दुनियाभर के शेयर बाजारों में पिछला एक हफ्ता नए रिकॉर्ड बनाने वाला रहा है. एआई शेयरों की लहर पर सवार ये शेयर बाजार कहीं एक और बबल की ओर तो नहीं बढ़ रहे?
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एआई चिप बनाने वाली कंपनी की नविदिया (Nvidia) ने दुनियाभर के शेयर बाजारों में उथल-पुथल मचा रखी है. कंपनी की मार्किट कैपिटलाइजेशन 100 अरब डॉलर को पार कर गई है. पिछली तिमाही में कंपनी ने रिकॉर्ड 24 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया, जिसके बाद तमाम टेक कंपनियों के शेयरों के भाव ऊपर की ओर भागने लगे.
जापान का शेयर इंडेक्स निकेई तो 1989 के बाद के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया. पिछले कुछ हफ्तों में जिस तरह दुनियाभर के शेयर बाजारों में ऊफान दिखा है, उससे कई विशेषज्ञों को आशंका हो रही है कि बाजार में नया बुलबुला तो नहीं बन रहा है. इसे वे एआई बबल कह रहे हैं.
एआई बबल
फॉर्च्यून पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में लंदन स्थित थिंक टैंक बीसीए रिसर्च के चीफ स्ट्रैटिजिस्ट धवल जोशी ने कहा, "हम एआई बुलबुले के भीतर हैं. कुछ (कंपनियों के) नतीजों ने हमें हतप्रभ कर रखा है.”
नविदिया के शेयर 16 फीसदी से ज्यादा चढ़ गए हैं और इस लहर पर सवार होकर अमेरिका के एसएंडपी 500 इंडेक्स, डाउ जोंस, यूरोप का स्टॉक्स 600 इंडेक्स और एमएससीआई का वर्ल्ड इंडेक्स रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह तकनीकी कंपनियों को लेकर उत्साह का नतीजा है.
2023 में कितनी बदली सोशल मीडिया की दुनिया
ट्विटर नहीं रहा, लेकिन एक्स और थ्रेड्स पैदा हुए. एआई के चर्चे धीरे-धीरे हर जुबान पर आ गए. एक नजर 2023 में सोशल मीडिया की बड़ी हलचलों पर.
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ट्विटर बिका, एक्स हुआ
एक साल पहले इलॉन मस्क ने ट्विटर को खरीद उसके सीईओ समेत कई बड़े अधिकारियों को निकाल दिया और बदल कर एक्स बना दिया. जुलाई में लोगो सामने आया और नीले रंग की चिड़िया हर जगह से उड़ा दी गई.
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कम हुआ प्लेटफॉर्म का स्टेटस
मशहूर हस्तियों के सक्रिय होने के कारण 17 सालों में ट्विटर का पॉप कल्चर पर काफी असर रहा है. मस्क के खरीदने से पहले ही उसमें कमी आ चुकी थी. हालांकि अब भी छोटे-मोटे समूहों के लिए ये अहम अड्डा बना हुआ है.
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मस्क इफैक्ट
गलत जानकारियां फैलाने और नस्लवाद जैसे कई आरोप मस्क की इस कंपनी पर लगे. कंपनी की विज्ञापनों से कमाई और यूजर्स की तादाद में भी भारी कमी दिखी. ट्विटर पर बैन कई हस्तियों को मस्क एक्स पर वापस ले आए.
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मैस्टोडॉन, ब्लूस्काई और थ्रेड्स
मस्क के एक्स से नाखुश लोगों के लिए कई नए विकल्प सामने आए. ट्विटर से ही निकले मैस्टोडॉन, ब्लूस्काई जैसे कई प्लेटफॉर्म पेश हुए. इसकी मांग को देखते हुए फेसबुक की पेरेंट कंपनी भी अपना प्लेटफॉर्म थ्रेड्स लेकर आ गई.
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थ्रेड्स के खुल गए धागे
जुलाई में थ्रेड्स के खूब चर्चे हो रहे थे. दुनिया भर में करोड़ों लोगों ने साइन अप किया. लेकिन दिसंबर में मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने अपने इस बयान ने सबको चौंका दिया कि उनकी कंपनी 'इंटरऑपरेबिलिटी' को टेस्ट कर रही है.
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क्या है 'इंटरऑपरेबिलिटी'
मैस्टोडॉन और ब्लूस्काई पहले से ही 'इंटरऑपरेबिलिटी' पर काम रहे हैं. आइडिया यह है कि जैसे हम सबका कोई फोन नंबर और ईमेल अकाउंट होता है, वैसे ही हमारे सोशल मीडिया अकाउंट हों जिन्हें हम किसी भी प्लेटफॉर्म पर यूज कर सकें.
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थ्रेड्स पर दिखा नमूना
दिसंबर में मार्क जकरबर्ग ने थ्रेड्स पर पोस्ट किया कि थ्रेड्स अकाउंट मैस्टोडॉन और दूसरी ऐसी सर्विसेज पर उपलब्ध रहेंगे, जो एक्टिविटीपब प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करते हैं. माना जा रहा है कि इससे यूजर्स पहले से कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ पाएंगे.
