दिल्ली के इंडिया गेट पर 24 घंटे जलने वाली अमर जवान ज्योति की लौ राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की मशाल के साथ विलीन होने जा रही है. करीब 50 साल बाद यह ज्योति बुझने जा रही है.
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इंडिया गेट पर बने अमर जवान ज्योति की जलते रहने वाली लौ अब 50 साल बाद हमेशा के लिए बुझ जाएगी. अब यह मशाल राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (नैशनल वॉर मेमोरियल) की मशाल के साथ मिला दी जाएगी.
शुक्रवार दोपहर एक समारोह में ज्योति का एक हिस्सा इंडिया गेट से करीब 400 मीटर दूरी पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर ले जाया जाएगा. राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था. शहीदों को श्रद्धांजलि देने और देश के प्रति उनके बलिदान को याद रखने के लिए नैशनल वॉर मेमोरियल की मशाल जलती रहेगी.
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहीदों को श्रद्धांजलि देने नैशनल वॉर मेमोरियल ही जाएंगे.
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने इस फैसले पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कुछ लोग देश प्रेम और बलिदान नहीं समझते. उन्होंने ट्वीट किया, "बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा. कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते- कोई बात नहीं…हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएंगे!"
इस कदम की तीखी आलोचना के बीच सरकार ने कहा कि "बहुत सारी गलत सूचना" प्रसारित हो रही थी. मीडिया में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है, "अमर जवान ज्योति की लौ बुझ नहीं रही है. इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की लौ में मिलाया जा रहा है."
अमर जवान ज्योति की लौ 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए स्थापित की गई थी. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गणतंत्र दिवस 1972 पर किया था. इंडिया गेट के नीचे अमर जवान ज्योति को 1971 में पाकिस्तान पर भारत की जीत के बाद प्रज्ज्वलित किया गया था. युद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों के सम्मान में यह ज्योति आज तक जलती आ रही है.
इंडिया गेट का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने पहले विश्व युद्ध और अन्य अभियानों में मारे गए करीब 90 हजार सैनिकों की याद में किया था.
नैशनल वॉर मेमोरियल में जलेगी ज्योति
नैशनल वॉर मेमोरियल इंडिया गेट परिसर के पास ही 40 एकड़ में फैला हुआ है. इसको तैयार करने में करीब 176 करोड़ रुपये खर्च हुए. यह 1962 में भारत-चीन युद्ध, भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1947, 1965, 1971 और 1999 कारगिल युद्धों दौरान अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों को समपर्ति है. इसके साथ ही यह श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के संचालन के दौरान और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के दौरान शहीद हुए सैनिकों को भी समर्पित है.
नैशनल वॉर मेमोरियल में चार चक्र हैं. अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र और सुरक्षा चक्र. इसमें 25,942 जवानों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने आजादी के बाद देश के लिए युद्ध और संघर्षों में अपनी जान दी. नैशनल वॉर मेमोरियल आजाद भारत के लिए युद्ध और संघर्ष में मारे जाने वाले भारतीय सेना के सैनिकों का सम्मान और प्रतिनिधित्व करता है.
1971 के युद्ध को बयान करती तस्वीरें
1971 की लड़ाई ने बांग्लादेश के रूप में एक नए देश को जन्म दिया. पाकिस्तान के लिए यह करारी चोट थी, जिसे आज तक वह नहीं भूल पाया है. लेकिन इस संघर्ष में पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली आबादी ने बहुत कुछ झेला.
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तूफानी मार्च
23 मार्च 1971: ढाका की सड़कों पर आजादी के मांग के साथ प्रदर्शन.
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जशोर में मुक्ति वाहिनी
2 अप्रैल 1971: मुक्ति वाहिनी के जवान जशोर में मार्च करते हुए. जशोर भारतीय सीमा के पास का इलाका है.
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त्रिपुरा में बांग्लादेशी शरणार्थी
5 अप्रैल 1971: भीषण जंग के बीच मोहनपुर, त्रिपुरा (भारत) की एक स्कूली इमारत में शरण लेते बांग्लादेशी शरणार्थी.
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भारतीय बॉर्डर के पास पहुंचे बांग्लादेशी
7 अप्रैल 1971: बांग्लादेशी स्वतंत्रता सैनानियों समेत कई नागरिकों को भारतीय बॉर्डर से करीब 45 किलोमीटर पास कुष्टिया इलाके में पहुंचाया गया.
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बेनापुल का शरणार्थी कैंप
14 अप्रैल 1971: 5 हजार से ज्यादा शरणार्थियों ने भारतीय सीमा के पास बने बेनापुल, जशोर शरणार्थी कैंप में शरण ली.
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जख्मी लड़ाके
16 अप्रैल 1971 को पाकिस्तानी एयरफोर्स की बमबारी में घायल हुए सैनिकों को इलाज के लिए चुआडंगा ले जाते आम नागरिक और मुक्ति वाहिनी के सदस्य.
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मुक्ति योद्धा
मुक्ति वाहिनी के सदस्य हिमायतुद्दीन 3 अगस्त 1971 के दिन ढाका ने नजदीक बने एक खुफिया कैंप में मशीन गन से निशाना साधते दिख रहे हैं.
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मात्र 19 साल के छात्र की पलटन
13 नवंबर 1971: फरीदपुर इलाके में मुक्ति वाहिनी के युवा सदस्यों की रायफल ट्रेनिंग की तस्वीर. वहां 70 लोगों की पलटन बनाई गई थी. इस पलटन ने देश के दक्षिणी हिस्से में दवाइयां और सैन्य रसद पहुंचाने में मदद की. तस्वीर में बिल्कुल बाईं ओर दिख रहे 19 साल के छात्र (ढाका यूनिवर्सिटी) ने इस पलटन का नेतृत्व किया था.
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पारुलिया पर नियंत्रण
26 नवंबर 1971: मुक्ति वाहिनी ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के पारुलिया गांव पर नियंत्रण किया.
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अखाउड़ा में पाकिस्तानी जवान
29 नवंबर 1971: अखाउड़ा में हथियारों की सुरक्षा में डटे पाकिस्तानी जवान. पाकिस्तान का दावा था कि ये हथियार भारतीय फौज से जब्त किए गए हैं.
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भारतीय टैंक
14 दिसंबर 1971: भारतीय सेना के 7 टैंक बोगरा के लिए कूच कर गए.
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भारतीय फौज
6 दिसंबर 1971: भारतीय सीमा के पास स्थित डोंगरपाड़ा के खुले इलाके में मशीन गन से निशाना साधता भारतीय सैनिक.
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दिसंबर महीने तक ढाका में थे पाकिस्तानी सार्जेंट
12 दिसंबर 1971: राजधानी ढाका के बाहरी इलाके में 2 सैनिकों को निर्देश देता पाकिस्तानी सार्जेंट.
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संघर्ष विराम
12 दिसंबर 1971: ढाका एयरपोर्ट में इंतजार करते विदेशी. एक ब्रितानी विमान 8 बजे एयरपोर्ट पर उतरा था. ये विमान 6 घंटे के संघर्ष विराम के दौरान विदेशियों को बाहर निकालने के लिए भेजा गया था.
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4 रजाकरों को मारने के बाद मुक्ति वाहिनी की प्रतिक्रिया
हत्या, बलात्कार और लूट में पाकिस्तानी सेना का साथ देने वाले 4 रजाकरों को मारने के बाद शुक्र अदा करते स्वतंत्रता सैनानी.
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युद्ध की समाप्ति
16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ हथियार डालने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए.