बुजुर्ग ने सरकार को दी करोड़ों की संपत्ति
३ दिसम्बर २०२१आगरा के पीपलमंडी में रहने वाले गणेश शंकर पांडेय की उम्र करीब नब्बे साल है. उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं. उनके मुताबिक, पिछले करीब 40 साल से दोनों बेटे उनसे न तो कोई मतलब रखते हैं और न ही उनका हाल-चाल लेते हैं. गणेश शंकर पांडेय अपने तीन अन्य भाइयों के साथ पीपलमंडी निरालाबाद में रहते हैं और मसालों का व्यवसाय करते थे.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "मतलब रखने की बात तो छोड़िए, मुझसे बहुत ही असभ्य तरीके से पेश आते थे. अशोभनीय बातें करते थे. मैं मानसिक रूप से बहुत परेशान रहा. तीन साल पहले ही मैंने वसीयत डीएम के नाम लिख दी लेकिन वो स्वीकृत नहीं हुई. अब जाकर मैजिस्ट्रेट ने उसे स्वीकार किया है."
कोई दबाव नहीं
गणेश शंकर ने अपनी वसीयत में लिखा है, "जब तक मैं जिंदा हूं, अपनी चल और अचल संपत्तियों का मालिक व स्वामी रहूंगा. मरने के बाद मेरे हिस्से की जमीन डीएम आगरा के नाम हो जाएगी. मैं पूरी तरह से फिलहाल स्वस्थ हूं. मानसिक रोग से पीड़ित नहीं हूं."
आगरा के सिटी मैजिस्ट्रेट प्रतिपाल चौहान ने गणेश शंकर पांडेय की वसीयत मिलने की पुष्टि की है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "पिछले गुरुवार को जनता दर्शन में गणेश शंकर पांडेय जी आए थे. वो अपनी रजिस्टर्ड वसीयत लेकर आए थे जो कि डीएम आगरा के नाम पर रजिस्टर्ड कराई गई थी. 250 वर्ग गज के मकान की वसीयत उन्होंने कर रखी थी. वसीयत में उन्होंने यही वजह बताई है कि बच्चे उनका ध्यान नहीं दे रहे थे, इसी से खिन्न होकर उन्होंने यह कदम उठाया है."
सिटी मैजिस्ट्रेट प्रतिपाल चौहान के मुताबिक, सर्कल रेट के अनुसार यह संपत्ति करीब दो करोड़ रुपये है. हालांकि इसकी कीमत तीन करोड़ रुपये से भी ज्यादा की बताई जा रही है. प्रतिपाल चौहान कहते हैं, "जब वह आए थे तो उनके साथ उनके भाई थे. उनके बेटे या बेटियां साथ नहीं थे. जिला प्रशासन की इसमें कोई भूमिका नहीं है. कोई भी व्यक्ति इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह किसी के भी नाम अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकता है. जिला प्रशासन ने न तो ऐसा करने को उनसे कहा है और न ही वसीयत वापस लेने के लिए कोई दबाव बनाया जाएगा."
भाइयों को आपत्ति नहीं
सिटी मैजिस्ट्रेट ने बताया कि गणेश शंकर पांडेय ने संपत्ति के जो कागजात दिए हैं उन्हें जमा कर लिया गया है और अब तक उनके परिजनों ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई है.
आगरा में थाना छत्ता के पीपलमंडी निरालाबाद के रहने वाले निवासी गणेश शंकर पांडेय ने अपने तीन अन्य भाइयों के साथ मिलकर साल 1983 में करीब एक हजार वर्ग गज जमीन खरीदी थी. कुछ समय के बाद संपत्ति का बंटवारा हो गया और गणेश शंकर पांडेय के हिस्से में करीब 250 गज जमीन आई जिस पर उन्होंने मकान बनवाया है.
गणेश शंकर पांडेय ने अपनी इस संपत्ति को तीन साल पहले ही सरकार को देने का फैसला कर लिया था और जिलाधिकारी के नाम पर वसीयतनामा लिखा लिया था. उसके बाद उन्होंने उसे रजिस्टर्ड कराकर सिटी मैजिस्ट्रेट को सौंप दिया. बेहद आहत मन से वह कहते हैं, "मैं चाहता तो ये संपत्ति अपने भाइयों के नाम पर या फिर अपनी बेटियों के नाम पर या किसी और के नाम पर भी कर सकता था लेकिन यदि ऐसा करता तो उन लोगों को परेशानी होती. बेटे संपत्ति का विवाद खड़ा करते और जिसे भी मैं अपनी संपत्ति देता, उसे परेशान होना पड़ता. यही सोचकर मैंने उसे सरकार को देने का फैसला कर लिया. मुझे लगता है कि न सिर्फ मेरे बच्चों को बल्कि ऐसे अन्य बच्चों को भी सीख मिलेगी जो अपने बूढ़े मां-बाप का ध्यान नहीं रखते."
गणेश शंकर पांडेय कहते हैं कि अपने इस फैसले को अब वो किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेंगे. उनके मुताबिक, उन्होंने पूरी तरह से सोच-समझकर ये फैसला लिया है और अब इसे पलटना संभव नहीं है. फिलहाल वह अपने भाइयों के साथ उसी मकान में रह रहे हैं. इस मामले में गणेश शंकर पांडेय के बेटों से बात नहीं हो सकी है लेकिन उनके भाइयों को उनके इस फैसले पर कोई आपत्ति नहीं है.
पहला नहीं है मामला
भारत में हालांकि ऐसे मामले कम ही सामने आते हैं जब कोई व्यक्ति वारिसों के बावजूद अपनी संपत्ति सरकार को दान कर दे लेकिन कानून के मुताबिक, ऐसा करने के लिए कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र है. भारतीय कानून के मुताबिक, उप-रजिस्ट्रार से गिफ्ट डीड का पंजीकरण कराना अनिवार्य है. यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो हस्तांतरण अमान्य होगा. एक बार गिफ्ट डीड पंजीकृत होने के बाद ही संपत्ति के स्वामित्व के शीर्षक में परिवर्तन संभव है.
कानून के मुताबिक, दान भी रजिस्टर्ड होना चाहिए और इसमें दोनों पक्षों की सहमति भी होनी चाहिए, भले ही दूसरा पक्ष सरकार ही क्यों न हो? पिछले दिनों उड़ीसा के कटक जिले में एक 63 वर्षीय महिला मिनाती पटनायक ने अपने तीन मंजिला घर और जेवर समेत करोड़ों रुपये की संपत्ति एक रिक्शा चालक को दान कर दी थी. रिक्शा चालक बुद्ध सामल कई दशक से इस परिवार की सेवा कर रहे थे. बुजुर्ग महिला इस रिक्शा चालक की सेवा से इतनी ज्यादा प्रभावित हुईं कि उसने अपनी करोड़ों की संपत्ति उसे दान में दे दी.