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मेंटल हेल्थ की चिंताएं
लोगों, खासकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के बुरे असर को लेकर इस साल खूब चर्चा हुई. अमेरिकी सर्जनों ने कहा कि इसके पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि सोशल मीडिया बच्चों और टीनएजर्स के लिए सुरक्षित है.
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टेक कंपनियों और पेरेंट्स से मांग
मजबूत सामाजिक संबंधों को सेहत की कुंजी मानने वाले अमेरिका के 'नेशनल डॉक्टर' सर्जन जनरल डॉक्टर विवेक मूर्ति कह चुके हैं कि पेरेंट्स को अपने बच्चों को सोशल मीडिया से बचाना होगा. उनका कहना है कि इसके इस्तेमाल से बच्चों की दुनिया के बारे में और खुद अपने बारे में राय तक बदल जाती है.
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अमेरिकी मां-बाप सवाल उठा रहे हैं, और आप?
अक्टूबर में अमेरिका के दर्जनों राज्यों ने मेटा को सू कर दिया. आरोप लगाया कि वह युवाओं को नुकसान पहुंचा रहा है और उनके मानसिक स्वास्थ्य के साथ जानबूझ कर खेल रहा है. खासकर इंस्टाग्राम और फेसबुक के ऐसे फीचरों पर सवाल खड़े किए गए हैं, जिनकी लत लग जाती है.
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नविदिया के संस्थापक और मुखिया जेन्सन ह्वांग ने एक बयान जारी कर कहा, "तेज कंप्यूटिंग और जेनरेटिव एआई ने एक बड़े सिलसिले की शुरुआत कर दी है. तमाम कंपनियों, उद्योगों और देशों में मांग बढ़ रही है.”
लेकिन शेयर बाजारों का इस तरह चढ़ना असामान्य लगता है क्योंकि दुनियाभर की आर्थिक हालत तंग है. ब्याज दरें कई साल बाद लगातार इतने समय तक इतनी अधिक हैं और किसी भी देश से उनके कम होने के संकेत फिलहाल नहीं मिल रहे हैं. अमेरिका, यूरोप और एशिया में बेरोजगारी घटने की खबरें आने के बावजूद केंद्रीय बैंक ब्याज दरें घटाने से परहेज कर रहे हैं क्योंकि महंगाई अभी भी काबू में नहीं आई है. दुनिया में दो बड़े युद्ध जारी हैं, जिनका सीधा असर सामान की सप्लाई पर हो रहा है. ऐसे में शेयर बाजारों का इतना चढ़ना हैरान कर रहा है.
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने पिछले दो साल में खूब चर्चा बटोरी है. बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि एआई दुनिया के भविष्य का नया अध्याय लिख रही है, इसलिए यह चर्चा जायज है. न्यू यॉर्क स्थित ग्रेट हिल कैपिटल एलएलसी के चेयरमैन थॉमस हेज कहते हैं कि पिछले दो दशक से अर्थव्यवस्थाएं आगे बढ़ने के लिए जिस रास्ते को खोज रही थीं, वह एआई ने दे दिया है.
हेज कहते हैं, "नविदिया दरअसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक उत्प्रेरक का प्रतीक है. जब उत्पादकता बढ़ेगी तो महंगाई पर काबू रहेगा.”
इस भावना ने बाजार में एक उत्साह पैदा कर दिया है और तमाम निवेशक इस उत्साह की लहर पर सवार हैं. यहां तक कि वे नई-नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं. ‘द लेवलिंग' किताब के लेखक और वित्तीय मामलों के जानकार माइक ओ सलिवन बताते हैं कि मॉर्गन स्टेनली बैंक के एक अधिकारी ने तकनीकी कंपनियों की बढ़ती कीमत को ‘प्राइस ऑफ इनोवेशन रेश्यो' नाम दिया है.
यानी किसी कंपनी की कीमत और उसकी कमाई व रिसर्च पर उसके खर्च का अनुपात. यानी जिन कंपनियों की आय कम है वे अगर रिसर्च और डिवेलपमेंट पर भारी खर्च कर रही हैं, तो भले ही उस रिसर्च से कुछ हासिल हो या ना हो, उस कंपनी की ‘आकर्षित कीमत' बढ़ जाएगी.
क्या इंसान की जगह ले लेंगे रोबोट?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक में विकास ने यह डर भी पैदा कर दिया है कि ये रोबोट या ह्यूमनोएड कहीं इंसान की ही जगह तो नहीं ले लेंगे. देखिए, क्या ऐसा हो सकता है?
तस्वीर: YouTube/CNET
आइंस्टाइन जैसा बुद्धिमान और मजाकिया
हांगकांग की कंपनी हैन्सन रोबोटिक्स इंसानों जैसे दिखने वाले रोबोट बनाती है. इसका एक रोबोट है प्रोफेसर आइंस्टाइन. कंपनी कोशिश कर रही है कि यह रोबोट महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन जितना बुद्धिमान हो जाए.
