अंदर से कैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है पाकिस्तान
२३ मई २०२५
पाकिस्तान की सीमाएं जितनी जटिल नजर आती हैं, उससे कहीं अधिक जटिल हैं. देश के भीतर और बाहर पनपता संघर्ष पाकिस्तान को लगातार समस्या में डालता रहता है. बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर जैसे संसाधन-सम्पन्न प्रांत हाशिए पर हैं और पंजाब जैसे प्रांत सत्ता का केंद्र बने हुए हैं. इस तरह का असंतुलन पाकिस्तान में अशांति पैदा करता है.
मार्च में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने बलूचिस्तान के क्वेटा शहर का दौरा किया था. यह दौरा जाफर एक्सप्रेस ट्रेन के हाईजैक की घटना के बाद हुआ था. जरदारी अपने बेटे और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के अध्यक्ष, बिलावल भुट्टो के साथ बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री सरफराज बुगटी से मिले और सुरक्षा स्थिति पर चर्चा की. अरब न्यूज में छपी खबर के अनुसार राष्ट्रपति जरदारी ने कहा, “आतंकवादियों को हर हाल में हराया जाएगा और राज्य की सत्ता को बहाल किया जाएगा.”
पहलगाम हमले के एक महीने बाद भी नाजुक हैं हालात
हाल ही में 21 मई को बलूचिस्तान के खुजदर जिले में एक स्कूल बस को बारूद से भरे वाहन से निशाना बनाए जाने की घटना में कम से कम पांच लोगों की जान गई, जिनमें तीन बच्चे थे. पाकिस्तान ने इस हमले में भारत के शामिल होने का आरोप लगाया और कहा कि वह इसके सबूत अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र के सामने पेश करेंगे.
वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को सख्ती से खारिज करते हुए इसे "निराधार और बेबुनियाद" बताया और कहा, "भारत हर ऐसे हमले में जान गंवाने वालों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है. लेकिन पाकिस्तान अपनी विफलताओं और आतंकवाद को बढ़ावा देने की छवि से ध्यान भटकाने के लिए बार-बार भारत पर झूठे आरोप लगाता है. यह दुनिया को गुमराह करने की कोशिश है, जो कभी सफल नहीं होगी.”
बलूचिस्तान में बढ़ती आजादी की मांग
पाकिस्तान में मुख्य रूप से चार प्रांत हैं, बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, सिंध और पंजाब. इसके अलावा अहम हिस्सा है इस्लामाबाद कैपिटल टेरिटरी (ICT). साल 2023 में हुई जनगणना के अनुसार, पूरे पाकिस्तान की आबादी 24 करोड़ से ज्यादा थी. क्षेत्रफल के हिसाब से उसका सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान लगभग 3.5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है लेकिन उसकी आबादी केवल 1.49 करोड़ के आस पास है, जो पाकिस्तान के बाकी प्रांतों के मुकाबले सबसे कम है. बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान सरकार पर लगातार आरोप लगाते रहते हैं कि सरकार उनके प्रांत के खनिजों से सबसे ज्यादा कमाई करती है लेकिन प्रांत को उसके बदले कोई सुविधा नहीं दी जाती है. उनका यह भी कहना है कि उनके साथ लगातार भेदभाव किया जाता है.
बलूचिस्तान में आजादी की मांग और तेज होती दिख रही है. हाल में बलोच प्रतिनिधि मीर यार बलोच ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स के जरिए पाकिस्तान से स्वतंत्रता की भी घोषणा कर दी. बलूचिस्तान का विद्रोही गुट, बलोच लिबरेशन आर्मी (बीएलए), पाकिस्तानी सेना पर चौतरफा हमला करता रहता है. 18 मई को 'गवर्नमेंट ऑफ बलूचिस्तान' नाम के हैंडल ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर साझा किया कि बीएलए ने पाकिस्तानी सेना पर हमला कर उनके 12 सिपाहियों को मार गिराया. उन्होंने यह भी लिखा, "पाकिस्तान का एक और सिपाही मारा गया. आजादी की यह लड़ाई, आजादी हासिल करके ही रुकेगी.”
मीर यार बलोच ने एक्स पर यह भी लिखा कि पाकिस्तानी सेना ने 40 हजार बलोचों को बंदी बना रखा है. पाकिस्तान कमीशन ऑफ इन्क्वायरी ऑन एनफोर्स्ड डिसअपियरेंसेज के अनुसार, कुल 10,078 लोगों के जबरन गायब किए जाने के मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें से 3,485 मामले खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में और 2,752 मामले बलूचिस्तान में सामने आए. मानवाधिकार संगठनों और पीड़ितों के परिवारों का कहना है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद चीन के हथियारों पर क्यों रही है चर्चा
बलोच लोगों के हक के लिए खुलकर बोलने वाली कार्यकर्ता महरंग बलोच अब विरोध का प्रतीक बन गई हैं. 8 अक्टूबर 2024 को उन्होंने एक्स पर साझा किया था कि उन्हें बिना किसी वैध कारण के कराची इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर विदेश जाने से रोक दिया गया था. उन्होंने लिखा था, "मुझे बिना किसी कानूनी कारण के रोका गया, जो मेरी 'आजादी से आवाजाही' के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन है.” इसके बाद दिसंबर 2024 में, खबर आई कि महरंग को रहस्यमय हालात में अगवा कर लिया गया.
