स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक नया ग्रह खोजा है. बाहरी अंतरिक्ष में मिले इस ग्रह का आकार इतना बड़ा है कि हमारे वैज्ञानिकों की सारी कल्पनाएं छोटी पड़ गई हैं.
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वैज्ञानिकों को एक ग्रह मिला है जो सूर्य से दस गुना बड़े दो जुड़वां सितारों की परिक्रमा करता है. यह ग्रह हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से 11 गुना बड़ा है और इसकी कक्षा सौ गुना ज्यादा चौड़ी है. इस खोज ने वैज्ञानिकों के वे सारे अनुमान झुठला दिए हैं जो अब तक उन्होंने बाहरी अंतरिक्ष में मौजूद तारों और ग्रहों के आकार को लेकर लगा थे.
पृथ्वी से लगभग 325 प्रकाश वर्ष दूर यह ग्रह बृहस्पति की ही तरह एक गैसीय पिंड है लेकिन भार में यह गुरु से 11 गुना बड़ा है. यह बाह्य अंतरिक्ष में पाए जाने वाले ग्रहों की उस श्रेणी में आता है जिसे ‘सुपर जुपिटर' कहा जाता है. यानी वे खगोलीय पिंड जो हमारे सौर मंडल के सबसे बड़ी पिंड से भी बड़े हैं.
छोटी पड़तीं कल्पनाएं
यह ग्रह दो जुड़वां सितारों का चक्कर लगाता है. इसके चक्कर का घेरा जितना बड़ा है वो अब तक पहले कभी नहीं देखा गया. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा जितने बड़े घेरे में करती है, इस ग्रह का घेरा उससे 560 गुना ज्यादा चौड़ा है.
तस्वीरेंः क्यां अंतरिक्ष में शराब पी सकते हैं?
क्या अंतरिक्ष में शराब पी जा सकती है?
अंतरिक्ष में जीवन कैसा होता है? वहां लोग सूसू-पॉटी कैसे जाते हैं, सेक्स कैसे करते हैं, खाना कैसे खाते हैं जैसे सवाल सबके मन में उठते हैं. लीजिए सात ऐसे ही जरूरी सवालों के जवाब जानिए...
तस्वीर: Bruce Weaver/AFP/Getty Images
क्या अंतरिक्ष में शराब पी जा सकती है?
1975 में अंतरिक्षयात्रियों थॉमस स्टैफर्ड और डीक स्लेटन को वोडका ट्यूब दी गई थीं. लेकिन ट्यूब में वोडका शराब नहीं बल्कि इस ब्रैंड का चुकंदर का सूप था. अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर शराब पीने की मनाही है क्योंकि अल्कोहल में एथेनॉल होता है जो बहुत ज्वलनशील होता है और साज ओ सामान को खराब कर सकता है. अंतरिक्षयात्रि तो ऐसे माउथवॉश या आफ्टरशेव भी प्रयोग नहीं कर सकते, जिनमें अल्कोहल हो.
तस्वीर: NASA
क्या अंतरिक्ष में कभी कोई मरा है?
1967 में एक पायलट की मौत हुई थी, जिसे अंतरिक्ष में हुई पहली मौत माना गया क्योंकि उसका विमान 50 मील से अधिक की ऊंचाई पर उड़ रहा था. 1967 और 1971 में अंतरिक्षयान में सोवियत संघ के चार यात्री मारे गए थे. 1986 में चैलेंजर स्पेस शटल उड़ान भरने के मात्र 73 सेकंड बाद धमाके से फट गया और सभी सात यात्री मारे गए. 2003 में कोलंबिया स्पेस शटल में धरती पर लौटते हुए विस्फोट हुआ और सात यात्री मारे गए.
तस्वीर: Thom Baur/AP/picture alliance
बिना गुरुत्वाकर्षण नंबर दो कैसे संभव होता है?
अंतरिक्ष यात्रियों की टॉयलेट सीट वैक्यूम जैसी होती है. जैसे ही उस पर बैठो, सोखना शुरू कर देती है. वैसे, अंतरिक्ष में पेशाब को रीसाइकल कर पीने का पानी बनाया जाता है.
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क्या अंतरिक्ष यात्री जल्दी मर जाते हैं?
