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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका-सऊदी दोस्ताना खत्म? जी-20 में साझा बयान तक नहीं

१४ अक्टूबर २०२२

गुरुवार को वॉशिंगटन में जी20 की बातचीत बिना कोई साझा बयान जारी किए ही खत्म कर दी गई. रूस के यूक्रेन पर हमले से जी20 के देश पहले ही बंटे हुए थे और अब सऊदी अरब की अमेरिका से खटपट ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया है.

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जुलाई में जेद्दा में
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जुलाई में जेद्दा मेंतस्वीर: Bandar Algaloud/REUTERS

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वर्ल्ड बैंक की सालाना बैठकों के दौरान जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के अधिकारियों की वॉशिंगटन में मुलाकात हुई. इस मुलाकात पर यूक्रेन युद्ध, बढ़ती मुद्रा स्फीति और जलवायु परिवर्तन का साया लगातार बना रहा. लेकिन लगातार तीसरी बार ऐसा हुआ कि बैठक के बाद कोई साझा बयान जारी नहीं किया जा सका. एक सूत्र के मुताबिक बैठक में रूसी अधिकारी वीडियो लिंक के जरिए शामिल हुए.

मतभेदों के बावजूद दुनिया के सबसे धनी 20 देशों के इस संगठन के अधिकारियों का कहना है कि यह अब भी एक फायदेमंद मंच बना हुआ है. समूह के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक अगले महीने इंडोनेशिया के बाली में होनी है.

जी20 अहमियत पर जोर

इंडोनेशिया की वित्त मंत्री श्री मुल्यानी इंद्रावती ने एक समाचार सम्मेलन में बताया, "सभी सदस्य देशों ने इस बात को रेखांकित किया कि जी20 को एक आर्थिक सहयोग के फोरम के रूप में संरक्षित करना महत्वपूर्ण है.” इंद्रावती ने माना कि समूह "कई चुनौतियों और मतभेदों” का सामना कर रहा है जो "दुनिया की खराब होती आर्थिक हालत, यूक्रेन में जारी युद्ध और बढ़ते भू-राजनीतिक विवादों से जुड़े हैं.”

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जर्मन वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनेर ने बैठक से पहले कहा था कि "कोई फोरम ना होने से ऐसी फोरम होना बेहतर है, जिसमें अपनी बात रखी जा सके.” लिंडनेर ने संवाददाताओं को बताया, "भले ही मतभेद हों, जिनमें से कुछ आप साझा भी नहीं कर सकते, और कुछ को समझ भी नहीं सकते, फिर भी यह बातचीत का एक अच्छा मंच है.”

लेकिन इन अच्छी बातों के बावजूद मतभेद इस कदर गहरा गए हैं कि मंच के सदस्य किसी साझा बयान पर सहमत नहीं हो पाए. एक सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम एक ऐसा बयान जारी कर सकते थे जिसमें यूक्रेन युद्ध का जिक्र ना हो लेकिन हम ऐसा बयान नहीं चाहते जिसमें चीजों को ढका-छिपा कर रखा जाए.”

अमेरिका-सऊदी अरब तनाव

करीबी सहयोगी अमेरिका और सऊदी अरब के बीच हाल के दिनों में बढ़े तनाव का असर इस मंच पर स्पष्ट दिखाई दिया. सऊदी अरब तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक का अध्यक्ष है. ओपेक ने हाल ही में फैसला किया कि अर्थव्यवस्था की धीमी गति के चलते तेल उत्पादन में भारी कटौती की जाएगी. इस कदम का असर तेल कीमतों पर पड़ सकता है और ईंधन बहुत महंगा हो सकता है. अमेरिका इस बात से सख्त नाराज है क्योंकि रूस को इसका सीधा फायदा होगा.

एक सूत्र ने बताया कि जी20 की बैठक में पश्चिमी देशों ने साफ तौर पर अपनी निराशा जाहिर की और स्पष्ट किया कि तेल उत्पादन में कटौती सऊदी अरब के हित में नहीं होगी क्योंकि "इससे मंदी का खतरा पैदा हो सकता है.”

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तो बुधवार को सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में सऊदी अरब को सीधी चेतावनी दे दी थी. सऊदी अरब को हथियारों और कूटनीतिक रूप से लगातार मदद करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि सऊदी अरब को इसके नतीजे भुगतने होंगे.

वैसे, सऊदी अरब ने एक बयान जारी कहा है कि तेल उत्पादन में कटौती का फैसला राजनीति से प्रेरित नहीं है. गुरुवार को जारी इस बयान में सऊदी विदेश मंत्रालय ने ‘तथ्यों के आधार के बिना जारी बयानों को खारिज किया' और कहा कि यह फैसला ‘अमेरिका के विरुद्ध किसी राजनीतिक मंतव्य से नहीं लिया गया है.'

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लेकिन अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन कर्बी ने कहा कि सऊदी अरब जानता था कि तेल उत्पादन में कटौती "रूस की आय बढ़ा देगी और उस पर लागू प्रतिबंधों की धार कम हो जाएगी.” कर्बी ने कहा, "यह गलत दिशा है.”

पश्चिमी प्रतिबंधों का असर कम

दुनिया के सात सबसे विकसित देशों का संगठन जी7 रूस के तेल निर्यात पर कीमत की हदबंदी करने की कोशिश कर रहा है जिसका मकसद रूस की आय कम कर उसे यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में कमजोर करना है. लेकिन ऐसे कदम के लिए व्यापक वैश्विक समर्थन की जरूरत होगी, जो फिलहाल हासिल करना मुश्किल दिखता है.

पश्चिमी देशों ने फरवरी में ही रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे जब उसने यूक्रेन पर हमला किया था. लेकिनभारत, चीन और अन्य कई देशों ने इन प्रतिबंधों के उलट जाते हुए रूस से ज्यादा तेल खरीदा है जिससे रूस को मदद मिलती रही है.

वैसे इंद्रावती के मुताबिक कई अन्य मुद्दों पर जी20 में प्रगति हुई है जिनमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए धन उपलध् कराने से लेकर वैश्विक कंपनियों पर न्यूनतम कर लगाना आदि शामिल हैं.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)

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