कोई वकील अगर झूठे मुकदमों की मिसाल देकर अपनी दलीलें पेश करे तो न्याय व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है. एआई के दौर में ऐसा हो रहा है, जिससे कानूनविद चिंतित हैं.
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2023 में अमेरिका के न्यूयॉर्क की अदालत में एक मामला आया. माटा बनाम एविआंका नाम से जाने जाने वाले इस केस में एक पक्ष के वकीलों ने जो हलफनामे पेश किए वे चैटजीपीटी पर रिसर्च करके निकाले गए थे. शायद वकीलों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि चैटजीपीटी अक्सर मनगढ़ंत तथ्य भी रिसर्च के रूप में पेश कर देता है.
वकीलों ने जिन मामलों का हवाला दिया था, असल में वे कभी हुए ही नहीं थे बल्कि चैटजीपीटी ने अपने मन से बना लिए थे. इस गलती को पकड़ लिया गया और नतीजा विनाशकारी हुआ. ना सिर्फ जज ने उनके पक्ष का मामला खारिज कर दिया बल्कि वकीलों पर भी बेइमानी से काम करने के लिए प्रतिबंध लगा दिया. उन पर और उनकी फर्म पर भी जुर्माना किया गया.
यह अकेला ऐसा मामला नहीं है जबकि वकीलों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की रिसर्च के आधार पर फर्जी मामले पेश करते हुए पकड़ा गया है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के वकील रहे माइकल कोहेन पर जब मुकदमा चला तो उन्होंने अपने वकीलों को गूगल बार्ड से पुराने केस निकालकर दे दिए.
उन्हें लगा था कि वे असली केस थे और उन्हें यह भी भरोसा था कि उनका वकील भी एक बार फिर से सब कुछ जांच लेगा. लेकिन उनके वकील ने ऐसा नहीं किया और संघीय अदालत में उन मामलों को पेश कर दिया.
न्याय-व्यवस्था के लिए चिंता
कनाडा और ब्रिटेन में भी ऐसे कई मामले उजागर हो चुके हैं. इस वजह से कानूनविदों में चिंता है कि एआई कानून-व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकती है और इस पर किसी तरह का नियंत्रण होना चाहिए.
AI के बारे में क्या कह रहे हैं दिग्गज
18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति और फिर 20वीं शताब्दी की इंटरनेट क्रांति के बाद इंसानियत एक और बड़ी क्रांति के सामने खड़ी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में क्या कह रहे हैं दिग्गज.
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बिल गेट्स, संस्थापक, माइक्रोसॉफ्ट
इंसानों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों के बारे में चिंतित होना चाहिए.
तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance
सुंदर पिचाई, सीईओ, अल्फाबेट (गूगल)
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरे समाज पर बड़ा असर डालेगी. समाज को इसके मुताबिक ढलने की जरूरत है. एआई के तेज विकास से फेक न्यूज और फेक फोटो का चलन भी बढ़ेगा, इससे बड़ा नुकसान हो सकता है.
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सत्या नडेला, सीईओ, माइक्रोसॉफ्ट
हम देख चुके हैं कि एआई का अच्छा इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, लेकिन हमें इसके छिपे हुए नतीजों से बचाव के लिए भी तैयार रहना होगा. इसके लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों को कदम उठाने होंगे.
फुल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास, इंसानी नस्ल के अंत की शुरुआत कर सकता है. जरूरत है कि हम एआई को बेहतर बनाने के साथ ही इसे इंसानियत को फायदा पहुंचाने वाला भी बनाएं
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टिम कुक, सीईओ, एप्पल
हम सबको ये पक्का करने की जरूरत है कि एआई का इस्तेमाल इंसानियत के लिए फायदे के लिये हो, ना कि इंसानियत को नुकसान पहुंचाने के लिये.
तस्वीर: APPLE INC/REUTERS
जेफ बेजोस, संस्थापक, एमेजॉन
हम एआई के स्वर्णयुग की शुरुआत में है. हालिया विकास ने ऐसे दरवाजे खोल दिये हैं, जिनकी कल्पना सिर्फ साइंस फिक्शन में की जाती थी- और अभी तो हमने संभावनाओं की उपरी परत ही कुरेदी है.
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इलॉन मस्क, संस्थापक, टेस्ला
अगर आप एआई सेफ्टी के बारे में चिंतित नहीं हैं तो आपको होना चाहिए. ये उत्तर कोरिया से भी ज्यादा रिस्की है.