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कितना ज्यादा इंसानी
रोबोट दिखने में भी इंसान जैसे लगें, इसके लिए फ्रबर नाम के एक त्वचा जैसे पदार्थ का विकास किया जा रहा है. नैनोटेक्नोलॉजी पर आधारित इस त्वचा से बने रोबोट के हाव-भाव भी इंसानों जैसे होंगे.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
पहली नागरिक, सोफिया
सोफिया दुनिया की पहली ऐसी रोबोट है जिसके पास नागरिकता भी हासिल है. सऊदी अरब ने उसे अपनी नागरिकता दी है और वह संयुक्त राष्ट्र की इनोवेशन दूत के रूप में भी काम करती है.
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सारे कामों में सक्षम
रोबोट बियोमनी को अमेरिकी कंपनी बियॉन्ड इमैजिनेशन ने बनाया है. यह रोबोट बर्तन धोने से लेकर इंजेक्शन लगाने तक हर तरह का काम कर सकती है. इसे अंतरिक्ष में ले जाने की भी योजना है.
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कलाकार रोबोट
आइ-डा एक रोबोट-आर्टिस्ट है जिसे 'इंजीनियर्ड आर्टिस्ट' कंपनी ने बनाया है. 2019 में बना यह रोबोट दुनिया का पहला रोबोटिक आर्ट सिस्टम है और एल्गोरिदम से ड्राइंग, पेंटिंग और मूर्तियां बना सकता है.
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कौन है असली, कौन है नकली
जापानी रोबोटविज्ञानी हिरोशी इशीगुरो का बनाया यह रोबोट जेमिनोएड उनका हमशक्ल है. उन्होंने जापान के तकनीकी मंत्री तारो कोनो का रोबोटिक क्लोन भी बनाया है. जेमिनोएड अमेरिका में कई कार्यक्रम कर चुका है, बिना इशीगुरो की मदद के.
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ऑफिस वर्कर लेना
जर्मनी में 2022 में बनी लेना को ‘लीप इन टाइम‘ लैब में विकसित किया गया. वह आठ हफ्ते तक एक दफ्तर में बाकी लोगों के साथ सहकर्मी के रूप में काम कर चुकी है. वहां वह प्रेजेंटेशंस भी दे रही थी.
तस्वीर: Boris Roessler/dpa/picture-alliance
एआई के खतरे
‘गॉडफादर ऑफ एआई’ कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन ने गूगल में अपनी नौकरी छोड़ दी. वह कहते हैं कि एआई इंसानियत के लिए बेहद खतरनाक है और इसका विकास जिस तेजी से हो रहा है, बहुत जल्द बड़े बदलाव दिख सकते हैं.
फोर्ब्स पत्रिका में एक लेख में सलिवन लिखते हैं कि जब भी वित्त-बाजार के लोग कीमत आंकने के नए-नए तरीके खोजने लगें, तो उनके कान खड़े हो जाते हैं. वह लिखते हैं, "2000 के दशक में विश्लेषकों ने इंटरनेट स्टॉक्स के लिए ‘प्राइस टु क्लिक्स' का नाम दिया था. बेशक, उसका अंत बहुत बुरा हुआ.”
इतिहास गवाह है
दरअसल, सलिवन डॉट कॉम बबल की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसके कारण 2000 के दशक का मार्किट क्रैश हुआ था. उसकी वजह इंटरनेट कंपनियों के शेयरों के अत्यधिक भाव थे, जो असल कीमत से कहीं ज्यादा था. नतीजा यह हुआ कि जब भाव गिरने लगे तो उन्हें संभलने के लिए कोई आधार नहीं मिला. उस कारण अमेरिका समेत दुनियाभर के बाजार गिरे थे और लोगों के अरबों डॉलर डूब गए थे. विश्लेषकों को आशंका है कि ठीक वैसा ही एआई बबल के साथ ना हो जाए. सलिवन लिखते हैं, "प्राइस टु इनोवेशन जैसे विचार से शेयर मार्किट बबल का डर पैदा होना जाना चाहिए, खासतौर पर एआई आधारित स्टॉक्स को लेकर. किसी बबल को परिभाषित करना मुश्किल होता है लेकिन एक मशहूर कहावत है कि ‘देखोगे तो समझ जाओगे.”
क्या 2024 में आ जाएगी उड़ने वाली कार?
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इतिहास में जब भी बाजारों के बुलबुले फूटे हैं, वे किसी नई ईजाद के कारण ही बने थे. चाहे वह 1930 में रेलवे का विकास हो या फिर 1990 के दशक में इंटरनेट का. इन नई खोजों पर आधारित चंद कंपनियां मिलकर ऐसा माहौल बनाती हैं कि उनकी वैल्युएशन ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच जाती है.
पिछले एक हफ्ते में ही कई बड़ी कंपनियों ने अपने तिमाही नतीजे जारी किए हैं और अधिकतर तकनीकी कंपनियों ने बढ़िया आय दिखाई है. लेकिन उनकी रेवन्यू ग्रोथ बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं है, जो एआई के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साह का संकेत देती है.