फिर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान को तुरंत महरंग बलूच, समी दीन बलोच और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा, “हमें इन कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को लेकर चिंता है. पाकिस्तान सरकार को तुरंत यह साफ करना चाहिए कि जो लोग जबरन गायब किए गए हैं, उनका क्या हुआ और वे कहां हैं.”
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खैबर पख्तूनख्वा में आतंक की छाया
बलूचिस्तान के अलावा खैबर पख्तूनख्वा भी लगातार ऐसे विवादों से घिरा रहता है. यह अफगानिस्तान से सटा हुआ इलाका है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान को बांटने वाली डूरंड रेखा यहां लगातार विवाद का मुद्दा बनी रहती है, क्योंकि इस रेखा ने प्राचीन पश्तूनिस्तान को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बांट दिया था. ऐसे में यह इलाका अक्सर आतंक का केंद्र बन जाता है.
चरमपंथी समूहों के गठबंधन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर पाकिस्तान के भीतर हमले करने का आरोप लगाया जाता है, विशेष रूप से खैबर पख्तूनख्वा में. पाकिस्तान की सरकार को गिराने की मंशा रखने वाला यह समूह सैनिकों, पुलिसकर्मियों और आम नागरिकों पर बम धमाकों और गोलीबारी के जरिए कहर बरपा रहा है. पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज के आंकड़ों के अनुसार, 2024 के पहले आठ महीनों में 757 लोगों की जान गई और लगभग इतनी ही संख्या में लोग घायल भी हुए.
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तालिबान की टीटीपी के साथ विचारधारा में समानता और डूरंड रेखा को औपचारिक सीमा के रूप में मान्यता देने से इनकार करने से पाकिस्तान की स्थिति और जटिल हो जाती है. 'द डिप्लोमेट' की एक रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी ने टीटीपी को नया जोश और हौसला दिया है. इससे खैबर पख्तूनख्वा में टीटीपी की स्थिति और मजबूत हुई है.
इसके बाद पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई. जिहाद एंड टेररिज्म थ्रेट मॉनिटर के अनुसार, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के हमलों की संख्या 2021 से 2024 के बीच तीन गुना से अधिक बढ़ गई है. 2020 में जहां हर महीने औसतन 14.5 हमले होते थे, वहीं 2022 में यह संख्या बढ़कर 45.8 हमलों प्रति माह तक पहुंच गई. यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है.
पाकिस्तान शासित कश्मीर का विवाद
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के अलावा कश्मीर मुद्दा तो पाकिस्तान के लिए हमेशा से काफी गंभीर रहा है. यह मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच हुई कई लड़ाइयों की वजह भी रहा है. हाल में पहगाम हमले के बाद जब दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव हुआ, तो कश्मीर के मुद्दे पर फिर चर्चा होने लगी. इस तरह का विवाद और आतंकवाद पाकिस्तान में सीमा से सटे इलाकों को गंभीर रूप से प्रभावित करता रहा है.
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के उत्तरी भाग को गिलगित-बाल्टिस्तान के नाम से जाना जाता है. गिलगित-बल्तिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन, असहमति की आवाजों को दबाने और शिया समुदाय के उत्पीड़न के आरोप वैश्विक स्तर पर लगाए जाते रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में पत्रकारों को अपना काम करते समय लगातार धमकियों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) के अनुसार, गिलगित-बल्तिस्तान में पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों ने पत्रकारों को चीन-पाकिस्तान आर्थिक (सीपीईसी) गलियारा परियोजनाओं की आलोचना न करने की चेतावनी दी है.
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इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के अनुसार, गिलगित-बल्तिस्तान के लोग असंतुष्ट हैं क्योंकि उनका मानना है कि सीपीईसी परियोजनाएं "बिना उनकी भागीदारी के तैयार और लागू की गईं" और "इनसे उन्हें बहुत कम लाभ होगा." स्थानीय लोगों का मानना है कि सीपीईसी से जुड़े अधिकांश रोजगार पाकिस्तान के अन्य प्रांतों से आने वाले बाहरी लोगों को मिलेंगे, और इससे "गिलगित-बल्तिस्तान के नाज़ुक सुन्नी-शिया संतुलन पर भी असर पड़ सकता है."
जून 2018 की एक रिपोर्ट में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने पाकिस्तान के संविधान में "वास्तविक मुस्लिम" की परिभाषा का हवाला दिया और कहा कि इस परिभाषा का दुरुपयोग अल्पसंख्यक अहमदिया समुदाय के खिलाफ भेदभाव करने के लिए किया जाता है.
जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ), जम्मू और कश्मीर नेशनल अवामी पार्टी (जेकेएनएपी), यूनाइटेड कश्मीर पीपल्स नेशनल पार्टी (यूकेपीएनपी) और मिशन जैसे संगठन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं. वह मानते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक धरोहरों से भरपूर होने के बावजूद, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के लोगों को तरक्की और अवसरों से वंचित रखा गया है.