एमनेस्टी: तालिबान का महिलाओं के प्रति बर्ताव एक अपराध
२६ मई २०२३
एमनेस्टी समेत दो संस्थाओं ने मांग की है कि महिलाओं के खिलाफ तालिबान द्वारा लाए गए प्रतिबंधों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाना चाहिए और इसी आधार पर जांच होनी चाहिए.
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यह मांग एमनेस्टी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल कमीशन ऑफ जूरिस्ट्स की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट में की गई है. रिपोर्ट में अफगानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर तालिबान द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में विस्तार से बताया गया है.
अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने बड़े पैमाने पर महिलाओं के अधिकार सीमित किए हैं और उनका शासन निरंतर सत्तावादी बनता गया है. महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया गया है और साथ ही उन्हें यात्रा करने और चिकित्सा हासिल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.
एमनेस्टी की महासचिव एग्नेस कैलामार्ड ने कहा, "ये सब अंतरराष्ट्रीय अपराध हैं. ये संगठित, विस्तृत, सुनियोजित हैं." दोनों संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत (आईसीसी) से अपील की है कि वह अफगानिस्तान के हालात पर चल रही अपनी जांच में "लैंगिक उत्पीड़न जैसे मानवता के खिलाफ अपराध" को भी जोड़ दे.
संयुक्त राष्ट्र से अपील
संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के आने वाले सत्र में "तालिबान द्वारा लैंगिक उत्पीड़न और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत दूसरे संभावित अपराधों" पर चर्चा करे.
कैलामार्ड ने कहा कि तालिबान के कदमों के प्रति अभी तक जितनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई है उससे ज्यादा मजबूत प्रतिक्रिया होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "सिर्फ एक ही नतीजा स्वीकार्य है: लैंगिक दमन और उत्पीड़न का यह तंत्र ध्वस्त होना चाहिए."
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तालिबान ने अभी तक इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. इससे पहले तालिबान इस तरह की रिपोर्टों को पक्षपातपूर्ण और उसके खिलाफ प्रोपेगैंडा बताता रहा है.
अप्रैल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर तालिबान से मांग की थी वह अफगानिस्तान में "महिलाओं और लड़कियों की पूरी, बराबर, सार्थक और सुरक्षित भागीदारी" सुनिश्चित करे.
सीके/एनआर (डीपीए, एपी)
गर्भवती अफगान महिलाओं की उम्मीदें टिकी हैं इन दाइयों पर
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अफगानिस्तान में हर दो घंटों में प्रसूति के दौरान एक महिला की मौत हो जाती है. ऐसे में दाइयों के प्रशिक्षण के लिए शुरू किया एक पायलट प्रोजेक्ट अफगान महिलाओं को उम्मीद दे रहा है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
प्रसूति वार्ड को देखना, समझना
बामियान के एक अस्पताल में प्रशिक्षु दाइयां विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में प्रसूति के समय गर्भवती महिलाओं का और नवजात बच्चों का ध्यान रखना सीख रही हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने स्थानीय संगठन वतन सोशल एंड टेक्निकल सर्विसेज एसोसिएशन के साथ मिल की है.
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प्रसव का इंतजार
2021 में सत्ता फिर से हासिल करने के बाद तालिबान ने महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया है. स्वास्थ्य क्षेत्र एकमात्र अपवाद है. बामियान के इस अस्पताल में जिन 40 महिलाओं को इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है वो बाद में अपने अपने गांवों में गर्भवती महिलाओं का ध्यान रखेंगी.
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महिलाएं ही शिक्षक, महिलाएं ही छात्र
सभी प्रशिक्षु महिलाएं हर सबक को एकाग्रता और प्रेरणा के साथ सीख रही हैं. एक 23 वर्षीय छात्रा कहती हैं, "मैं सीखना और फिर अपने गांव के लोगों की मदद करना चाहती हूं." इस मदद की जरूरत भी है: अफगानिस्तान में करीब छह प्रतिशत नवजात बच्चों की पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है.
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तजुर्बा भी जरूरी है
रोज के प्रशिक्षण का एक हिस्सा है गर्भवती महिलाओं का रक्तचाप मापना. प्रशिक्षुओं में से कुछ महिलाएं खुद मां हैं और गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में जानती हैं. उनमें से एक ने बताया, "शुरू में तो मैं नर्स या दाई नहीं बनना चाहती थी." लेकिन उन्होंने बताया कि खुद गर्भवती होने के समय उन्हें जो अनुभव हुए उनकी वजह से उनकी राय बदल गई.
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एक बार शीशे में देख लेना
20 साल की एक प्रशिक्षु शिफ्ट शुरू होने से पहले आईने में देख कर अपना हिजाब और मास्क ठीक कर रही हैं. प्रशिक्षण के लिए वो इतनी प्रतिबद्ध हैं कि वो अस्पताल पहुंचने के लिए दो घंटे पैदल चल कर आती हैं.
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जहां मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है
प्रशिक्षण के बाद ये दाइयां दूर दराज के गांवों में महिलाओं की मदद करेंगी. ऐसे स्थानों पर अक्सर लोगों को स्वास्थ्य सेवायें नहीं मिल पाती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अफगानिस्तान की मातृत्व मृत्यु दर दुनिया की सबसे ऊंची दरों में से है. वहां करीब तीन प्रतिशत महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान या उसकी वजह से मौत हो जाती है.
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बेटे की मौत का दुख
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की वजह से 35 साल की अजीजा रहीमी ने अपना बेटा खो दिया. उन्होंने बताया, "करीब दो घंटों तक मेरा खून बहता रहा और मेरे पति को एम्बुलेंस नहीं मिली." उन्हें अपने बेटे को अपने घर पर बिना किसी मदद के जन्म देना पड़ा लेकिन उसकी जन्म के थोड़ी देर बाद ही मौत हो गई. वो कहती हैं, "मैंने अपने बच्चे को अपने पेट में नौ महीनों तक रखा और फिर उसे खो दिया, ये बेहद दुखदाई है."
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अफगान महिलाओं के लिए जानकारी की कमी
बामियान के अस्पताल में इलाज का इंतजार कर रहीं कई महिलाओं के पास गर्भावस्था, प्रसव या परिवार नियोजन के बार में कोई जानकारी नहीं है. यहां जन्म दर भी प्रांत के औसत से ज्यादा है. आंकड़े कहते हैं कि यहां एक महिला औसत 4.64 बच्चों को जन्म देती है. पड़ोसी देश ईरान में यह दर 1.69 है. (फिलिप बोल)