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जर्मनी में चुनाव नतीजों को आम वोटर भी दे सकते हैं चुनौती

रीना हुवांग-गोल्डेनबर्ग
१५ जनवरी २०२५

जर्मनी में मताधिकार पाने वाले हर इंसान को राष्ट्रीय चुनाव के नतीजों को चुनौती देने का भी अधिकार है और कुछ लोग यह काम करते भी हैं. मगर यह कानून काम कैसे करता है?

जर्मन संसद बुंडेस्टाग की इमारत
बुंडेस्टाग के चुनाव में हर वोटर को उसके नतीजों पर सवाल उठाने का अधिकार हैतस्वीर: picture-alliance/R. Goldmann

जर्मनी में अगले महीने संघीय चुनाव होने हैं, जिसमें छह करोड़ से ज्यादा लोगों को मताधिकार हासिल है. जर्मनी में मताधिकार के साथ-साथ हर मतदाता को और भी कुछ अधिकार मिलते हैं. जर्मनी के चुनाव समीक्षा कानून के मुताबिक हर आदमी जो चुनाव में वोट देने का अधिकारी है, वह चुनाव की वैधता पर सवाल उठा सकता है. इसी तरह से लोगों का कोई समूह भी यह काम कर सकता है. हर चुनाव के बाद नतीजों को सैकड़ों लोग चुनौती देते हैं.

आधिकारिक तौर पर राज्यों के चुनाव अधिकारी, संघीय चुनाव अधिकारी और बुंडेसटाग यानी संसद के निचले सदन के अध्यक्ष भी चुनाव के नतीजों को चुनौती दे सकते हैं. 

जर्मनी में कब और कैसे होते हैं मध्यावधि चुनाव

चुनाव प्रक्रिया में मतदाता सूची के पूरा नहीं होने से लेकर बैलेट पैपरों की छपाई में गड़बड़, गलत बैलेट पेपर की आपूर्ति या फिर ऐसे बैलेट जो पहुंचाए ही नहीं गए, पोलिंग स्टेशनों पर पहचान की पर्याप्त चेकिंग नहीं होना, वोटिंग बूथ में लिखने के लिए उचित सामग्री का इस्तेमाल नहीं होना, मतों की गणना में गलतियां या फिर बैलेट बॉक्स का गायब होना जैसी चीजों के लिए आपत्ति दर्ज कराई जाती है.

जर्मनी के चुनाव में मताधिकार वाले हर शख्स को इसके नतीजों पर सवाल उठाने का हक हैतस्वीर: picture-alliance/R. Goldmann

यह प्रक्रिया काम कैसे करती है?

आपत्तियों को लिखित रूप से बर्लिन के बुंडेसटाग में चुनाव समीक्षा आयोग के पास जमा कराना होता है. यह काम चुनाव के दिन से 2 महीने के भीतर हो जाना चाहिए.

बुंडेसटाग की वेबसाइट पर इस बात का ब्यौरा है कि यह कैसे किया जाना है. इसके साथ ही यह भी लिखा है कि आयोग सिर्फ तभी समीक्षा करेगा जब चुनाव को चुनौती दी जाएगी. वह अपनी ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा.

यह प्रक्रिया मुफ्त है. किसी भी आपत्ति को स्पष्ट रूप से और जितना संभव है उतने ब्यौरे के साथ लिखा जाना चाहिए. हालांकि यह काम ना तो चुनाव के पहले और ना ही अंतिम समय सीमा बीत जाने के बाद होना चाहिए.

चुनाव समीक्षा आयोग सारे आवेदनों पर काम करता है. हर चुनौती पर अलग से फैसला लिया जाता है आर कार्रवाई होती है. कार्रवाई के बाद आपत्ति उठाने वाले हर शख्स को लिखित में जवाब बुंडेसटाग की तरफ से भेजा जाता है.

संसद के किसी भी चुनाव के नतीजे को अयोग्य ठहराने के लिए आपत्तियों में दो चीजों का होना बहुत जरूरी है. पहली शर्त है कि निर्वाचन में गलती ऐसी होनी चाहिए जिससे संघीय चुनाव एक्ट, संघीय चुनााव कोड और संविधान का उल्लंघन हुआ हो. दूसरा ये कि इस निर्वाचन की गलती के कारण बुंडेसटाग में सीटों के बंटवारे पर असर हुआ हो.

चुनाव समीक्षा आयोग

चुनाव समीक्षा आयोग में 9 सदस्य हैं, जिन्हें उनके संसदीय दल नियुक्त करते हैं. आमतौर पर चुनाव के बाद पहले सोमवार तक पहली शिकायत दर्ज हो जाती है. एक-एक कर उन्हें थीम के हिसाब से जमा किया जाता है और फिर आयोग के उन सदस्यों को बांटा जाता है जिससे शिकायतें जुड़ी होती हैं.

सारी अपीलों पर काम करने के लिए आयोग को एक साल के समय की जरूरत होती है. आयोग पहले यह देखता है कि क्या अपील समय पर और उचित तरीके से दर्ज की गई है. कुछ अपीलों का जवाब तुरंत ही दिया जा सकता है, जबकि कुछ के लिए विस्तृत रिसर्च की जरूरत होती है.

आयोग चुनाव अधिकारियों से इस बारे में जानकारी जुटाता है. वह सुनवाई के लिए कुछ लोगों को बुला भी सकता है, जहां गवाहों और विशेषज्ञों को शपथ दिलाकर उनकी सच्चाई परखी जाती है. आयोग की बैठक बंद दरवाजों के पीछे होती है, केवल सुनवाई ही सार्वजनिक रूप से की जाती है. गुप्त बैलट के जरिए प्रस्तावों को बहुमत के आधार पर पारित किया जाता है. गैरहाजिर रहना खारिज करना माना जाता है. सारे फैसले लिखित में दर्ज किए जाते हैं.

कैसे होता है जर्मनी में चुनाव

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अगर आपत्तियां खारिज हो जाएं तो

बुंडेसटाग का चुनाव समीक्षा आयोग जांच के नतीजे और अपनी संस्तुतियां संसद को भेजता है जहां उन पर आखिरी फैसला लिया जाता है. संसद के एक सत्र में यह फैसला लिया जाता है कि क्या राष्ट्रीय चुनावों को दोबारा कराए जाने की जरूरत है. मतदाता चुनाव समीक्षा आयोग की संस्तुतियों को भी चुनौती दे सकते हैं और इसके लिए उनके पास संघीय संवैधानिक अदालत तक जाने का अधिकार है.

फेडरल रिटर्निंग ऑफिस की वेबसाइट के मुताबिक हर संघीय चुनाव के बाद करीब 200 या उससे कुछ कम आपत्तियां दर्ज कराई जाती हैं. इनमें 1994 को एक बड़ा अपवाद माना जाता है. जब समीक्षा आयोग को 1,453  शिकायतें मिली थीं. इसी तरह 2002 के चुनाव के बाद भी 520 शिकायतें दर्ज कराई गईं. इनमें से चार फीसदी से भी कम शिकायतें संवैधानिक अदालत तक पहुंचीं.

जिन आपत्तियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती वे भी इस लिहाज से कारगर हैं कि भविष्य में उन गलतियों से बचा जाए और चुनाव प्रक्रिया को बेहतर किया जाए. इसका एक बढ़िया उदाहरण है, 2012 के चुनावों में दर्ज कराई गई शिकायतें जिनके नतीजे में चुनाव के विधानमंडल में सुधारों को लागू किया गया. जर्मनी में अब तक एक बार भी राष्ट्रीय चुनावों को अवैध घोषित नहीं किया गया है.

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