80 लाख साल पहले के पक्षी के दिमाग की जांच से मिली नई जानकारी
१५ नवम्बर २०२४
शोधकर्ताओं का ऐसा दावा है कि आज के पक्षियों का दिमाग इतना विकसित है जिसकी बराबरी केवल इंसान ही कर सकते हैं. वैज्ञानिकों के लिए ये किसी पहेली से कम नहीं है.
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2016 में जीवाश्म विज्ञानी विलियम नावा ने एक ऐसे छोटे जीवाश्म की खोज की थी, जिससे आधुनिक पक्षियों के दिमाग और बुद्धि से जुड़े कई रहस्यों का पता लगाया जा सका है. शोधकर्ताओं ने हाल ही में माइक्रो सीटी स्कैन का इस्तेमाल करके इस पक्षी की खोपड़ी और मस्तिष्क की थ्रीडी इमेज बनाई है जिससे कई नई जानकारियां सामने आई हैं.
नावाओर्निस हेस्टिया नाम के इस पक्षी के जीवाश्म की मदद से वैज्ञानिकों ने इसके दिमाग और कान की संरचना का सटीक पुनर्निमाण करने में कामयाबी हासिल की है. ये पक्षी लगभग 80 लाख साल पहले डायनासोर के साथ सूखे इलाकों में रहता था.
प्रतिष्ठित 'नेचर' पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन को केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानी गुईलेर्मो नेवलॉन ने 'नायाब' खोज बताया है.
अध्ययन से पता चला है कि जुरासिक काल के दौरान पक्षियों का विकास छोटे पंख वाले डायनासोर से हुआ था.
इस खोज ने सबसे पहले ज्ञात पक्षी आर्कियोप्टेरिक्स से जुड़े कई सवालों का जवाब दिया है जो लगभग डेढ़ करोड़ साल पहले यूरोप में रहते थे. नावाओर्निस के जीवाश्म की नई तस्वीरें इसे आधुनिक छोटे आकार के कबूतर जैसा प्रदर्शित करती हैं.
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खुल सकते हैं कई राज
लॉस एंजेलिस काउंटी के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के जीवाश्म विज्ञानी और अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक लुइस चियाप्पे ने कहा, "यह लंबे समय से खोजा जा रहा सबूत है क्योंकि प्रारंभिक पक्षियों की अच्छी तरह से संरक्षित थ्रीडी खोपड़ी मिलना बेहद दुर्लभ है, और यह अब तक की सबसे अच्छी तरह से संरक्षित खोपड़ी है."
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक डैनियल फील्ड ने कहा, "वैज्ञानिकों को यह समझने में मुश्किल आयी कि पक्षियों का अनोखा मस्तिष्क और असाधारण बुद्धि कैसे और कब विकसित हुई. यह नई खोज काफी कुछ जानने में मदद करेगी."
नावाओर्निस की खोपड़ी का आकार आज के पक्षियों की तुलना में छोटा था, लेकिन आर्कियोप्टेरिक्स की तुलना में बड़ा था. इसका दिमाग आधुनिक पक्षियों और इंसानों की तरह रीढ़ की हड्डी से जुड़ा था जो आर्कियोप्टेरिक्स और डायनासोर से बिल्कुल अलग था.
नवॉर्निस में कुछ अनूठी विशेषताएं पायी गई हैं जैसे कान के अंदर का एक हिस्सा दूसरे पक्षियों की तुलना में बड़ा था. नावाओर्निस एक ऐसे पक्षी समूह से संबंधित था जो गंभीर आपदाओं में भी जीवित रहा. इसकी पतली और नाजुक चोंच से पता चलता है कि ये कीड़े और बीज खाने के लिए बनी थी.
एवाई/आरपी (रॉयटर्स)
डायनासोरों के वो वंशज, जो आपके छत की मुंडेर पर बैठते हैं
करीब 6.6 करोड़ साल पहले आसमानी कहर बनकर आए ऐस्टेरॉइड ने डायनासोरों को मिटा तो दिया, लेकिन उनकी समूची हस्ती खत्म नहीं हुई. उनके वंशज आज भी हमारे बीच रहते हैं.
तस्वीर: Sadak Souici/ZUMA/picture alliance
बचे रहे गए डायनासोर!
रिसर्चर मानते हैं कि 6.6 करोड़ साल पहले एक रोज सुदूर अंतरिक्ष से आया एक ऐस्टेरॉइड पृथ्वी पर गिरा. उसकी धमक से पैदा हुए असर ने पृथ्वी से सबसे विशालकाय जीव डायनासोरों का खात्मा कर दिया. मगर उस हादसे के बाद भी डायनासोरों का एक नामलेवा बचा रह गया. उनके वंशज आज भी हमारी इसी दुनिया में रहते हैं. कुछ चटक रंग वाले, बहुत सुंदर, बला के मेहनती, कई मंजे हुए कारीगर, तो कई बेहतरीन गायक-संगीतकार हैं.
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गौरैया, कबूतर... सारे पक्षियों का पूर्वज
डायनासोर के खानदान का एक सदस्य था, ट्रायनोसॉरस रेक्स. अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के मुताबिक, यह लंबाई में करीब 40 फीट और ऊंचाई में 12 फीट था. वजन, पांच से सात हजार किलो तक. यह पृथ्वी पर अब तक के सबसे खूंखार शिकारियों में एक माना जाता है. अब सोचिए, यह ट्रायनोसॉरस रेक्स उन डायनासोरों में हैं, जो नन्ही सी गौरैया के पूर्वज हैं. पेलियनटॉलजिस्ट की मानें, तो पक्षी अपने आप में एक डायनासोर हैं.
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थेरोपॉड डायनासोर
अधिकतर मांसभक्षी डायनासोर, थेरोपॉड समूह के थे. पक्षी भी इसी समूह से ताल्लुक रखते हैं. दिलचस्प यह है कि उड़ने वाले पक्षी, जिन थेरोपॉड्स के वंशज हैं वो उड़ते नहीं थे. मतलब, आप कह सकते हैं कि पक्षी दरअसल उड़ने वाले डायनासोर हैं. इस निष्कर्ष पर पहुंचने में दक्षिणी जर्मनी में हुई एक खोज बड़ी अहम साबित हुई.
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अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन पक्षी
जर्मनी के बवेरिया प्रांत में एक लाइमस्टोन संरचना है. जॉलेनहोफेन नाम के एक गांव के नजदीक होने के कारण इसे 'जॉलेनहोफेन लाइमस्टोन' कहते हैं. 1861 में यहां एक अनूठा जीवाश्म मिला, जिसे नाम दिया गया: ऑर्कियॉप्टरिक्स लीथोग्रैफिका. इसकी संरचना दो समूहों का मिश्रण थी: छिपकली और पक्षी. यह खोज प्राचीन डायनासोरों और आधुनिक पक्षियों के रिश्ते को समझने में एक बड़ा मोड़ मानी जाती है.
मुमकिन है, पक्षियों का इससे भी प्राचीन कोई स्वरूप हो. कुछ ऐसा, जिससे विकसित होते हुए ऑर्कियॉप्टरिक्स लीथोग्रैफिका बना हो. हालांकि, इसका जीवाश्म के रूप में अब तक कोई सबूत नहीं मिला. बहरहाल, जिस लाइमस्टोन में ऑर्कियॉप्टरिक्स का जीवाश्म मिला, उसमें उसके पंखों की आकृति भी दर्ज रह गई थी. ये पंख वैसे ही हैं, जैसे आज के पक्षियों में होते हैं.
तस्वीर: TONY KARUMBA/AFP
कैसे विकसित हुए आधुनिक पक्षी
डायनासोरों ने पृथ्वी पर बहुत ही लंबे समय तक राज किया. 14 करोड़ साल से ज्यादा वक्त तक उनकी बाहशाहत कायम रही. फिर सुदूर अंतरिक्ष के ऐस्टेरॉइड बेल्ट से आए एक विशालकाय ऐस्टेरॉइड का पृथ्वी से टकराना उनके अंत की वजह बना. डायनासोर विलुप्त हो गए, लेकिन पूरी तरह नहीं. थेरोपॉड परिवार के उनके पक्षीनुमा सदस्य बचे रहे. आप आज के पक्षियों को देखें, तो वो बाकी जीवों से कई बातों में अलग हैं.
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करोड़ों सालों तक विकसित होते रहे
इनके प्राचीन पूर्वज तो और भी अलग दिखते थे. उनकी रूपरेखा डायनासोर से ज्यादा मेल खाती थी. पक्षियों के उस प्राचीन स्वरूप और आधुनिक पक्षियों में जो बदलाव दिखता है, वो करोड़ों साल तक हुए विकासक्रम का हासिल है. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के मुताबिक, ऐस्टेरॉइड के टकराने के बाद अगले 6.6 करोड़ सालों में प्राचीन पक्षियों का वो स्वरूप कई तरीकों से विकसित होता रहा.
तस्वीर: Andrey Atuchin and the Denver Museum of Nature and Science/REUTERS
विकास के लंबे सालों में कई खासियतें हासिल कीं
इन्होंने कई खासियतें विकसित कीं, जो उन्होंने बाकी जीवों से अलग बनाती हैं. मसलन, उनके शरीर पर उगे पर. शरीर के दोनों ओर उगे डैनों का जोड़ा, जो उन्हें उड़ने की ताकत देता है. चमगादड़ को छोड़ दें, तो रीढ़ वाले जीवों में एकमात्र पक्षी ही हैं जो रफ्तार के साथ हुए उड़ान भर सकते हैं. कुछ और खासियतें हैं, जो हमें नंगी आंखों से नहीं दिखती. कुछ और खासियतें हैं, जो हमें नंगी आंखों से नहीं दिखती.
तस्वीर: Mary Altaffer/AP Photo/picture alliance
कमाल के कामयाब जीव
खासियत जैसे कि सिर के अनुपात में बड़ा मस्तिष्क. खोखली हड्डियों वाला हल्का कंकाल, जो उड़ने में उनकी मदद करता है. जीव इतिहास में देखिए, तो पक्षी सबसे सफल जीवों में हैं. उन्होंने क्रैटेशियस पीरियड के अंत में हुए मास एक्सटिंशन को भी चकमा दे दिया. आज पक्षियों की 11,000 से ज्यादा प्रजातियां हैं. अलग-अलग रंग, आकार, आदतों वाले ये पक्षी आर्कटिक से लेकर अंटार्कटिक तक, दुनिया के हर महादेश में पाए जाते हैं.
तस्वीर: Helge Schulz/Zoonar/picture alliance
प्रवासी पक्षी: मुश्किलों से पार पाकर बने रहने की एक प्रेरणा
ये रेगिस्तान से लेकर वर्षावन, कई कुदरती परिवेशों में जीते हैं. कितनी अद्भुत बात है कि प्रवासी पक्षियों ने मौसम के हिसाब से अलग-अलग घर बनाए. गर्मियों के लिए एक जगह को चुना और सर्दियों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी सैकड़ों किलोमीटर दूर कहीं कतार बांधकर पहुंचते रहे. यह क्या है? मुश्किलों से पार पाकर जीना, बदलते हालात के मुताबिक ढलना, अपनी प्रजाति को बचाए रखने की अकूत इच्छाशक्ति, यानी इवॉल्यूशन का सार!