एमनेस्टी इंटरनेशनल ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तानी नागरिक अत्यधिक गर्मी की लहरों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं. उसका कहना है कि उच्च तापमान और गर्मी की लहरों के सामने पाकिस्तानी नागरिक बेबस हैं.
विज्ञापन
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर अपनी एक रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि दक्षिण एशिया में खासकर पाकिस्तान में नागरिक उच्च तापमान से सुरक्षा संबंधी सुविधाओं से वंचित हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक इस देश में पहले के मुकाबले हीट स्ट्रोक, सांस लेने में दिक्कत और बेहोशी की वजह से ज्यादा लोगों को अस्पताल के इमरजेंसी में पहुंचाया जा रहा है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अब चरम मौसम की घटनाएं अधिक बार होंगी. पिछले साल पाकिस्तान में भीषण गर्मी पड़ी थी. पिछले साल मई में जैकबाबाद में तापमान 51 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था.
पिछले साल पाकिस्तान में भारी बारिश के बाद विनाशकारी बाढ़ ने देश के एक तिहाई हिस्से को डुबो दिया, जिससे लाखों लोग, पशुधन और कृषि भूमि प्रभावित हुई.
बाढ़ के कारण पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र को 30 अरब रुपये का नुकसान हुआ था. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर से दिसंबर 2022 के बीच 85 लाख से ज्यादा लोग खाद्य संसाधनों को लेकर असुरक्षित थे.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले लोग गर्म दिनों में भी खुले आसमान के नीचे काम करने को मजबूर हैं और ये लोग जलवायु परिवर्तन से खुद को बचाने में सबसे कम सक्षम हैं.
एमनेस्टी का कहना है कि पाकिस्तान में चार करोड़ से अधिक लोग बिना बिजली के हैं, जिसका अर्थ है कि उनके पास एयर कंडीशनर या पंखा नहीं है.
दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल की क्षेत्रीय उप निदेशक दिनुष्का देसानायके ने चेतावनी दी कि बढ़ते तापमान और गर्मी से गरीब अधिक प्रभावित होते रहेंगे.
गरीब वर्ग पर ज्यादा मार
एमनेस्टी ने पाकिस्तान सरकार से शहर के कमजोर वर्गों को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए एक कार्य योजना बनाने का आग्रह किया है. मानवाधिकार संगठन ने अमीर देशों से कार्बन गैसों के उत्सर्जन को कम करने और पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए सहायता प्रदान करने का भी अनुरोध किया है.
पाकिस्तान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामले में बहुत पीछे है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की सूची में सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है.
वहीं पिछले एक शोध में भारत के लिए कहा गया था कि तापमान में 2.7 डिग्री की वृद्धि का असर 60 करोड़ से ज्यादा भारतीयों पर पड़ेगा. अगर इसे 1.5 डिग्री तक सीमित कर लिया जाता है तो इसमें छह गुना की कमी आ सकती है. तब नौ करोड़ भारतीय बढ़ती गर्मी और लू का प्रकोप झेलने को मजबूर होंगे.
अनुमान है कि हर 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने के साथ 14 करोड़ लोग भीषण गर्मी की चपेट में होंगे. फिलहाल दुनिया भर के छह करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 29 डिग्री से ऊपर है.
एए/वीके (एपी, डीपीए)
भारत में पड़ रही भयंकर गर्मी छीन लेगी लाखों नौकरियां
भारत के एक बड़े हिस्से में भीषण गर्मी पड़ रही है. हालिया हफ्तों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. गर्म थपेड़ों और लू से लोगों की जान जा रही है. गर्मी का यही हाल रहा, तो भविष्य बड़ा विनाशकारी होगा.
मई में मौसम विभाग ने कुछ राज्यों में गर्म लहर और लू की चेतावनी जारी की थी. इस साल मानसून भी थोड़ी देर से आएगा. उम्मीद है कि जून के पहले हफ्ते में ये केरल पहुंच जाएगा. ऐसे में तापमान सामान्य से ज्यादा वक्त तक चढ़ा रहेगा. मौसम की अतिरेक स्थितियां सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं. यहां तक कि मौत भी हो सकती है. अप्रैल में लू से 13 लोगों की जान गई.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
सबसे ज्यादा असर किसपर
गरीब और दिहाड़ी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि आमतौर पर उनके पास गर्मी से बचने के साधन कम होते हैं. साथ ही, उनके पास चिलचिलाती गर्मी में काम करने के अलावा कोई चारा नहीं होता. 2021 में हुई एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 50 साल में लू से 17 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है.
तस्वीर: Manira Chaudhary/DW
पूरा दक्षिण एशिया है प्रभावित
भारत के एक बड़े हिस्से में मुख्यतौर पर अप्रैल से जून के बीच में गर्मी पड़ती है. लेकिन बीते एक दशक में तापमान ज्यादा प्रचंड हो रहा है. पूरा दक्षिण एशिया जलवायु परिवर्तन के लिहाज से सबसे जोखिम वाले इलाकों में है. वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के एक हालिया शोध के मुताबिक, इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन ने लू की संभावना 30 फीसदी बढ़ा दी है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
आगे और बुरा हाल होगा
वैज्ञानिकों का कहना है कि औद्योगिकीकरण से पहले के दौर के मुकाबले, दक्षिण एशिया कम-से-कम दो डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है. इसका कारण जलवायु परिवर्तन है. अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो तापमान इतना बढ़ जाएगा कि इंसानी शरीर की अंदरूनी तापमान को स्थिर रखना और पसीने के माध्यम से अतिरिक्त गर्मी को शरीर से निकाल देने की क्षमता प्रभावित होगी.
विशेषज्ञों के मुताबिक, भविष्य में भारत को और भी नियमित और तीव्र गर्म लहरों का सामना करना पड़ सकता है. इससे नौकरियों से लेकर बिजली उत्पादन, जल और खाद्य आपूर्ति प्रभावित होंगे. पैदावार घट जाएगी. वैज्ञानिकों का कहना है कि तेजी से बढ़ रहे वैश्विक तापमान को काबू करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तीव्रता से कम करना जरूरी है.
अबिनाश मोहंती, आईपीई ग्लोबल में क्लाइमेट चेंज और सस्टेनिबिलिटी के सेक्टर हेड हैं. वह बताते हैं कि गर्म थपेड़ों और लू के कारण 2030 तक भारत में करीब साढ़े तीन करोड़ नौकरियां जाने का अंदेशा है. ऐसे में जरूरी है कि प्रभावी सरकारी नीतियां बनाई जाएं. पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को भी भविष्य की गर्मी के मुताबिक विकसित किया जाए.