कार्बन उत्सर्जन रोकने के लक्ष्य से काफी पीछे दुनिया के देश
२५ नवम्बर २०१९
पेरिस समझौते के तहत दुनिया के देशों ने दीर्घकालीन औसत तापमान को 1.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस बनाए रखने का लक्ष्य निर्धारित किया था. लेकिन अमेरिका से लेकर चीन तक सभी देश काफी अधिक जीवाश्म ईंधन का उत्पादन कर रहे हैं.
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संयुक्त राष्ट्र और रिसर्चरों के समूह ने जलवायु संकट को लेकर चेतावनी जारी की है. चेतावनी में कहा गया है कि दुनिया के प्रमुख जीवाश्म ईंधन उत्पादक अगले 10 साल में अत्याधिक कोयला, तेल और गैस निकालने का लक्ष्य रखा है. इसके साथ ही वे वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्य को काफी पीछे छोड़ देंगे. रिपोर्ट में सुपरपॉवर चीन और अमेरिका सहित 10 देशों के योजनाओं की समीक्षा की गई. साथ ही दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए रुझान और अनुमान लगाया गया. इसके बाद बताया गया कि 2030 तक वैश्विक जीवाश्म ईंधन उत्पादन पेरिस समझौते के लक्ष्यों से 50-120% अधिक होगा.
2015 के वैश्विक समझौते के तहत दुनिया के देशों ने दीर्घकालीन औसत तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5-2 डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. हालांकि नए रिपोर्ट में कहा गया है कि समझौते से इतर 2030 तक पूरे विश्व में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 39 गीगाटन होगा जो औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने से 53 प्रतिशत ज्यादा है क्योंकि इसके लिए अधिकतम 21 गीगाटन ही कार्बन का उत्सर्जन होना चाहिए. वहीं 1.5 डिग्री औसत तापमान वृद्धि से यह 120 प्रतिशत अधिक है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा, "दुनिया में ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए कोयला, तेल और गैस का ही ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. इससे होने वाले उत्सर्जन से जलवायु लक्ष्यों को पूरा नहीं किया सकता."\
यूएनईपी के साथ-साथ स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट, ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट और सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट एंड एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड क्लाइमेट एनालिटिक्स ने रिपोर्ट तैयार की थी. इसमें एक नया पैमाना तय किया गया जिसे "जीवाश्म ईंधन उत्पादन अंतर" कहा गया है. यह बढ़ते उत्पादन और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए आवश्यक कमी के बीच के अंतर को दिखाता है. इसके तहत सबसे ज्यादा अंतर कोयले के लिए देखा गया. देशों ने 2030 तक जितने कोयले के उत्पादन का लक्ष्य रखा है, वह तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक बनाए रखने से 150 प्रतिशत ज्यादा और 1.5 डिग्री से 280 प्रतिशत ज्यादा हो सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में लगातार वृद्धि और वैश्विक उत्पादन अंतर की बढ़ती खाई के पीछे की वजह महत्वकांक्षी राष्ट्रीय योजनाएं, उत्पादकों को सरकारी सब्सिडी दूसरे तरीके से वित्तिय मदद बताई गई है.
भारत की राजधानी दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहों में से एक है. हर साल सर्दियां आते ही दिल्ली स्मॉग से भर जाती है.
तस्वीर: DW/A. Ansari
दिल्ली की हवा खराब
दिल्ली में हर साल अक्टूबर के बाद प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ने लगता है. वायु की गुणवत्ता का स्तर गिरकर बेहद खराब और उसके बाद खतरनाक हो जाता है. ऐसे में दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने की मांग हर कोने से उठने लगती है.
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प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई
केंद्र और राज्य सरकार की नजरें ऐसी इकाइयों, कचरा जलाने वाले और निर्माण गतिविधियों पर खासतौर से होती है जिसके कारण हवा की गुणवत्ता खराब होती है. ऐसी इकाइयों पर अधिकारी भारी भरकम जुर्माना भी लगाते हैं.
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प्रदूषण से लड़ने के लिए 300 टीमें
दिल्ली में प्रदूषण से लड़ने के लिए सरकार ने 300 टीमों का गठन किया है. इनका मकसद प्रदूषण से निपटने के लिए कदम उठाना है. केंद्र सरकार की नजर मुख्य रूप से सात औद्योगिक क्षेत्रों और बड़े यातायात गलियारों पर है जिससे प्रदूषण फैलता है.
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प्रदूषण से निपटने के उपाय
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण से निपटने के लिए तरह-तरह के उपाय अपनाए जा रहे हैं. जैसे सड़क की मशीन से सफाई, रोड के बीच लगे पेड़ों पर पानी का छिड़काव जिससे हवा स्वच्छ हो सके.
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मास्क से प्रदूषण से बचाव
आम तौर पर लोग प्रदूषण से बचने के लिए मास्क का इस्तेमाल करते हैं लेकिन प्रदूषण का स्तर घरों के भीतर भी होता है. महंगे एयर प्यूरिफायर की वजह से खरीदने हर किसी के लिए संभव नहीं.
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लोगों की पसंद मेट्रो
दिल्ली में ऑड-इवन लागू होने के बाद लोग या तो सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करते हैं या फिर कार पुलिंग करते हैं. ज्यादातर लोग मेट्रो से सफर करते हैं. यह सस्ता और समय बचाने वाला है. इसमें कार्बन उत्सर्जन भी कम है.
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युवाओं की पसंद ई-स्कूटर
दिल्ली में युवा मौज-मस्ती और यातायात के लिए ई-स्कूटर का भी खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. दिल्ली के युवा कहते हैं इससे प्रदूषण का स्तर कम होगा और इसलिए इसे विकल्प के तौर पर उभारना होगा.
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बीमारियों का प्रकोप
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण अस्थमा जैसे लक्षणों की शिकायत करने वाले मरीजों की संख्या अस्पतालों में 15 से 20 फीसदी बढ़ी है. साथ ही आंखों में जलन और सांस लेने की शिकायत करने वालों की संख्या भी बढ़ी है.
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जागरूकता की कमी
प्रदूषण से लड़ाई में जितनी सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है उतनी है जिम्मेदारी आम जनता की भी बनती है. कचरा प्रबंधन, प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल, सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल जैसे उपायों के बारे में लोगों को खुद से जागरुक होना पड़ेगा.
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दूषित हवा से नुकसान
दूषित हवा का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है. डॉक्टरों की सलाह है कि सुबह के समय में बच्चों और बुजुर्गों को खुली हवा में जाने से बचना चाहिए.