ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अंतरधार्मिक विवाह को रोकने के लिए मुसलमानों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है. इसमें दूसरे धर्म में शादी को अमान्य बताया गया है.
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एडवाइजरी कहती है कि लड़के-लड़कियों के मोबाइल पर नजर रखी जानी चाहिए, लड़कियों को सिर्फ महिला विद्यालय में पढ़ाना चाहिए और उनकी जल्दी शादी की जानी चाहिए. बहुत सी मुस्लिम महिलाओं ने इस तरह की एडवाइजरी को हास्यास्पद बताया है.
इसी महीने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह एडवाइजरी जारी की है. इसके पीछे गैर मजहब में शादी के बढ़ते मामलों को वजह बताया गया है. इस एडवाइजरी में अंतरधार्मिक विवाह को मुद्दा बनाया गया है लेकिन मुस्लिम लड़कियों के लिए कई बातें हैं जैसे उनके मोबाइल पर नजर रखे जाने की जरूरत, गर्ल्स कॉलेज में पढ़ना, लड़कियों की जल्दी शादी इत्यादि.
एडवाइजरी के अनुसार, इन मामलों में जहां मुस्लिम लड़कियों ने गैर मुस्लिम लड़के से शादी कर ली, उनकी बाद की जिंदगी बड़ी तकलीफ से गुजरी. इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने सात सूत्रीय एडवाइजरी जारी की है.
क्यों जारी हुई एडवाइजरी?
इस एडवाइजरी में मुख्यतः इस बात को समझाया गया है कि एक मुसलमान लड़की का निकाह मुसलमान लड़के के साथ ही हो सकता है. वैसे ही, लड़का भी गैर मुस्लिम लड़की से शादी नहीं कर सकता. अगर कर भी ले, तो इस प्रकार की शादी इस्लामिक शरिया द्वारा अमान्य होगी.
एडवाइजरी में मुस्लिम विद्वानों को ताकीद की गई है कि इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए युवाओं को ‘जागरूक' करें. मौलानाओं से कहा गया है कि वे जुमे में ऐसी बातों के दीनी नुकसान बताएं व लोगों में ये जागरूकता लाई जाए कि उन्हें अपने बच्चों की परवरिश किस तरह से करनी चाहिए.
एडवाइजरी में ये भी बताया गया है कि लड़के-लड़कियों के मोबाइल पर गहरी नजर रखी जाए. इसके अलावा जहां तक हो सके, लड़कियों को लड़कियों के स्कूल में पढ़ाने की कोशिश करे. इस बात का प्रबंध करें कि स्कूल के सिवा समय घर से बाहर न गुजरे व उनको समझाएं कि एक मुसलमान के लिए मुसलमान ही जिंदगी का साथी हो सकता है.
तस्वीरें ः हर धर्म में है सिर ढकने की परंपरा
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
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दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
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टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
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चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
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माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
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नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
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हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
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बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
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शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
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यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
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शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.
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आम तौर पर जो युवा रजिस्ट्री ऑफिस में निकाह करते हैं, उनके नामों की लिस्ट पहले से जारी कर दी जाती है. एडवाइजरी कहती है कि धार्मिक संस्थाएं और जमातें, मदरसों के शिक्षक व समाज के महत्वपूर्ण व्यक्ति ऐसे युवाओं को उनके घर जाकर समझाएं कि इस नाममात्र निकाह की सूरत में उनकी पूरी जिंदगी हराम में गुजरेगी. लड़कों और विशेषकर लड़कियों के अभिभावकों को कहा गया गया है कि इस बात की फिक्र करें कि शादी में देरी न हो क्योंकि इसी कारण ऐसी घटनाएं हो सकती हैं.
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क्या कहती हैं मुस्लिम महिलाएं?
