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अम्फान तूफान के बाद सुंदर नहीं रहा सुंदरबन

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ मई २०२०

अम्फान ने सुंदरबन को बर्बाद कर दिया है. मैंग्रोव के लगभग 13,000 पेड़ जड़ से उखड़ गए हैं और इलाके में रोजी-रोटी के प्रमुख साधन खेती और मछली पालन पर गहरा संकट पैदा हो गया है.

BG Bangladesch "Tiger Witwen"
तस्वीर: AFP/M. Uz Zaman

चक्रवाती तूफान अम्फान के गुजरने के बाद अब यूनेस्को की धरोहरों की सूची में शामिल सुंदरबन में हुई बर्बादी की तस्वीर सामने आने लगी है. लॉकडाउन के दौरान इलाके के डेढ़ हजार परिवार पहले से ही भुखमरी के कगार पर थे. अब इस तूफान ने आजीविकि के एकमात्र प्रमुख साधन यानी खेती को भी छीन लिया है. खारा पानी घुस जाने की वजह से निकट भविष्य में खेती असंभव है. इलाके में बाढ़ से बचाने के लिए बने ज्यादातर बांध या तो टूट चुके हैं या फिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. इससे इलाके से बड़े पैमाने पर विस्थापन का अंदेशा पैदा हो गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इलाके में हुए नुकसान की भरपाई में बरसों लग जाएंगे.

2009 में आए आइला तूफान से हुए नुकसान की भरपाई भी नहीं हो पाई थी कि अम्फान ने इलाके के मैंग्रोव जंगल और आम लोगों के जीवन को तहत-नहस कर दिया है. आइला के बाद इलाके के तालाबों और खेतों में समुद्र का खारा पानी भर जाने की वजह से तीन साल तक खेती नहीं हो सकी थी. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब इसमें कम से कम पांच साल का समय लग सकता है. और वह भी तब जबकि इलाके के लोगों के जीवन को पटरी में लाने के लिए बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास का काम शुरू हो.

अम्फान ने इलाके को आइला से दोगुना ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. इसका असर आम लोगों के अलावा इलाके की जैविक विविधता पर भी पड़ा है. इलाके के द्वीपों से लगभग दो लाख लोगों को पहले ही निकाल कर सुरक्षित ठिकानों पर ले जाया गया था. इससे जान का नुकसान तो कुछ कम हुआ है. लेकिन खेती और संपत्ति का जो नुकसान हुआ है उसका आकलन करना फिलहाल मुश्किल है. शुरुआती अनुमान के मुताबिक लगभग 13,000 पेड़ उखड़ गए हैं. ऐसा कोई गांव नहीं बचा है जहां लोगों के घरों की दीवारें और छतें नहीं ढह गई हों. इलाके में बने ज्यादातर बांध टूट गए हैं. फ्रेजरगंज के प्रदीप मंडल बताते हैं, "यहां इच्छामती और कालिंदी नदियों पर बने बांध टूट गए हैं. बार-बार कहने के बावजूद इनकी मरम्मत नहीं कराई गई थी. अब महीने भर बाद बाढ़ हमें मार देगी."

परिवार का पेट कैसे पालें?

हिंगलगंज के बांकड़ा गांव के 55 साल के राशिद गाजी कहते हैं, "चक्रवाती तूफान हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं. लेकिन अबकी अम्फान ने तो बर्बाद ही कर दिया है. जहां तक निगाहें देख सकती हैं चारों ओर उजड़े और ढहे मकान ही नजर आते हैं. ऐसा कोई द्वीप नहीं बचा है जहा बंगाल की खाड़ी का खारा पानी नदियों के रास्ते गांवों और तालाबों में नहीं पहुंच गया हो. इलाके के लोगों का कहना है कि ढहे हुए मकान तो गैर-सरकारी संगठनों या सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता से देर-सबेर दोबारा बन जाएंगे लेकिन फिलहाल उन लोगों की सबसे बड़ी समस्या खाने-पीने की है. प्रदीप कहते हैं, "हमारे खेतों में लगी फसलें तबाह हो गई हैं. फिलहाल हमारी सबसे बड़ी चिंता अपना और परिवार का पेट पालने की है."

