भारत के ठगों ने अमेरिकी लोगों से इस साल अब तक 10 अरब डॉलर से ज्यादा ठग लिए हैं. अमेरिका ने तो अपना एक अधिकारी स्थायी रूप से दिल्ली में तैनात कर दिया है.
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अमेरिकी फेडरल जांच एजेंसी एफबीआई की रिपोर्ट बताती है कि साल 2022 में भारत से काम करने वाले ठगी गिरोहों ने अमेरिका के लोगों के दस अरब डॉलर यानी करीब सवा आठ खरब रुपये ठग लिए. इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा निशाना अमेरिका में रहने वाले बुजुर्गों को बनाया गया जिनसे बीते दो साल में तीन अरब डॉलर से ज्यादा ठगे जा चुके हैं.
ठगी की इन घटनाओं को अक्सर अवैध कॉल सेंटरों के जरिए अंजाम दिया गया. इन कॉल सेंटरों में बैठे लोगों ने फोन के जरिए अमेरीकियों को चूना लगाया और सबसे ज्यादा निशाना बुजुर्गों को तकनीकी मदद देने के नाम पर बनाया गया.
रिपोर्ट कहती है कि साल के 11 महीने में ही अमेरिकी नागरिकों से 10.2 अरब डॉलर ठगे जा चुके थे. बीते साल के मुकाबले यह आंकड़ा 47 फीसदी ज्यादा है. 2021 में कुल ठगी 6.9 अरब डॉलर की हुई थी.
आप अपना पासवर्ड कहां रखते हैं?
एटीएम पिन, बैंक खाता नंबर, डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड डिटेल्स हो या आधार और पैन कार्ड जैसी संवेदनशील निजी जानकारी, भारतीय बेहद लापरवाह तरीके से इन्हें रखते हैं. एक सर्वे में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.
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33 प्रतिशत भारतीय रखते हैं असुरक्षित तरीके से डेटा
लोकल सर्किल के सर्वे में यह पता चला है कि करीब 33 प्रतिशत भारतीय संवेदनशील डेटा असुरक्षित तरीके से ईमेल या कंप्यूटर में रखते हैं.
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ईमेल और फोन में रखते हैं पासवर्ड
सर्वे में शामिल लोगों ने बताया कि वे संवेदनशील डेटा जैसे कि कंप्यूटर पासवर्ड, बैंक अकाउंट से जुड़ी जानकारी, क्रेडिट और डेबिट कार्ड के साथ ही साथ आधार और पैन कार्ड जैसी निजी जानकारी भी ईमेल और फोन के कॉन्टैक्ट लिस्ट में रखते हैं. 11 फीसदी लोग फोन कॉन्टैक्ट लिस्ट में ऐसी जानकारी रखते हैं.
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याद भी करते हैं और लिखते भी हैं
लोकल सर्किल ने देश के 393 जिलों के 24,000 लोगों से प्रतिक्रिया ली, सर्वे में शामिल 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपनी जानकारियां कागज पर लिखते हैं, वहीं 21 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अहम जानकारियों को याद कर लेते हैं.
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डेबिट कार्ड पिन साझा करते हैं
लोकल सर्किल के सर्वे में शामिल 29 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने डेबिट कार्ड पिन को अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझा करते हैं. वहीं सर्वे में शामिल चार फीसदी लोगों ने कहा कि वे पिन को घरेलू कर्मचारी या दफ्तर के कर्मचारी के साथ साझा करते हैं.
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बड़ा वर्ग साझा नहीं करता एटीएम पिन
सर्वे में शामिल एक बड़ा वर्ग यानी 65 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्होंने एटीएम और डेबिट कार्ड पिन को किसी के साथ साझा नहीं किया. दो फीसदी लोगों ने ही अपने दोस्तों के साथ डेबिट कार्ड पिन साझा किया.
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फोन में अहम जानकारी
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बैंक खातों से जुड़ी जानकारी, आधार या पैन कार्ड जैसी जानकारी फोन में रखते हैं. सर्वे में शामिल सात फीसदी लोगों ने इसको माना है. 15 प्रतिशत ने कहा कि उनकी संवेदनशील जानकारियां ईमेल या कंप्यूटर में है.
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डेटा के बारे में पता नहीं
इस सर्वे में शामिल सात फीसदी लोगों ने कहा है कि उन्हें नहीं मालूम है कि उनका डेटा कहां हो सकता है. मतलब उन्हें अपने डेटा के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है.
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बढ़ रहे साइबर अपराध
ओटीपी, सीवीवी, एटीएम, क्रेडिट या डेबिट कार्ड क्लोनिंग कर अपराधी वित्तीय अपराध को अंजाम दे रहे हैं. ईमेल के जरिए भी लोगों को निशाना बनाया जाता है और संवेदनशील जानकारियों चुराई जाती हैं.
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डेटा सुरक्षा में जागरूकता की कमी
लोकल सर्किल का कहना है कि देश के लोगों में अहम डेटा के संरक्षण को लेकर जागरूकता की कमी है. कई ऐप ऐसे हैं जो कॉन्टैक्ट लिस्ट की पहुंच की इजाजत मांगते हैं ऐसे में डेटा के लीक होने का खतरा अधिक है. लोकल सर्किल के मुताबिक वह इन नतीजों को सरकार और आरबीआई के साथ साझा करेगा ताकि वित्तीय साक्षरता की दिशा में ठोस कदम उठाया जा सके.
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भारत से होने वाले ठगी के मामलों में भारी उछाल को देखते हुए एफबीआई ने अब नई दिल्ली स्थित अपने दूतावास में एक स्थायी प्रतिनिधि तैनात कर दिया है. यह अधिकारी सीबीआई, इंटरपोल और दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर काम करता है और इसका मकसद ठगी करने वाले गिरोहों का भंडाफोड़ करना व अमेरिका से भेजे जा रहे धन को बीच में ही रोक देना होता है.
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हजारों करोड़ का नुकसान
इस वक्त नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में यह भूमिका सुहेल दाऊद निभा रहे हैं जो एफबीआई के दक्षिण एशिया प्रमुख हैं. उन्होंने एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में भारतीय अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि एफबीआई की वेबसाइट पर धोखाधड़ी के जिन मामलों की सूचना दी गई है, उनमें सिर्फ प्रेम संबंधों के बहाने की गई ठगी से इस साल के 11 महीनों में ही आठ हजार करोड़ का नुकसान हुआ है. 2021 में इतना नुकसान पूरे साल में हुआ था.
टेक सपोर्ट क्राइम यानी तकनीकी मदद उपलब्ध कराने के नाम पर दो साल में तीन अरब डॉलर ठगे गए हैं जिनमें से ज्यादातर पीड़ितों की आयु 60 वर्ष से अधिक है. टेक सपोर्ट क्राइम में इस साल 128 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.
पिछले दो साल में ही अमेरिकियों को 9,200 करोड़ का नुकसान हो चुका है. 2021 में करीब 2,800 करोड़ रुपये ठगे गए थे जबकि इस साल अब तक 6,400 करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है.
पकड़े जाते ठगी गिरोह
हाल के महीनों में भारत में कई ऐसे फर्जी कॉल सेंटर पकड़े गए हैं जहां से विदेशियों को ठगा जा रहा था. इसी महीने दिल्ली पुलिस ने एक कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया है जिसे तीन लोगों द्वारा चलाया जा रहा था. पुलिस के मुताबिक ये लोग टेक सपोर्ट मुहैया कराने के नाम पर अमेरिकी लोगों को शिकार बना रहे थे.
फेक न्यूज फैलाने पर कहां कितना जुर्माना है?
फेक न्यूज से आजकल पूरी दुनिया परेशान है. इसलिए सरकारें और कंपनियां इस चिंता में हैं कि साइबर संसार में आग की तरह फैलने वाले फेक न्यूज से कैसे निपटे. कुछ देशों ने इसे लेकर कानून बनाए हैं.
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सिंगापुर
सिंगापुर में एक नए कानून पर विचार हो रहा है. इसके तहत फेसबुक जैसी कंपनियों को उन पोस्ट पर चेतावनी जारी करनी होगी जिन्हें सरकार झूठ मानती है. फेसबुक से 'सार्वजनिक हितों' के खिलाफ लिखे गए कमेंट हटाने को भी कहा जाएगा. फेक न्यूज कानून का उल्लंघन करने के लिए दस लाख सिंगापुर डॉलर का जुर्माना और 10 साल की सजा हो सकती है.
तस्वीर: Imago/ZumaPress
रूस
रूस में राष्ट्रपति पुतिन ने एक कड़े कानून पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत उन खबरों को फैलाने पर जुर्माना लगेगा जिन्हें सरकार फेक न्यूज मानती है. इसमें ऐसी चीजें पोस्ट करने की भी मनाही होगी जो देश के लिए 'अपमानजनक' हों. कानून का उल्लंघन करने पर चार लाख रूबल तक जुर्माना लगेगा. वहीं आलोचकों का कहना है कि इससे सरकारी सेंसरशिप आसान होगी.
