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समाज

"ऐतिहासिक" अफगान शांति वार्ता कल से

११ सितम्बर २०२०

आखिरकार तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता शनिवार से कतर में शुरू होने जा रही है. उम्मीद है कि यह वार्ता अफगानिस्तान में शांति लाने के लिए एक अहम मील का पत्थर साबित होगी. देश पिछले 19 सालों से हिंसाग्रस्त है.

DW Special 20 Jahre Bundeswehreinsatz in Afghanistan
तस्वीर: picture-.alliance/dpa/M. Gambarini

कई महीनों की देरी के बाद अफगानिस्तान और तालिबान के बीच शनिवार, 12 सितंबर से दोहा में शांति वार्ता शुरू होने जा रही है. कतर में अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता दोहा में शुरू होगी. अधिकारियों को उम्मीद है कि वार्ता अफगानिस्तान के 19 साल के युद्ध को खत्म करने और देश में शांति लाने के लिए महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ ने एक बयान में कहा, "यह बातचीत अफगानिस्तान में चार दशकों से जारी युद्ध और रक्तपात को समाप्त करने के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है." उन्होंने आगे कहा, "इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए."

तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच वार्ता को अमेरिका का समर्थन हासिल है और विदेश मंत्री पोम्पेओ भी दोहा इस वार्ता में शामिल होने के लिए दोहा में हैं. राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वह अमेरिकी सैनिकों को अंतहीन युद्ध से निकालना चाहते हैं और वह इसी वादे के साथ खुद को दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की मांग भी कर रहे हैं. कतर के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बातचीत अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता लाने के लिए बहुत अहम कदम है.

इसी साल मार्च में वार्ता शुरू होने की उम्मीद थी, लेकिन सैकड़ों कट्टर तालिबान लड़ाकों और अफगान बंदियों की अदला-बदली के विवादों के कारण यह प्रक्रिया कई बार स्थगित कर दी गई. राष्ट्रीय सुलह परिषद (एचसीएनआर) के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला भी इस वार्ता में शामिल होने के लिए कतर पहुंच गए हैं. उन्होंने इस वार्ता पर ट्वीट किया, "एचसीएनआर को उम्मीद है कि लंबे इंतजार के बाद बातचीत से स्थायी शांति और स्थिरता आएगी और युद्ध का अंत होगा."

समझौते के तहत तालिबान लड़ाके रिहा किए गए हैं. तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Afghanistan's National Security Council

करीब छह महीने की देरी से शांति वार्ता शुरू हो रही है. अफगान और तालिबान के बीच कैदियों की अदला-बदली के बाद यह संभव हो पाया है. तालिबान ने एक हजार अफगान सैनिक रिहा किए तो काबुल ने 5,000 तालिबानी लड़ाके छोड़े हैं.

यह वार्ता ऐसे समय में हो रही है जब 3 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं और अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर जोर दे रहे हैं. फरवरी में ही अमेरिकी दखल के बाद अफगानिस्तान और तालिबान के बीच समझौता हुआ. तब अफगानिस्तान में 12,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक तैनात थे. अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी जारी है और वहां नवंबर तक 4,000 से कम सैनिक बचेंगे. ट्रंप को उम्मीद है कि अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी से अमेरिकी मतदाताओं में उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी, जो लगभग दो दशकों से चल रहे इस मुद्दे से तंग आ चुके हैं.

शांति वार्ता के रास्ते में अंतिम बाधा फ्रांसीसी और ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों और सैनिकों की हत्या में शामिल छह तालिबान कैदियों की रिहाई थी औ इस बाधा के हटने के कुछ ही घंटे बाद शांति वार्ता की शुरुआत की घोषणा की गई.

फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने छह तालिबान लड़ाकों की रिहाई पर आपत्ति जताई, लेकिन ऐसा लगता है कि कैदियों को कतर भेजकर बातचीत मुमकिन हो पाई है. तालिबान ने पुष्टि की है कि कैदी दोहा पहुंच गए हैं. इससे पहले तालिबान के एक सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि कैदी विशेष विमान से काबुल से दोहा पहुंच चुके हैं.

एए/सीके  (एएफपी, रॉयटर्स)

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