कश्मीर: मुठभेड़ में चार नागरिकों की मौत
१७ नवम्बर २०२१मुठभेड़ श्रीनगर के हैदरपुरा इलाके में सोमवार 15 नवंबर को हुई थी, जिसमें चार लोग मारे गए थे. कश्मीर पुलिस ने दावा किया है कि चारों में से दो आतंकवादी थे, एक आतंकवादियों का सहयोगी था और एक उस मकान का मालिक था जिसमें दोनों आतंकवादी छिपे हुए थे.
इनमें से कम से कम तीन मृतकों के परिवारों ने पुलिस के दावों का खंडन किया है और तीनों मृतकों के आतंकवादी होने से इनकार किया है. कश्मीर के इंस्पेक्टर जनरल विजय कुमार ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि मकान के मालिक अल्ताफ अहमद डार ने सबसे ऊपरी मंजिल पर डॉक्टर मुदस्सर गुल को तीन कमरे किराए पर दिए हुए थे.
पुलिस के आरोप
लेकिन गुल असल में उन कमरों से एक नकली कॉल सेंटर चला रहे थे. कुमार ने यह भी कहा कि उन कमरों में से एक का इस्तेमाल आतंकवादियों को पनाह देने के लिए किया जा रहा था. उन्होंने बताया कि गुप्त जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मकान की तलाशी लेने के लिए डार और गुल दोनों को बुलाया था.
पुलिस ने दोनों से मकान के दरवाजे पर दस्तक देने को कहा. शुरू में तो किसी ने दरवाजे को नहीं खोला लेकिन बाद में अंदर से दो आतंकवादियों ने दरवाजा खोल कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं और इसी गोलाबारी के बीच दोनों आतंकवादियों के साथ साथ डार और गुल की भी गोली लगने से मौत हो गई.
गुल को कुमार ने आतंकवादियों का सहयोगी बताया और कहा कि वो उत्तरी और दक्षिणी कश्मीर से आतंकवादियों को उस मकान में लेकर आता था. डार, गुल और 24 वर्षीय आमिर मगरे के परिवारों ने उनके आतंकवादी होने से इनकार किया है.
डार के परिवार का दावा है कि उसका असली नाम अल्ताफ अहमद भट था और वो एक व्यापारी था. कम से कम तीन चश्मदीद गवाहों ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि अल्ताफ और गुल को सुरक्षाकर्मियों द्वारा मकान पर ले जाने के 20 मिनट बाद उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी और उसके बाद दोनों लौट कर नहीं आए.
परिवार वालों के दावे
अल्ताफ के भाई अब्दुल मजीद ने सुरक्षा बलों पर उन्हें 'ह्यूमन शील्ड' की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. अल्ताफ की बेटी ने बताया कि उनके पिता को मारने के बाद सुरक्षाकर्मी "हंस रहे थे."
डॉक्टर मुदस्सर गुल के परिवार ने भी पुलिस के दावों का खंडन किया है. उनके और अल्ताफ के परिवार के सदस्यों ने श्रीनगर के प्रेस एन्क्लेव में विरोध प्रदर्शन भी किया. गुल के पिता गुलाम मोहम्मद ने मीडिया को बताया कि ये पुलिस के द्वारा गढ़ी गई एक कहानी है. उनकी पत्नी ने भी कहा कि वो आतंकवादियों के सहयोगी नहीं थे और सुरक्षाबलों ने उन्हें मार डाला.
24 वर्षीय आमिर मगरे के पिता अब्दुल लतीफ ने कहा है कि उनका बेटा आतंकवादी नहीं था, बल्कि श्रीनगर में एक दुकान पर काम करने वाले मजदूर था. अब्दुल ने 2005 में रामबाण इलाके में एक पत्थर से एक आतंकवादी को मार गिराया था, जिसके लिए उन्हें भारतीय सेना से प्रशंसा पत्र भी मिला है.
उन्होंने मीडिया को बताया, "मैंने आतंकवादियों की गोलियां खाई हैं. मेरा भाई आतंकवादियों के हाथों मारा गया था. मैंने अपने बच्चों को गुप्त ठिकानों पर रख रख कर उनकी परवरिश की है. और आज इस त्याग का मुझे यह नतीजा मिल रहा है कि एक आतंकवादी को मारने वाले के बेटे को मार कर उसे आतंकवादी करार दिया जा रहा है."
तीनों मृतकों के परिवार मांग कर रहे हैं कि अब कम से कम मृतकों के शवों को उन्हें सौंप दिया जाए ताकि वो उनका अंतिम संस्कार कर सकें. लेकिन पुलिस ने चारों मृतकों की लाशों को श्रीनगर से करीब 70 किलोमीटर दूर हंदवाड़ा में दफना दिया है.