तस्वीर: Reuters/A. Garofalo
फ्रांस
फ्रांस ने 2017 में दो फेक न्यूज विरोधी कानून पास किए ताकि इंटरनेट पर झूठी सूचनाओं के प्रसार को रोका जा सके. फ्रांस में 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में रूसी दखल के आरोपों के बाद फ्रांस में खूब फेक न्यूज का प्रसार हुआ. नागरिक आजादी पर बंदिशों की आशंकाओं के बीच फ्रांसीसी राष्ट्रपति माक्रों ने कहा है कि वह मीडिया कानूनों में बड़े बदलाव करेंगे.
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जर्मनी
जर्मनी ने भी 2018 में फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए कानून पास किया. इसके मुताबिक हेट स्पीच को काबू किया जाएगा, जिनमें नाजी विचारधारा भी शामिल है. सोशल मीडिया कंपनियों को प्रतिबंधित सामग्री हटाने के लिए 24 घंटे का समय दिया जाएगा. कानून का उल्लंघन करने पर पांच करोड़ यूरो का जुर्माना लगाया जा सकता है.
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मलेशिया
मलेशिया की पिछली सरकार दुनिया की उन चंद सरकारों में शामिल थी जिन्होंने फेक न्यूज को काबू करने के लिए कानून बनाए. हालांकि मलेशिया की सरकार पर इसके जरिए चुनाव से पहले विरोधियों की आवाज दबाने के आरोप भी लगे. चुनावों के बाद बनी नई सरकार ने अपना वादा पूरा करने के लिए कानून को खत्म करना चाहा लेकिन विपक्ष के दबदबे वाले सीनेट में वह ऐसा नहीं कर सकी.
तस्वीर: Reuters/Lai Seng Sin
यूरोपीय संघ
यूरोपीय आयोग के उप प्रमुख फ्रांस टिमरमान्स का कहना है कि यूरोपीय संघ और दुनिया भर के अधिकारियों को नागरिकों की रक्षा के लिए बड़ी तकनीकी और सोशल मीडिया कंपनियों को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाने होंगे. यूरोपीय संघ एक नए वॉर्निंग सिस्टम के जरिए सरकारों से जानकारी साझा करने को कहेगा. ऑनलाइन कंपनियों से भी गुमराह करने वाली सामग्री हटाने को कहा जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Murat
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इस गिरोह का एक सदस्य कनाडा में भी गिरफ्तार किया गया था जिसे टोरंटो में कनाडा की पुलिस ने पकड़ा. साथ ही अमेरिका के न्यू जर्सी में भी एफबीआई ने गिरोह के एक सदस्य को गिरफ्तार किया था.
इस बारे में जानकारी देते हुए दिल्ली पुलिस ने तब बताया था कि अमेरिकी अधिकारियों से उसे 2012 से 2020 के बीच 20 हजार से ज्यादा लोगों को ठगे जाने की सूचना मिली है.
दाऊद ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, "यह अभी राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला भले ना हो, लेकिन छवि का सवाल तो है और हम नहीं चाहते कि भारत को इस मोर्चे पर नुकसान हो.”
भारत में साइबर क्राइम
हाल ही में भारतीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में साइबर अपराधों में भी भारी उछाल आया है. रिपोर्ट में कहा गया कि देश में रोजाना साइबर अपराधों की 1,500 शिकायतें की गईं जिनमें से लगभग 30 में प्राथमिकी दर्ज हुई.
मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए गए आंकड़ों में बताया गया कि 30 अगस्त 2019 को सरकार ने नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल शुरू किया था जहां साइबर क्राइम की शिकायत की जा सकती है. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1 जनवरी 2020 से 7 दिसंबर 2022 के बीच देश में 16 लाख से ज्यादा साइबर अपराधों की शिकायत की गई. उनमें से 32 हजार से ज्यादा मामलों में एफआईआर दर्ज हुई.
गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा द्वारा दी गई इस जानकारी का अर्थ है कि दो प्रतिशत से भी कम मामलों में एफआईआर दर्ज की जा रही है. मिश्रा के मुताबिक इन कदमों के जरिए 180 करोड़ रुपये बचाए जा सके हैं.