर बल देते हुए जी20 में "नया महिला सशक्तिकरण समूह" गठित करने की घोषणा की गई है. जी 20 के नई दिल्ली घोषणा पत्र में लैंगिक समानता और नारी सशक्तिकरण के माध्यम से महिलाओं के नेतृत्व में विकास पर बल दिया गया है.