चाहे दूसरे धर्म में शादी करना हो, मोबाइल पर नजर रखना या फिर जल्दी शादी करना, ज्यादातर मुस्लिम महिलाओं ने पाबंदियों को गलत बताया है. नाहिद अकील एक समाजसेवी हैं और ‘प्रयत्न फाउंडेशन' नाम से एक संस्था चलाती हैं. सीधे-सीधे शब्दों में नाहिद कहती हैं कि बोर्ड कोई इस्लाम नहीं है, जैसे उनकी संस्था है वैसे ही एक संस्था मात्र है.
डीडब्ल्यू से उन्होंने कहा, "बोर्ड आए दिन ऐसा करता है. हर चीज में उनका अपना फायदा नुकसान रहता है. उनकी इस एडवाइजरी को मैं बिलकुल भी पास नहीं करती. हम लोग अपने अधिकारों के प्रति खुद जागरूक हैं और जानते हैं कि इस्लाम में हमें कितनी आजादी है. 21वीं सदी में बोर्ड की ऐसी बातें का कोई मतलब नहीं है.”
देखिएः किस धर्म में क्या खाने पर पाबंदी है
किस धर्म में क्या खाने पर है पाबंदी
हर धर्म में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है जिसे खाने की सख्त मनाही होती है, भले ही दूसरे धर्म के लोग उसे चाव से खाते हों. इस पाबंदी के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार अब तक नहीं मिला है. देखिए, किस धर्म में क्या हराम है.
तस्वीर: ComZeal - Fotolia
अंडा
जैन धर्म के लोग मांस-मछली के साथ अंडा खाने से भी परहेज करते हैं. वेगन भी अंडा नहीं खाते.
तस्वीर: ComZeal - Fotolia
गाय
हिंदू धर्म में गाय का मांस खाने को बुरा माना जाता है.
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सूअर
इस्लाम में सूअर का मांस खाने को हराम कहा गया है.
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चमगादड़
कुछ यहूदी तबकों में चमगादड़ खाने पर सख्त पाबंदी है.
तस्वीर: M. Woike/blickwinkel/picture alliance
भालू
यहूदी धर्म के लोग भालू का मांस खाना अच्छा नहीं मानते.
तस्वीर: Reuters/J. Urquhart
बिल्ली
इस्लाम और यहूदी धर्म के कारण पश्चिमी जगत के बड़े हिस्सों में बिल्ली का मांस नहीं खाया जाता.
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मछली
सोमाली लोगों में मछली खाने को बहुत बुरा माना जाता है.
तस्वीर: Irfan Aftab/DW
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तसनीम फातिमा उत्तर प्रदेश के देवा शरीफ कस्बे में रहती हैं. देवा शरीफ में विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार है, जहां लाखों श्रद्धालु आते हैं. तसनीम एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और महिलाओं के मुद्दों पर मुखर रहती हैं. उनके अनुसार इस प्रकार की एडवाइजरी का कोई औचित्य नहीं है.
तसनीम कहती हैं, "किसी से शादी करना हमारा अधिकार है जो संविधान में दिया हुआ है. अब उस पर भी बहस करना कि कौन, किससे शादी करेगा फिजूल की बात है. सीधी सी बात है कि लड़की की जल्दी शादी कर दी जाए जिससे वो घर के काम तक सीमित हो जाएगी. फिर उसकी पढ़ाई, करियर, भविष्य जैसे सवालों पर बात ही नहीं होगी. इसीलिए तो नजर रखना चाहते हैं.”
तस्वीरों मेंः सबसे नास्तिक देश
दुनिया का सबसे नास्तिक देश है चीन
भारत में कई धर्मों के लोग रहते हैं. धर्म अकसर भारत में चर्चा का विषय रहता है. लेकिन ऐसे भी देश हैं जहां ज्यादातर लोग भगवान में विश्वास ही नहीं करते. खास कर चीन में, जहां की ज्यादातर आबादी नास्तिक है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
चीन (90 फीसदी)
चीनी मान्यता में इंसान और भगवान के बीच श्रद्धा का कोई सिद्धांत नहीं है. यहां अपने महान पूर्वजों की शिक्षा का अनुसरण करने वालों के नाम पर ही ताओइज्म या कन्फूशियनिज्म की परंपरा है. गैलप इंटरनेशनल नामकी संस्था के सर्वे में करीब 61 फीसदी चीनियों ने किसी ईश्वर के अस्तित्व को नकारा. वहीं 29 फीसदी ने खुद को अधार्मिक बताया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Celis
स्वीडेन (76 फीसदी)
इस स्कैंडिनेवियन देश में हाल के सालों में सेकुलरिज्म तेजी से बढ़ा है. स्वीडेन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 8 फीसदी स्वीडिश नागरिक किसी भी धार्मिक संस्था से नियमित रूप से जुड़े हैं. शायद इसीलिए 2016 को प्रोटेस्टेंट रिफॉर्मेशन की 500वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पोप फ्रांसिस ने स्वीडेन को चुना था.
