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नीतीश अलग हों या न हों, इंडिया ब्लॉक की ये चुनौती बनी रहेगी

प्रभाकर मणि तिवारी
२६ जनवरी २०२४

इंडिया ब्लॉक में बिखराव जारी है. पहले बंगाल में सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई और ममता बनर्जी ने अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की. अब बिहार से भी नीतीश कुमार के अलग होने की चर्चा जोरों पर है.

जय प्रकाश नारायण की 120वीं सालगिरह के कार्यक्रम में नीतीश कुमार. जगह: दीमापुर, नागालैंड
पिछले साल जब बीजेपी विरोधी पार्टियों में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एकता की सुगबुगाहट शुरू हुई, तो सभी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिशों में नीतीश ने बड़ी भूमिका निभाई थी. तस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

मीडिया में सूत्रों के हवाले से मजबूत अटकलें बताई जा रही हैं कि बिहार में नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ जा रहे हैं. खबरों के मुताबिक, मामला लगभग तय हो चुका है कि नीतीश, बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाएंगे.

243 सदस्यों की बिहार विधानसभा में आरजेडी के 79 विधायक, बीजेपी के 78, जनता दल यूनाइडेट के 45 और कांग्रेस के 19 विधायक हैं. जीतन मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के चार विधायक हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. आरजेडी ने अभी तक आधिकारिक तौर पर अलगाव की पुष्टि नहीं की है. ना ही कांग्रेस का कोई बयान आया है.

इंडिया गठबंधन में भूमिका

नीतीश कुमार इंडिया ब्लॉक के बड़े नेता थे. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उनका बीजेपी के साथ जाना इंडिया गठबंधन की कोशिशों को प्रभावित कर सकता है. पिछले साल जब बीजेपी विरोधी पार्टियों में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एकता की सुगबुगाहट शुरू हुई, तो सभी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिशों में नीतीश ने बड़ी भूमिका निभाई थी. बीते दिनों उन्होंने ब्लॉक के संयोजक बनने की पेशकश को भी नामंजूर कर दिया था. खबरों के मुताबिक, नीतीश अपनी ज्यादा बड़ी और ठोस भूमिका पर सहमति चाहते थे. 

बंगाल और पंजाब में भी प्रमुख क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ ना जाकर अकेले चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया. आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना खारिज कर चुके हैं.

24 जनवरी को कैबिनेट की एक बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए मान ने कहा कि लोकसभा चुनाव में आप पंजाब की सभी 13 सीटें जीतेगी. मान ने स्पष्ट कहा कि कि आप, कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी. ऐसे में इंडिया ब्लॉक के सामने सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाना और एक साथ आना अभी एक बड़ी चुनौती है.

22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन ममता बनर्जी ने कोलकाता में एक सर्वधर्म रैली निकाली. तस्वीर: PRABHAKAR

बंगाल में क्या हुआ?

उधर पश्चिम बंगाल में भी मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. कहा जा रहा है कि क्या यह इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत किया गया है. वैसे, बंगाल में विपक्षी गठबंधन के तीनों सहयोगी दलों—तृणमूल कांग्रेस, वाममोर्चा और कांग्रेस के बीच तालमेल के मुद्दे पर खींचतान शुरू से ही चल रही थी. अब ममता के एलान से राज्य में विपक्षी एकता की कोशिशों को तो झटका लगा ही है, सीटों पर बंटवारे का मामला भी खटाई में पड़ता नजर आ रहा है.

कांग्रेस ने इस सप्ताह की शुरुआत में ही साफ कह दिया था कि वह ममता की पार्टी के साथ कोई तालमेल नहीं करेगी. उसने अपने सहयोगी वाममोर्चा के साथ मिल कर तृणमूल पर भाजपा के साथ गोपनीय तालमेल का आरोप लगाया है. दिलचस्प यह है कि ममता भी इन दोनों पर यही आरोप लगाती रही हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल ने 22 और भाजपा ने 18 सीटें जीती थी. बाकी दो सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. पिछले महीने अपुष्ट खबरें सामने आईं कि ममता कांग्रेस को पिछली बार जीती उसकी दोनों सीटें, यानी बहरमपुर और मालदा दक्षिण ही देने के लिए तैयार हैं. उसके बाद से ही दोनों दलों के बीच तनातनी शुरू हो गई. ममता ने राज्य में सीटों के बंटवारे के लिए 31 दिसंबर की समयसीमा तय की थी, जो कि काफी पहले खत्म हो चुकी है.

