1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पश्चिम बंगाल पर बन रही फिल्म का विरोध क्यों हो रहा है

प्रभाकर मणि तिवारी
३० मई २०२३

कथित राजनीतिक एजंडे के तहत बनने वाली 'द कश्मीर फाइल्स' और 'द केरला स्टोरी' के बाद अब पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और हिंदुओं पर कथित अत्याचार के मुद्दे पर बनी 'द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल' पर विवाद तेज हो रहा है.

फिल्म के ट्रेलर में बंगाल को दूसरा कश्मीर भी बताया गया है. इसमें ममता का नाम और बीते विधानसभा चुनाव के समय चर्चित होने वाले 'खेला होबे' नारे की गूंज भी सुनाई देती है.
फिल्म के ट्रेलर में बंगाल को दूसरा कश्मीर भी बताया गया है. इसमें ममता का नाम और बीते विधानसभा चुनाव के समय चर्चित होने वाले 'खेला होबे' नारे की गूंज भी सुनाई देती है. तस्वीर: PRABHAKAR/DW

सनोज मिश्र के निर्देशन में बनी इस फिल्म में बंगाल की कथित राजनीतिक परिस्थिति को परदे पर उतारा गया है. हालांकि फिल्म की शूटिंग अभी पूरी नहीं हुई है. लेकिन इसके ट्रेलर पर अभी से राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है. कोलकाता में फिल्म के निर्देशक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है. इसमें आरोप लगाया गया है कि इस फिल्म के जरिए बंगाल की छवि और सांप्रदायिक सद्भाव नष्ट करने की कोशिश की जा रही है. इस आधार पर निर्देशक को समन भेजा गया है.

क्या है विवाद की वजह?

ट्रेलर की शुरुआत में ही निर्देशक ने अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की राजनीति का संकेत दिया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी बंगाल में नागरिकता अधिनियम (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) लागू नहीं होने देने की बात कहती रही हैं. फिल्म के ट्रेलर में उनका वही भाषण मुख्यमंत्री की भूमिका निभाने वाले पात्र के जरिए दिलाया गया है.

ट्रेलर में बंगाल को दूसरा कश्मीर भी बताया गया है. इसमें ममता का नाम और बीते विधानसभा चुनाव के समय चर्चित होने वाले 'खेला होबे' नारे की गूंज भी सुनाई देती है. साथ ही, यह भी दिखाया गया है कि रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश से कंटीले तारों की बाड़ पार कर पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर रहे हैं. उनकी वजह से एक तबके के लोग यहां बेघर हो रहे हैं. सरकार उस बहुसंख्यक संप्रदाय के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. ट्रेलर में कई मुद्दों के जरिए राज्य में अशांति और कानून व्यवस्था की स्थिति में गिरावट साबित करने की कोशिश की गई है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी बंगाल में सीएए और एनआरसी लागू नहीं होने देने की बात कहती रही हैं. फिल्म के ट्रेलर में उनका वही भाषण मुख्यमंत्री की भूमिका निभाने वाले पात्र के जरिए दिलाया गया है.तस्वीर: Subrata Goswami/DW

तृणमूल ने की फिल्म बैन करने की मांग

बीते महीने रिलीज हुए दो मिनट 12 सेकेंड लंबे इस ट्रेलर को अब तक करीब नौ लाख लोग देख चुके हैं. इस ट्रेलर के सामने आने के बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी में आरोप-प्रत्यारोप लगातार तेज हो रहा है. तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष सवाल करते हैं, "अगर यह बंगाल की डायरी है तो इसमें कन्याश्री, दुआरे सरकार और जनहित में शुरू की गई दूसरी परियोजनाओं का जिक्र क्यों नहीं है? दरअसल सीपीएम की सहायता से बीजेपी एक झूठे राजनीतिक कुप्रचार में जुटी है. हम इस पर बैन लगाने की मांग करते हैं.”

पार्टी के एक अन्य नेता जय प्रकाश मजूमदार दावा करते हैं, "यह फिल्म उन लोगों की ओर से बनाई जा रही है, जो धार्मिक आधार पर लोगों को विभाजित करने, नफरत की झूठी कहानी फैलाने और राज्य में मौजूद सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द को बिगाड़ने का एजेंडा चलाना चाहते हैं. प्राथमिकी दर्ज करने के फैसले से हमारी पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है.”

तृणमूल कांग्रेस इस फिल्म को बैन करने की मांग कर रही है. तस्वीर: Wasim Rizwi Films

बीजेपी का ममता सरकार पर आरोप

प्रदेश में बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, "ट्रेलर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने से साफ है कि ममता बैनर्जी सरकार नहीं चाहती कि हकीकत सामने आए. पश्चिम बंगाल की जमीनी हकीकत: बीते सात-आठ वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों और राज्य के कुछ अन्य हिस्सों में होने वाले जनसांख्यिकीय बदलाव का सच.”

