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भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर चीन की लुकाछिपी के मायने

प्रभाकर मणि तिवारी
११ अक्टूबर २०२१

जब से चीन के साथ लद्दाख में भारत का हिंसक सीमाविवाद हुआ है, चीन लगातार अपनी गतिविधियों से भारत को परेशान कर रहा है. एक ओर सैनिक अधिकारियों की बातचीत हो रही है तो दूसरी ओर चीनी सैनिक जब चाहे भारतीय सीमा में घुस रहे हैं.

तस्वीर: Sajad Hameed/Pacific Press/picture alliance

रविवार को भारत और चीन के सेनाधिकारियों के बीच सीमा पर तनाव घटाने के लिए 13 वें राउंड की वार्ता हुई. बातचीत लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कही जाने वाली सीमा के चीनी इलाके में स्थित मोल्डो में हुई. कमांडर रैंक के अधिकारियों के बीच यह बातचीत सुबह साढ़े दस बजे शुरू होकर शाम करीब सात बजे तक चली.

बातचीत का पिछला दौर करीब दो महीने पहले हुआ था जिसके बाद दोनों पक्ष गोर्गा या पैट्रोल पॉइंट-17ए से पीछे हटने को सहमत हुए थे. रविवार को हुई बातचीत के केंद्र में हॉट स्प्रिंग्स और दिप्सांग में बढ़ा तनाव रहा लेकिन बातचीत का ब्यौरा नहीं दिया गया.

भारत की ओर से लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन प्रतिनिधि थे, जो लेह स्थित चौदहवीं कॉर्प्स के कमांडर हैं. यही टुकड़ी लद्दाख में एलएसी पर तैनात है. चीन की तरफ से मेजर जनरल लू लिन ने कमान संभाली थी.

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लद्दाख में हुई हिंसक झड़प के बाद चीनी सेना अब पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी गतिविधियां लगातार तेज कर रही है. बीते दिनों उसके अरुणाचल प्रदेश से लगी तिब्बत की सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक तक रेलवे लाइन और हाइवे समेत दूसरे आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की खबरें आई थी. उसके बाद भारतीय सीमा में गांव बसाने के आरोप भी सामने आए थे.

स्थानीय नेता चीन पर लगातार नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश करने के आरोप लगाते रहे हैं. इससे पहले चीनी सेना ने पांच भारतीय युवकों का अपहरण भी कर लिया था. उनको राजनयिक स्तर की बातचीत के बाद 12 दिनों बाद रिहा किया गया. चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता है और उसे दक्षिणी तिब्बत बताता है.

ताजा मामला

एक ताजा मामले में चीनी सेना के करीब दो सौ जवान तवांग सेक्टर में भारतीय सीमा में घुस आए थे. वहां भारतीय जवानों के साथ उनकी हाथापाई भी हुई. लेकिन बाद में स्थानीय कमांडरों के स्तर पर मामला सुलझा लिया गया और चीनी जवानों को वापस भेज दिया गया. लेकिन इलाके में चीन की लगातार बढ़ती गतिविधियों ने सामरिक विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है.

चीन की लगातार घुसपैठ पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार ने भी देर से ही सही, ताजा घुसपैठ वाले तवांग के यांगत्से इलाके समेत आसपास के इलाकों में सड़कों का आधारभूत ढांचा मजबूत करने की पहल की है.

सितंबर महीने के आखिरी दिनों में उत्तराखंड में चीनी सेना की घुसपैठ की खबरें आई थीं और अब उसके एक सप्ताह के भीतर ही अरुणाचल से भी ऐसी ही खबर सामने आई है. कोलकाता में सेना की पूर्वी कमान के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "बीते सप्ताह चीनी सैनिक नियंत्रण रेखा पार कर भारत की तरफ आ गए थे.

कई विवादों में फंसा है चीन

वहां भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई. कुछ घंटे बाद तय प्रोटोकॉल के हिसाब से मसले को सुलझा लिया गया."  अधिकारी का कहना है कि चीन ने कभी भी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) को मान्यता नहीं दी है. इसी वजह से उसके सैनिक अक्सर सीमा पार भारतीय इलाके में घुस जाते हैं. लेकिन ऐसे विवादों को स्थानीय स्तर पर ही सुलझाया जाता रहा है.

तवांग की अहमियत

लेकिन आखिर अरुणाचल प्रदेश और खासकर तवांग इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों की वजह क्या है? चीन वैसे तो पूरे अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है. तवांग की सामरिक तौर पर खासी अहमियत है. राजधानी ईटानगर से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित तवांग अरुणाचल प्रदेश का सबसे पश्चिमी जिला है. इसकी सीमा तिब्बत के साथ भूटान से भी लगी है. तवांग में तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तिब्बती बौद्ध मठ है.

तिब्बती बौद्ध केंद्र के इस आखिरी सबसे बड़े केंद्र को चीन लंबे अरसे से नष्ट करना चाहता है. वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी तवांग ही लड़ाई का केंद्र था. इस मठ की विरासत चीन और भारत के बीच विवाद का केंद्र रही है. पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने अपनी किताब 'चॉइस इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी' में बताया है कि बीजिंग ने लंबे समय से यह साफ कर दिया है कि वह तवांग को चाहता है. लेकिन सरकार बीजिंग की इस मांग का लगातार विरोध करती रही है.

बढ़ती गतिविधियां

गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से ही चीन ने पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर अपनी गतिविधियां असामान्य रूप से बढ़ा दी हैं. बांध से लेकर हाइवे और रेलवे लाइन का निर्माण हो या फिर भारतीय सीमा के भीतर से पांच युवकों के अपहरण का मामला, चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

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कुछ महीने पहले यह बात भी सामने आई थी कि चीन पीएलए में सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय युवाओं को भर्ती करने का प्रयास कर रहा है. उसके बाद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्र से सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का अनुरोध किया था ताकि बेरोजगारी और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके.

चीन ने सीमा से 20 किमी के दायरे में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा से करीब सीमा तक नई तेज गति की ट्रेन भी शुरू हो गई है. उससे पहले उसने एक हाइवे का निर्माण कार्य भी पूरा किया था. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि बीते एक साल के दौरान चीनी सैनिकों के सीमा पार करने की कई घटनाओं की सूचना मिली है. लेकिन वह इलाका इतना दुर्गम है कि हर जगह सेना की तैनाती संभव नहीं है और सूचनाएं भी देरी से राजधानी तक पहुंचती हैं.

अरुणाचल की चिंता

राज्य के बीजेपी सांसद तापिर गाओ कहते हैं, "राज्य से सटी सीमा को सही तरीके से चिन्हित करना ही इस समस्या का एकमात्र और स्थायी समाधान है." चीन की सक्रियता का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार ने हाल में इलाके में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने का काम शुरू किया है. इसके तहत ब्रह्मपुत्र पर नए ब्रिज के अलावा सुरंग और सड़कें बनाने का काम शुरू हुआ है. लेकिन इन परियोजनाओं का काम काफी धीमा है. तवांग के एक सरकारी अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "दुर्गम भौगोलिक स्थिति और प्रतिकूल मौसम की वजह से परियोजनाओं का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है."

सामरिक विशेषज्ञ जीवन दासगुप्ता कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस समस्या को गंभीरता से लेकर इसके स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए ताकि चीन के मंसूबों से समय रहते निपटा जा सके. साथ ही सीमावर्ती इलाकों में विकास और आधारभूत परियोजनाओं को शीघ्र लागू करना भी जरूरी है.”

तस्वीरों मेंः आकाश से लद्दाख

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