गुरुत्वहीनता में रहने का शरीर पर असर तो पड़ता है. सिर में द्रव्य बनते हैं और करीब एक लीटर रक्त कम हो जाता है. इसलिए धरती पर लौटने के बाद यात्री अक्सर पीले नजर आते हैं. लेकिन वैज्ञानिकों को अभी भी यह नहीं पता कि लंबी अवधि में अंतरिक्ष यात्रा का शरीर पर कितना असर होता है.
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/epa/dpa/picture-alliance
कैसे सोते हैं अंतरिक्ष यात्री?
गुरुत्वहीनता के कारण बिस्तर में लेटना संभव नहीं है इसलिए यात्री स्लीपिंग बैग इस्तेमाल करते हैं, जो छोटे से केबिन में दीवार से चिपकाया गया होता है. चिपकाया इसलिए जाता है ताकि यह इधर उधर ना तैरे और कहीं टकरा ना जाए.
तस्वीर: Zhang Yirong/Xinhua/picture alliance
कितना पैसा कमाते हैं अंतरिक्ष यात्री?
1969 में अपोलो 11 फ्लाइट में गए तीन यात्रियों में से नील आर्मस्ट्रॉन्ग को सबसे ज्यादा धन मिला था. 27,401 डॉलर यानी आज के हिसाब से लगभग 2,09,122 डॉलर. आज अंतरिक्ष यात्रियों को अपने कौशल और अनुभव के आधार पर 66,000 से एक लाख 60 हजार डॉलर (भारतीय रुपयों में 50 लाख से डेढ़ करोड़ के बीच) मिलते हैं.
तस्वीर: NASA
स्पेस में सेक्स का मन करे तो?
अंतरिक्ष में सेक्स करना पृथ्वी से काफी अलग तरह का अनुभव होता है. यौन इच्छा तो हो सकती है लेकिन हर 90 मिनट में आपकी आंतरिक घड़ी की लय बदल जाती है और उससे सब कुछ बदल जाता है, जिसमें आपके सेक्स हॉरमोन भी शामिल हैं और संभवतः आपकी कामेच्छा भी.
तस्वीर: Bruce Weaver/AFP/Getty Images
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अब तक ऐसा कोई ग्रह नहीं मिला था जो सूर्य के भार से तीन गुना से ज्यादा बड़े सितारों का चक्कर लगाता हो. अब तक वैज्ञानिक यह मानते आए थे कि सूर्य से तीन गुना बड़ा कोई तारा होगा तो उसकी विकिरणें इतनी तेज होंगी कि किसी भी ग्रह को जला देंगी और चक्कर लगाने ही नहीं देंगी. इस ग्रह ने उस समझ को झुठला दिया है.
स्वीडन की स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के खगोलविद मार्कुस यानसन के नेतृत्व में हुई यह खोज ‘नेचर' पत्रिका में प्रकाशित हुई है. मार्कुस बताते हैं, "ग्रह संरचना एक बेहद विविद प्रक्रिया लगती है. यह हमारी अब तक की कल्पनाओं से कई गुना अधिक है. और भविष्य में भी हमारी कल्पनाएं छोटी पड़ती रहेंगी.”
तरह तरह के सौरमंडल
1990 के दशक में हमारे सौर मंडल के बाहर पहले ग्रह की खोज हुई थी. ऐसे ग्रहों को बाह्यग्रह (एक्सोप्लेनेट) कहा गया था. वैज्ञानिक तभी से इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे हमारे सौरमंडल में कुछ ग्रह एक तारे का चक्कर लगाते हैं, क्या अन्य सौरमंडलों में भी ऐसा ही होता है.
इस खोज में शामिल एक वैज्ञानिक भारतीय मूल की गायत्री विश्वनाथ हैं. स्टॉकहोम यूनिवर्सटी में पीएचडी कर रहीं विश्वनाथ कहती हैं, "अब तक जो चलन दिखे हैं, हमारा सौरमंडल सबसे आम ग्रह व्यवस्था नहीं है. मसलन कथित ‘जलते बृहस्पतियों वाले' ऐसे सौरमंडल भी हैं जहां बृहस्पति के आकार के ग्रह अपने तारों के बहुत नजदीक जाकर परिक्रमा करते हैं. ज्यादातर ग्रह जो खोजे गए हैं, उनका आकार पृथ्वी और नेपच्यून के बीच का है. हमारे सौरमंडल में इस आकार का कोई ग्रह नहीं है.”