वायु प्रदूषण: यूरोप में सालाना तीन लाख लोगों की मौत
१६ नवम्बर २०२१
डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों का पालन किया गया होता तो 2019 तक यूरोपीय संघ में लगभग दो लाख लोगों को बचाया जा सकता था.
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यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी का कहना है कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में पूरे यूरोप में सालाना 10 प्रतिशत की गिरावट आई है, लेकिन अदृश्य हत्यारा अभी भी तीन लाख लोगों की मौत का जिम्मेदार है.
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी ने एक नई रिपोर्ट में कहा कि वायु प्रदूषण के कारण 2019 में यूरोपीय संघ में 3,07,000 से अधिक मौतें हुईं और उनमें से कम से कम आधे को असमय होने वाली मौतों से बचाया जा सकता था. रिपोर्ट में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के वातावरण में घातक दुःस्वप्न का भी विवरण दिया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा की गुणवत्ता को सूक्ष्म कणों, विशेष रूप से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और फिर जमीन पर ओजोन की मात्रा से मापा जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक यूरोपीय संघ में वायु प्रदूषण 2018 की तुलना में 2019 में निश्चित रूप से कम हुआ है लेकिन यह अभी भी अधिक है. 2018 में 2.5 माइक्रोमीटर या PM2.5 से कम व्यास वाले बारीक विशेष पदार्थ से जुड़ी मौत 3,46,000 थी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल वायु प्रदूषण पर अपने नए दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं. यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक अगर ये दिशानिर्देश पहले से ही उपलब्ध होते और 2019 में ठीक से लागू होते तो कुल मौतों में से कम से कम आधी या लगभग 1,78,000 लोगों को असमय होने वाली मौतों से बचाया जा सकता था.
हवाई यात्रा के बारे में वो सात बातें जो आपको पता होनी चाहिए
दुनिया के सभी लोगों की इच्छा होती है कि कम से कम एक बार हवाई यात्रा जरूर करें. विमान कंपनियां भी अक्सर नए-नए ऑफर देती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि हवाई उड़ानों की वजह से धरती गर्म होती है, जलवायु पर बुरा असर पड़ता है.
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जलवायु पर बुरा असर
जर्मनी की पर्यावरण एजेंसी यूबीए के अनुसार, जर्मनी से मालदीव हवाई जहाज से आने-जाने के दौरान (एक तरफ की दूरी 8,000 किमी) प्रति व्यक्ति पांच टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. एक सामान्य कार के 25 हजार किलोमीटर चलने पर इतनी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.
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धरती के तापमान पर असर
विमान 5000 फीट से 35,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ते हैं. इस ऊंचाई पर उड़ने की वजह हवा के पतला होना है. इससे इंधन कम खर्च होता है. लेकिन विमान कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा दूसरी चीजों का उत्सर्जन भी करती है. विमान से निकला धुंआ बादलों में बदल जाता है जिसकी वजह से धरती ठंडी या गर्म हो सकती है.
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सॉसेज खाएं या हवाई यात्रा करें
हमारा दैनिक जीवन धरती को गर्म करता है. हीटिंग, बिजली, कपड़े और भोजन सभी से कार्बन का उत्सर्जन होता है. ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए यूबीए प्रत्येक नागरिकों से अधिकतम एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन की सिफारिश करता है, चाहे वह ऐसा हवाई यात्रा कर करें या सॉसेज खाकर.
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स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण
हवाई यातायात सिर्फ वैश्विक जलवायु को हीं नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी प्रभावित करता है. हवाई जहाज के शोर से आमलोगों में हार्ट अटैक जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. जो बच्चे एयरपोर्ट के समीप रहते हैं, वे अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं. स्थानीय हवा प्रदूषित होती है. उसमें नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें मिली रहती है.
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ईंधन कर पर छूट
हवाई यातायात को परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में अधिक सब्सिडी दी जाती है. एविएशन केरोसीन का इस्तेमाल जेट ईंधन के रूप में किया जाता है. इस पर यूरोपीय संघ में टैक्स नहीं लगता है. जर्मनी में सीमा पार के उड़ानों को वैल्यू एडेड टैक्स से छूट दी गई है. यूबीए के आंकड़ों के अनुसार, इसके माध्यम से सरकार ने 2012 में 4.7 अरब यूरो से अधिक कर राजस्व माफ किया.
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करदाताओं का पैसा खर्च
हवाई यात्रा से जुड़ी परियोजनाओं पर अक्सर सब्सिडी दी जाती है. करदाताओं का पैसा अक्सर नए हवाई अड्डों के निर्माण पर खर्च होता है, जो अप्रत्यक्ष सब्सिडी का एक रूप है. रायनएयर जैसी बजट एयरलाइंस अपने कर्मचारियों पर काम का दबाव बढ़ाकर पैसे बचाने को लेकर निशाने पर आ गई है.
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एक छोटा समूह फैला रहा प्रदूषण
दुनिया की आबादी के केवल 20% लोगों ने हीं कभी न कभी हवाई यात्रा की है. क्लाइमेट जस्टिस मूवमेंट के अनुसार, समृद्ध और शिक्षित लोगों का छोटा समूह बहुत अधिक यात्रा करता है. यह समूह ही हवाई यात्रा की वजह से होने वाले ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के 70% हिस्से के लिए जिम्मेदार है.