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ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्व विद्यालय में कानून पढ़ाने वाले प्रोफेसर माइकल लेग और रिसर्च एसोसिएट विकी मैकनमारा ने कन्वर्सेशन पत्रिका में एक लेख में लिखा है, "अगर ऐसा ही चलता रहा तो कैसे सुनिश्चित होगा कि जेनरेटिव एआई का लापरवाही भरा इस्तेमाल कानून-व्यवस्था में लोगों के भरोसे को तोड़ नहीं देगा? वकीलों का बार-बार लापरवाही भरा व्यवहार ना सिर्फ अदालतों को गुमराह कर सकता है और वहां (मुकदमों की) भीड़ लगा सकता है बल्कि वकीलों के पक्ष के लिए भी हानिकारक है और न्याय-व्यवस्था का अपमान भी है.”
जेनरेटिव एआई के उभार के बाद कानून के पेशे में बड़े बदलावों की आहट पिछले कुछ समय से सुनाई दे रही है. इन बदलावों को आमतौर पर सकारात्मक और जनता के हक में ही माना जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनेस्को के मुताबिक दुनियाभर में न्याय-व्यवस्थाएं एआई का इस्तेमाल कानूनी डेटा का विश्लेषण करने में कर रही हैं.
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दुनियाभर में इस्तेमाल
युनेस्को कहती है, "एआई का इस्तेमाल भारी-भरकम कानूनी डेटा के विश्लेषण के जरिए वकीलों की मदद में हो रहा है, जिससे वे कानूनी मिसालें निकाल सकते हैं. प्रशासन को भी प्रक्रिया को व्यवस्थित करने में मदद मिल रही है. साथ ही जजों को भी मामलों पर अनुमान लगाने में सहायता हो रही है.”
2023 में कितनी बदली सोशल मीडिया की दुनिया
ट्विटर नहीं रहा, लेकिन एक्स और थ्रेड्स पैदा हुए. एआई के चर्चे धीरे-धीरे हर जुबान पर आ गए. एक नजर 2023 में सोशल मीडिया की बड़ी हलचलों पर.
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ट्विटर बिका, एक्स हुआ
एक साल पहले इलॉन मस्क ने ट्विटर को खरीद उसके सीईओ समेत कई बड़े अधिकारियों को निकाल दिया और बदल कर एक्स बना दिया. जुलाई में लोगो सामने आया और नीले रंग की चिड़िया हर जगह से उड़ा दी गई.
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कम हुआ प्लेटफॉर्म का स्टेटस
मशहूर हस्तियों के सक्रिय होने के कारण 17 सालों में ट्विटर का पॉप कल्चर पर काफी असर रहा है. मस्क के खरीदने से पहले ही उसमें कमी आ चुकी थी. हालांकि अब भी छोटे-मोटे समूहों के लिए ये अहम अड्डा बना हुआ है.
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मस्क इफैक्ट
गलत जानकारियां फैलाने और नस्लवाद जैसे कई आरोप मस्क की इस कंपनी पर लगे. कंपनी की विज्ञापनों से कमाई और यूजर्स की तादाद में भी भारी कमी दिखी. ट्विटर पर बैन कई हस्तियों को मस्क एक्स पर वापस ले आए.
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मैस्टोडॉन, ब्लूस्काई और थ्रेड्स
मस्क के एक्स से नाखुश लोगों के लिए कई नए विकल्प सामने आए. ट्विटर से ही निकले मैस्टोडॉन, ब्लूस्काई जैसे कई प्लेटफॉर्म पेश हुए. इसकी मांग को देखते हुए फेसबुक की पेरेंट कंपनी भी अपना प्लेटफॉर्म थ्रेड्स लेकर आ गई.
तस्वीर: STEFANI REYNOLDS/AFP
थ्रेड्स के खुल गए धागे
जुलाई में थ्रेड्स के खूब चर्चे हो रहे थे. दुनिया भर में करोड़ों लोगों ने साइन अप किया. लेकिन दिसंबर में मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने अपने इस बयान ने सबको चौंका दिया कि उनकी कंपनी 'इंटरऑपरेबिलिटी' को टेस्ट कर रही है.
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क्या है 'इंटरऑपरेबिलिटी'
मैस्टोडॉन और ब्लूस्काई पहले से ही 'इंटरऑपरेबिलिटी' पर काम रहे हैं. आइडिया यह है कि जैसे हम सबका कोई फोन नंबर और ईमेल अकाउंट होता है, वैसे ही हमारे सोशल मीडिया अकाउंट हों जिन्हें हम किसी भी प्लेटफॉर्म पर यूज कर सकें.
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थ्रेड्स पर दिखा नमूना
दिसंबर में मार्क जकरबर्ग ने थ्रेड्स पर पोस्ट किया कि थ्रेड्स अकाउंट मैस्टोडॉन और दूसरी ऐसी सर्विसेज पर उपलब्ध रहेंगे, जो एक्टिविटीपब प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करते हैं. माना जा रहा है कि इससे यूजर्स पहले से कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ पाएंगे.