सुंदरबन का घोड़ामारा द्वीप जलवायु परिवर्तन की वजह से धीरे-धीरे बंगाल की खाड़ी में समाने की वजह से अकसर सुर्खियां बटोरता रहा है. कभी 130 वर्ग किलोमीटर में फैला यह द्वीप अब सिकुड़ कर महज 25 वर्ग किलोमीटर रह गया है. यहां लगभग छह हजार लोग रहते हैं. लेकिन यहां एक भी मकान साबुत नहीं बचा है. इस द्वीप के तमाम लोगों को पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया था. तूफान गुजरने के पांच दिनों बाद सोमवार को शेल्टर होम से यहां लौटे लोगों के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. पूरा इलाका पानी में डूबा था. न कोई घर नजर आ रहा था और न ही खेत. सबीना बीबी सब्जियों की जिस खेती के बल पर अपने परिवार का पेट पालती थीं, वह कहीं नजर ही नहीं आ रहा था. इस द्वीप के मोहनलाल जाना कहते हैं, "पहले से ही नदी और समुद्र हमारे द्वीप को निगल रहे हैं. अब बची-खुची कसर इस तूफान ने पूरी कर दी है. जीवन में कभी ऐसा दिन देखने की कल्पना तक नहीं की थी."

इलाके के उत्तर गोपालनगर के रहने वाले 92 साल के रमेश मंडल कहते हैं, "मैंने अग्रेजों से लेकर आजादी की लड़ाई और दूसरा विश्वयुद्ध तक बहुत कुछ देखा है. लेकिन अपने जीवन में कभी ऐसा तूफान नहीं देखा था." दक्षिण 24-परगना के जिलाशासक पी उलंगनाथन बताते हैं, "अम्फान से इलाके में नदियों पर बने 140 किलोमीटर लंबे बांध को भारी नुकसान हुआ है. सरकार सौ दिनों के काम योजना के तहत शीघ्र इसे बनाने का काम शुरू करेगी ताकि ज्वार-भाटे के समय पानी गांवों में नहीं घुस सके."

विस्थापन तेज होने का अंदेशा

सुंदरबन इलाके के लोग अकसर रोजी-रोटी की तलाश में देश के दूसरे शहरों और राज्यों में जाते रहे हैं. लेकिन कोरोना की वजह से ऐसे दसियों हजार लोग हाल के दो महीनों में अपने गांव लौटे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद इलाके में दोबारा बड़े पैमाने पर विस्थापन शुरू होगा. इसकी वजह यह है कि जिस खेती के बूते प्रवासी मजदूर यहां लौटे थे अब वह भी नही बची हैं. इलाके के कई ब्लॉकों में स्थानीय लोगों के हित में काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख शंकर हालदार कहते हैं, "यहां के लोग पहले से ही काफी हद तक गैर-सरकारी संगठनों और सरकार की सहायता पर निर्भर थे. यह तूफान लोगों के लिए ताबूत की आखिरी कील की तरह है."

सुंदरबन मामलों के मंत्री मंटूराम पाखिरा कहते हैं, "अम्फान से सुंदरबन इलाके में हजारों करोड़ का नुकसान पहुंचा है. अब सब कुछ नए सिरे से दोबारा बनाना होगा." कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान संस्थान के निदेशक और सुंदरबन पर लंबे अरसे से शोध करने वाले डॉक्टर सुगत हाजरा कहते हैं, "तूफान से आधारभूत ढांचे को पहुंचे भारी नुकसान का असर लोगों की आजीविका पर पड़ना तय है. आने वाले दिनों में सुंदरबन इलाके से बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन देखने को मिलेगा." वह बताते हैं कि आइला तूफान से हुए नुकसान के बाद जो कुछ दोबारा बना था वह सब नष्ट हो चुका है. प्रवासी मजदूरों के बीच काम करने वाले संगठन दिशा फाउंडेशन की निदेशक अंजलि बोरहाडे भी यही बात कहती हैं, "पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से आजीविका में बाधा पहुंचेगी और विस्थापन की परिस्थिति पैदा होगी."

11 साल पहले आने वाले आइला तूफान से हुए नुकसान के बाद भी इलाके में बड़े पैमाने पर विसथापन हुआ था. उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में फैले सुंदरबन के लगभग चालीस लाख लोगों के लिए खेती, मछली पालन, वन्यजीव पर्यटन और प्रवासी मजदूरी ही आजीविका के प्रमुख साधन रहे हैं. अब पहले तीनों के अम्फान तूफान की भेंट चढ़ जाने की वजह से विस्थापन ही रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया बचा है.

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