तस्वीर: Johan Nilsson/AFP/Getty Images
चेक गणराज्य (75 फीसदी)
करीब 30 प्रतिशत चेक नागरिक खुद को नास्तिक बताते हैं. वहीं इसी देश के सबसे अधिक लोगों ने अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में कोई भी उत्तर देने से मना किया. कुल आबादी का केवल 12 फीसदी ही कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट चर्च से जुड़ा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Xamax
ब्रिटेन (66 फीसदी)
करीब 53 प्रतिशत ब्रिटिश लोगों ने खुद को अधार्मिक बताया और करीब 13 फीसदी ऐसे थे जो अपने आपको नास्तिक मानते हैं. पश्चिमी यूरोप में यूके के बाद नीदरलैंड्स नास्तिकता में सबसे आगे हैं. अप्रैल 2015 में इन नतीजों पर पहुंचने के लिए गैलप ने 65 देशों में कुल 64 हजार इंटरव्यू किए.
तस्वीर: Peter Cziborra/REUTERS
हांगकांग (62 फीसदी)
पूर्व ब्रिटिश कालोनी और फिर चीन को वापस किए गए हांगकांग की ज्यादातर आबादी पर चीनी परंपराओं का असर दिखता है. बाकी कई लोग ईसाई, प्रोटेस्टेंट, ताओइज्म या बौद्ध धर्म के मानने वाले हैं. गैलप सर्वे में करीब 43 फीसदी हांगकांग वासियों ने माना कि वे किसी भी ईश्वर को नहीं मानते.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Lopez
जापान (62 फीसदी)
चीन की ही तरह जापान की लगभग सारी आबादी किसी ईश्वर की बजाए जापान के स्थानीय शिंतो धर्म का अनुसरण करते हैं. शिंतोइज्म के मानने वाले ईश्वर जैसे किसी दिव्य सिद्धांत में विश्वास नहीं रखते. गैलप के आंकड़ों के मुताबिक करीब 31 फीसदी जापानी खुद को नास्तिक बताते हैं.
तस्वीर: Reuters
जर्मनी (59 फीसदी)
मुख्य रूप से ईसाई धर्म के मानने वाले जर्मन समाज में इस्लाम समेत कई धर्म प्रचलित है लेकिन 59 फीसदी किसी ईश्वर को नहीं मानते. स्पेन, ऑस्ट्रिया में भी किसी ईश्वर को ना मानने वालों की बड़ी संख्या है. पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता का गढ़ माने जाने वाले फ्रांस की करीब आधी आबादी ने खुद को अधार्मिक बताया.
तस्वीर: Kai Pfaffenbach/REUTERS
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लखनऊ में अपना ब्यूटी पार्लर चलाने वालीं तहसीन शीरीं भी इस एडवाइजरी को फिजूल बताती हैं. लड़कियों के मोबाइल पर नजर रखने जैसी बातों पर शीरीं कहती हैं, "ये तो लड़कियों को दबाने वाली बात हो गई. लड़कियां भी इंसान हैं. उनको भी हक होना चाहिए, अपना साथी चुनने का. यह बात अलग है कि आप अपने पैरेंट्स से सलाह लीजिये लेकिन लड़कियों को अपना करियर चुनने, मर्जी से पढ़ने-लिखने का पूरा अधिकार होना चाहिए."