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राजनीतिदक्षिण अफ्रीका

अमेरिका की गैर-हाजिरी में पहली बार अफ्रीका में जी20 समिट

२२ नवम्बर २०२५

अफ्रीका में पहली बार आयोजित हो रहा जी20 शिखर सम्मेलन शनिवार को दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुआ, जिसका मकसद दुनिया के सबसे गरीब देशों से जुड़े कई पुराने और जटिल मुद्दों पर ठोस प्रगति करना है.

दक्षिण अफ्रीका में जी20 सम्मेलन का लोगो
दक्षिण अफ्रीका में दो दिन का जी20 सम्मेलन शुरू हो गया हैतस्वीर: Kyodo News/IMAGO

दुनिया की सबसे बड़ी और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नेता और शीर्ष सरकारी अधिकारी दक्षिण अफ्रीका के प्रसिद्ध सोवेटो टाउनशिप के पास स्थित प्रदर्शनी केंद्र में जमा हुए हैं. यही वह जगह है जो कभी नेल्सन मंडेला का घर था. इस दो दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य मेजबान देश द्वारा तय की गई प्राथमिकताओं पर सहमति बनाना है.

इन प्राथमिकताओं में जलवायु से जुड़ी आपदाओं से उबरने के लिए गरीब देशों की सहायता बढ़ाना, विदेशी कर्ज के बोझ को कम करना, हरित ऊर्जा स्रोतों की ओर आगे बढ़ना और अपने खनिज संसाधनों के बेहतर उपयोग को शामिल किया गया है. ये सभी प्रयास वैश्विक असमानता को कम करने की दिशा में हैं.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "देखते हैं कि क्या जी20 विकासशील देशों को प्राथमिकता दे सकता है और सार्थक सुधार कर सकता है. लेकिन मुझे लगता है कि दक्षिण अफ्रीका ने इन मुद्दों को स्पष्ट रूप से मेज पर रखकर अपनी भूमिका निभाई है.”

अमेरिका की अनुपस्थिति और विवाद

इस शिखर सम्मेलन में अमेरिका शामिल नहीं हुआ है. अमेरिका की अनुपस्थिति ने इसे राजनीतिक रूप से विवादास्पद बना दिया है. राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यह दावा करते हुए अमेरिका को सम्मेलन से बाहर रखा कि दक्षिण अफ्रीका "श्वेत विरोधी नीतियां” अपना रहा है और वहां के श्वेत अल्पसंख्यकों पर "उत्पीड़न” हो रहा है.

इस निर्णय ने अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के बीच महीनों से चल रहे राजनयिक मतभेदों को और गहरा कर दिया है. हालांकि, ट्रंप के बहिष्कार ने सम्मेलन से पहले की चर्चाओं पर हावी होकर इसके एजेंडे को कमजोर करने की आशंका पैदा की थी, लेकिन कई नेता आगे बढ़ने के पक्ष में दिखे.

अमेरिका के शामिल ना होने पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा, "मुझे इसका अफसोस है, लेकिन हमें सम्मेलन नहीं रोकना चाहिए. हमारा दायित्व है कि हम उपस्थित रहें, भागीदारी करें और साथ मिलकर काम करें, क्योंकि हमारे सामने बहुत सी चुनौतियां हैं.”

दुनियाभर के नेता जी20 सम्मेलन के लिए दक्षिण अफ्रीका पहुंचे हैं. तस्वीर में हैं ब्राजील के राष्ट्रपति लुइस इनासियो लूला दा सिल्वा.तस्वीर: Marco Longari/REUTERS

जी20 असल में 21 सदस्यों का समूह है, जिसमें 19 देशों के साथ-साथ यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ शामिल हैं. इसका गठन 1999 में अमीर और गरीब देशों के बीच पुल स्थापित करने के रूप में किया गया था ताकि वैश्विक वित्तीय संकटों से निपटा जा सके.

हालांकि यह समूह अक्सर दुनिया की सात सबसे अमीर लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं के संगठन जी7 की छाया में रहता है, लेकिन जी20 के सदस्य विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग 85 प्रतिशत, अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75 प्रतिशत और वैश्विक जनसंख्या के आधे से अधिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.

जी20 का काम करने का तरीका आम सहमति पर आधारित है, किसी बाध्यकारी निर्णय पर नहीं. लेकिन अमेरिका, रूस, चीन, भारत, जापान, फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे सदस्यों के अलग-अलग हितों के कारण सहमति बनाना अक्सर कठिन हो जाता है.

जलवायु और आर्थिक सुधार पर मतभेद

गुटेरेश ने चेतावनी दी कि अमीर देश अक्सर प्रभावी जलवायु या वैश्विक वित्तीय सुधार समझौतों के लिए आवश्यक रियायतें देने में असफल रहे हैं. जी20 शिखर सम्मेलन आमतौर पर नेताओं की एक संयुक्त घोषणा के साथ समाप्त होता है, जिसमें सदस्य देशों के बीच हुई व्यापक सहमति का विवरण होता है. लेकिन जोहान्सबर्ग में यह लक्ष्य भी मुश्किल साबित हो रहा है. दक्षिण अफ्रीका ने आरोप लगाया कि अमेरिका उस पर दबाव डाल रहा है कि वह किसी औपचारिक "लीडर्स डिक्लेरेशन” को जारी न करे और उसकी जगह केवल मेजबान देश का एकतरफा बयान जारी करे.

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हम पर दबाव नहीं डाला जा सकता.” उन्होंने वादा किया कि सम्मेलन के समापन पर रविवार को सभी उपस्थित सदस्यों की ओर से एक संयुक्त घोषणा जारी की जाएगी. रामफोसा ने कहा कि यह शिखर सम्मेलन उन विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो गरीब देशों के भविष्य से जुड़े हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, कर्ज माफी और आर्थिक समानता. उन्होंने कहा, "अगर दुनिया को टिकाऊ विकास चाहिए तो सबसे कमजोर देशों की आवाज सुनी जानी चाहिए.”

इसके बाद जी20 की अध्यक्षता अमेरिका के पास जानी है. व्हाइट हाउस ने कहा कि अमेरिका की ओर से इस सम्मेलन में केवल एक प्रतिनिधि हिस्सा लेगा, जो दक्षिण अफ्रीका स्थित अमेरिकी दूतावास से एक अधिकारी होंगे ताकि औपचारिक हैंडओवर समारोह में नई अध्यक्षता स्वीकार की जा सके. दक्षिण अफ्रीका ने इसे "अपमानजनक” बताया कि राष्ट्रपति रामफोसा को इस तरह के वरिष्ठ शिखर सम्मेलन में एक "कनिष्ठ राजनयिक अधिकारी” को अध्यक्षता सौंपनी पड़ेगी.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की अनुपस्थिति इस सम्मेलन के फोकस को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने जलवायु परिवर्तन और वैश्विक असमानता जैसे मुद्दों पर लगातार आलोचनात्मक रुख अपनाया है. फिर भी, अधिकांश सदस्य देशों ने संकेत दिया है कि वे अपने सामूहिक एजेंडे पर काम जारी रखेंगे और सम्मेलन को आगे बढ़ाएंगे.

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