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पूरी दुनिया समेत यूरोप में वायु प्रदूषण भी एक बड़ा खतरा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार कारखाने की चिमनियों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जितना कम होगा पर्यावरण प्रदूषण उतना ही कम होगा. डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण में सुधार के लिए मानक निर्धारित किए हैं और इन्हें दिशानिर्देशों में समझाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्तमान में ब्लॉक में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम कर रहा है.
घातक वायु प्रदूषण इंसानों में फेफड़ों की बीमारी का कारण बनता है, जिसमें कैंसर भी शामिल है. जब सांस लेने से खतरनाक तत्व इंसानों के फेफड़ों में जाते हैं तो यह कैंसर जैसी घातक और संक्रामक बीमारी का कारण बन सकता है.
डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए यूरोपीय संघ की प्रतिबद्धता इस बात का प्रमाण है कि यह सही दिशा में बढ़ रहा है. डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय कार्यालय के प्रमुख हान्स हेनरी क्लाउस ने यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि स्वच्छ हवा में सांस लेना भी बुनियादी मानवाधिकारों में से एक है. उनके मुताबिक ऐसी स्वस्थ परिस्थितियों का निर्माण आवश्यक है ताकि मानव समाज का निर्माण मजबूत तर्ज पर हो सके.
रिपोर्टः अलेक्स बेरी
सर्दियों में जानलेवा बनता प्रदूषण
सर्दियों के शुरू होने से ठीक पहले दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और स्मॉग की चादर बिछ जाती है. आखिर साल के इसी समय ऐसा क्यों होता है.
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स्मॉग की चादर
उत्तर भारत के पूरे इंडो-गैंगेटिक इलाके में सर्दियों की दस्तक के साथ ही वायु की गुणवत्ता और गिरने लगती है. नवंबर में तो दिल्ली समेत कई शहरों को स्मॉग यानी स्मोक (धुआं) और फॉग (धुंध) की एक चादर ढक लेती है.
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क्या प्रदूषण सिर्फ सर्दियों में होता है?
यह एक मिथक है. दरअसल भारत में प्रदूषण तो साल भर रहता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 शहर भारत में ही हैं. कई शहरों में तो वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए मानकों से 10 गुना ज्यादा खराब है.
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क्या कारण हैं प्रदूषण के
प्रदूषण के इस जानलेवा स्तर के पीछे कई कारण हैं. इनमें औद्योगिक प्रदूषण और गाड़ियों का प्रदूषण ऐसे कारण हैं जो पूरे साल हवा की गुणवत्ता पर असर डालते रहते हैं. इनके अलावा कुछ और कारण भी हैं.
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लकड़ी जलाना
भारत में अब भी कई परिवारों में जलती हुई लकड़ी पर खाना पकाया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में हर साल 85,000 टन लकड़ी का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता है. यह भी प्रदूषण को बढ़ाने में अपना योगदान देती है.
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पराली जलाना
इसके अलावा कई राज्यों में किसान फसलों की कटाई के बाद अगली फसल के लिए खेतों को तैयार करने के लिए उनमें बची हुई पराली को जलाते हैं. इसका धुआं भी हवा की गुणवत्ता पर असर डालता है.
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मौसमी कारण
उत्तर भारत में सर्दियों में कई जगह गर्मी के लिए लकड़ियां और तरह तरह के जैव ईंधनों को जलाया जाता है. इस आग से निकला धुआं हवा की गुणवत्ता को और खराब करता है और प्रदूषण को बढ़ाता है.
तस्वीर: Reuters/Adnan Abidi
जहरीला शहर
दिल्ली को अब दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में जाना जाता है. सर्दियों में तो राष्ट्रीय राजधानी में हालात इतने खराब हो जाते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों को आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में परेशानी जैसी शिकायतें हो जाती हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भौगोलिक स्थिति
थार रेगिस्तान के करीब होने की वजह से हवाएं दिल्ली में रेत और धूल भी ले आती हैं. उत्तर में तो कई बार अफगानिस्तान और मध्य पूर्व से आने वाली हवाएं भी धुल ले आती हैं.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
हवा की गति
दिल्ली में सर्दियों में बाकी महीनों के मुकाबले हवा की गति बहुत कम हो जाती है. इस वजह से प्रदूषक बह कर आगे नहीं जाते और शहर के ऊपर ही फंस जाते हैं.
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दिवाली
दिवाली में उत्तर भारत में पटाखे फोड़ने का चलन भी शहरों का दम घोंटने का काम कर रहा है. कई अध्ययनों में साबित हो चुका है कि दिवाली के एक दिन पहले हवा की गुणवत्ता का जो स्तर दिखता है वो दिवाली के दिन कई गुना नीचे गिर जाता है और फिर उसमें सुधार आने में कई दिन लग जाते हैं.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
"खतरनाक" से "खराब" तक
जैसे जैसे हवा की गति बढ़ती है इस स्थिति में धीरे धीरे सुधार आता जाता है. लेकिन सुधार के बाद भी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता "खतरनाक" स्तर से "खराब" तक ही पहुंच पाती है. सिर्फ बारिश के मौसम में गुणवत्ता "अच्छे" स्तर पर पहुंच पाती है.