तृणमूल कांग्रेस के आरोपों पर फिल्म के निर्देशक सनोज मिश्र कहते हैं, "हमारा मकसद राज्य की छवि खराब करना नहीं है. हमने इस फिल्म में वही दिखाया है, जो सच है. यह पूरी तरह सच पर आधारित है. बंगाल में बड़े पैमाने पर नरसंहार, रेप और पलायन हो रहा है. मैं प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील करता हूं. मैं दीदी के खिलाफ नहीं, बल्कि सच के साथ हूं.” उनका कहना है कि फिल्म की फाइनल शूटिंग चल रही है और इसे अगले महीने सेंसर बोर्ड के समक्ष भेजा जाएगा. इसे अगस्त तक रिलीज करने का इरादा है.

इस फिल्म के निर्माता और कहानी लेखक जितेंद्र नारायण सिंह हैं. पहले उनका नाम वसीम रिजवी था और वे उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने दिसंबर, 2021 में हिंदू धर्म अपना लिया था.

सावरकर पर आ रही फिल्म पर भी विवाद

रणदीप हुड्डा अभिनीत 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' फिल्म आ रही है. इसमें हुड्डा सावरकर के किरदार में हैं. रणदीप हुड्डा ने ट्वीट करते हुए लिखा था, ''अंग्रेजों के लिए मोस्ट वॉन्टेड शख्स. ऐसी शख्सियत जिससे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और खुदीराम बोस प्रेरणा लेते थे. सावरकर कौन थे? इस कहानी को इसी साल 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' फिल्म में देखिए.''

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पौत्र चंद्र कुमार बोस ने फिल्म में सावरकर की भूमिका निभाने वाले अभिनेता रणदीप हुड्डा पर निशाना साधा है. उनका कहना है, "सावरकर की विचारधारा और नेताजी की विचारधारा एकदम विपरीत थी. नेताजी बहुत धर्मनिरपेक्ष थे. उन्होंने उन लोगों का विरोध किया, जो सांप्रदायिक थे.” बोस ने बॉलीवुड अभिनेता रणदीप हुड्डा के उस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह और खुदीराम बोस हिंदुत्व के झंडाबरदार विनायक दामोदर सावरकर से प्रभावित थे.

रणदीप हुड्डा ने यह भी दावा किया है कि सुभाषचंद्र बोस भी सावरकर से प्रेरणा लेते थे. इसपर चंद्र कुमार बोस ने कहा है, "नेताजी केवल स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा लेते थे. विवेकानंद ही उनके आध्यात्मिक गुरु थे. सुभाषचंद्र बोस स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास से प्रभावित थे और वही उनके राजनीतिक सलाहकार थे.”

फिल्म समीक्षक सूर्य कुमार सेन कहते हैं, "राजनीतिक एजेंडे पर बनने वाली ऐसी फिल्मों का चलन अब तेज हो रहा है. इस फिल्म में तमाम वही चीजें दिखाई गई हैं, जिनके आरोप बीजेपी लगाती रही है. इसमें चीजों को एकतरफा दिखाया गया है. ऐसे में इस पर विवाद तेज होना स्वाभाविक ही है.”

हाल में ही सुदीप्तो सेन की फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर भी जमकर विवाद हुआ था. कुछ लोगों ने इसे एजेंडा बताया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के तमाम नेताओं ने इसका समर्थन किया. तस्वीर: Payel Samanta/DW

पहले भी होते रहे हैं फिल्मों पर विवाद

बॉलीवुड, या हिंदी फिल्म उद्योग में विरोध और विवादों का सिलसिला कोई नया नहीं है. देश की आजादी के बाद पहली बार साल 1958 में आई मृणाल सेन की फिल्म 'नील आकाशेर नीचे' को राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा था. विवाद बढ़ने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे बैन करने का फैसला लिया था. उसके बाद आंधी, सत्यम शिवम सुंदरम, एन इवनिंग इन पेरिस से लेकर जूली, माय नेम इज खान, छपाक, सड़क 2, पद्मावत, 83 जैसे कई नाम विवादास्पद फिल्मों की सूची में दर्ज हैं.

हाल में ही सुदीप्तो सेन की फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर भी जमकर विवाद हुआ था. कुछ लोगों ने इसे एजेंडा बताया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के तमाम नेताओं ने इसका समर्थन किया. विवादों के बीच ये फिल्म सुपरहिट भी हो गई. उससे पहले 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर भी काफी विवाद हुआ थाऔर उसे एक खास एजंडे के तहत तैयार प्रोपेगेंडा बताया गया था.

बांग्लादेश में भारतीय फिल्मों से बैन हटा

04:18

This browser does not support the video element.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें