बरी हुए 19 महीने बाद राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार गोगोई
प्रभाकर मणि तिवारी
२ जुलाई २०२१
असम में नागरिकता कानून के विरोध के कारण गैर जमानती यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार अखिल गोगोई को अदालत ने रिहा कर दिया है. रिहाई के बाद इन कानून के तहत के मनमाने इस्तेमाल को रोकने की मांगें तेज हुई हैं.
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असम में एनआईए की अदालत ने नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन के सिलसिले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार कार्यकर्ता अखिल गोगोई को तमाम आरोपों से बरी करते हुए जेल से रिहा कर दिया है. जेल से रिहा होने के बाद गोगोई ने केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा है कि उसने सीएए के विरोध में आंदोलन को आतंकवादी गतिविधि साबित करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल किया था.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि दरअसल, गोगोई का मामला यूएपीए के बेजा इस्तेमाल की एक और मिसाल के तौर पर सामने आया है. गोगोई पर लगे आरोपों को खारिज कर उनको रिहा करने का फैसला असम की बीजेपी सरकार और केंद्र के लिए करारा झटका माना जा रहा है. गोगोई ने जेल में रहते हुए ही ऊपरी असम की शिवसागर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता था. इससे आम लोगों में उनकी पकड़ का पता चलता है.
दिल्ली हिंसा की भयावह तस्वीरें
दिल्ली की हिंसा में चार दिनों तक दंगाइयों ने तांडव मचाया. हालांकि अब हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन लोगों के मन में अब भी सुरक्षा को लेकर शंकाएं हैं. देखिए दंगों के बाद कैसे हैं हालात.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
मलबे का ढेर
चार दिनों की हिंसा में मकान जला दिए गए. सड़क पर खड़ी गाड़ियां खाक कर दी गईं और आस-पास की दुकानों में लूटपाट के बाद आग लगा दी गई. यह तस्वीर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के शिव विहार इलाके की है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
कभी यह घर था
कुछ दिन पहले तक इस मकान में हंसता खेलता परिवार रहता था लेकिन अब यह किसी खंडहर की तरह हो गया है. हिंसा के बाद यहां रहने वाले पलायन कर गए.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
आधी रात को हमला
दंगाइयों ने इस घर पर आधी रात के बाद हमला किया, सब कुछ तहस-नहस करने के बाद इसको आग के हवाले कर दिया गया.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
पत्थरबाजी
सड़क पर चारों तरफ पत्थर पड़े हुए हैं. दंगा भड़कने के तीन दिन बाद तक कोई सफाई करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
फूंक डाली गाड़ियां
तस्वीर में दिख रही जलाई गई कारों में कुछ तो बिल्कुल नई थीं तो कुछ बड़े परिवारों का एकलौता सहारा. दंगाइयों ने यहां खड़ी कारों पर भी अपना गुस्सा निकाल डाला.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
किसकी तस्वीर?
आग और कालिख के बीच तस्वीरें निकालते रैपिड एक्शन फोर्स के जवान.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
चाय की दुकान
यह कभी एक छोटी सी चाय की दुकान हुआ करती थी, लेकिन अब यहां कुछ नहीं बचा है. इस दुकान को एक महिला चलाती थी और वह चार दिन बाद यहां आने का हिम्मत जुटा पाई.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
सड़क का मंजर
सड़क पर जगह-जगह मोटरसाइकिलें और कारें जली पड़ी हुईं हैं. हवा में अब भी राख की दुर्गंध फैली हुई है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
रसोई में अब कुछ नहीं बचा
कभी इस रसोई में खाना बनता था लेकिन अब यह खाक में तब्दील हो चुका है. लोग यहां से जा चुके हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
मदद का हाथ
इलाके के लोगों को एक साथ रखा गया है. इस घर में हिंदू और मुसलमान एक परिवार की तरह साथ रह रहे हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
पुलिस की तैनाती
इलाके के लोगों में विश्वास बहाली के लिए जगह-जगह पर पुलिस की तैनाती की गई है. (एए/आरपी)
तस्वीर: DW/S. Ghosh
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कौन हैं अखिल गोगोई
अखिल गोगोई की गिरफ्तारी और रिहाई की चर्चा से पहले यह जान लेना प्रासंगिक होगा कि आखिर वह कौन हैं और उनका मामला सुर्खियों में क्यों रहा है. राज्य के जोरहाट जिले में पैदा हुए गोगोई ने वर्ष 1993 में गुवाहाटी के प्रतिष्ठित कॉटन कॉलेज में साहित्य की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया था. साथ ही छात्र राजनीति में भी सक्रिय हो गए. शुरुआती दौर में वे सीपीआई (एमएल) के साथ थे, लेकिन जल्दी ही उनका पार्टी से मोहभंग हो गया. वह असम के गोलाघाट जिले में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना में चल रहे घोटाले का पर्दाफाश कर पहली बार चर्चा में आए थे.
अखिल गोगोई पर्यावरण और किसान आंदोलनों से भी जुड़े रहे हैं. वर्ष 2009 में उन्होंने असम और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाके में बनने वाली लोअर सुबनसिरी जल विद्युत परियोजना का भी विरोध किया था. बाद में अखिल अन्ना आंदोलन से भी जुड़े. उसके बाद किसानों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) का गठन किया. वर्ष 2016 में बीजेपी के पहली बार राज्य की सत्ता में आने के साल भर के भीतर ही गोगोई को रासुका के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.
इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि इसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत कई संगठनों को हस्तक्षेप करना पड़ा. आखिर गुवाहाटी हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी के चार महीने बाद उनको तत्काल रिहा करने का आदेश दे दिया. तब हाई कोर्ट ने कहा था कि गोगोई को जेल में रखने की कोई ठोस वजह नहीं है और उनको इस तरह जेल में रखना मूल अधिकारों का साफ उल्लंघन है.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
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दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
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सीएए-विरोधी आंदोलन
गोगोई को राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान 12 दिसंबर 2019 को जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था. बाद में इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया. गोगोई पर राजद्रोह और हिंसा भड़काने का आरोप लगा था. उनको रिहा करने की मांग में राज्य में लगातार प्रदर्शन हो रहे थे. बीच में तबीयत बिगड़ने के बाद भी उनको शीघ्र रिहा करने की मांग उठी थी. लेकिन सरकार ने इस मामले पर चुप्पी साधे रखी थी.
फिलहाल गौहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल (जीएमसीएच) में उनका इलाज चल रहा था. इस साल मार्च में जेल से लिखे पत्र में गोगोई ने आरोप लगाया था कि जमानत के लिए एनआईए अधिकारियों ने उन्हें आरएसएस या बीजेपी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है. जेल में उनको मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जा रही हैं. इस साल मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में अखिल गोगोई ने जेल में रहते हुए ही शिवसागर सीट से निर्दलीय के तौर पर्चा भरा था और जीत गए थे. तब उनकी बुजुर्ग मां प्रियदा गोगोई (85) ने चुनाव अभियान की कमान संभाली थी.
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रिहाई का फैसला
एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि बंद की बात करने से देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरा पैदा हुआ या यह एक आतंकवादी कृत्य था. अदालत के निर्देश पर करीब 19 महीने बाद रिहा होने वाले गोगोई ने पत्रकारों से कहा, "आखिरकार सच की जीत हुई. हालांकि मुझे सलाखों के पीछे रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. इस ऐतिहासिक फैसले ने न्यायपालिका में लोगों का भरोसा बहाल किया है.”
गोगोई का कहना है कि एनआईए कोर्ट के फैसले से एक मिसाल कायम होगी. इससे उन लोगों की जेल से रिहाई में मदद मिलेगी जो सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने या विभिन्न मुद्दों पर सरकार का विरोध करने के मामले में अब भी जेल में हैं. सरकार के भारी दबाव के बावजूद अदालत ने निष्पक्ष फैसला सुनाया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि गोगोई पर लगे तमाम आरोपों को खारिज कर उनकी रिहाई के फैसले से साफ है कि किस तरह सत्तारूढ़ पार्टियां और सरकार यूएपीए कानून का इस्तेमाल अपने विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए कर रही हैं. एक पर्यवेक्षक निर्मल कुमार डेका कहते हैं, "गोगोई के मामले में अदालती फैसला ऐतिहासिक है. इससे साफ है कि उनके खिलाफ जबरन राजद्रोह का गंभीर आरोप लगाया गया था. सरकार को इससे सबक लेते हुए यूएपीए कानून के बेजा राजनीतिक इस्तेमाल से बचना चाहिए.”
मोदी सरकार ने कब कब लोगों की नाराजगी झेली
मोदी सरकार इन दिनों अपने सबसे मुश्किल इम्तिहान का सामना कर रही है. नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे किसान आंदोलनकारी हटने का नाम नहीं ले रहे हैं. एक नजर उन घटनाओं पर, जब मोदी सरकार को लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
किसान आंदोलन
कई हफ्तों से दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इस बीच, 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई है.
तस्वीर: Dinesh Joshi/AP/picture alliance
नागरिकता संशोधन अधिनियम
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया तो इसके खिलाफ देश में कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. धर्म के आधार पर पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले इस कानून को आलोचकों ने संविधान विरोधी बताया.
तस्वीर: DW/Dharvi Vaid
धारा 370
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया. कई विपक्षी पार्टियों ने इसका तीखा विरोध किया. हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने कई महीनों तक जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगाए रखा.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/M. Mattoo
नोटबंदी
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया. सरकार का कहना था कि काले धन को बाहर लाने के लिए उसने यह कदम उठाया. लेकिन असंगठित क्षेत्र के कई उद्योग चौपट हो गए और लोग बेरोजगार हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
जेएनयू की नारेबाजी
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी अकसर सुर्खियों में रहती है. लेकिन 2016 में यूनिवर्सिटी परिसर में कन्हैया कुमार और अन्य छात्र नेताओं पर लगे देशद्रोह के आरोपों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में ला दिया. आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
लिंचिंग
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद गौरक्षा के नाम देश के अलग अलग हिस्सों में लिंचिंग घटनाएं हुईं. गोमांस रखने या खाने के आरोप में कुछ समुदायों को निशाना बनाया गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए, कई लोगों ने अपने पुरस्कार लौटाए.
तस्वीर: Imago/Hundustan Times
रोहित वेमुला
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक दलित छात्र रोहित वेमुला की जुलाई 2015 में आत्महत्या ने भारत के बड़े शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव को उजागर किया. इसके बाद सड़कों पर उतरे लोगों ने उन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिनकी वजह से "रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा."