पिछले हफ्ते अंटार्कटिक और आर्कटिक दोनों ही जगह तापमान में अचानक ऐसा उछाल आया कि सारे रिकॉर्ड टूट गए. वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं कि अचानक यह वृद्धि क्यों हुई.
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बीती 19 मार्च को पूर्वी अंटार्कटिक में कुछ जगहों पर तापमान औसत से 40 डिग्री ज्यादा दर्ज किया गया. मौसम विज्ञानी इटिएने कापीकियां ने ट्वीट कर बताया कि समुद्र से 3,234 मीटर ऊंचाई पर स्थित कॉनकॉर्डिया मौसम स्टेशन पर -11.5 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ जो अब तक का सबसे ज्यादा है.
इसी तरह अंटार्कटिक के वोस्तॉक स्टेशन पर तापमान 15 डिग्री से ज्यादा उछल गया जबकि मौसमी घटनाओं पर नजर रखने वाले मैक्सीमिलानो ने ट्वीट किया कि टेरा नोवा बेस पर तापमान सामान्य से 7 डिग्री ज्यादा था.
प्रलयकारी ग्लेशियर के टूटने का खतरा
ग्लोबल वॉर्मिंग ने अंटार्कटिका के सबसे बड़े हिमखंडों में से एक थ्वेट्स को खतरे में डाल दिया है. अगर इस ग्लेशियर से बर्फ टूटी तो बहुत सारा पानी समुद्र में जाएगा और उसके जलस्तर को नाटकीय रूप से बढ़ा देगा.
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प्रलय का बड़ा खतरा
यह ग्लेशियर जितना विशालकाय है, खतरा उतना ही बड़ा है. इसका आकार 1,92,000 वर्ग किलोमीटर है यानी लगभग युनाइटेड किंग्डम जितना. इसका एक तिहाई हिस्सा बर्फ के तैरते हुए टुकड़े हैं, जिनमें दरारें बढ़ती जा रही हैं.
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कांच की तरह बिखर सकती है बर्फ
शोधकर्ताओं को डर है कि इस हिमखंड में कुछ नाटकीय बदलाव हो रहे हैं. यह संभव है कि अगले तीन से पांच साल में 45 किलोमीटर लंबा बर्फ का एक टुकड़ा कार के शीशे की तरह चूर-चूर हो जाए.
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समुद्र जल स्तर बढ़ने का खतरा
अगर बर्फ का यह टुकड़ा टूटता है तो विशाल मात्रा में बर्फ पानी में जाकर पिघल जाएगी. इससे और ज्यादा बर्फ के टुकड़े टूटेंगे.
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ऐसा कई जगह हो रहा है
अगर ऐसा होता है तो यह अकेली घटना नहीं होगी. जुलाई 2017 में पश्चिमी अंटार्कटिका में ए68 नाम का एक हिमशैल लार्सन सी आइस शेल्फ से टूट कर अलग हो गया था. वैसे तो बर्फ के टुकड़े यूं टूटते रहते हैं लेकिन सर्दियों में ऐसा होने का खतरा वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि थ्वेट्स के साथ जो हो रहा है उसकी वजह जलवायु परिवर्तन है. बर्फ के नीचे के पानी का तापमान बढ़ रहा है जिस कारण बड़े हिस्से पिघल गए हैं और ग्लेशियर गुफाएं बन गई हैं. पिछले 30 साल में यह प्रक्रिया बेहद तेज हुई है.
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25 इंच बढ़ जाएगा स्तर
यदि थ्वेट्स ग्लेशियर पूरी तरह टूट जाता है और इसकी सारी बर्फ पिघल जाती है तो समद्र का जलस्तर 25 इंच या 65 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है.
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प्रयलकारी ग्लेशियर
थ्वेट्स का टूटना प्रलयकारी हो सकता है. इस कारण आसपास के ग्लेशियर भी टूट सकते हैं. पूरे पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ पिघल सकती है. नतीजा होगा जलस्तर में 3.3 मीटर की बढ़त. इसीलिए इस ग्लेशियर को प्रलयकारी कहा जाता है.
यही हाल धरती के दूसरे सिरे पर भी था. आर्कटिक पर मार्च के औसत तापमान में 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. नॉर्वे और ग्रीनलैंड में भी गर्मी के नए प्रतिमान स्थापति हो रहे हैं.
यूं तो वैज्ञानिक कहते रहे हैं किजलवायु परिवर्तनका असर ऐसे अचानक उछाल के रूप में यदा-कदा दिखता रह सकता है लेकिन बीते हफ्ते अचानक ऐसा क्या हुआ कि धरती के दो सिरों पर एक ही वक्त तापमान एक साथ उछल गया? वैज्ञानिक इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं.
अंटार्कटिक में वायुमंडलीय नदी
वैज्ञानिक इस बात को लेकर संदेह जता रहे हैं कि दो सुदूर जगहों पर हुए एक जैसे उछाल के पीछे कोई एक ही वजह है. ऑस्ट्रेलिया के अंटार्कटिक कार्यक्रम में काम कर रहे वैज्ञानिक साइमन एलेग्जैंडर कहते हैं कि यह एक संयोग हो सकता है.
ऑस्ट्रेलियाई समाचार प्रसारक एबीसी को दिए एक इंटरव्यू में एलेग्जैंडर ने कहा, "संभव है कि यह एक संयोग हो लेकिन वैज्ञानिकों को ध्यान पूर्व अध्ययन करके इस बात की पुष्टि करनी होगी कि यह एक संयोग ही था."
समुद्र के नीचे है एक खूबसूरत और अनूठी दुनिया
हाल ही में अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों को सतह के तनी हजार फीट नीचे बर्फ में कुछ जीव मिले. समुद्र की सतह के नीचे वाकई इस तरह के कई दुर्लभ जीव रहते हैं. एक नजर दुनिया के सबसे रोचक जल-जंतुओं पर.
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एक नया रहस्य
अंटार्कटिका में सैकड़ों मीटर मोटी बर्फ की स्थायी चादर के नीचे वैज्ञानिकों को ऐसे जीव मिले हैं जिन्होंने अंधेरा और शून्य से नीचे के तापमान जैसी कठोर परिस्थितियों में जीना सीख लिया है. यह जीव स्पंज से मिलते जुलते हैं और यह खुले समुद्र से 260 किलोमीटर दूर पाए गए हैं. इनकी प्रजाति के बारे में अभी तक स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है.
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वाइपरफिश
गहरे समुद्र में बहुत ज्यादा दबाव, ना के बराबर रौशनी और बहुत कम खाना होता है. इसलिए वहां रहने वाले जीव खुद को विशेष रूप से उन हालातों में जिंदा रहने के काबिल बना लेते हैं. वाइपरफिश का बड़ा सा मुंह और पैने दांत यह सुनिश्चित करने में उसकी मदद करते हैं कि उन्हें कभी भी भूखा ना रहना पड़े.
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हैमरहेड शार्क
शोधकर्ताओं का मानना है कि हैमरहेड शार्कों का सपाट और दोनों सिरों से फैला हुआ सर उन्हें ज्यादा ऊंचा दृष्टि क्षेत्र देता है. इसकी मदद से अपने शिकार को बेहतर खोज पाती हैं.
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मडस्किप्पर
मडस्किप्पर शायद यह फैसला नहीं कर पाईं कि उन्हें जमीन ज्यादा पसंद है या पानी और इस वजह से उन्होंने समझौता कर लिया और दोनों जगह रहने की जरूरतों को अपना लिया. यह होती तो हैं मछलियां लेकिन अपने विशेष पंखों का इस्तेमाल जमीन पर चलने के लिए भी कर सकती हैं. ये उभयचरों की तरह अपनी चमड़ी के जरिए सांस भी ले सकती हैं.
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प्लाइस
प्लाइस एक फ्लैटफिश होती है. इसका शरीर समुद्र के तलछट के रंगों में घुल-मिल जाता है. बड़े होते होते इसकी दोनों आंखें सिर के एक ही तरफ आ जाती हैं.
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वॉटर ड्रैगन
यह देखने में एक अष्वमीन या सीहॉर्स की तरह लगता है लेकिन असल में यह है रेड सी ड्रैगन नाम की एक दुर्लभ समुद्री मछली. इनकी पहचान 2015 में हुई थी लेकिन शोधकर्ता हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट के पास इन्हें ठीक से देखने में सफल हुए हैं. इन्हें 50 मीटर की गहराई में खाना खाते देखा गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Scripps Oceanography/UC San Diego
सीहॉर्स
असली सीहॉर्स भी काफी अजीबो-गरीब होते हैं. ये खड़े खड़े तैरने वाली चंद प्रजातियों में से एक हैं, लेकिन यह ठीक से हो नहीं पाता जिसकी वजह से ये अच्छे तैराक नहीं होते हैं. इनमें नर गर्भ धारण कर गर्भाशय में अंडे रखता है और फिर बच्चों को जन्म देता है.
तस्वीर: Sea Life Sydney Aquarium
एंगलरफिश
यह मछली अपने शिकार को अपने सिर के ऊपर निकले हुए मांस के टुकड़े इलीशियम से आकर्षित करती है. इलीशियम की नोक से रौशनी निकलती है जिसकी तरफ शिकार जिज्ञासा-वश खिंचा चला आता है और फिर यह मछली उसे अपने विशाल मुंह से निगल जाती है. यह मछली दुनिया में लगभग हर जगह पाई जाती है, यहां तक कि गहरे समुद्र में भी.
तस्वीर: RIA Novosti
इलेक्ट्रिक ईल
इस तरह का नाम होने के बावजूद इलेक्ट्रिक ईल कोई ईल नहीं बल्कि एक नाइफ मछली होती है. हां इसमें बिजली जरूर होती है और यह अपने शिकार को मारने के लिए 600 वोल्ट तक के बिजली के शक्तिशाली झटके दे सकती है. शोधकर्ताओं को पता चला है कि यह मछली बिजली के उच्च वोल्टेज के अपने बहाव का इस्तेमाल एक उच्च कोटि के ट्रैकिंग उपकरण की तरह भी करती है, ठीक वैसे जैसे चमगादड़ अपनी प्रतिध्वनि यानी एको का इस्तेमाल करते हैं.
तस्वीर: imago/Olaf Wagner
बैंडेड आर्चरफिश
यह मछली खारे पानी में रहती है और शिकार करने के लिए एक अनूठे तरीके का इस्तेमाल करती है. यह हवा में पानी का एक फव्वारा मार कर कीड़ों को मार गिराती है. बड़ी मछलियां तीन मीटर तक की दूरी से भी शिकार कर सकती हैं.
यह मछली रेत में छिप कर अपने शिकार के गुजरने का इंतजार करती है और जैसे ही शिकार उसके सिर के ऊपर से गुजरता है वह तेजी से ऊपर की तरफ निकलती है और उसे खा जाती है. इनकी आंखें ऊपर की तरफ होती हैं और एक बड़ा ऊपर की तरफ मुड़ा मुंह होता है. यह मछली अगर कभी आपको दिखे तो बच के रहिएगा, यह जहरीली होती है.
तस्वीर: picture-alliance / OKAPIA KG
पफर फिश
इस मछली का पेट इलास्टिक के जैसे होता है जिसे यह खतरे का आभास होने पर पानी से भर लेती है. ऐसा करने से इसका आकार बहुत बड़ा हो जाता है और यह लगभग गोलाकार हो जाती है. यह टेट्रोडोटॉक्सिन छोड़ती हैं जो इंसानों की जान ले सकता है. जापान में इसे खाया भी जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/Itsuo Inouye
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दक्षिणी गोलार्ध में पिछले हफ्ते एक मौसमी घटना हुई थी जिसने अंटार्कटिक के तापमान को एकाएक बढ़ा दिया हो. दक्षिणी सागर से उच्च दबाव का क्षेत्र अंटार्कटिक की ओर गया था. डॉ. एलेग्जैंडर कहते हैं कि, "ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्व में दक्षिणी सागर पर अत्याधिक उच्च दबाव का विशाल क्षेत्र बन गया था. इसने बहुत ज्यादा नमी से भरी हवा को अंटार्कटिक की ओर धकेला, जहां यह इतनी गर्म थी कि तट पर बारिश बनकर बरसी."
डॉ. एलेग्जैंडर कहते हैं कि इस कारण इतनी अधिक बारिश हुई थी कि संभव है अंटार्कटिक पर बारिश का रिकॉर्ड भी टूट गया हो. वैसे, अंटार्टकटिक पर तापमान का यूं अचानक कम-ज्यादा होना अनोखा नहीं है लेकिन हाल की यह घटना अपने आप में अनोखी है क्योंकि इतना बदलाव पहली बार देखा गया है.
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जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार?
अंटार्कटिक पर मौसम में यह बदलाव इसलिए भी अनूठा है क्योंकि इस वक्त वहां दिन लगातार छोटे होते जा रहे हैं और सर्दी बहुत अधिक होनी चाहिए. ठीक उसी वक्त आर्कटिक सर्दी से बाहर निकल रहा है. इसलिए कुछ वैज्ञानिकों ने कहा है कि एक साथ दोनों जगह एक जैसी घटना होना कल्पनीय भी नहीं है.
नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर में काम करने वाले वॉल्ट मायर ने अमेरिकी मीडिया से बातचीत में कहा, "ये एकदम उलटे मौसम हैं. आप उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को एक साथ, एक समय पर पिघलते नहीं देखते."
दुनिया से दूर अकेले अंटार्कटिका में जिंदगी
04:25
हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इसके लिए जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार है. हालांकि वैज्ञानिक इस बात की चेतावनी दे चुके हैं कि दोनों ही ध्रुवों का तापमान जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है. लेकिन उन्होंने तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होने की बात कही है.
डॉ. एलेग्जैंडर बताते हैं कि इन घटनाओं पर ला निन्या और अन्य मौसमी घटनाओं का कितना प्रभाव है, यह जानने के लिए गहन अध्ययन की जरूरत होगी. इन अध्ययनों में महीनों और यहां तक कि सालों भी लग सकते हैं. इस बीच फरवरी में अंटार्कटिक में बर्फ का स्तर 1979 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है.