तस्वीर: STEFANI REYNOLDS/AFP
मेंटल हेल्थ की चिंताएं
लोगों, खासकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के बुरे असर को लेकर इस साल खूब चर्चा हुई. अमेरिकी सर्जनों ने कहा कि इसके पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि सोशल मीडिया बच्चों और टीनएजर्स के लिए सुरक्षित है.
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टेक कंपनियों और पेरेंट्स से मांग
मजबूत सामाजिक संबंधों को सेहत की कुंजी मानने वाले अमेरिका के 'नेशनल डॉक्टर' सर्जन जनरल डॉक्टर विवेक मूर्ति कह चुके हैं कि पेरेंट्स को अपने बच्चों को सोशल मीडिया से बचाना होगा. उनका कहना है कि इसके इस्तेमाल से बच्चों की दुनिया के बारे में और खुद अपने बारे में राय तक बदल जाती है.
तस्वीर: Democratic National Convention/CNP/MediaPunch/picture alliance
अमेरिकी मां-बाप सवाल उठा रहे हैं, और आप?
अक्टूबर में अमेरिका के दर्जनों राज्यों ने मेटा को सू कर दिया. आरोप लगाया कि वह युवाओं को नुकसान पहुंचा रहा है और उनके मानसिक स्वास्थ्य के साथ जानबूझ कर खेल रहा है. खासकर इंस्टाग्राम और फेसबुक के ऐसे फीचरों पर सवाल खड़े किए गए हैं, जिनकी लत लग जाती है.
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भारत में 2021 से ही सुप्रीम कोर्ट में एआई-नियंत्रित टूल का इस्तेमाल हो रहा है जो सूचनाओं को जमा करने में जजों की मदद करता है. हालांकि इसका इस्तेमाल फैसले देने की प्रक्रिया में नहीं होता है. ज्यादातर टूल सहायक हैं, मसलन सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर (SUVAS) जो अंग्रेजी में लिखे गए दस्तावेजों का हिंदी और अन्य भाषाओं में अनुवाद करता है.
हालांकि जजों ने फैसले देने में भी चैटजीपीटी जैसे एआई टूल्स की मदद ली है. जसविंदर सिंह बनाम पंजाब मामले में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका तब खारिज कर दी थी जब प्रतिपक्ष के वकीलों ने आरोप लगाया कि आरोपी एक हत्या में बेहद क्रूरता से शामिल था.
उस मामले के जज ने चैटजीपीटी से यह समझना चाहा कि जब किसी मामले में क्रूरता शामिल हो तो जमानत पर क्या रवैया होना चाहिए. हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि चैटजीपीटी की भूमिका मात्र मामले का विस्तृत पक्ष समझने में थी.
लेकिन युनेस्को चेतावनी भी देती है कि लीगल एनालिटिक्स और अनुमानित न्याय का उभार मानवाधिकारों के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि एआई की अपारदर्शिता स्वतंत्र न्याय के मूल सिद्धांतों, प्रक्रिया और न्याय-व्यवस्था और के खिलाफ काम कर सकती है.
ठोस कदमों की जरूरत
दरअसल, न्यायविदों की चिंता है कि एआई के साथ अभी बहुत सी चुनौतियां हैं, मसलन वे एक खास तरह के चलन को पकड़ने के लिए डिजाइन किए गए सिस्टम हैं. एआई आधारित एल्गोरिदम में कई तरह के भेदभाव होने का खतरा रहता है और यह पूरी तरह पारदर्शी भी नहीं है.
मानसिक तनाव से निपटने में कितने कारगर एआई थेरेपिस्ट
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यही वजह है कि विभिन्न देशों की सरकारें और न्यायिक प्रशासन ऐसे नियम बना रहे हैं, जिनसे एआई का सुरक्षित इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सके. मसलन, यूरोपीय संघ ने ऐसे कानून लागू किए हैं जो आपराधिक मामलों में एआई के इस्तेमाल की सीमाएं तय करते हैं.
अमेरिका में कई राज्यों की अदालतों और वकील संगठनों ने एआई के इस्तेमाल को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इनमें से कुछ ने तो एआई का इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित भी कर दिया है. ब्रिटेन और न्यूजीलैंड में भी वकीलों की संस्थाओं ने ऐसे ही कदम उठाए हैं.
प्रोफेसर माइकल लेग और रिसर्च एसोसिएट विकी मैकनमारा कहते हैं कि एक ठोस रुख की जरूरत है. वे कहते हैं, "जो वकील एआई का इस्तेमाल करते हैं वे अपनी समझ के विकल्प के तौर पर इसे इस्तेमाल नहीं कर सकते और उन्हें सूचनाओं की तथ्यात्मकता और सत्यता को दोबारा जांचना ही होगा.”