ममता और राहुल गांधी के बयान परस्पर विरोधी थे. राहुल ने कहा कि सीटों के बंटवारे पर बात हो रही है, वहीं ममता ने कहा कि उनकी कांग्रेस के साथ कोई चर्चा नहीं हुई. ममता ने कहा कि वह हमेशा से कहती आई हैं कि बंगाल में तृणमूल अकेले ही लड़ेगी. ममता ने यह भी कहा कि उन्हें राहुल की न्याय यात्रा के बंगाल से गुजरने की कोई सूचना नहीं दी गई. तस्वीर: PRABHAKAR

ममता की सर्वधर्म रैली

22 जनवरी को एक तरफ जहां अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की गहमागहमी थी, वहीं ममता कोलकाता में एक सर्वधर्म रैली निकाल रही थीं. इस रैली में उन्होंने कहा कि कांग्रेस देश में 300 सीटों पर अकेले लड़ सकती है, लेकिन खास इलाकों में भाजपा से मुकाबले की कमान क्षेत्रीय दलों को सौंप दी जानी चाहिए. ममता का कहना था कि वह उन 300 सीटों पर कांग्रेस की मदद करेंगी और वहां तृणमूल का कोई उम्मीदवार नहीं उतारेंगी. ममता ने कहा कि कांग्रेस से इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है और उसने उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.

उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ो' न्याय यात्रा निकाल रहे हैं. 23 जनवरी को असम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल ने कहा कि ममता से उनके नजदीकी संबंध हैं. उन्हें भी यात्रा में शामिल होने का न्योता दिया गया है. अगले दिन ममता का बयान आया कि उनको पहले से इसकी जानकारी नहीं दी गई थी.

हाल ही में ममता ने तृणमूल की एक आंतरिक बैठक में कहा था कि कांग्रेस और लेफ्ट के कथित अड़ियल रवैये के कारण अगर उनको सीटों के बंटवारे में अहमियत नहीं मिली, तो पार्टी अकेले अपने बूते सभी 42 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है. फिर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने तीखा बयान दिया और ममता को मौकापरस्त बताया. इसके बाद ममता ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की.

ममता बनर्जी के बयान से स्पष्ट था कि वह प्रदेश में तृणमूल की भूमिका देखती हैं और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की मदद के लिए तैयार हैं. खबरों के मुताबिक, ममता बंगाल में कांग्रेस को दो ही सीटें देना चाहती हैं.तस्वीर: PRABHAKAR

अधीर रंजन चौधरी से नाराजगी

ममता ने लेफ्ट पर भी आरोप लगाया, "विपक्षी दलों की बैठक के दौरान मैंने ही इंडिया नाम का सुझाव रखा था. लेकिन अब गठबंधन की बैठक के समय लेफ्ट इसके अजेंडे को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है. इस अपमान के बावजूद मैं बैठकों में हिस्सा लेती रही. लेकिन मैंने जिसके साथ 34 साल तक लड़ाई लड़ी, उसका यह रवैया मुझे स्वीकार नहीं है."

तृणमूल के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि बंगाल में इंडिया गठबंधन के काम ना करने की तीन बड़ी वजहें हैं. उन्होंने कहा, "अधीर रंजन चौधरी बीजेपी की भाषा बोलते हैं. बंगाल में गठबंधन के ना बनने की तीन वजहें हैं: अधीर रंजन चौधरी, अधीर रंजन चौधरी और अधीर रंजन चौधरी."

हालांकि जब उनसे चुनाव के बाद गठबंधन की संभावना के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि अगर आम चुनाव में कांग्रेस अच्छी-खासी सीटों पर बीजेपी को हराने में सफल रहती है, तो तृणमूल कांग्रेस "संविधान और विविधता में यकीन करने वाले और इनके लिए संघर्ष करने वाले फ्रंट का हिस्सा बनेगा."

गठबंधन पर असर

ममता के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले का गठबंधन पर क्या असर होगा? राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "यह कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बढ़ाने की ममता की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. बंगाल में गठबंधन की राह हमेशा सर्पीली और उलझन भरी रही है. लेकिन ममता यहां सबसे बड़ी और सत्तारूढ़ पार्टी होने के कारण सब कुछ अपनी शर्तों पर तय करना चाहती है. वे अपनी पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक हैं जबकि कांग्रेस और सीपीएम की ओर से तो फैसला केंद्रीय नेतृत्व को करना है."

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीति में दोस्ती या दुश्मनी कुछ भी स्थायी नहीं होती. इसलिए ममता बनर्जी के ऐलान के बावजूद बाद में कांग्रेस के साथ सीटों पर समझौता हो सकता है. हालांकि एक के बाद एक जिस तरह बड़े क्षेत्रीय दल कांग्रेस से छिटक रहे हैं, ऐसे में राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर उसके आगे बड़ी चुनौती है. कई जानकारों का कहना है कि राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय सहयोगी खोजे बिना कांग्रेस की राह मुश्किल है, साथ ही उसके आगे खुद को "जूनियर सहयोगी" की स्थिति में पीछे जाने का डर भी है.

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