चेहरा देख उइगुर मुसलमानों को पहचान जाएगा सॉफ्टवेयर
१८ दिसम्बर २०२०
चीनी कंपनी अलीबाबा ने यूजर्स के लिए ऐसा सॉफ्टवेयर पेश किया है जो विशेष रूप से उइगुर मुसलमानों को चेहरे से पहचान पाने की ताकत देता है. एक नई रिपोर्ट में इस सॉफ्टवेयर का खुलासा हुआ है.
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नई रिपोर्ट के मुताबिक चीनी कंपनी अलीबाबा ने अपने ग्राहकों को फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर का उपयोग करने के लिए विकल्प दिया है. इसका इस्तेमाल चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमानों तक पहुंचने के लिए किया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक कई अन्य चीनी कंपनियों के बाद अलीबाबा अब मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ विवादास्पद बर्ताव का हिस्सा बन गया है. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट है कि अलीबाबा की वेबसाइट में बताया गया है कि कंपनी की क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस में जाने से उइगुर मुसलमानों और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों की तस्वीरों और वीडियो के जरिए पहचान करने में यूजर्स सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं.
अमेरिका के रिसर्च और निगरानी संस्था आईपीवीएम का कहना है कि उइगुर और विशेष जातीय अल्पसंख्यकों के बारे में दी गई पहचान को अलीबाबा की वेबसाइट से हटा दिया गया है, संस्था ने अपनी रिपोर्ट न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ साझा भी की है.
उइगुर को देख पहचान जाएगा सॉफ्टवेयर
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक अलीबाबा को रिपोर्ट के बारे में संपर्क किया गया था, लेकिन कंपनी ने इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं दी है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक अलीबाबा ने केवल एक परीक्षण के आधार पर यूजर्स को इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने दिया था और इसके बाद कभी इस्तेमाल की पेशकश नहीं की गई.
गौरतलब है कि आईपीवीएम ने पिछले हफ्ते बताया था कि हुआवे एक फेस रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर विकसित कर रहा है, जो स्वचालित रूप से उइगरों की पहचान करेगा और उनके बारे में पुलिस को अलर्ट करेगा. हालांकि, हुआवे ने आरोपों से इनकार किया है. लेकिन इस खुलासे के दो दिन बाद बार्सिलोना के मशहूर फुटबॉलर अंटोन ग्रीजमान ने हुआवे के साथ अपना स्पॉनसरशिप समझौता समाप्त कर दिया.
चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों को जबरन कैंपों में रखने का आरोप लगता आया है और उसके "सुधार केंद्रों" की दुनिया भर में आलोचना होती रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन कैंपों में उइगुरों और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों के दस लाख से अधिक सदस्यों को जबरन रखा गया है. शिनजियांग उत्तर पश्चिमी चीन का एक सुदूर इलाका है जहां की मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी को चीनी अधिकारियों के हाथों लंबे समय से प्रताड़ित किया जाता रहा है. हाल के वर्षों में इसमें रिएजुकेशन कैंपों में लंबे समय के लिए नजरबंदी भी शामिल हो गई है.
शरू में बीजिंग ने इन शिविरों के अस्तित्व से इनकार किया, लेकिन अब चीनी सरकार उन्हें "व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र" कहती है. चीनी सरकार का कहना है कि आतंकवाद को मिटाने के अलावा, उइगुर मुसलमानों को इन केंद्रों के माध्यम से रोजगार के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
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यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
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आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
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क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
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इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
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कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
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धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
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नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
तस्वीर: J. Duez
गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Young
खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.